Kaisa ye ishq hai - 68 books and stories free download online pdf in Hindi

कैसा ये इश्क़ है.... - (68)

शान शोभा और शीला के सामने मुस्कुराने का अभिनय कर घर से निकल तो आते है लेकिन घर के बाहर आ कर उनके आंसू फिर छलक पड़ते हैं।जिन्हें पोंछ वो मन ही मन कहते है अप्पू,मुझे नही पता मेरी मंजिल कहां है,तुम कहां हो लेकिन मुझे इतना पता है कि मेरी वजह से हमारी फॅमिली दुखी नही होनी चाहिये।अपना दर्द अपनी तकलीफ अब मैं अकेले ही झेलूंगा और तुम्हे ढूंढूंगा।जब तुम मिल जाओगी तब तुमसे पूछुंगा ये करके तुम्हे मिला क्या..?पूछुंगा कैसा ये इश्क़ है तुम्हारा ...जिसे प्रेम करती हो उसे ही रुलाती हो..!

कहते हुए शान वहां से एक मुसाफिर की तरह निकल जाते हैं।

रास्ते का मुसाफिर हूँ मुझे मंजिल की तलाश है
भटकता फिर रहा हूँ तेरी गलियो में कहीं तो मिलोगी मुझे यही एक आस है।

अब जहां मुझे ये किस्मत ले जाये अर्पिता!कहते हुए शान एक ट्रेन में जाकर बैठ जाते हैं।ट्रेन चलती जाती है और शान खामोश से गिटार और पायल दोनो साथ ले बिन टिकट के एक सीट पर बैठे होते हैं।

क्या ये बजाना आता है आपको?गाड़ी में बैठे एक व्यक्ति ने शान से प्रश्न किया ?

शान ने उसे देखा और बोला 'हां'!
व्यक्ति :- मुझे सुनाओगे।
शान ने घूरते हुए कहा नही।ये सिर्फ मै शौक के लिए बजाता हूँ किसी की फरमाइश पूरी करने के लिए नही।

व्यक्ति :- मन से परेशान लग रहे हो कोई अपना छोड़ कर चला गया है शायद!

शान :- इससे आपको क्या?
व्यक्ति :- आवाज में इतना दर्द?
उसकी बात सुन शान इरिटेट हो उठकर वहां से कहीं और जाने के लिए बढ़ जाते है तो उनके गोद में रखी पायल नीचे गिर जाती है।लेकिन वो ध्यान दिये बिन इरिटेट हो आगे बढ़ जाते हैं।

वो व्यक्ति पायल पड़ी देखता है तो उसे उठाते हुए ये सोचते हुए आगे बढ़ता है शायद उसकी किसी अपने की है।सुनो अरे गिटार वाले लड़के सुनो तो तुम्हारी ये अनमोल चीज गिर गई इसे तो लेते जाओ।आवाज सुन शान ने पीछे मुड़ कर देखा।तो उसी व्यक्ति के हाथ में पायल देख घबराते हुए उसके पास आया और हाथ में लेते हुए बोला धन्यवाद आपका, आपने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है इसके बदले मैं ज्यादा कुछ नही आपकी इच्छा तो पूर्ण कर ही सकता हूँ चलिये मैं आपको गिटार की धुन सुनाता हूँ।कहते हुए शान वापस उसी सीट पर आकर बैठ जाते हैं।

ओके तो फिर छेड़ो कोई सुर भरा तराना..व्यक्ति ने कहा और शान की ओर देखने लगता है।शान ने अर्पिता की पायल अपने दाये हाथ में पहनी और आँखे बंद कर गिटार पर धुन छेड़ गुनगुनाने लगते हैं --


इश्क दी गलियां इतनी आसान तो नही है।


ख्वाहिश मेरी पल दो पल की मेहमान तो नही है।


जनमो का राब्ता है मेरा, ये चार दिनो का साथ नही है।


इश्क दी गलियां इतनी आसान तो नही है।


कभी किसी मोड़ पर कभी किसी राह पर


तुमसे एक मुलाकात होगी।


फिर शुरु होगी इक कहानी


फिर कोई नयी बात होगी


इन बातों का इंतजार यू ही तो नही है


इश्क दी गलियां इतनी आसान तो नही है।


गाते हुए शान अपनी उंगलियो को रोकते है।उनकी आँखे भर चुकी है जिसे वो धीरे से पोंछ लेते है।

