अनंत की ओर Sunita Agarwal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अनंत की ओर


भाभी अनन्या की कही गई कड़वी बातें उसे चुभ गईं और वह अपने कमरे में जाकर देर तक रोती रही।अपने माँ और अपने पिता को याद करते करते, सुलभा जैसे अतीत में चली गई थी।सुलभा अपने तीन बहिन और एक भाई में से सबसे बड़ी थी।घर की आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे।इसलिये स्नातक करते ही एक कंपनी में नौकरी कर ली।और घर चलाने में पिता की मदद करने लगी।विवाह की उम्र थी तो उसके लिये 'रिश्तेदार' रिश्ते बताने लगे।लेकिन उसने पहले अपनी छोटी बहिनों की शादी करवाने का निश्चय किया।और कुछ साल गुजरने पर दोनों छोटी बहिनों की शादी भी हो गई।अब उसके माता पिता चाहते थे कि वह भी अपना घर बसा ले।उसके लिये भी रिश्ते देखे जाने लगे लेकिन कहीं बात नहीं बनी।कुछ रिश्ते तो सही नहीं होते थे और जो सही होते उनके भाव बढ़े होते।इस प्रकार रिश्ता होते होते रह जाता।उम्र बढ़ रही थी ,छोटी बहिनों के बच्चे भी हो गए थे लेकिन वह अभी तक कुँवारी थी।इसी तरह कई साल गुजर गए ,भाई की भी पहले नौकरी फिर शादी भी हो गई थी।अब उसके विवाह की उम्र भी निकल गई थी। भैया भाभी दोनों कामकाजी थे इसलिए माता पिता पर ध्यान नहीं दे पाते थे।उसने निश्चय किया कि मुझे नहीं करनी शादी वादी में अपने माता पिता के साथ रहकर उनकी देखभाल करूँगी।और इस तरह वह नौकरी के साथ-साथ माता पिता की देखभाल करने लगी।वक्त गुजरता गया माता पिता भी इस दुनिया में नहीं रहे ,रह गईं तो सिर्फ उनकी यादें। भाई बोला तुमने सारी जिंदगी नौकरी की है,अब छोड़ो इसे और थोड़ा आराम करो ।वह भाई की बात को टाल न सकी क्योंकि माँ बाप के बाद वही तो उसका अपना था। वह और उसकी दोनों बहिनें अपने भाई को बेहद प्यार करती थीं। अब वह भैया भाभी के साथ रहने लगी।कुछ समय तो ठीक से बीता, फिर धीरे धीरे करके भाभी ने एक एक करके सारा काम उस पर डाल दिया।क्योंकि वह अब नौकरी नहीं करती थी।लेकिन वह अपनी मर्जी से उस घर का एक पत्ता भी नहीं उठा सकती थी।सब कुछ भाभी की मर्जी से ही होता था।अब भाभी जब तब छोटी छोटी बातों पर उसे टोक दिया करती थी।इससे सुलभा के आत्मसम्मान को ठेस लगती थी।क्योंकि वह घर में सबसे बड़ी थी और कोई उससे इस तरह बात करे जो उससे सहन नहीं होता था।कल रात की ही तो बात थी सुलभा का कॉफ़ी पीने का बहुत मन था और सिर में भी बहुत दर्द था।इसलिये सुलभा उठी और अपने लिये एक कप कॉफी बनाने के लिये किचन में गई।तभी उसकी भाभी किसी काम से किचन में आई बोली ,"क्या कर रही हो दीदी" ?।वह बोली "अपने लिये एक कप कॉफी बना रही हूँ ,आपको पीनी है तो आपके लिये भी बनाऊँ"।तो वह बोली "नहीं मुझे नहीं पीनी, सारा दूध कॉफी में ही खर्च हो जाएगा तो बच्चे क्या पीयेंगे"? सुलभा उसी समय गैस बंद कर अपने कमरे में आ गई और फूट फूट कर रोने लगी। सुलभा देर रात तक रोती रही और थक कर सो गई।सपने में देखती कि वह एक बड़े रेगिस्तान में है और वहाँ कोई नहीं है।