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चोरी हो गई

ट्रेन में चोरी होने की खबर अखबार में पढ़ते या किसी से सुनते या रिश्तेदारी से आने वाले किसी पत्र में लिखा आता,"सफर में सामान चोरी हो गया,तो दुख कम हमे आश्चर्य ज्यादा होता।सोचते चोरी कैसे हो जाती है।सफर में सावधान क्यों नही रहते?सो क्यो जाते है?सोते नही तो औरतों को घूरने में ही क्यो लगे रहते है?हो सकता हो सामने बैठी हसीना को चोर नज़र से घूरने में लगे हो।तब ही चोरी हो गई होगी?
अगर ऐसी बात नही होती तो चोरी हो ही नही सकती।हम भी सफर करते है।जिंदगी के चालीस साल क्या हमने युहीं गुज़र दिए।हमारे बाल यों ही सफेद नही हो गए।हम तो अकसर सफर करते ही रहते है।हमारी टी नौकरी भी ऐसी है कि महीने में पन्द्रह बीस दिन सफर में ही गुज़र जाते है।हमारी आज तक चोरी नही हुई।चोरी होना तो दूर क्या मजाल जहां हमने अपना सामान रखा।वहां से इधर उधर भी हुआ हो।हो भी कैसे सकता है।हम सफर में सामान का ध्यान अपने से ज्यादा रखते है।पूरे सफर में सामान पर गिद्ध दृष्टि जमाये रहते है।गलती या भूल से भी किसी का हाथ हमारे सामान से छू जाए,तो हम ऐसे उछलते है, मानो बिछु ने डंक मार दिया हो।सामान से हाथ लगाने वाले को या तो बुरी तरह फटकार देते हैं या ऐसी तीक्ष्ण नज़र से देखते है कि हाथ लगानेवाले की रूह कांप जाए।
पूरे सफर मे न हम किसी से बोलते है,न ही किसी को अपना परिचय देते है।कोई आगे से हमसे बात करता है तो ऐसा उल्टा सीधा जवाब देते है कि वह चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है।न हम कभी किसी को अपना नाम पता बताते है।ना ही यात्रा का उदेश्य।अब आप ही बताइए चोरी कैसे हो जाएगी।
पर जनाब हमारी सारी शेखी धरी की धरी रह गई।सावधानी किसी भी काम नही आई।बात पिछली सर्दियों की है।
हमारी भांजी की शादी थी।हमारा जाना लाजमी था।भात जो देना था।बेगम से सलाह मुसिवरे के बाद एक लिस्ट तैयार की गई।किसको क्या देना है।और कपड़े आदि सब सामान की लिस्ट बन जाने के बाद सारा सामान बाज़ार से खरीद लिया गया।
निश्चित दिन सारा सामान लेकर हम यात्रा को तैयार हो गए।हम एक रिक्शा ले आये।रिक्शे में सारा सामान लादकर हम दोनों भी उसमे लड़ गए।केंट स्टेशन पहुंचने पर हमने रिक्शे से उतारकर सारा सामान गईं लिया था।हमने और बेगम ने मिलकर सामान उठाया और प्लेटफार्म पर जा पहुंचे।ट्रेन लग चुकी थी।हमने हर डिब्बे में झांकर देखा।एक डिब्बे में एक एक सीट पर एक एक आदमी सो रहा था।हमारे जाते ही वे उठ बैठे और उन्होंने एक सीट हमे दे दी।हमनें बक्सा सीट के नीचे रखा।दूसरा सामान भी रखा।फिर सारा सामान गिना और इत्मीनान से बेथ गए।
हम अपनी बेगम से बाते करने लगे।उस डिब्बे में और कोई सवारी नही आईऔर ट्रेन अपने निर्धारित समय पर रवाना हो गई।दिसम्बर।ठंड का मौसम खिड़की दरवाजे बंद थे।यह सवारी गाड़ी थी।इसलिए हर स्टेशन पर रुकती थी।हम जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे।उसमे न कोई यात्री चढ़ा, न उतरा।इसलिए हम सामान से निस फिक्र थे।
टूंडला स्टेशन पर ट्रेन काफी देर खड़ी रही थी।चाय वाला आया तो हमने बेगम से पूछा,"चाय पीओगी?"