तभी उनके कानो में तालियों के स्वर गूंजते हैं।वो अपनी नजरे ऊपर करते है तो देखते है ट्रेन में मौजूद कुछ व्यक्तियों की आँखे नम हो चुकी और कुछ के चेहरो पर मुस्कुराहट है।ये ही तो कुदरत का नियम है दिल से निकली आवाज सीधे दिल को बेधती ही है।शान के दिल का दर्द उसके गायन से शब्दो के जरिये जरा से बाहर निकला और लोगों के हृदय को भेद गया।

बहुत दर्द है जीवन में!उस व्यक्ति ने कहा।

जीवन है कहां?शान ने दो टूक जवाब दिया।

व्यक्ति :- कहां जा रहे हो,कहां से हो ये नही पूछुंगा सीधी बात पूछता हूँ आवाज अच्छी है और सुर की भी समझ है मेरे साथ कार्य करोगे।

शान :- करना क्या होगा?
व्यक्ति :- ज्यादा कुछ नही शिमला में एक संगीत अकैडमी है,जिसके शो कभी यहां तो कभी वहां होते ही रहते हैं।

तो बस मेरी अकैडमी के छात्रों के ग्रुप के साथ जाना रहेगा और उन्हें गाइड करना पड़ेगा।कभी कभी परफॉर्म भी करना पड़ेगा।

किस्मत की डोर थामे निकल पड़ा हूँ जहां ये किस्मत ले जाये वहीं होगा अपना बसेरा..!मुझे मंजूर है।

शान ने कहा।

व्यक्ति :- अब तुम्हारे मन में एक सवाल आ रहा होगा कि मैं हूँ कौन?तो ये मेरा कार्ड है इसे पढ़कर तुम खुद ही समझ जाओगे।

शान :- पहचान की जरूरत व्यापारी को होती है मुसाफिर को नही।
हम तो पहले से लुटे बैठे है हमारे पास खोने को सिवाय गम के कुछ नही।

चंद लाइनों में दिल के जज्बात बयां करने का हुनर बखूबी आता है आपको।चलो फिर भी मैं नाम तो बता ही देता हूँ।मशहूर संगीतकार आनंद कुमार का असिस्टेन्ट हूँ।नाम है मेरा अभिनव कुमार उर्फ अभि।

अभिनव की इस बात पर शान ने कोई रिएक्ट नही किया बल्कि वो बस यूँही खिड़की से बाहर की ओर देखते रहते हैं।

अभिनव :- वैसे तुम्हारा नाम क्या है?
शान :- 'आवारा'!

अभिनव :- ये कैसा नाम हुआ भला।
शान (बेरुखी से) :- नाम में क्या रखा है आप कद्रदान हुनर के लगते हैं।नाम जो चाहे आप रख ले।

अभिनव (मुस्कुराते हुए)- वेरी इम्प्रेसिव।तो फिर तुम्हारे किरदार के हिसाब से शान नाम जंच रहा है आप पर।

नाम सुन शान की आँखे भर आती है।उनकी आँखो के सामने अर्पिता का चेहरा घूम आता है।
नही!शान जैसी शान अब रही नही अपनी।आप कोई और नाम से बुला लीजिये।

अभिनव :- फिर तुम ही बता दो भाई।
शान :- बताया तो मैंने 'आवारा'

भाई क्यों मेरी बेइज्जती कराओगे अपने छात्रों को क्या बोलूंगा कि ये टीचर 'आवारा' हैं।अभिनव ने कहा।

शान - अगर गहराई से सोचो तो यहां हर कोई आवारा ही है।ये अलग बात है कि इसे समझते कम लोग है।खैर बात नाम की हो रही है तो जो आपको समझ आये वो रख लो बस 'शान' नही।

