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बेपनाह - 21

21

आखिर किसी तरह से वो पराठा खत्म किया और आधा कप चाय पीकर वो जाने को तैयार हो गयी ।

“शुभी सारा सामान डिक्की में रख लेते हैं फिर बाग देखते हुए उधर से ही वापस घर निकल जाएंगे।”

“हाँ यह सही रहेगा ! वैसे भी दादी कह रही हैं कि बर्फ गिरने वाली है, कल वो चूड़ियों की दुकान वाले कह रहे थे कि आज बर्फ गिरेगी।”

दादी दादा के पाँव छूकर उनका आशीर्वाद लिया और रूपोली को कुछ पैसे देकर उन लोगों ने वहाँ फिर आने का वादा कर के विदा ली । दादी जी ने उसे चलते समय सिर पर बांधने वाला स्कार्फ दिया और दो चाँदी के सिक्के भी दिये ।

“यहाँ से बाग कितनी दूर है ?” कार में बैठते ही उसने ऋषभ से पूछा ।

“करीब 30, 32 किलोमीटर होगा !”

“और दादी के डॉ ?”

“अरे वो तो यहीं पर है 15 मिनट का मुश्किल से रास्ता होगा !” ऋषभ ने गाड़ी का क्लच दबाते हुए कहा ।

“दादी तो दादा जी के साथ ही जायेंगी न?”

“नहीं दादा जी घर पर रहेंगे, वे रूपोली और ड्राइवर के साथ जायेंगी।”

“रूपोली कितनी अच्छी है न, सारे काम बड़े खुश होकर करती है ।“

“हाँ वो तो है, दादा जी और दादी भी प्यार करते हैं।” यह कहते हुए ऋषभ मुस्कुराया और शुभी के गाल पर चिकोटी काट ली ।

“ऋषभ क्यों करते हो ऐसा, दुखता है।” ऋषभ सिर्फ मुस्कुराया लेकिन कुछ बोला नहीं ।

ऋषभ टेड़े मेडे घुमावदार रास्तों पर बहुत सलीके से कार चलाते हुए बराबर बात भी करते जा रहे थे ! ऊँचे ऊँचे देवदार के पेड़ और हरियाली चारो तरफ बिखरी हुई थी, कितनी शांत और सकूँ से भरी हुई प्रकृति, आराम से अपने आँचल में ही सिमटी हुई सो रही थी, मानों जरा सा शोर किया तो उसकी नींद टूट जायेगी ! फूलों के चटख रंग और महकती हुई वादियाँ, साथ ही घने पहाड़ों से घिरी हुई वो खूब सूरत घाटी ! ऐसा लग रहा था जैसे वो हमारी ही प्रतीक्षा कर रही है और अभी चहकने लगेगी, खुश होकर झूमने लगेगी और बिखरा देगी खुशियों का समंदर, भर देगी झोली हमारी सुखों से ।

“क्या सोचने लगी शुभी ?” ऋषभ के स्वर में बहुत प्यार और अपनापन था !

“कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं !” शुभी ने उसके बालों में अपना हाथ फिराते हुए कहा ! “सुनो ऋषभ, तुम्हारे यह बिखरे हुए बाल अच्छे लगते हैं इनको यूं ही माथे पर बिखरा रहने दिया करो।”

“यार वैसे भी लड़कियां मुझ पर मरती हैं फिर तो घर तक चली आयेंगी, फिर मत रोना।” वो मुस्कुराया !

“कैसे चली आयेंगी ? मैं हूँ न, मुझसे डर कर कहीं छिप जायेंगी।”

“जब डर जायेंगी तो उन बेचारियों को दिल का दर्द क्यों देना ?”

“ओहो ! तुम्हें ज्यादा दर्द हो रहा है !” शुभी ने एकदम से चिड़ते हुए कहा ।

“अरे हम मज़ाक भी न करें ?”

“ऐसा मज़ाक मुझे पसंद नहीं है जो मेरी जान खींच ले ।”

“ऐसे कैसे होने देंगे हम कि कोई हमारी जान की जान खींच ले, उसे तो हम बाहर का रास्ता दिखा देंगे ।”

“किसे ?”

