कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग46) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग46)

अब रूठे हुए को कैसे मनाये मुझे तो पता भी नही।नया नया कदम रखा है इस राह पर तो कैसे पता करूँ।अप्पू तुम भी न चिल्ला लेती,नाराजगी जता देती मुझ पर तो तुम्हारा सारा गुस्सा निकल जाता लेकिन नही।बस खामोश हो गयी और बोली भी तो क्या हम ये श्रुति के रूम में लेकर जाते हैं ताकि आगे जरूरत पड़े तो कहीं और ढूंढना न पड़े।बोली तो ऐसे जैसे मैं हर बार ये ही गलती दोहराऊंगा।

अब क्या करूँ मैं।काश ये ऑफिस का कोई प्रोजेक्ट होता।तो यूँ ही हैंडल कर लेता मै।खुद से बड़बड़ा कर कहते हुए वो इधर से उधर घूमने लगते हैं।
नही शान बैठे हुए काम नही चलेगा जाकर कोशिश शुरू कर।कहते हुए वो कमरे से बाहर आकर अर्पिता को ढूंढने लगते हैं।

अर्पिता श्रुति के साथ बैठ कर बात करने में मशगूल होती है।

श्रुति :- अप्पू! बहुत दिन हो गये बाहर घूमे नही है तुम्हारा क्या ख्याल है इस बारे में?

अब हम क्या बताएं तुम्हारा मन हो तो चला जाये घूमने।नही तो घर में तो है ही।अर्पिता बोली।शान यहीं आसपास है ये महसूस कर उसने एक सरसरी नजर चारो ओर डाली तो हॉल से कुछ दूर खंभे के पास खड़े शान को देख वो श्रुति से कहती है, हमें याद आया श्रुति हमने कल के लिए कपड़े तैयार ही नही किये प्रेस कर रख दे जाकर।सुबह तो जल्दी रहती है सभी को।कहते हुए अर्पिता उठ कर श्रुति के कमरे में चली जाती है।

उसकी ये गतिविधि देख शान उदास होते हुए खुद से कहते है अब तु क्या करेगा शान,लगता है ये तुझसे भाग रही है।अब जो भी करना है जल्दी कर कहीं ऐसा न हो कि ये नाराजगी बढ़ती ही जाये।

वहीं अर्पिता कमरे में अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ जाती है और पढ़ने लगती है।

रात गहराती जाती है तो सभी अपने अपने कमरो में सोने चले जाते हैं।परम और श्रुति दोनो नींद की आगोश में पहुंच जाते हैं तो वहीं अप्पू और शान दोनो की आंखों से नींद भाग चुकी होती है।
शान बिस्तर पर लेटे लेटे तक जाते है तो उठकर बैठ जाते हैं और बुदबुदाते है तुमने तो हमारी नींदे भी चुरा ली अप्पू।छत पर चलता हूँ जाकर उस चाँद से ही दो बातें कर लूं।तुम तो रूठ कर बैठी हो।कहते हुए वो सदे कदमो से दरवाजा खोल छत पर बढ़ जाते है और अपनी पसंदीदा जगह बैठ कर बतियाने लगते हैं।

वहीं अर्पिता भी करवटें बदल बदल कर थक जाती है सो वो भी उठकर छत का रुख करती है।जहां प्रशांत को देख वो खुद से कहती है इतनी रात को भी चैन नही है इन्हें।लास्ट अक्टूबर की मध्य रात्रि को एवे ही बिन गर्म कपड़ो के छत पर बैठें हैं।वो वहीं से दबे कदमो से नीचे लौटती है और बालकनी से शॉल उठा कर वापस आ जाती है।वो आगे बढ़ती है और पीछे से शॉल उढा कर दूसरी कुर्सी पर बैठ जाती है।

गुस्सा करती हो लेकिन उससे भी ज्यादा परवाह करती हो।शान धीमे से कह मुस्कुराते हैं।

अप्पू:- क्या करे आदत से मजबूर है।

शान:- सच में अप्पू?

अप्पू :- जी शान।

शान:- तो अप्पू तुम सच में नाराज नही हो मुझसे?

अप्पू:- नाराजगी की कोई वजह भी तो होनी चाहिए शान!

शान:- वज़ह!अप्पू।

अर्पिता:- हां!

शान :- तो फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझसे भाग रही हो।

प्रशांत की बात सुन अर्पिता ने उसकी ओर देखा और बोली नही शान! सच में ऐसा नही है।न जाने क्यों आपको ऐसा लग रहा है।

शान:- अप्पू! मैं शाम से नोटिस कर रहा हूँ जब से चित्रा और त्रिशा यहां से गयी है तुम खामोश हो गयी हो।काहे?

