बेपनाह - 22 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 22

22

“ऋषभ यह कमरा कितना प्यारा है न।”

“हाँ यह कमरा हनीमून के लिए सबसे अच्छा है, हम लोग भी यही हनीमून के लिए मनायेंगे।”

“कैसी बात करते हो ऋषभ ? पहले शादी तो करो ?”

“हाँ भाई शादी के बाद ही हनीमून मनाया जाता है।”

ठीक है, चलो अब नीचे चले?

“नहीं, थोड़ी देर यही पर बैठते हैं ! कितना सुंदर व्यू दिख रहा है यहाँ से ।”

पहाड़ों की घनी श्रंखला, एक के पीछे एक करते हुए कितने ज्यादा पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं ! दूर से बीच में काली घुमाव दार सड़क किसी लग रही थी ! एक साफ और ठंडी हवा का झोंका बार उन लोगों के तन को आकर सहला जा रहा था मानों उनके सर पर अपना आशीर्वाद वाला हाथ रख कर दुआ दे रहा हो ! यह पहाड़ यह प्रकृति सब हमारे ईश्वर होते हैं और हमें हमेशा अपनी छत्र छाया में सुख देते हैं।

“भैया जी चाय लाई हूँ !” नीचे से सोनी ने आवाज लगते हुए कहा !

“सोनी ऊपर ले आओ !”

कुछ ही देर में एक पतली दुबली सी लड़की एक ट्रे में चाय के दो गिलास और नमकीन ले कर कमरे में आ गयी ! उसने पहले चाय की ट्रे को साइड में रखे स्टूल पर रखा फिर दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की और नीचे चली गयी ! उसने एक बार भी यह नहीं पूछा कि भैया यह कौन हैं उसके पापा ने भी नहीं पूछा था ! क्या ऋषभ इस तरह से यहाँ आता रहता है ? उसके मन में शंका का भाव उपजा !

“ऋषभ तुम यहाँ आते रहते होगे न ?” मन की शंका लबों पर आ गयी !

“नहीं यार, कहाँ आना हो पाता है ! पिछली बार मम्मी और दीदी के साथ आया था ! उन लोगों ने आने की ज़िद जो पकड़ ली थी।”

“ओहह ! तो यह घर कैसे बनवाया ?”

“फोन पर बता देता था यहाँ काकु सब काम करवाते रहे। मेरे पास समय नहीं था और बीच में थोड़ा बीमार भी हो गया था।”

“चलो पहले जल्दी से चाय खत्म करो फिर बाग में चलते हैं।”

“ठीक है ! ऋषभ एक बात बताओ ?”

“हाँ यार पूछो न।“

“यहाँ पर लड़कियां कितना काम करती हैं न ?”

“हाँ यह पहाड़ पर रहने वाले सभी बहुत मेहनती होते हैं पर लड़कियां, औरतें कुछ ज्यादा ही मेहनती होती हैं।”

“वो क्यों?”

“क्योंकि इन को घर में और बाहर बाग में भी सब काम करने पड़ते हैं ! गाय का काम भी यही करती हैं ! समझ लो पहाड़ की महिलायेँ और लड़कियां ही किसी मजदूर की तरह से काम करने में माहिर होती हैं ! सारे काम बड़ी आसानी से कर लेती हैं ! तुमने शायद कल रूपोली को देखकर महसूस कर ही लिया होगा, हैं न ?”

“हाँ ! पता है आज मुझे अपनी मम्मी की बहुत याद आ रही है वे भी बिना थके हर वक्त काम करती हैं ! इस समय उनकी थोड़ी तबियत खराब चल रही है।”

“ओहह तुमने बताया क्यों नहीं ? चलो पहले उनसे बात कर लो।” ऋषभ ने उसके हाथ में मोबाईल पकड़ा दिया ।

“अभी करूँ ?”

“हाँ अभी करो।”

“अगर वे पूछेंगी कि तुम कहाँ हो ? तब क्या कहूँगी ?”

“जो मन करे वो कह देना लेकिन बात कर लो और उनके हाल ले लो।“

“ठीक है अभी कर रही हूँ ! शुभी की आँखें खुशी से छलक पड़ी ऋषभ की बातों से जिसमें उसकी माँ के लिए फिक्र की भावना थी ।

शुभी ने मम्मी का नंबर डायल किया, उधर से माँ की आवाज सुनाई दी तो उसकी आँखें खुशी से छलक पड़ी, “माँ आप कैसी हो? आपकी बहुत याद आ रही थी।“

माँ मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम अपना ख्याल रखना, मैं आपसे फिर बात करती हूँ ! अपनी तबियत का ख्याल रखना और मैं जल्दी ही वापस आती हूँ ! ओके बाय मम्मी ! कहकर शुभी ने फोन काट दिया।

बहुत जल्दी फोन काट दिया ! क्या माँ से बात करने का मन नहीं हो रहा था !