“जो हमारे पीछे पीछे आयेंगी !”

“मतलब आपने समझ लिया। मतलब नहीं पक्का मान लिया कि वे सच में तुम्हारे साथ चली आयेंगी ?”

“क्यों भाई अभी तो तुमने ही कहा था ?”

“छोड़ो कोई और बात करो ! मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ और प्रेम के लिए कुछ भी कर सकती हूँ,सब सह लूँगी लेकिन कोई लड़की तुम्हारे साथ दिख गयी तो मैं मर जाऊँगी।”

“नहीं यार ऐसा मत कहो ... क्या तुम्हें अपने प्यार पर भरोसा नहीं है?”

“बहुत है लेकिन तुमने एक बार बुरी तरह से मुझे तोड़ दिया है।”

“वो बातें अब याद मत करो दुख होता है। बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले।”

“लेकिन जब वे बातें याद आ जाती हैं तो लगता है कि ईश्वर ने मेरे दुख दर्द को समझा और उसके लिए तुम्हें वापस भेज दिया ! सुनो ऋषभ तुम मुझे कभी दुख मत देना ! तुम मेरे हो और सिर्फ मेरे हो ! ताबीज की तरह से इस बात को अपने गले में बांध लो ताकि कभी तुम मुझे दुख देने के बारे में सोचने से पहले ही आंसुओं से तरबतर मेरा चेहरा याद आ जाये या तुम्हारी नजरों में ही बस जाये मेरी सूरत जिससे कोई तुम्हारे नजदीक आने के बारे में सोचे भी न, क्योंकि तुम्हारी नजरों में सिर्फ मेरी सूरत ही नजर आए और कुछ नहीं!”

“हाँ यह तो तुमने सोलह आने सही बात कही है ! पगली कहीं की, अगर मैं ऐसा हूँ ही नहीं तो तुझे चिंता करने की क्या जरूरत ?”

“फिर ठीक है, मुझे तुम्हारे माथे पर आये हुए बाल बहुत प्यारे लगते हैं इनको यूं ही माथे पर रहने दो !” शुभी ने ऋषभ के बालों को अपने हाथों से सहलाया और उँगलियों से माथे पर करते हुए बात को पलटते हुए कहा।

“ठीक है।“ वो मुस्कुराया ! शुभी भी खुल कर हंस पड़ी !

“कितनी प्यारी मुस्कान है, जी चाहता है कि तुम मुस्कुराते रहो और मैं तुम्हें देखती रहूँ, यूं ही गुजर जाये जिंदगी क्योंकि दुनिया में गम बहुत हैं !” उसने मन में सोचा ।

“अब क्या सोचने लगी यार ? कहीं मन ही मन वो गाना तो नहीं गा रही कि उड़े जब जब जुल्फें तेरी, क्वारियों का दिल मचले” .....ऋषभ ने उसे कोहनी मारते हुए पूछा।

“हाँ यार सच में यह गाना कितना प्यारा है आल टाइम हिट ... हैं न ?”

“सच में पुराने गाने सुनने में भी अच्छे लगते हैं और शब्द भी समझ आते हैं !”

“अच्छा अभी कितनी दूर है वैली ?”

“बस आई समझो !”

“हे भगवान, पूरे आधे घंटे से यही सुन रही हूँ कह रहे थे 15 मिनट का रास्ता है और अभी 1 घंटा होने को आया फिर भी नहीं पहुंचे ।”

“अरे बाबा, बस यह समझो कि आने ही वाले हैं ! यह पहाड़ी रास्ते हैं मेरी जान, कोई मैदानी सड़कें नहीं !”

“हम्म।”

“हाँ यहाँ बहुत घुमाव होते हैं।” सरल नहीं है इन रास्तों पर चलना !

