निहारिका Sunita Agarwal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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निहारिका

अनामिका ने जल्दी जल्दी घर के सारे काम निबटाये और बच्चों को स्कूल और पति अमित को आफिस के लिये रवाना कर, खुद भी स्कूल के लिये तैयार होने लगीं।स्कूल में आज उसका पहला दिन था इसलिये वह कल से ही उत्साहित थी।अमित तो उसके जॉब करने के पक्ष में ही नहीं था,वह कहता था कि मेरी अच्छी भली नौकरी तो है फिर तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है, लेकिन वह नहीं मानी।आखिर अमित ने उसे नौकरी के लिये इजाजत दे दी।
अनामिका तैयार होकर स्कूल पँहुची।स्कूल में काफी बड़ा स्टाफ था, सबसे उसका परिचय हुआ।कुछ ही दिनों में उसकी निहारिका से अच्छी दोस्ती हो गई।निहारिका जितनी दिखने में सुंदर है, उतनी ही दिल की अच्छी,जिंदादिल 30 बर्ष की युवती है।वह पहले दिन से ही निहारिका से प्रभावित थी।स्कूल जॉइन करके, वह अपने घर की टेंशन से कुछ समय के लिये मुक्त हो जाती थी।उसकी सबसे बड़ी टेंशन थी उसके और अमित के बीच अंडरस्टैंडिंग की कमी।अमित और अनामिका की परिवरिश अलग अलग माहौल में हुई थी और उनकी सोच भी उसी के अनुसार थी।अमित जहाँ दकियानूसी सोच का था ,अनामिका आधुनिक पढ़ी लिखी सोच रखती थी।फिर क्या था आपस में विचारों का मतभेद होता और आपस की छोटी सी बहस बड़ा रूप ले लेती।उनके बीच दिनों हफ़्तों महीनों शीत युद्ध चलता। इस सबसे अनामिका भीतर ही भीतर आहत होती और अपनी किस्मत को दोष देती।इसी कारण उसने नौकरी करने का निश्चय किया था ,फिर अमित की तनख्वाह से तो सिर्फ घर के जरूरी खर्च ही पूरे होते थे ,उसे भी तो अपने लिये जेब खर्च चाहिए था, जिससे वह अपनी मनपसन्द बस्तुएँ खरीद सके।उसे कभी कभी निहारिका से ईर्ष्या होने लगती कि, "कितना खुश और बनठन कर रहती है ,जरूर इसका पति इसका बहुत खयाल रखता होगा और अच्छा कमाता होगा।तभी तो ये इतना खुश रहती है,कभी इसके चेहरे पर शिकन नहीं देखी"। हम दोनों जब भी वक्त मिलता फ्री पीरियड या इंटरवेल में अक्सर बातें करते।कभी किसी विषय पर, कभी किसी विषय पर।लेकिन जब भी में उसके पति या घर के बारे में पूछती तो या तो वह खामोश हो जाती या बात का विषय बदल देती।हम दोनों स्कूल से साथ साथ घर के लिये निकलते क्योंकि हमारा घर एक ही रूट पर था ।उसका घर पहले मेरा बाद में, लेकिन उसके घर कभी जाना नहीं हुआ ,न ही उसने कभी आने के लिये कहा।एक बार जब वह दो तीन दिन तक स्कूल नहीं आई तो मुझे स्कूल में बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। एक दिन स्कूल से घर लौटते में अचानक मैंने अपनी स्कूटी उस तरफ मोड़ ली जिस गली में निहारिका का घर था।वहाँ जाकर निहारिका का घर ढूँढने में कोई परेशानी नहीं हुई।मैंने दरवाजे पर पँहुचकर डोरवेल बजाई ,दरवाजा निहारिका ने ही खोला।मुझे हैरानी से देखकर बोली "अनामिका तुम यहाँ "।"क्यों में यहाँ नहीं आ सकती"में बोली।वह बोली "नहीं नहीं ऐसी बात नहीं हैं,मेरा मतलब था तुमने तो मेरा घर तो देखा नहीं था । "गली तो पता थी, घर ढूँढना कौनसी बड़ी बात है"मैंने कहा।वह मुझे घर के अंदर ले गई।लगभग 60 70 गज का दो कमरों का छोटा सा घर था।सामने अंदर के कमरे में एक व्यक्ति बिस्तर पर लेता हुआ था और पास ही व्हीलचेयर रखी हुई थी।बाहर वाले कमरे में दो कुर्सियां और एक दीवान पड़ा हुआ था।मैंने कुर्सी पर बैठते हुए निहारिका से पूछा "सब ठीक तो है ,स्कूल क्यों नहीं आईं।वह बोली "वैसे तो सब ठीक है, मेरे पति को दो दिन से बुखार था ,घर में और कोई नहीं है उनकी देखभाल करने वाला और वह चल फिर भी नहीं सकते उसने अंदर कमरे की और देखते हुए कहा।"ओह ये सब कैसे? व्हीलचेयर को देखते हुए मेरे मुंह से निकला। वह बोली 'पहले पानी वानी तो पीओ"कहकर रसोई में चली गई ।और चाय पानी का प्रबंध करने लगी।चाय पीते हुए वह बताने लगी - "एमएससी करते ही मेरा सुशांत के साथ रिश्ता तय हो गया था।सुशांत एक मल्टी नेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था,अच्छा पैकेज था।शादी के बाद एक साल पंख लगाकर उड़ गया।हम दोनों बहुत खुश थे, फिर कुछ महीनों बाद हमारे घर परी का जन्म हुआ।