"ठंड है ले लो"।
और हम दोनों ने चाय पी थी।और आखिर ट्रेन चल पड़ी।कुछ दूरी तक चलने के बाद ट्रेन रुक गई।हमारे साथ यात्रा कर रहे यात्रियों में से एक उठते हुए बोला,"शायद सिग्नल लाल है।"यह कहता हुआ, वह दरवाजे पर आ गया।हम भी कारण जानने के लिए उसके पास आ खड़े हुए।हमें खड़ा देखकर बेगम टॉयलेट चली गई।तभी हमारे आगे खड़ा आदमी नीचे उतरते हुए बोला,"देखता हूं क्या बात है?"
वह आदमी उतरकर अंधेरे में गुम हो गया।उसके नीचे उतरते ही उसके तीन साथी भी आ गए।दो ने सर्दी के कारण कम्बल ओढ़ रखे थे।वे बोले,"क्या बात है?ट्रेन यहां रुक क्यो गई?देखते है।" और वे तीनों भी उतर गए।वे तीनों आगे की तरफ चल पड़े।हम उन्हें जाते हुए देखते रहे।
कुछ देर बाद इंजन की सिटी की आवाज के साथ ट्रेन चल पड़ी।हम कुछ देर तक दरवाजे पर खड़े उन लोगो का इन्तजार करते रहे।वे नही आये।हमारी बेगम टॉयलेट से निकलते हुए बोली,"ठंड में दरवाजे पर क्यो खड़े हो।"
"उन लोगो का इंतजार।"
"अजीब आदमी हो।भाड़ में जाये।और किसी डिब्बे मे बैठ जाएंगे।"बेगम के कहने पर हम दरवाजा बंद करके सीट पर पत्नी के पास आ बैठे।उन लोगो के जाने से कम्पार्टमेंट खाली हो गया था।हम खुश थे।आराम से बैठे थे।ट्रेन चल रही थी।स्टेशन आने पर रुकती और चल देती।कुछ देर बाते करते रहे फिर बेगम बोली,"सीट खाली है।कम्बल निकाल लो।लेट लूं थोड़ी देर।"हमने सीट के नीचे देखा,तो हमारी आंखे फ़टी की फटी रह गई।नीचे से हमारा सारा सामान गायब था।सारा कम्पार्टमेंट छान मारा।सामान होता तो मिलता।हमने सिर पिट लिया।
हमने लोगो के मुह से सुना था।अब समझ गए।चोरो का गैंग था।उन्होंने ही जंजीर खिंची होगी।और हमारे सामने ही कम्बल में हमारा सामान लपेटकर ले गए थे।हमारी सारी होशियारी,हेकड़ी,चालाकी धरि रह गई और हमारी आंखों में धूल झोंककर चोरी कर ले गए।
सामान चोरी हो जाने के बाद शादी में जाने का कोई मतलब नही था।हम बीच रास्ते मे उतर गए और वापस लौट आये।रुपयों का ििइंतजआम करके मनीऑर्डर कर दिया।और सन्देश में न आने की वजह लिख दी।केवल भात में देने का सामान ही नही।बेगम के जेवर भी चले गए थे।
शादी में आये रिश्तेदारों को हमारे साथ हुई चोरी का पता चल गया था।
सो साहब।एक एक करके रिश्तेदार हमारे यहां आने लगे।सब हमसे पूछते चोरी कैसे हो गई।हमे सांत्वना देते।आने वालों का स्वागत सत्कार करने के साथ उन्हें आगरा घुमाना भी पड़ता।और रिश्ते के अनुसार जाते समय उन्हें विदा भी करना पड़ता।
चोरी हुई उससे ज्यादा पैसा आने वाले रिश्तेदारों के स्वागत सत्कार और विदा मे खर्च हो चुका है।न जाने आने का सिलसिला कब तक चलेगा।

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