“सही यह पहाड़ी रास्ते और प्रेम दोनों एक से होते हैं, दोनों में ही उलझन होती है भटकन होती है, घुमाव होता है लेकिन सफर बहुत प्यारा होता है ! प्रेम का भी और पहाड़ों का भी ! हैं न ?”

“बिल्कुल सही ! देखो यह एक टर्न लेने के बाद वो सामने वैली में प्यारा सा घर दिख रहा है न, बस वही है हमारा प्यारा सा काटेज और बाग।“

“वाव, कितना प्यारा, कितना सुंदर ! मैं तमाम उम्र यहाँ रह सकती हूँ ! मानों कोई जन्नत है यह।”

“अभी पहुँचने तो दो, यहाँ से ही इतनी खुश मत हो जाओ, अभी अंदर जाकर देखना, तब बताना।”

“ठीक है प्यारे भाई साहब।”

“भाईसाहब कौन है जी ?”

“तुम और कौन है यहाँ पर ?”

मैं भाई साहब फिर प्रेमी कौन है ? पहले डिसाइड कर लो !

“यहाँ सब कुछ तुम ही हो, मेरे माता-पिता, भाई, सखा और प्रेमी भी ।”

“हे भगवान यह लड़की भी न पूरी बावरी है।”

“हाँ हूँ न मैं बावरी,तुम्हारे प्रेम में मैं दीवानी हो गयी हूँ।“

“संभलों थोड़ा, वरना तकलीफ होगी।”

“कैसी तकलीफ?”

“जब हम दूर होंगे, तब तुम दुखी हो जाओगी न !”

“अब हम दूर ही क्यों होंगे, हम एक है अलग नहीं जो दूर हो जाये बल्कि दूर रहकर भी आसपास ।”

“मैं भी हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ ! सुनो शुभी कितना अच्छा हो अगर हम यहाँ ही रह जाये !”

“हाँ यही कहो ना ऋषभ, बार बार कहो, वैसे यही तो मैं कह रही हूँ हम हमेशा यहीं के हो जाये फिर बुलाते रहें हमें हमारे घर वाले।”

“लो आ गया ! ऋषभ ने कार घर के ठीक सामने पार्क कर दी ! घर के पास बराबर में एक कमरे से एक आदमी करीब 45 बरस का निकल क़र आया और खुश होते हुए बोला, “आप आ गए छोटे साहब ?”

“जी काकू, नमस्ते !”

“बाबू जी कैसे हैं और माता जी ?उसने दादी और दादा जी के बारे में पूछते हुए कहा । मानों कितने अच्छे रिश्ते होंगे उनके आपस में।

“अरे काकू सब ठीक हैं ! वे आपको याद करते हैं, आप बहुत दिनों से उनके पास गए भी नहीं हैं शायद ?” ऋषभ बड़े अपनेपन से बात कर रहे थे !

हाँ बेटा नहीं जा पाया अच्छा चलो, आप पहले जरा देर कमरे में बैठ कर आराम कर लो, मैं सोनी के हाथों चाय भिजवा देता हूँ।

नहीं काकू रहने दो अभी घर से नाश्ता करके ही निकले हैं !

“घर से निकले तो देर हो गयी होगी न ! आप आराम से बैठो, चाय पियो, फिर बाग में घूमने जाना !” बड़े अधिकार के साथ काकू ने कहा।

“ठीक है ! आ जा शुभी तुझे अपना यहाँ का घर भी दिखाता हूँ !” ऋषभ ने शुभी का हाथ पकड़ कर कमरे की तरफ ले जाते हुए कहा।

“हाँ चलो, पर मेरा हाथ तो जरा हल्के से पकड़ो।”

“अभी से डर गयी तुम, मैंने तुम्हारा हाथ इसलिए कसकर पकड़ा है कि अपनी तमाम उम्र तुम्हारे हाथ को अपने हाथ में पकड़े रहूँ,”

“अच्छा ऐसी बात है ?”

“और तुमने क्या समझा ?”

