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मूकदर्शक

उस दिन होली थी।होली का त्यौहार पहले प्रेम का प्रतीक समझा जाता था।औरत आदमी,बच्चे बूढ़े सब होली के रंग में मस्त एक दूसरे पर रंग डालते,गुलाल लगाते।पर अब होली का रूप विकृत हो गया है।आजकल होली पर गन्दी गालियां बकी जाती है।कीचड़ गोबर फेंका जाता है।औरतो को छेड़ा जाता है।अश्लील हरकत की जाती है।कभी कभी नोबत मार पीट तक आ जाती है।
उस दिन होली की वजह से ट्रेन में भीड़ कम थी।वे लोग ही यात्रा कर रहे थे।जिनका घर से बाहर जाना जरुरी था या जो त्यौहार पर अपने घर पहुंचना चाहते थे।मैं जिस कोच में बैठा था,उसमे भी गिने चुने लीग ही थे।मैं खिड़की के पास बैठा था।
आगरा से ट्रेन चलते ही कोच के खिड़की दरवाजे बंद हो गए थे।होली के दिन लाइन के सहारे बने घरों के लोग,बच्चे चलती ट्रेन पर पत्थर,कीचड़,रंग फेंकते है।पेसेंजर ट्रेन थी इसलिए हर स्टेशन पर रुक रही थी।स्टेशन आने पर कोचों के खिड़की दरवाजे खुले जाते।लोग ट्रेन से चढ़ते उतरते।जिन्हें आगे जाना होता,वे खाने पीने का सामान लेने के लिए उतरते थे।स्टेशन पर भी कुछ मनचले रंग लेकर घूमते रहते।मौका लगते ही वे किसी पर रंग डालने से न चूकते।
भरतपुर स्टेशन पर कुछ औरते भी हमारे डिब्बे में चढ़ी थी।उन औरतो के साथ एक सोलह सत्रह साल की युवती भी थी।मंझला कद,सांवला रंग और साधारण नैन नक्श।जवानी के कारण वह आकर्षक लग रही थी।उस युवती को डिब्बे में बैठता देखकर कुछ मनचले डिब्बे के पास मंडराने लगे थे।मेरी सीट पर दो फौजी भी बैठे थे।युवती लोगो के बीच मे बैठी थी।मनचले युवती पर रंग डालना चाहते थे,लेकिन वह लोगो के बीच मे बैठी थी।इसलिए अपने मकसद में कामयाब नही हो सके।
ट्रेन के रवाना होते ही मनचले लड़के दूसरे डिब्बे में चढ गए थे।मैं उस लड़की को देखने लगा।वह अकेली थी या औरतों के साथ कहना मुश्किल था क्योंकि वह गुमशुम,खमोश,चुप बैठी थी।उसकी जुबान शांत थी लेकिन आंखे इधर उधर चल रही थी।
ज्यों ही कोई स्टेशन आता मनचले जो संख्या में चार थे।डिब्बे के इर्द गिर्द मंडराने लगते।युवती को घूरते हुए आपस मे बाते करने लगते।
"क्या सूरत पायी है।"एक मनचला कहता।
"कैसी कबूतरी सी दुबकी बैठी है।"दूसरा मनचला पहले वाले कि बात का जवाब देता।
"कब तक बैठी रहेगी?देखते है।"तीसरा बात को आगे बढ़ाता।
"साली के आज गाल लाल नही किये तो मेरा भी नाम नही।"चौथा मनचला अपना इरादा जाहिर कर देता।
डिब्बे में बैठे लोग मनचलों की बाते सुनकर भी चुप रहते।किसी की इतनी हिम्मत नही होती कि उन मनचलों की बाते सुनकर उन्हें डाँठ दे।कोई भी बेमतलब उनसे उलझना नही चाहता था।सब एक दूसरे की तरफ देखते और बेबसी उनकी आंखों में झलकने लगती।फौजी जवान ऐसे बैठे थे,मानो उन्हें सिविलियन से कोई मतलब न हो।
तलछेरा छोटा सा हाल्ट स्टेशन।इस हाल्ट पर ट्रेन रुकने पर उल्टी दिशा में औरतो के साथ वह युवती भी उतर गई थी।ट्रेन से उतरते ही वे तेज गति से पगडंडी पर चलने लगी थी।चारो मनचले आये।वे भी युवती के पीछे हो लिए।मनचलों को लड़1qकी के पीछे जाता देखकर ट्रेन में सफर कर रहे लोगो की निगाहें लड़की की तरफ चली गई. लड़को को अपने पीछे आता देखकर लड़की सहम गईं।औरते उन मनचलों को देखकर उल्टा सीधा बकने लगी।उनकी बातों की चिंता न करके मनचलों ने उस लड़की को जा घेरा।पहले पिचकारी से उसे रंगों से तर बतर कर दिया।फिर चारो ने बेशर्मी की हद पार करते हुए बारी बारी से उस लड़की को चूम लिया।और फिर रंगों से उसके गाल लाल कर दिए।तभी इंजन ने सिटी मारी और चारो मनचले दौड़ पड़े।
लड़की ट्रेन जाते हुए देख रही थी।ट्रेन में बैठे लोग मूकदर्शक बने बैठे थे।




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