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नई सुबह


आज रोहन और उनकी पत्नी रागिनी सुबह से ही बहुत उत्साहित थे।हो भी क्यों न आज पूरे 12 बर्ष बाद उनका पोता रितिक जो घर आने वाला था।रागिनी सुबह से ही रसोईघर में तरह तरह के व्यंजन बनाने में जुटी हुई थी।रोहन भी घर में तमाम तरह की खाने पीने की बस्तुएँ जुटाने में लगे हुए थे।आज उनका बर्षों का इंतजार जो खत्म होने वाला था।किचन के सारे काम निबटा कर दोनों बैठक में बैठे, दरवाजे पर नजर जमाये हुए थे।कैसा होगा रितिक ?बिल्कुल शुभम की तरह ही लगता होगा ,बर्षों हो गए उसे देखे हुए।अब तो एक एक पल उसके इंतजार में कट रहा है।सोचते सोचते रागिनी अतीत के गलियारे में पँहुच गई थी।कितनी धूमधाम से अपने बेटे शुभम का विवाह किया था ।खूबसूरत श्रुति को बहु के रूप में पाकर वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी।खुश हो भी क्यों न श्रुति उसकी इकलौती बहु जो थी।वह उसकी नजर उतार रही थी और गर्व से फूली नहीं समा रही थी।श्रुति भी उसकी उम्मीदों पर खरी उतरी।उसके आने से जैसे उस घर में जमाने की खुशियाँ आ गई हों।एक साल बाद घर में नन्हें रितिक की किलकारी गूंजने लगी ।रागिनी की तो मन की मुराद पूरी हो गई थी ,वह अपने पोते को देख देखकर निहाल हुए जा रही थी।घर में उत्सव का सा माहौल था।पोते के नामकरण संस्कार के प्रीतिभोज में तमाम रिश्तेदारों और सगे संबधियों तथा जान पहचान वालों को आमंत्रित किया गया था।रोहन और उनकी पत्नी रागिनी को अपनी किस्मत पर रश्क होने लगा था।लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा समय तक कायम न रह सकी।दुनिया में कोरोना महामारी फैली और वह महामारी फैलते फैलते हिंदुस्तान के कोने कोने तक फैल गई और इस कदर रौद्र रूप धारण कर लिया कि रोज लाखों लोग इसकी चपेट में आने लगे और रोज हजारों लोग जान गँवाने लगे।और एक दिन इस महामारी ने उनके परिवार में भी दस्तक दे दी।एक एक करके चारों लोग इसकी चपेट में आ गए। आनन फानन में रितिक को श्रुति ने अपने मायके भिजवा दिया गया।चारों लोग संक्रमित होकर बीमार पड़ गए।ऐसी हालत में शुभम ही बीमारी की हालत में ही अपने माँ बाप और पत्नी की दवा दारू और खाने पीने का इंतजाम करता रहा क्योंकि बीमारी संक्रामक होने के कारण कोई रिश्तेदार भी नहीं आ सकता था।पिता रोहन,माँ रागिनी और पत्नी श्रुति की हालत में थोड़ा सुधार हुआ तो शुभम की हालत ज्यादा खराब हो गई।अब शुभम को लेकर अस्पताल दौड़े लेकिन शुभम की हालत इतनी खराब हो गई कि उसे बचाया न जा सका। माता पिता और पत्नी श्रुति पर तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा,तीनों का रो रोकर बुरा हाल था।उनकी तो दुनिया ही उजड़ गई थी।यह महामारी लाखों हजारों परिवारों के साथ, उनके परिवार के लिये भी तबाही लेकर आई थी।लेकिन किया क्या जा सकता था,सब सिर पीट कर रह गए।श्रुति दिन रात आँसू बहाती रहती थी।उसका दुख रोहन और रागिनी से देखा नहीं जाता था।श्रुति के माता पिता आये और उसे अपने साथ लिवा ले गए।