“यही समझा कि तुम मेरे हो।”

“तुम्हें यह कहने की कभी कोई जरूरत ही न पड़े कि मैं तुम्हारा हूँ अब मैं ऐसा बन कर दिखाऊँगा कि तुम्हें अहसास हो जाये कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ।”

“ऋषभ यह रोमांस की बातें छोडों, यह बताओ कि तुमने यहाँ पर इतना सुंदर घर क्यों बनाया ?”

“तुम्हें कैसे पता कि मैंने बनाया ? दादा जी या पापा भी बनवा सकते थे ?”

“नहीं नहीं बस ऐसे ही कह दिया,वैसे मुझे क्या पता किसने बनाया है? सुनो ऋषभ एक बात कहूँ ?”

“हाँ हाँ, कहो न !”

“अगर तुमने यह घर तुमने बनाया होता तब मैं कहती की वाकई तुम्हारी पसंद बहुत लाजवाब और प्यारी है !”

“वो तो मुझे पता ही है !” ऋषभ ने शुभी की नजरों में झाँकते हुए कहा ।

शुभी ने शरमा कर अपनी नजरें नीचे झुका ली,उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थी ! शायद उसे घबराहट का अहसास हुआ क्योंकि अभी इस कमरे में उसके और ऋषभ के सिवाय कोई और नहीं है ! उसका मन ऋषभ की तरफ खींचा जा रहा है मानों उसके दिल से कोई आवाज आ रही है और वो ऋषभ के आकर्षण में बंधी जा रही है ! मन किया ऋषभ के कंधे पर अपना सिर रखकर अपनी धड़कनों और दिल की घबराहट पर काबू पा ले ।“

क्या हुआ शुभी ? इतनी सर्दी में तुम्हें इतना पसीना !” ऋषभ ने आगे बढ़कर उसके माथे पर आ गयी पसीने की बूंदों को अपनी उँगलियों से साफ कर दिया ।

उसे ऐसा महसूस हुआ यह उँगलियाँ नहीं हैं बल्कि जलते हुए अंगारे हैं और उसे जलाकर भस्म कर देंगे ! मिटा कर उसे,उसका अस्तित्व ही खत्म कर देंगे।

“तुम यहाँ बैठो शुभी, बताओ तुमको क्या हुआ है ? मुझसे डर लग रहा है ? मत डरना कभी मुझसे, मैं तुमसा ही हूँ तुम कहोगी तो मैं तुम्हें हाथ भी नहीं लगाऊँगा।“

हाँ ऋषभ मुझे यह पता है ! मैं तो खुद से ही डर रही हूँ ! मेरा मन मुझसे मुझे ही छीन रहा है ! इस एकांत में मैं तुम्हारे साथ अकेले पल भर भी नहीं रह पाऊँगी ! शुभी मन ही मन बुदबुदाई !

“चलो ऋषभ बाहर बाग में चलते हैं !”

“रुको अभी चल रहे हैं !”

“सच कहूँ तो यार यह घर मैंने ही बनवाया है मैंने खुद डिजाइन किया और मेरी ही ज़िद थी कि यहाँ पर ऐसा एक घर बनाया जाये ! और सबसे बड़ी बात इस घर में मैं तुम्हें ही सबसे पहले लेकर आया हूँ !”

“वाकई बहुत प्यारा घर लग रहा है।”

“अंदर आकर देखो और अच्छा लगेगा !”

न चाहते हुए भी ऋषभ की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा और वो घर देखने के लिए अंदर आ गयी । नीचे तीन कमरे, दो के दरवाजे एक साथ खुलते थे ! तीसरा थोड़ा अलग था कमरों के बाहर थोड़ी गैलरी सब कमरों में और अटेच्ड वाशरूम और एक गैस का चूल्हा व एकाध बर्तन रखे हुए थे ! बिलकुल किनारे से सीढ़ियाँ जो ऊपर की तरफ जाती थी ऊपर खूब बड़ा सा हाल किचिन और अटेच्ड वाशरूम, उसके ऊपर भी एक कमरा जिसमें सोफ़े कालीन बिछे हुए, सबसे ज्यादा खूब सूरत कमरा और प्यारा भी ।

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