“अरे अपनी माँ से बात करने का किसका मन नहीं करेगा। वो मेरी माँ है तुम चुप करो।”

“डांट क्यों रही हो यार?” ऋषभ इतराया।

“अब चलो बाग में, इत्र क्यों रहे हो ?”

“और यह चाय ?”

“रहने दो मैंने नहीं पीनी है।”

“नहीं पीनी है! यह क्या बात हुई, अन्न को यूं बर्बाद नहीं करते हैं। “

“मैं अन्न बर्बाद नहीं कर रही हूँ ! यह तो चाय है।”

“यार तुम बहस बहुत करती हो ।”

“ओके कुछ नहीं कहूँगी ! अब तो खुश हो न !”

“मैं तो हमेशा ही खुश रहता हूँ । आओ पहले गाड़ी मे जो फल रखे हैं न उन्हें सोनी को दे देते हैं क्योंकि अभी यहाँ कोई फल नहीं आ रहा है तो वे यही फल लोग खा लेंगे।“

“सही है उसमें इतना सोचने की क्या बात !” नीचे आकर ऋषभ ने गाड़ी में से फलों के पैकेट निकाल कर सोनी के हाथ में पकड़ा दिये ! “ले सोनी यह तेरे लिए !”

“क्या भैया, इतना क्यों ले आते हो ?”

“भाई से ऐसी बातें नहीं करते जो भी मिले रख लिया कर !”

“जी भैया !”

“आओ शुभी !” ऋषभ ने उसका हाथ पकड़ कर कहा !

“ऋषभ तुमने मेरा हाथ तो पकड़ लिया ! अब निभाना भी पड़ेगा क्योंकि प्रेम को पाना सरल है किन्तु उसे संभाल कर रखना और निभा लेना बहुत ही मुश्किल काम हैं !”

“शुभी तुम मुझसे इतनी बड़ी बात मत कहो क्योंकि तुम अपना सोचो कि निभा पाओगी या नहीं, मैं तो मर कर भी लौट लौट कर आऊँगा ! मैं कभी नहीं छोड़ सकता तुम्हें और न ही कभी अपना वादा तोड़ सकता हूँ।”

“ओहो इतनी बड़ी बात कह रहे हो, चलो मैं भी देखती हूँ ।” शुभी ज़ोर से हंसी।

“अरे अरे इतनी ज़ोर से मत हंसो, कहीं शेर आ गया तो फिर मत कहना।“ ऋषभ यह कहते हुए मुस्कुराया।

“कोई नहीं शेरनी के सामने शेर ही आयेगा न।”

“क्या बात है मेरी शेरनी?” ऋषभ ने आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया।

“क्या कर रहे हो ऋषभ, कोई देख लेगा।”

“फिर वही बात यार मैं तुमसे प्यार करता हूँ कोई मज़ाक नहीं जो मैं किसी के देखने से डर जाऊँ और माथा ही तो चूमा है ! पता है लोग कहते हैं कि माथा चूमना मतलब आत्मा को चूम लेना ! मैंने तुम्हारी रूह को स्पर्श किया है।”

मौसम बहुत प्यारा हो रहा था ! हल्की हल्की धूप थी और थोड़े थोड़े बादल भी ! ठंडी ठंडी हवायें शरीर को छू रही थी, मन खुशी से भरा जा रहा था ! कितना प्यारे वृक्ष हैं, न जाने कब से एक पाँव से खड़े तपस्या कर रहे हैं, न जाने इनको किस की प्रतीक्षा है ! न जाने इनका कौन खो गया है जिसके लिए जिसके लिए अपनी बाँहें फैलाये राह तक रहे हैं कि वो आए और यह उसे अपने गले से लगा लें,प्यारे देवदार के पेड़ ।

“क्या सोचने लगी शुभी ?”

“कुछ भी तो नहीं ! देखो कितना अच्छा मौसम हो रहा है धूप भी है और बादल भी लग रहे हैं जैसे अभी बरस पड़ेंगे, चलो फटा फट बाग घूम कर आ जाये ! हैं न ?“

“हाँ बिल्कुल ! क्यों नहीं !”

बाग में घुसते ही अलग सा अनुभव हुआ, ऐसा लगा जैसे किसी सुगंधित खुशबू से पूरा बाग महक रहा है हालांकि अभी बाग में किसी भी पेड़ पर कोई भी फल नहीं था लेकिन बड़ी आनंद दायी खुशबू मन मोह रही थी ! कोयल की कूक से रस, लय और तान तीनों समागम हो रहे थे ! तभी वहाँ पर एक बारह वर्ष का बच्चा खेलता हुआ आ गया। उसने हल्की सी पैंट और शर्ट पहनी हुई थी और पैरों में हवाई चप्पल ! उसके एक हाथ में पतली सी डंडी भी थी।

“कहाँ से आ रहे हो बेटा ?” ऋषभ ने बड़े प्यार से उससे पूछा।

“भाई जी, आप भूल गए मुझे ? मैं वो सामने वाले घर में रहता हूँ ।“ उसने एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“ओके ओके बेटा !” ऋषभ को अपनी याददाश्त पर शर्म का अहसास हुआ।

“घर में सब सही है न ?”