हमारी खुशियाँ दुगुनी हो गईं ,मुझे अपनी किस्मत पर रश्क होता था।हँसी खुशी दिन गुजर रहे थे कि एक दिन एक हादसे से सब कुछ बिखर गया ।हमारे खुशहाल जीवन को किसी की नजर लग गई।सुशांत एक दिन बाइक से ड्यूटी के बाद घर लौट रहे थे कि अचानक कहीं से बाइक के सामने एक सांड आ गया उसको बचाने के लिये सुशांत ने ब्रेक लगाए लेकिन फिर भी बाइक सांड से जा टकराई।टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि सुशांत बुरी तरह जख्मी होकर अचेत हो गए।उनकी जान तो किसी तरह बच गई।लेकिन उन्हें पैरालिसिस हो गया,इनकी नौकरी भी चली गई।में तो एकदम सदमे की सी हालत में थी,दिन रात रोती रहती थी,फिर मैंने अपने आप को संभाला क्योंकि सुशांत और परी को संभालने की जिम्मेदारी अब मुझ पर थी।अब मेरे सामने आर्थिक समस्या भी थी, मैंने एमएससी फर्स्ट डिवीज़न से किया हुआ था तो नौकरी मिलने में कोई समस्या नहीं हुई।मुझे नौकरी मिल गई ,लेकिन अब बेटी के पालन पोषण की समस्या थी।इसलिये मैंने अपनी बेटी को अपनी माँ के पास छोड़ा।में परी को छोड़कर आने के बाद कई दिन तक रोई,फिर सुशांत की देखभाल में लग गई ।सुशांत अभी अपने आप अपने दैनिक कार्य करने में असमर्थ हैं,इसलिये में इन्हें अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाती सिवाय स्कूल के,और जाते समय इनके जरूरत की सारी बस्तुएँ इनके पास मेज पर रख जाती हूँ। मुझे विश्वास है, एक न एक दिन मेरी मेहनत रंग लाएगी और ये पहले की तरह स्वस्थ हो जायेंगे। सुशांत की हालत में धीरे धीरे सुधार भी हो रहा है"।इतना कहकर वह खामोश हो गई।में उसकी जीवटता देखकर हैरान थी और उसकी परेशानी और संघर्ष को देखकर सोच रही थी कि हमेशा हँसते मुस्कराते रहने वाली इस लड़की के अंतर में कितना दर्द छुपा है।में लौटते में सारे रास्ते उसी के बारे में सोचती आई।अगले दिन जब हम फ्री पीरियड में स्कूल में मिले तो मैंने निहारिका से पूछा "इतना सब झेलने के बाद भी मैंने कभी तुम्हारे चेहरे पर शिकन नहीं देखी,कैसे मैनेज कर लेती हो सब"।मेरे ऐसा कहने पर वह बोली "यदि रोने से दुख दूर हो जाते तो में रो लेती ।लेकिन ऐसा नहीं होगा और में दुनिया की नजर में दया की पात्र बनकर नहीं जीना चाहती।तुम्हारे दुख तकलीफ तुम्हारे अपने हैं,कोई और उन्हें दूर नहीं कर सकता इसलिये अपना दुख दुनिया को क्यों दिखाया जाए ?क्यों दुनिया की झूठी हमदर्दी बटोरी जाए ?।हालात कैसे भी हों तुम्हारे हौसलों से बड़े नहीं हो सकते ।इस दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसे भी होंगे जो हमसे भी बुरे हालात में जी रहे होंगे और फिर ये हालात सदैव तो नहीं रहेंगे ना"।में उसकी जीवटता देखकर हैरान थी।और सोचने पर बिबस थी कि परेशानी इंसान की अपनी सोच की वजह से ज्यादा होती है।यदि सोच सकारात्मक है तो हर मुश्किल का हल है।वहीं नकारात्मक सोच हजार मुश्किलों को जन्म देती है।हम कितने सुखी हैं या दुखी ये हमारे देखने के नजरिये पर निर्भर करता है। मेरे पास उसकी बनिस्पत सब कुछ था फिर भी में अपनी नकारात्मक सोच की वजह से दुखी रहती थी।और निहारिका कितनी विपरीत परिस्थिति में भी अपने आप को संतुलित रखे हुए थी।मैंने उसी दिन खुद से प्रतिज्ञा की कि नकारात्मक सोच को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दूँगी।इस दुनिया में सब कुछ हमारे मनमुताबिक नहीं होता पहले हमें खुद दुनिया के मुताबिक बनना पड़ता है।घर लौटने पर फिर से में निहारिका के बारे में सोचने लगी और साथ ही उन सभी घटनाओं को याद करने लगी, जब जब उसकी अमित के साथ तकरार होती थी।उस सब में, अकेले अमित की गलती नहीं होती थी,गलती उस सोच की भी थी जो अमित के लिये उसके मन में बन गई थी।वह दूसरी तरह से सोच कर अनचाही परिस्थिति को टाल भी सकती थी।उसने ने उस दिन के बाद छोटी छोटी बातों पर अमित से बहस करना बंद कर दिया।अमित भी उसके इस बदले रवैये से हैरान था।अनामिका की और से कोई प्रतिक्रिया न होते देख उसने भी चिड़चिड़ाना बंद कर दिया।इस प्रकार अनामिका ने बड़ी समझदारी से अपने और अमित के बीच चले आ रहे मतभेद को मिटाकर अपनी गृहस्थी के साथ सामंजस्य बिठा लिया।एक तरह से इस सबका श्रेय निहारिका को था जिसने उसकी सोच को एक नया रुख दिया था।