आत्महत्या Kishanlal Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आत्महत्या

"मेरा हाथ क्यों पकड़ा?"
वह एक लड़की से प्यार करता था।लड़की भी उसे चाहती थी और उससे शादी का वादा कर चुकी थी।एक दिन एक अमीर उसकी जिंदगी में आ गया और उसने उस अमीर से शादी कर ली।
प्रेमिका की बेवफ़ाई से वह इतना आहत हुआ कि उसे अपनी जिंदगी बेकार नज़र आने लगी।और वह आत्महत्या के इरादे से नदी पर बने ऊंचे पुल पर जा पहुंचा।वहां एक युवती पहले से ही मौजूद थी।उसको देखते ही वह समझ गया।वह आत्महत्या के इरादे से आई है।युवती नदी में छलांग लगाती उससे पहले उसने उसका हाथ पकड़ लिया।
"आत्म हत्या करना पाप है।"
"मुझे शिक्षा दे रहे हो,"युवती अपना हाथ छुड़ाकर उसे घूरते हुए बोली,"तुम भी यहां आए तो इसी इरादे से हो।"
"हां।तुम सही कह रही हो।"
"तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो?"
वह आत्म हत्या करने का कारण बताते हुए बोला,"औऱ तुम?"
"मेरे पिता गरीब है।वह दहेज के अभाव में मेरी शादी नही कर पा रहे।इसलिए बहुत परेशान रहते है।मैं अपने पिता की परेशानी दूर करना चाहती हूँ।"
"परेशानी दूर करने के चक्कर मे तुम उन्हें संतान खोने का जिंदगी भर का दर्द दे दोगी।,
"और मेरे पास रास्ता भी क्या है?"
"तुम्हारे पिता की परेशानी में दूर करूँगा।"उस युवती की बात सुनकर उसने सोचा और फिर बोला था।
"कैसे?"
"पकड़ो मेरा हाथ।"युवती ने युवक की आंखों में झांका और फिर एक क्षण सोचा और उसका हाथ पकड़ लिया।

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2--पति
रोज वह घर से मेट्रो स्टेशन पैदल जाता था।लेकिन आज घर से निकलने में देर हो गई थी।इसलिए उसने रिक्शा कर लिया।
सुबह ऑफिस जाने वालो की भीड़ रहती है।सड़को पर कार, स्कूटर,मोटरसायकिल, बसों,साइकिलों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाती हैं।भागम भाग।किसी को भी एक दूसरे की तरफ देखने की फुरसत नही होती।सबको अपने मुकाम पर पहुँचने की जल्दी होती हैं।
रिक्शे से उतरते ही वह बुकिंग काउंटर की तरफ भागा।वह टिकट लेकर प्लेटफार्म पर पहुंचा।उसकी नज़र वहां लगी घड़ी पर गई।नो बजकर अट्ठाइस मिनट।मतलब ट्रेन आने में अभी दो मिनट शेष थे।वह ट्रेन के ििइंतजार मे खड़ा हो गया।तभी एक युवती उससे कुछ दूरी पर आकर खड़ी हो गई।मंझले कद,गोर रंग,आकर्षक नैन नक्श की युवती को वह पहली बार देख रहा था।
और तभी ट्रेन आ गयी।वह ट्रेन में चढ़ गया।युवती उससे आगे वाले डिब्बे में चढ़ी थी।युवती उसके डिब्बे में नही थी।लेकिन उसके जेहन मे युवती का चेहरा ही घूमता रहा।युवती उसकी नज़रो के सामने नही थी।लेकिन वह उसके बारे में ही सोचता रहा।
उस दिन के बाद वह युवती रोज दिखने लगी।दोनो एज ही स्टेशन से एक ही समय की ट्रेन पकड़ते थे।वह युवती कहाँ उतरती है?कहाँ जाती है?क्या करती है?इन प्रश्नों का जवाब उसके पास नही था।
उस युवती की मोहक छवि उसके दिल मे बस चुकी थी।वह उसका सामीप्य चाहता था।लेकिन मौका ही नही मिल रहा था।सुबह दोनो इतनी जल्दी में होते की प्लेटफार्म पर पहुंचते ही ट्रेन आ जाती।और वे अलग अलग डिब्बो में चढ़ जाते
लेकिन एक दिन दोनो एक ही डिब्बे में चढ़े और एक ही सीट पर पास पास बैठे।इसका लाभ उठाते हुए वह बोला,"आप सर्विस करती है?"
"जी"उसने अपने बारे में बताया था
"मैं भी,"वह अपने बारे में बताते हुए बोला,"मुझसे दोस्ती करोगी?"
"मैं विवाहित हूं।"
"तो क्या हुआ?मैं भी विवाहित हूँ,"वह उसकी बात सुनकर बोला,"क्या विवाहित औरत किसी मर्द से दोस्ती नही कर सकती।"
"क्या तुम अपनी पत्नी को पराये मर्द से दोस्ती करने की इजाज़त दोगे?"
उस युवती का अप्रत्याशित प्रश्न सुनकर वह कुछ देर सोच में पड़ गया फिर धीरे से बोला,"नही।"
"मर्द सब एकसे होते है।"