“हाँ भाई जी !”

“आप किस क्लास में आ गए?”

“सिक्स्थ क्लास में आ गया हूँ ! अपने स्कूल में प्रदेश का फुटबाल प्लेयर भी हूँ !

“वाह क्या बात है बेटा जी ! खूब मन लगा कर पढ़ो और आगे बढ़ो !”

“हाँ मन लगाकर ही पढ़ता हूँ !” वो मुस्कुराया।

“ओय, आज स्कूल नहीं गया?”

“गया तो था, अभी आया हूँ।”

“और आते ही बाग में, हैं न ?”

“जी हाँ, भाई जी।”

कितने साफ दिल होते हैं यह बच्चे, सब कह देते हैं कुछ भी मन में नहीं रखते ! काश ऐसी ही दुनिया हो तो कितनी नफ़रतें खत्म हो जाएगी, कितनी खुशियाँ सुख और प्रेम बिखर जायेंगे, झगड़े और युद्ध होंगे ही नहीं, न जाने हम क्यों बड़े हो जाते है ? न जाने क्यों हम नफ़रतें बांटते फिरते हैं? न खुद चैन से जीते है न दूसरों को जीने देते हैं। हम स्वार्थी लोग सिर्फ अपनी खुशी के लिए न जाने कितनों को दुख और कष्ट देते हैं? न जाने कितने आँसू उनकी आँखों में भर देते हैं कि वे कभी सूखते ही नहीं हैं जबकि वे अपने हमें खुशी देने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं।

“कहाँ खो गयी तुम ?” ऋषभ ने उसे टोंका।

“कहीं भी तो नहीं ! बस इस बच्चे के बारे में सोच रही थी।”

“क्या ?”

“यही कि कितने मासूम होते हैं यह बच्चे हैं न? चाहें वे किसी भी प्रदेश के क्यों न हो !”

“सही कहा ! काश हम सबका मन भी किसी बच्चे जैसा ही रहे तो कितना अच्छा हो।”

“हम्म लेकिन दुनिया हमें मासूम कहाँ रहने देती है वो हमें इतनी ठोंकरे देती है कि हम समझदार बन जाये और भूल जाये अपनी सारी मासूमियत, खो दें अपना सारा भोलापन।”

“क्या बेकार की बातें करने लगे हम लोग हैं न ? आओ बाग के पेड़ों को देखो, यहाँ की खुशबू और यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य देखो।”

सेब के पेड़ पूरे बाग में एक से थे, जो सफ़ेद रंग से पुते हुए थे, पहली बार सेबों के पेड़ देख कर मन खुशी से खिला जा रहा था ! शुभी का जी चाहा कि वो पेड़ों पर चढ़े और उसमें से अपने लिए कोई फल ढूंढ कर तोड़ लाये और खा ले, क्योंकि पहली बार किसी बाग को देखना और वो भी सेब के बाग तो फिर ऐसी ख़्वाहिशों का पैदा होना स्वाभाविक है।

“काश, इन पेड़ों में फल लगे होते।

“अरे ऐसे क्यों कह रही हो? यह काश क्या होता है ? तुमको मैं अगस्त में लेकर आऊँगा तब देखना हर तरफ बस फल ही फल होंगे, जितने जी चाहें खाना और जितने जी चाहें ले जाना और खूब मन भर के देख लेना, अभी यह काश शब्द अपने शब्दकोश से हटाओ!” ऋषभ थोड़े तेज स्वर में बोले।

“हाँ !” शुभी इतना सा ही बोल पाई।

“पता है तुम्हें इस दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे पाया न जा सके इस बात को अपने दिलो दिमाग में अच्छे से बैठा लो।”

“ठीक है अब कभी नहीं कहूँगी काश ! खुश हो न !”

“हाँ मैं खुश हूँ कि तुमने मेरी बात को मान लिया।” ऋषभ को शुभी को देखते हुए बोला उसे उस पर प्यार उमड़ आया ।

कितनी ही देर वो लोग बाग में घूमते रहे ! वहाँ की सुगंधित हवाएँ उनके मन को मोहे लिए जा रही थी और इस तरह से बांधे हुए थी कि वहाँ से जाने का मन ही नहीं हो रहा था । पंछी बनूँ उड़ती फिरूँ मस्त गगन में आज नया राग है दुनिया के चमन में ! शुभी का मन यह गीत गुनगुना उठा।

“मेरा जी चाहता है कि मैं यही रह जाऊँ,, इन खूबसूरत घाटियों, वादियों के बीच में, इन अडिग देव पर्वतों के बीच में और बन जाऊँ एकदम निश्छल, मासूम और पवित्र ।