अभिनव :- ठीक है भाई तो फिर आपका नाम 'अजय' क्योंकि आपसे मैं नही जीत पाया और मुझे नही लगता कि आपको कोई जीत पायेगा।बातों में इतनी तेज धार का हुनर हर किसी के पास नही होता।

इसीलिए तो मैं आवारा हूँ।शान ने संक्षेप में कहा और खिड़की की ओर वापस से देखने लगे।

दिन से रात और रात से फिर दिन हो जाता है अभिनव के साथ मिलते मिलाते हुए वो शिमला पहुंच ही जाते है और वहां खामोशी से अपने कार्य में लग जाते हैं।अभिनव उसे रेंट पर रूम देता है और साथ ही एक कुक भी अपॉइंट कर देता है।शान अकैडमी जाकर वहां के बच्चो से मिलते है उनसे परिचय कर वो उन्हें कुछ बारीकियां बताते हैं।वहीं वापस आने पर वो अपने सोशल अकाउंट पर अपलोड अर्पिता की फोटो निकलवा कर उसका एक बड़ा सा पोस्टर बनवा कर अपने बेड की सामने की दीवार पर लगा लेते हैं।

और उससे बाते करते हुए कहते हैं - आज तुम्हे देखे हुए मुझे पूरे तीन दिन तीन घण्टे और तेतीस मिनट हो चुके हैं।मुझे पता है तुम इस जहां के किसी भी कोने में हो बिल्कुल ठीक हो।बस अभी मेरे पास नही आ रही हो क्योंकि हमेशा ही कहती थी शान तुम्हे छुपना नही आता जिस दिन हम छुपेंगे न आप ढूंढते रह जाओगे लेकिन हम नजर नही आएंगे और देखो आज तुमने वैसा कर दिखाया।तुम छुप गयी हो और मैं तुम्हे ढूंढ रहा हूँ अर्पिता!खैर देखते है ये लुकाछिपी कितनी लम्बी चलती है।

कहते हुए वो वहीं बैठ कर अर्पिता को याद करते हुए गुनगुनाने लगते है।

दो महीने व्यतीत हो जाते है मसूरी में युवराज और पूर्वी उसी क्लिफ पर वीकेंड के लिए आये हैं।पूर्वी को अचानक से पेट दर्द की शिकायत होती है तो युवराज उसे लेकर अपने गांव के वैद्यजी के पास लेकर आते हैं।

युव्वि :- प्रणाम वैद्य जी!
वैद्य जी :- प्रणाम !युवराज बेटे क्या हुआ बिटिया ठीक तो है।अब तो सात महीने पूरे होने को है।

युव्वि :- हां काका!वो बस इसे पेट दर्द हो रहा था तो इसीलिए अभी आपके पास आना पड़ा।

कोई बात नही इस अवस्था में ये समस्या आती रहती है।मैं जड़ी बूटी ला कर दे रहा हूँ तुम दोनो यहीं बैठक में बैठो।वैद्य जी ने कहा और वो अंदर चले जाते हैं।

बैठक से कुछ कदम दूर एक कमरा होता है जिसमे परदा टंगा है हवा के जोर से वो परदा कभी कभी उड़ जाता है जिस कारण हल्का हल्का अंदर का दृश्य नजर आ जाता है।

अंदर एक तख्त पड़ा है उस पर कोई मूर्छित पड़ा हुआ है।पूर्वी का ध्यान उस पर जाता है तो सहर्ष ही जसके बारे में जानने की जिज्ञासा उसके मन में जागती है।वो थोड़ा और ध्यान देती है तो उसकी नजर उस व्यक्ति के पैर पर जाती है जिसमे एक पाजेब उसे नजर आती है।वो उस पायल को देखती है तो उसे कुछ जानी पहचानी लगती है।वो युव्वि से कहती है युव्वि अंदर जो कोई भो है मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं उसे जानती हूँ।

युव्वि :- जानती तो होगी ही न इतने दिनों से हम यहां आते जाते रहे है तो वैद्य जी के परिचय का ही कोई होगा।