अपनी बहू और पोते को उसके माता पिता के साथ विदा करते वक्त रोहन और रागिनी फुट फुट कर रो रहे थे। श्रुति के जाने के बाद रागिनी और रोहन बिल्कुल अकेले रह गए तो बेटे की और पोते की ज्यादा याद सताने लगी। रोहन खुद को रोक न सके और बहु और पोते को लिवाने अपने समधी के घर जा पँहुचे।उनकी मनसा देख रति के पिता ने कहा कि श्रुति अब आपके साथ नहीं जा सकती ।अब ये उस घर में किसके सहारे रहेगी, जब इसका पति ही इसके साथ नहीं है।24 बर्ष की मासूम सी श्रुति वहाँ कैसे अपने आप को संभालेगी,यहाँ माँ बहिन भाई के साथ इसका मन लगा रहेगा,ये सब इसको समझाते रहेंगे।इतना सुनकर रोहन की आँखों से आँसू बहने लगे।श्रुति के पिता ने उन्हें काफी समझाया और श्रुति की नाजुक उम्र का वास्ता दिया।तब जाकर वह शांत हुए और पोते को कुछ समय के लिये अपने साथ भेजने की विनती की।अपने पोते रितिक को लेकर रोहन अपने घर बापस आ गए।बहु को साथ न आया देख रागिनी मायूस हो गई।इधर बेटे की जुदाई श्रुति सहन न कर सकी और बीमार रहने लगी।जब उसके ससुर को श्रुति के बीमार होने की खबर लगी तो वह पोते को जाकर श्रुति के पास छोड़ आये।इसके बाद कभी कभार ही वह अपनी बहू और पोते से मिल सके।कुछ समय बीतने पर श्रुति की उसके माँ बाप ने एक अच्छा सा लड़का देखकर शादी कर दी।वह विधुर था, उसने खुशी खुशी श्रुति और उसके बच्चे को अपना लिया था।श्रुति की शादी के बाद रोहन और रागिनी का अपने पोते से मिलना जुलना और कम हो गया।लेकिन उन्हें इस बात की संतुष्टि थी कि श्रुति का घर फिर से बस गया।इतनी बड़ी जिंदगी वह अकेले कैसे काटती।धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और श्रुति भी फिर से एक बेटे की माँ बन गई। पहले वह पोते को कभी कभार छुट्टियों में ले आते थे लेकिन श्रुति की शादी के बाद से वह भी कम हो गया था।कुछ समय पहले जब उन्होंने सुना कि उनका पोता रितिक इंटरमीडिट के बाद B tec करने उनके ही शहर आ रहा है, तो उनके हर्ष की सीमा न रही, उनके बर्षों से सोए अरमान फिर से जाग उठे।उन्होंने तुरंत फ़ोन पर श्रुति से बात की कि दाखिला के बाद रितिक उनके साथ ही रहेगा।श्रुति भी सहर्ष तैयार हो गई ।उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनका शुभम ही उनके पास आ रहा है।आज वह कई बर्ष बाद रितिक से मिलने वाले थे।डोरवेल की आवाज से रागिनी की तंद्रा भंग हुई।जल्दी से दौड़कर द्वार खोला सामने रितिक ही था।वह एकटक देखती रह गई,बिल्कुल शुभम की कदकाठी वही शक्लसूरत।रितिक ने आगे बढ़कर अपने दादा दादी के चरण स्पर्श किये।रागिनी ने शुभम को हृदय से लगा लिया,आंखों से ममता का झरना बहने लगा।काफी देर वह दोनों इसी तरह गले लगे रहे।रोहन और रागिनी का बर्षों का इंतजार खत्म हुआ था।बर्षों बाद वह दोनों, रितिक के रूप में अपने शुभम से मिल रहे थे।रितिक ने अपनी दादी के आँसू पोंछे और उन्हें आश्वासन दिया कि अब वह उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।दादा दादी रितिक को पाकर फूले नहीं समा रहे थे ,ऐसा लग रहा था कि उन्हें जमाने की खुशियाँ मिल गई हों। दादा रोहन खुश होकर अपनी पत्नी से बोले "रागिनी अब तुम्हारे दुख के दिन खत्म हुए,अब तो तुम्हारे आँगन में खुशियों की एक नई सुबह हुई है"।

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