वह काफी डर जाती है और जल्दी से वहाँ से भाग जाना चाहती है।पर ये क्या वह जितना दौड़ती है उतना ही वह उस रेगिस्तान में गुम होती जाती है।उसे अपने घरवालों की बहुत याद आती है। और वह रोने लगती है कि अब तो उसका बचना असम्भव है।वह जब रोते रोते थक जाती है तो ईश्वर को याद करती है। वह कहती है "अब तो तुम ही मुझे बचा सकते हो ,कहाँ हो प्रभु ? मुझे इस भँवर जाल से निकालो ।प्रभु मुझसे जाने अनजाने में जो कोई भी पाप हुए हों मुझे क्षमा करदो"।इतना कहकर वह जोर जोर से रोने लगी ।तभी एक तेज प्रकाश होता है और भगवान साक्षात प्रकट होते हैं।और कहते हैं "पगली तू चिंता क्यों करती है, में तो हमेशा से तेरे साथ था, पर तूने दिल से कभी पुकारा ही नहीं"।वह भावविभोर होकर भगवान के चरणों में गिर जाती है।भगवान उसे उठाते हैं और उसे अपने रथ पर बैठने के लिये कहते हैं।कहते हैं "चल तुझे कुछ दिखाना है"।वह रथ में सवार हो जाती है ।रथ अपनी गति से उड़ने लगता है।आगे भगवान कहते हैं "तुम सिर्फ चुपचाप देखती रहना कुछ बोलना नहीं क्योंकि हम दोनों किसी को दिखाई नहीं देंगे"।वह हाँ में सिर हिलाती है,रथ एक घर के सामने जाकर रुकता है।घर में दो बुजुर्ग हैं एक दूसरे से झगड़ते रहते हैं क्योंकि इस उम्र में भी घर बाहर के सारे काम स्वयं करने पड़ते हैं।दो बेटे हैं दोनों ही अपने परिवार के साथ दूसरे शहर रहते हैं।जवानी में बड़ा रुतबा था इन बुजुर्ग महाशय का अपने आगे किसी को गिनते नहीं थे,अपने बीबी बच्चों पर भी खूब रौब जमाते थे।लेकिन अब बेटे तो कम ही आते हैं ,रिश्तेदार भी आते जाते नहीं इसलिये बीबी पर ही अपनी खींज उतारते हैं और क्लेश में रहते हैं।वह फिर से रथ में सवार होते हैं । रथ एक दूसरे घर के सामने रुका ,घर में तीन भाई हैं, तीनों ही एक दूसरे की शक्ल नहीं देखना चाहते हैं।यहाँ तक कि एक दूसरे के बच्चों की शादी ब्याह तक में आते जाते नहीं।माता पिता थे तो उन्हें देख देखकर बहुत दुखी होते थे,अब वह भी नहीं रहे । वह फिर से रथ में सवार होते हैं और रथ एक घर के आगे जाकर रुकता है ।घर में पति पत्नी और दो बच्चे हैं ,पति पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती।एक दूसरे से महीनों सालों बात नहीं करते हैं ।रथ फिर आगे बढ़ता है और एक घर के आगे रुकता है।शायद घर में कोई पार्टी चल रही है और एक कमरे में एक महिला उदास आंखों में आँसू लिये लेटी है।वह महिला और कोई नहीं घर के मालिक की बहिन है।विधवा है बेचारी, पति की असमय मौत के बाद ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था ।माता पिता थे तब तक तो सब ठीक था।माता पिता के मरते ही भैया भाभी ने नजरें फेर ली, बेचारी सारा दिन काम करती तब जाकर पेट भर रोटी मिलती है ।अभी दो दिन से बुखार है, घर में पार्टी है कई तरह के व्यजंन आये हैं बाजार से, लेकिन भाभी ने सुबह की दो रोटियाँ भिजवा दी हैं, कमरे में ।इसका भाई तो करना चाहता है इसके लिये, लेकिन उसकी अपनी पत्नी के आगे नहीं चलती है।वह फिर रथ पर सवार होकर आगे बढ़े और रथ एक घर के आगे रुका।