नही युव्वि मुझे लग रहा है कि ये वैद्य जी के परिचय का नही है।

हां बिटिया ये मेरे परिचय की नही है।ये मुझे दो महीने पहले पास की ही पहाड़ी की तलहटी में ओषधियों और जड़ी बूटियों को ढूंढते समय एक पेड़ पर बेहोश लटकी हुई मिली थी।पहले तो मुझे लगा कि इसने आत्महत्या की कोशिश की है लेकिन जब इसे ध्यान से देखा तो इसके शरीर पर पड़ा स्वेटर और इसकी साड़ी का पल्लू दोनो एक पेड़ की टहनी में उलझ गये थे जो इसके वजन नियंत्रित किये था।देख कर लग रहा था कि ये ऊपर पहाड़ी से गिरी है।न जाने कौन सी शक्ति ने इसे बचाया है जो इतनी उपर से और इतने वेग से गिरने के बाद भी ये नीचे जमीन पर नही पहुंची।अगर जमीन पर गिर जाती तो इसका बचना असम्भव होता।पहाड़ी से अर्थात ऊपर क्लिफ से दो महीने पहले ये आपको मिली युव्वि अर्पिता मैम..!ये अर्पिता मैम है हमे देखना चाहिए कहते हुए पूर्वी हौले से उठी और युवराज का सहारा लेकर अंदर चली जाती है।

अंदर का दृश्य देख वो खुशी से चीखते हुए कहती है युवी ये अर्पिता मैम ही है।देखो सर का विश्वास जीत गया वो कह रहे थे वो वापस आयेगी उन्हें कुछ नही होगा..!युवराज देखो न मेरी मैम अर्पिता मैम जिन्होंने हमे एक करने में हमारी मदद की।कहते कहते पूर्वी की आँखे भर आती है वो अर्पिता के पास आती है और कहती है मैम आखिर आप मिल ही गई और आपने शादी भी कर ली। अब मैं सर को बताउंगी कि आप मिल गयी है फिर वो यहां आ जाएंगे और आपको यहां से ले जाएंगे।पूर्वी खुशी खुशी में कह गयी जिसे सुन वैद्य जी बोले ये अच्छी बात है बिटिया कि आप इन्हें जानती हो।लेकिन ये अभी बहुत गहरी नींद में सो रही है इतनी गहरी कि दो महीनों से जागी नही है।जैसे मुझे मिली वैसी ही है।एवं इन्हें जगाना बहुत जरूरी है।मैंने कुछ दिनों पहले इनकी नव्ज़ चेक की। जिससे मुझे इनके गर्भ से होने के आसार नजर आ रहे हैं।शिशु के पूर्णतः स्वस्थ रहकर जन्म लेने के लिए इनका जागना जरूरी है।नही तो गर्भस्थ शिशु समय के साथ किसी विकृति के साथ जन्म ले सकता है।

वैद्य काका!ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है आपने इनकी दवा और दुआ दोनो ही इनका प्रेम है।इनके पति इनको पागलो की तरह ढूंढ रहे थे उस दिन और अब भी इसी उम्मीद में होंगे कि उनकी पत्नी आयेगी।

युव्वि प्रशांत सर का नंबर ..नही है।आप मुझे फोन दीजिये पूर्वी ने कहा।युवी ने अपना फोन आगे बढ़ाया तो पूर्वी अपने सोशल अकाउंट से शान को अर्पिता के पता चलने का संदेश भेज देती है।लेकिन शान तो सब से तौबा कर चुके है वो फिलहाल किसी सोशल साइट का उपयोग ही नही कर रहे है यहां तक कि अपना फोन भी उन्होंने बन्द कर ड्राअर में रख दिया है।कोई जवाब न देख पूर्वी बोली युव्वि आप एक काम करिये न प्लीज लखनऊ चले जाओ और वहां मेरी अकैडमी में प्रशांत सर से कॉन्टेक्ट कर उन्हें अर्पिता मैम के बारे में बताना।उनसे कहना उनकी पत्नी और एक गुड न्यूज दोनो उनका इंतजार कर रहे हैं
युव्वि :- ठीक है तुम कह रही हो तो अवश्य चला जाऊंगा लेकिन तुम अपना ध्यान रखना ठीक है।और घर से अकेले टहलने नही निकलना।

