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अतिक्रमण -एक राष्ट्रीय खेल

छोटी चिन्ता /वही चिन्ता

अतिक्रमण : एक राष्ट्रीय खेल

हमारे देश में खेलों की गौरवशाली परम्परा है। गौरव यह है कि और हमारे में खेलों में भी खेल खेला जाता है बल्कि यहां जो कुछ भी होता है उसमें खेल ही खेला जाता है।
" अतिक्रमण" इसे आम जनता की भाषा में इंकोचमेंट कहते हैं ,इस खेल में 2 टीमें खेलती हैं एक अतिक्रमण बढ़ाओ, दूसरी अतिक्रमण हटाओ। कमेंट्री में इन्हें बढाओ और हटाओ कहा जाएगा।
इस खेल में कोई नियम नहीं होता, चाहे जितने खिलाड़ी खेलने चाहें, जितनी देर खेलें, चाहे, जहां खेलें; मकान के बाहर खेलें, दुकान के बाहर खेलें,सरकारी जमीन पर खेलें ।जहां जगह दिखे वहां खेलें।
पहले बढ़ाओ टीम खेलती है । लोग अपने घरों से बाहर निकल आए हैं, वे चारों तरफ देखकर फील्ड का मुआयना कर रहे हैं । उन्होंने देखा कि आगे काफी गुंजाइश है, इसलिए वे ज्यादातर स्टेट ड्राइव लगाते हैं । वे क्रीज़ से बाहर निकल आए हैं। पहले वे अपने घरों से बाहर निकलते थे, तो सीधे सड़क अर्थात गली में उतरते थे, अब वे दरवाजे से निकलते हैं। चौखट पार करते हैं फिर गली में उतरते हैं ।गली में आमने-सामने चबूतरे उत्पन्न हो गए हैं। लोगों की परस्पर दूरियां कम हुई है।
इतिहास में लिखा है कि प्राचीन काल में इन गलियों में गाड़ियां चलती थी , जब भी चलती रहीं और सरकार उन्हें नहीं रोक पाई, अब लोगों ने यह खेल शुरू किया।
कभी-कभी वॉल गुड लेंथ आ रही है यानी मकान के ठीक आगे नाली है । तो खिलाड़ियों ने तरीका बदला और दरवाजे के बाहर नाली पर पाट रख दी और दोनों तरफ से हो गई । नाली के पास। पहले नदियों पर पुल नहीं होते थे। लोग जानते ही नहीं थे फुल बनाना, फिर हमने भवन निर्माण की कला को सीखा,हमारे यहां नाली के ठीक ऊपर मकान का या दुकान बनाने का विज्ञान आया ।
दरवाजा नाली के ऊपर तो सड़क से दरवाजे के भीतर जाने के लिए नाली पर पाट डाली ।
दुनिया को नदियों पर डालती है , हटा हटा जाती है डाल लेती है मैं चलता रहता है
जो आगे नहीं बढ़ सके, वह पीछे की सीमा रेखा पार करने लगे। कहते हैं पहले बाहर के शत्रुओं से रक्षा के लिए चारों तरफ ऊंची दीवार बनाई जाती थी, जब बाहर के शत्रु को भीतर आने की इच्छा ही नहीं है, तो हुई ना दीवार बेकार । हमने सोचा कि हम ही भीतर से बाहर क्यों न जाए , अतः हम खेलते खेलते काफी पीछे चले गए हैं । तालाब ना आ जाता तो हम और पीछे जाते। वैसे तालाब क्या, जब तक हमारा रास्ता नहीं रोक पाए तो तालाब का पानी तो फिर भी मीठा होता है।
इस खेल की मंशा भलमनसाहत है की जब बढ़ाओ टीम खेलती है तो अंपायर बिल्कुल दखल नहीं देता। आपके ही रहते हैं खेल चलता रहता है । आप खेलते रहिए सरकार कुछ नहीं कहेगी। आख़िर सरकार को खेलों को बढ़ावा देना है कि बंद करवाना है ।
अगर आपके यहां वह चीज है जिसे नगरपालिका कहते हैं, तो भी खेलते रहिए। क्योंकि वहां तो खुद अपना खेल चल रहा है । एक बार इसी चीज के एक बड़े आदमी एक मकान मालिक के घर तिलक में भोजन करने पधारे । उन्हें याद आया कि वह पिछले साल भी आए थे तब भोजन करने गली में घर बैठे थे। इस बार चबूतरे पर बैठे हैं। उन्होंने मकान मालिक से इस उन्नति के बारे में पूछा चबूतरा किसका है? मकान मालिक ने हाथ जोड़कर कहा- आपका ही है । अब आप अपना वोटर इतना सज्जन हो तो प्रत्याशी कर भी क्या सकता है?वे विनम्र हुए आपने मेरा चबूतरा अपने घर बना दिया, वह भी मेरे जिंदा रहते ।
जल्दी खेलिए ।ओवर सीमित है ओवर खत्म ना हो जाए । ओवर खत्म हुए। बढ़ाओ टीम ने खेलना बंद किया, अब हटाओ टीम खेलेगी।
उसके पास पूरा किट है -नापने का फीता, चूना,गैंती,फावड़ा , तसला आदि। हटाओ टीम खेल रही है। खिलाड़ी स्टॉक मार रहे हैं । यात्रियों से बल्ला टकराता ही नहीं। खड़े हैं । वे खेलना है। बढ़ाओ ने जो कुछ जोड़ा था उसमें से कुछ को फटाफट हटा रही है ।
टीम खेल कर आगे बढ़ती जाती है मलबा पीछे छूट जाता है ।
हटाओ टीम चली गई , बढ़ाओ टीम फैलने लगती है ।
विनाश के बाद भी निर्माण शुरू होता है। कितना सहृदय भाव है , फिर भी पाते हैं। फिर वही दासे , फिर वही चबूतरे ,फिर वही सब कुछ और सड़क पर दासे निकले हैं ।जो राहगीर को धूप और बरसात से बचाने के लिए बनवाए गए हैं
कितना प्यारा खेल है !चलो देखें । देखें क्यों देखें -जिनके पास पैसे ना हो ,तो चलो बढ़ाओ टीम में शामिल हो जाते हैं।

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