अर्पिता:-इसे खामोशी कहां कहते हैं शान!इसे अल्पभाषी कहते हैं।

शान:- एक मिनट!कहीं तुम्हे चित्रा के आने से कोई परेशानी तो नही हुई,मेरा मतलब है उसकी कोई बात बुरी तो नही लगी।या नीचे कुछ ऐसा हुआ हो जो शायद ठीक नही हो।कहीं चित्रा ने तुमसे कुछ कहा तो नही कोई सवाल जवाब!

अर्पिता:- हमारी मुलाकात ही नही हुई तो सवाल जवाब कहां से होंगे!

शान:- तो तुम्हारी इस खामोशी की वजह क्या है अप्पू!मैं शाम से सोच सोच कर परेशान हो रहा हूँ!
प्लीज कुछ तो बोलो!

शान!हम क्या बताएं आपको!और आप हमारी खामोशी से इतना परेशान क्यों हो रहे हैं।आख़िर है तो हम दोस्त ही न।अर्पिता ने शान की आंखों में देखते हुए कहा।

तो शान ने दोहराते हुए बोले :- सिर्फ दोस्त अप्पू?

अर्पिता:- हां!

फिर तो तुम्हारी खामोशी की वजह जानना मेरा हक है अप्पू?

वज़ह कुछ नही है आप कुछ ज्यादा ही सोच रहे हैं।
और अब नीचे चलिये।सर्दी भी बहुत हो रही है।अर्पिता ने कहा।तो दोनो नीचे चले आते हैं।

नीचे आ प्रशांत वहां से सीधे अपने कमरे में चले आते हैं और वहां जाकर सोचते हैं कि शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ हो।वो मुझे सिर्फ अपना दोस्त समझती है तो मैं इसी में खुश हूँ।वो बस मुस्कुराती हुई मेरे सामने होनी चाहिए इससे ज्यादा की चाह मुझे नही है ठाकुर जी।मन ही मन प्रार्थना करते वो कब नींद की आगोश में चले जाते उन्हें खुद पता नही चलता। इसी तरह एक सप्ताह निकल जाता है ।प्रशांत और अर्पिता के बीच अब सीमित ही बातचीत होती है वो भी चिट के जरिये।क्योंकि अर्पिता शान के आगे आने से कतराती है वहीं प्रशांत भी समय के साथ उसकी नाराजगी के कम होने का इंतजार करने लगते हैं।ऑफिस में अर्पिता चित्रा का मन टटोलने के उद्देश्य से उसके साथ वक्त बिताने लगती है।इसी बीच अर्पिता पूर्वी और युव्वि से बातचीत करती है।उन दोनो की बातों विचारो सोच को जानती समझती है और युवराज से उसके मां पापा को पूर्वी के घर जाकर पूर्वी के मां पापा से एक बार बात करने के लिए कहती है तो युव्वि बात कर अगले सप्ताह आने का बोलता है।अगले दिन वो सभी खुद से सारे कार्य करते है और हेलमेट उठा बाहर जाते हुए परम से कहते है,छोटे मैं किसी काम से बाहर जा रहा हूँ हो सकता है आने में थोड़ी देर हो जाये तो मेरा इंतजार नही करना और सबका ध्यान रखना ठीक है।कहते हुए वो एक निगाह चारो ओर डालते है।प्रशांत की बात सुन अर्पिता एक बार चोरी छुपके उसकी ओर देखती है और फिर नजर चुरा अपना कार्य करने लगती है।प्रशांत हेलमेट उठा नीचे चले आते है और बाइक चालू कर वहां से निकल जाते हैं।

ऑफिस के बाद अर्पिता अकैडमी जाकर पूर्वी से मिलती है जहां स्टाफ रूम में बैठी पूर्वी उसे बताती है कि उसके पापा ने युव्वि के पेरेंट्स की खूब बेइज्जती करी है।और तो और अब पापा खन्ना अंकल से शादी की बातचीत आगे बढ़ाने की बात करना चाहते हैं।

क्या..? मतलब एक सप्ताह का इंतजार व्यर्थ ही रहा और बात बिगड़ गयी वो अलग।अच्छा ये बताओ जब वो लोग बात कर रहे थे तब क्या आप वही आसपास थी!आप उन लोगों से मिली थी क्या?अर्पिता ने पूछा तो पूर्वी बोली ..? नहीं। मैं उनके सामने नही गयी।

पूर्वी की बात सुन अर्पिता ने गहरी सांस ली और बोली ओके तो एक ही रास्ता बचा है पूर्वी आपके पास!अब अगर आप रिस्क लेने को तैयार हो तो बताओ हम कुछ मदद करें।

मतलब!मैं समझी नही पूर्वी ने कहा तो अर्पिता बोली आपके पास दो रास्ते है पूर्वी।पहला ये कि आप इस नन्ही सी जान को समाप्त कर अपने पापा की पसंद के लड़के से विवाह कर ले।और दूसरा ये कि ये सब छोड़ छाड़ कर आप यहां से निकल जाये और युवराज के साथ कहीं दूर एक खूबसूरत छोटा सा जहां सजाये।