युव्वि ये खबर सुन मै कितने खुश हूँ बता नही सकती।मन कर रहा है अभी खुशी से मैम के गले लग जाऊं लेकिन वो तो कोमा में है।आप प्लीज जाइये।आपने जो कहा मैं सारी बातें मानूँगी आप जाइये लेकिन जाने से पहले मैम को हमारे घर ले चलिये!काका हम ले जा सकते है न मैम को पूर्वी ने वैद्य जी से पूछा जो वैद्य जी ने सधे हुए शब्दो में कहा 'हां' ले जा सकती हो।बस कुछ औषधियां और जड़ी बूटियां है जो इनकी देह पर नियमित लगते रहना है जिससे इनके शरीर के लिए आवश्यक सभी तत्वों की पूर्ति होती रहे।

जी काका।इसका मैं ध्यान रखूंगी नही तो फिर आप हैं एक निश्चित समय आकर मेरी सहायता कर दिया करे पूर्वी ने कहा तो वैद्य जी बोले हां बिटिया अब भला बिटिया की बात मैं कैसे टाल सकता हूँ।
ठीक है चलो कहते हुए युव्वि ने अर्पिता को उठाया पूर्वी के साथ उसे वहां से अपने घर ले आता है।घर के अतिथि कक्ष में उसे ठहरा देता है।और स्वयम आवश्यक चीजे ले लखनऊ के लिए निकल जाता है।

शिमला में शान बच्चो के टूर के लिए रियाज करा रहे हैं।उनके चेहरे पर मुस्कुराहट के स्थान पर गंभीरता है।शान पूरी तरह बदल चुके हैं।उनका स्वभाव आदते दोनो पहले से भिन्न हो चुकी है।मस्तमौला शान अब धीर गम्भीर हो चुके हैं।मुस्कुराहट तो उनके चेहरे पर अब आती नही है।यहां तक की अल्फ़ाज भी अब व्यर्थ में नही जाया करते।अजय को सब केवल संगीत की क्लास में ही बोलते हुए देखते है उससे इतर तो उनकी आंखों से ही लोग डरने लगे हैं।रही सही कसर जुबां से लरकते अल्फ़ाज पूरी कर देते।बात करने का अंदाज ही बदल चुका है क्योंकि अब शान शान होकर अजय बन चुके है वो अजय जो अजेय है।ये प्रकृति का स्वभाव है जिसके बारे में इंसान जान नही सकता उसके बारे में जानने के लिए ही इंसान लालायित रहता है।शान से अजय तक के सफर में मिले दर्द को प्रशांत अपने मन में ही दबाये हैं।वो दर्द जो हर शाम इनके रेटेड रूम में इनकी पगली के सामने निकलता है।

शान :- आज का अभ्यास समाप्त हुआ कल नियत समय पर सभी छात्र क्लास में ही मिलेंगे।नियत अर्थात नियत।एक मिनट की देरी भी मुझे स्वीकार नही।

अब कोई आये न आये मैं तो देर से ही आउंगी।आखिर इस अकैडमी के मालिक की बेटी हूँ।क्यों न आऊं देर से?मेरा आना तो बनता है।एक अल्हड़ और जिद्दी अठारह वर्ष की लड़की ने फुसफुसाते हुए अपनी दोस्त दिया से कहा।शान ने उसे फुसफुसाते हुए देखा तो बोले, टिया!लीव द क्लास नाउ।

टिया :- व्हाई मिस्टर अजय?दिस इज माय फादर्स अकैडमी।
अजय एक और टीचर मालिनी की ओर देख बोले :- कॉल द मिस्टर अभिनव राइट नाउ।

शान की बात सुन टिया घबराते हुए बोली, सॉरी सॉरी मैं अभी बाहर जाती हूँ कह टिया अपना बेग उठा कर बाहर निकल जाती है।