घर में सब कुछ था,लेकिन घर में कोई खुश नहीं था क्योंकि उनके पास वह सब नहीं था,जो उनके पड़ोसियों और रिश्तेदारों के पास था।वह हमेशा असंतोष से घिरे रहते थे और एक दूसरे को कोसते रहते थे।अब भगवान उसे रथ में बिठाकर बापस उसे उसके घर छोड़ने आते हैं।जाते जाते उसे कहते हैं ये सब लोग और दुनिया में जितने भी लोग हैं अपने प्रारब्धवश सुख दुख भोग रहे हैं।उसके लिये अन्य कोई जिम्मेदार नहीं है।कोई न होते पर दुखी है तो कोई सब कुछ होते हुए भी दुखी है।यह दुनिया एक छलावा है ,यहाँ कोई चीज स्थिर नहीं है।एक समय जो संबधी हमें प्रिय लगते हैं ,वहीं दूसरे समय पर उन्हीं से हमारा मोह भंग हो जाता है।हम नाहक ही दुखी होते हैं कि उसने हमारे साथ ऐसा किया, वैसा किया।अरे वो पगले तो ये भी नहीं जानते कि कल उनके साथ कैसा होने वाला है।क्योंकि अनजाने में ही सही हम अपना प्रारब्ध खुद लिख आये हैं।वो बुजुर्ग दंपत्ति जवानी में इनके घर, लोगों का आना जाना लगा रहता था लेकिन अब कोई झाँकता भी नहीं ,औरों की तो बात ही क्या उनकी अपनी संताने उन्हें याद तक नहीं करतीं।वो तीन भाई बचपन में खूब स्नेह था तीनों में ,अब एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखते। और वो पति पत्नी माँ बाप की आज्ञा से विवाह तो कर लिया लेकिन दिल से एकदूसरे को अपना नहीं पाए।और अब एक दूसरे के लिये मन में कटुता रख,अपने लिये एक नए प्रारब्ध का निर्माण कर रहे हैं।और वो विधवा लड़की कभी इस घर की जान हुआ करती थी ।आज उपेक्षित सी घर के एक कोने में पड़ी है।और वो जो परिवार है, कभी किसी को देखकर खुश नहीं होता इसलिये अपने खुद के घर में भी खुशहाली और शांति नहीं है।इतना कहकर उन्होंने सुलभा को रथ से उतरने को कहा।और जैसे ही सुलभा रथ से उतरी उसकी आँखें खुल गईं।ये क्या ये तो सपना था, उसके अंतर्मन की आँखें भी अब खुल चुकी थीं।दुनिया से उसका मोह भंग हो गया ।उसने अपने आप से प्रश्न किया "यदि मुझे वह सब मिल जाये जो में चाहती हूँ तो क्या मुझे सच्ची खुशी मिल जाएगी।फिर और कुछ पाने की इच्छा नहीं रहेगी। दिल से आवाज आई नहीं ये सब चीजें तुझे सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं।फिर ऐसा क्या है, जो तुझे चाहिए उसने खुद से प्रश्न किया।ऐसा कुछ जिसे पाकर कुछ और पाने की चाहत न रहे ,कोई दुख तकलीफ न रहे।उसकी चाहत तो अनंत है,वह उस अनंत में समाना चाहती है।उसी दिन से उसे किसी से कोई शिकायत नहीं रही।उसके दिल में सबके लिये प्यार उमड़ने लगा कि ये तो मात्र निमित्त हैं ।हर इंसान अपने अपने प्रारब्धानुसार सुख दुख भोग रहा है और अपने किये वर्तमान अच्छे बुरे कर्मों से अपने लिये एक नए प्रारब्ध का निर्माण कर रहे हैं ।वह अपने अंतर की गहराई में गोते लगाने लगी।उसे हर व्यक्ति ,प्राणी में ईश्वर की प्रतीति होने लगी।उसकी सोच सकारात्मक होने लगी।अब उसे किसी से कोई शिकायत नहीं रही और न ही कोई उम्मीद।वह तो उस अनंत की खोज में अपनी आंतरिक दुनिया में ही कहीं गुम सी हो गई थी।