शान फिर आगे इंस्ट्रक्शन देते हैं।दो दिन बाद आप लोगों की परफॉर्मन्स है और हर बार की तरह इस बार भी प्रतियोगिता जीतने पर कोई जोर नही कोई जबर्दस्ती नही बस लगन से पूरे मन से गाना है।इतनी लगन से गाना है कि आपके गायन से लोग खुद ब खुद झूमने पर मजबूर हो जाये।बस आपको पूरे मन से कोशिश करनी है।याद रखिये ये प्रतियोगिता बहुत बड़ी है इतनी बड़ी कि रेडियो और टेलीविजन पर इसका लाइव प्रसारण किया जायेगा।आप सब के भविष्य के लिए ये एक सुनहरा मौका है।हुनर आपका मौके पर चौके मारने का जज्बा आपका।हमेशा की तरह कल मैं नही आऊंगा किसी जरूरी कार्य से बाहर जाऊंगा।कहते हुए शान चुप हुए और वहां से निकल कर बाहर आते है जहां उनकी नजर क्लास रूम की खिड़कियों पर चौक से कार्टून इमोजी बनाती टिया पर पड़ती है जो बड़बड़ाती भी जाती है, "बड़े ही तीस मार खां समझते है खुद को, बताओ मुझे टिया द लीजेंड को क्लास से बाहर निकाल दिया वो भी सब स्टूडेंट्स के सामने मेरी इज्जत का कचरा बनाया है न, मैं इनका फालूदा बना कर चट कर जाउंगी और डकार भी नही लूंगी।शान इग्नोर कर वहां से सीधे अभिनव के पास जाने के लिए निकलते हैं।

अभिनव ने उसे देखा तो अपनी सीट से खड़े होते हैं।ये देख शान ने कहा -

नही भाता है मुझे यूँ खुद को दिया गया सम्मान,ये नाम ये सम्मान ही तो आवारा को आवारा बनने से रोकता है और आवारा का कोई पद छीने ये आवारा को मंजूर नही।

अभीनव - ओह तो कल वीकेंड पर है आवारा साहब।
शान :- आवारा हूँ तो थोड़ी आवारगी करने के लिए समय भी तो चाहिए।सप्ताह के छ दिन आपके और एक ये दिन मेरी आवारगी के नाम।

अभिनव :- अजय!सप्ताह में एक दिन भी तुम्हारा दिया गया समय मेरी अकैडमी के लिए मील का पत्थर है।

शान :- एक आवारा पर इतना भरोसा रखना भी ठीक नही जनाब।कब पैरो के नीचे से जमीन खींच ले जाये खबर भी न होगी।

अभिनव :- इतना तो मैं जान गया हूँ अजय!इस सख्त मिजाज लड़के के पास एक सॉफ्ट सा दिल है जो वक्त के थपेड़ो से घायल हो चुका है।और जो खुद घायल हो वो दुसरो को क्या जख्म देगा।

शान :- ओके।सी यू द डे आफ्टर टुमॉरो।कह वहां से निकल जाते हैं और अपने रूम पर वापस आकर अर्पिता से कहते है।

अप्पू,आज एक दिन और निकल गया।कल मैं फिर मसूरी आऊंगा मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूँगा जहां तुम मुझसे अलग हुई थी,इस आवारा की आवारगी सिर्फ तुम ही दूर कर सकती हो इसके लिए तुम्हे आना ही होगा।कहने के बाद उन्होंने अपनी शर्ट उतार कर एक तरफ टांग दी और हाथ में सहेज कर डाली हुई पायल देखने लगते हैं।

यादों की किताबो के कुछ पन्ने हवा के जोर से आज भी जब कभी खुल जाते है।
उन किताबो में लिखा एक एक शब्द अक्स बनकर मेरी नजर के सामने से गुजर जाते हैं।

वो अपना गिटार उठाते हैं और आँखे बन्द कर कुछ गुनगुनाने लगते हैं

गाते हुए रुक जाते है।दिल फिर भर आता है और आँखे बन्द किये कुछ देर यूँ ही बैठे रहते हैं।

शान सुनो..!देखो उदास होने के लिए नही कहा था हमने! ये क्या कर रहे हैं आप शान सुनो न...शान एक झटके से अपनी आँखे खोलते हैं।और बड़बड़ाए अप्पू तुमसे मेरी उदासी नही देखी जा रही है तो लौट आओ मेरी पगली।

कुछ देर बाद वो उठे उन्होंने गिटार एक ओर रखा और बेड पर बैठकर अपनी अर्पिता की तस्वीर निहारने लगते हैं।

वही युवराज प्लेन से लखनऊ पहुंच चुका है।रात हो गयी है ये जान वो रैन बसेरे के लिए एक होटल देखता है और सुबह ही अकैडमी में जाने का निर्णय लेता है।

अगले दिन शान शिमला से देहरादून फिर वहां से मसूरी पहुंच जाते है।हमेशा की तरह वो उसी रिसार्ट में वही कमरा बुक करते हैं और वहां से उस क्लिफ की ओर देखते हैं।

बेशक तुम जा चुकी हो यहां से।
लेकिन तुम्हारे होने का एहसास आज भी यहां की हवाओ में घुला है।जो मुझे ये एहसास दिलाता है तुम अब भी मुझमे ही शामिल हो मेरी धड़कन की तरह.. और मैं इसी उम्मीद से यहां आता हूँ कि तुम वापस जरूर आओगी।

वो सारी जगह जाते है जहां वो अर्पिता के साथ दो महीने पहले घूमे थे।जलप्रपात पर जाकर वहीं कुछ देर के लिए रुक कर बैठ जाते हैं।

लखनऊ में युवराज पूर्वी के बताये हुए अड्रेस पर जाता है जहां अकैडमी में उसे रवीश जी मिलते हैं।

युवराज - रवीश जी आप ही है!शायद प्रणाम!

रवीश जी :- आप कौन?
युवराज :- मैं युवराज हूँ पूर्वी,जो कुछ महीने पहले आपके यहां गिटार सीखने आती थी वो मेरी पत्नी है।

रवीश (थोड़ी सी हैरानी से):- ओह तो वो युवराज तुम हो।

युवराज :- हम्म लेकिन मैं यहां एक कार्य से आया हूँ।प्रशांत मिश्रा यहीं कार्य करते है आपके साथ?

रवीश :- करते थे युवराज।उन्हें अकैडमी छोड़े दो महीने से ज्यादा हो गये हैं।

रवीश की बात सुन युवराज हैरान हो जाता है और कहता है चले गये,लेकिन कहां और क्यों?

रवीश :- कहां और क्यों ये मुझे नही पता।मुझसे तो तीन दिन की छुट्टी ली और फिर लौट कर आया ही नही।

तो उनका यहां कोई पता ठिकाना, कोई अपना पराया कोई तो रहता होगा।युवराज ने पूछा तो रवीश बोले नही है मेरे पास पहले का रेटेड अड्रेस था लेकिन जबसे छोटे भाई की शादी हुई है तब से कहां रह रहे है पता ही नही।

युवराज ये सुन उदास हो जाता है कि उनका या उनके परिवार के किसी सदस्य का कुछ पता नही चल रहा है।

ठीक है भाई, फिर तो मेरा कुछ कहना ही व्यर्थ है कहां तो मैं इतनी दूर मसूरी से कुछ अच्छी खबर लेकर आया था लेकिन वो खबर यहां किसी को दे भी नही सकता अब तो ईश्वर ही सब भली करे।और उनसे कहता है अगर उनके परिवार के किसी सदस्य से मुलाकात हो तो उनसे इतना कहना कि मसूरी के पास ही एक गांव में प्रशांत सर की फॅमिली उनका इंतजार कर रही हैं।कह युव्वि वहां से वापस आने के लिए निकल आता है।

मसूरी में समय व्यतीत करते करते सांझ हो जाती है।और शान वापस से शिमला चले आते हैं।
युवराज आकर पूर्वी को बताता है तुम्हारे सर लखनऊ में अब नही रहते।वो लखनऊ से कहीं और चले गये है उनके करंट अड्रेस के बारे में भी अकैडमि में कुछ नही लिखा है।

ओह गॉड!सच में कितनी मजबूर महसूस कर रही हूँ मैं।पूर्वी बोली।अब कुछ नही किया जा सकता बस एक ही उम्मीद की जा सकती है कि प्रशांत सर मेरा छोड़ा हुआ संदेश देख लें अब तो ईश्वर ही सब भली करेंगे।पूर्वी ने कहा और वहीं बैठ अर्पिता की ओर देखने लगती है।

रात गुजर कर सुबह हो जाती है।अपने कमरे में अर्पिता को देखते हुए तैयार खड़े शान एक नजर घड़ी पर डालते है और अपना गिटार साथ ले अकैडमी के लिए निकल जाते हैं।जहां वो सारे प्रतियोगी छात्रों को लेकर उनके गंतव्य तक पहुंचा कर स्वयं सारी भीड़ से इतर एक खम्भे के पास खड़े हो जाते हैं।टिया प्रशांत की ओर देखती है और मन ही मन बोली बहुत अकड़ है न मिस्टर अजय आपमें,अब देखो कैसे मैं आपकी अकड़ का फालूदा बना कर चट करती हूँ।आप तो गाने से रहे क्योंकि मैंने आपको सिर्फ गिटार की धुन सिखाते हुए देखा है।उस धुन पर गाना तो मालिनी मैम सिखाती है अब देखो किस तरह यहां स्टेज पर बुलाकर आपका तमाशा बनाती हूँ वैसे जैसे आपने मेरा बनाया था सारे स्टूडेंट्स के सामने!कहते हुए टिया मुस्कुराई और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगती हैं।वहैं शान मालिनी को बोल कर ऑडिटोरियम से बाहर चले आते हैं और बाहर एक पेड़ के नीचे बैठ कर बुदबुदाते हैं ...

इन सूखे पत्तो की तरह त्रस्त हो कर बिखर चुका हूँ उम्मीद इतनी ही है कि कभी न कभी समेटने के लिए शीतल हवा बनकर तुम जरूर आओगी ...

वो वहीं बैठे होते है कि तभी घबराते हुए मालिनी वहां आती है।
मालिनी :- अजय!मिस्टर अजय!अंदर चलिये।टिया! टिया ने सबके सामने अनाउंस कर दिया है कि उसका गला कोई विशेष स्वस्थ नही है जिस कारण उसकी परफॉर्मन्स में आप उसके साथ गाएंगे।

मालिनी की बात सुन शान बोले, मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि वो क्या करती है क्या नही, ये जीवन उसका, प्रतियोगिता जितनी है या नही निर्णय उसका मेरा कुछ नही मालिनी।मैं नही गाऊंगा, और किसी के सुरो से मिलाकर तो बिल्कुल नही।

मालिनी :- तो आपको गाना आता है क्या मिस्टर अजय!

शान :- दुनिया का ऐसा कोई कार्य नही जो किसी आवारा को करना न आता हो।बाकी ये तो समय बतायेगा मुझे आता है या नही।

मालिनी उनकी बातों को समझ नही पाती कन्फ्यूज होते हुए बोली, अब तुमसे तो मिस्टर कुमार ही निपटेंगे?वही तुम्हे स्टेज तक ले जा सकते है मालिनी ने कहा।

उसकी बात सुन शान बोले :- कोशिश कर लीजिये आवारा तो चला आवारगी के लिए..!कहते हुए शान उस जगह से बाहर निकल आते हैं।

मालिनी उनके व्यवहार से हैरान और परेशान होते हुए कहती है एक नम्बर का सनकी और पागल इंसान है न जाने क्यों और कैसे मिस्टर अभिनव ने इसे यहां नियुक्त कर रोका हुआ है।

चलते हुए शान ने कहा --

बेवजह इन राहो पर भटकना न जाने क्यों मेरी रूह को सुकून देता है...

क्रमशः ...


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