मतलब आप हमे यहां से जाने की सलाह दे रही हैं मैम!पूर्वी ने चौंकते हुए कहा।तो अर्पिता बोली, सलाह नही हम बस आपके सामने जो सिचुएशन है,हालात है और उनके जो समाधान हो सकता है उस बारे में बता रहे हैं।अब इतना तो तय है कि अगर आपको इस नन्ही सी जान और युवराज का साथ चाहिए तो यहां से दूर कहीं जाना होगा।इसमे एक परिस्थिति ये भी हो सकती है कि युव्वि के माता पिता आपको नही अपनाएं।तो ऐसे में अब आपको खुद को मजबूत रखना होगा हर परिस्थिति के लिए।तो हम अभी यही कहेंगे कि आप एक बार सारी बातों के बारे में सोच विचार कर निर्णय कर ले फिर हमे बताये।और विचार भी जल्दी ही कर ले तो ही सही रहेगा।

ठीक है मैम!मैं युव्वि से इस बारे में बात करती हूँ।पूर्वी ने कहा।तो अर्पिता सोचने लगी और कुछ क्षण बाद बोली ठीक आप बात कर लेना और जो भी निर्णय लो वो हमे बता देना हमे इंतजार रहेगा।और अब तुम जाओ क्लास में यहां ज्यादा देर बैठना भी ठीक नही है।

ओके मैम कह पूर्वी उठ कर वहां से चली जाती है।कुछ देर बाद अर्पिता भी उठकर क्लास में चली आती है वो दोनो क्लास एक साथ अटैंड करती है।लर्नर्स के साथ उसकी काफी अच्छी बॉन्डिंग बन चुकी होती है।इतनी कि अब प्रशांत की क्लास के छात्र भी उसके क्लास अटैंड करने पर खूब एन्जॉय करते हैं।

शाम को अर्पिता परम के साथ घर आ जाती है और ऊपर आते ही उसकी नजरे चारों ओर घूमने लगती है।ये देख परम कुछ सोच कर कहते है, आप जिन्हें ढूंढ रहे है वो आज नही आने वाले है वो घर निकल गये हैं चाची जी ने उन्हें घर बुलाया है।

परम की बात सुन अर्पिता कहती है लेकिन उन्होंने आने का बोला था?

परम :- अब अचानक प्लान बना तो उन्होंने आपसे कहा नही।

अर्पिता थोड़ा उदास हो जाती है और कहती है ठीक है।लेकिन वो घर गये अचानक से काहे?सब ठीक तो है वहां।

अर्पिता की बैचेनी देख परम अर्पिता से कहता है कि अब आप दोनो को तो बस इंतजार ही करते रहना है तो करो।लेकिन चाची जी अब और इंतजार न करने वाली।भाई को बुलाया है उन्होंने और इस बार तो कोई न कोई रिजल्ट निकल कर सामने ही आयेगा।और वो अर्पिता के चेहरे की ओर देखने लगते हैं।इस उम्मीद से कि ये बात सुन अर्पिता कुछ बोले या प्रशांत के सामने ही अपने प्रेम का इजहार ही कर दें।

अर्पिता परम की बात सुन कहती है अच्छा है।और वहां से कमरे में जा कर चुपचाप बैठ जाती है और खुद को व्यस्त कर लेती है।उसका ऐसा रिएक्शन देख परम मन ही मन कहता है इतनी बड़ी बात सुन कर भी मेरी छोटी भाभी की खामोशी न टूटी तो फिर कब टूटेगी।अब कोई न कोई ऐसा ही टेढ़ा रास्ता ढूंढना पड़ेगा।सोचते हुए परम कमरे में चले जाते हैं।उधर प्रशांत अपने घर होते है जहां शोभा शीला कमला उसके और बाकी सब के हालचाल लेती हैं।

सबसे फ्री हो प्रशांत अपने कमरे में बैठ अर्पिता के बारे में सोच रहे होते हैं।शोभा और शीला कमरे में आती है और प्रशांत को कमरे में अकेले बैठ मुस्कुराते देख शोभा हल्का सा खांसती है।आवाज सुन प्रशांत सामने देखते है तो अपनी मां और बड़ी ताई जी को देख मुस्कुराना छोड़ गंभीर हो बैठ जाते हैं।
शीला कहां हो,अरे जरा यहां आकर मेरी ऑफिस की फाइल निकाल कर दो प्रशांत के पिताने आवाज देते हुए कहा तो शीला वहां से चली जाती है।उसके जाने के बाद शोभा उठ कर दरवाजा फेर कर प्रशांत के पास बैठती है तो प्रशांत छोटे बच्चे की तरह उनकी गोद में सर रख लेट जाते हैं।

हां तो बताओ कौन है वो जिसे याद कर अकेले अकेले मुस्कुराया जा रहा था।शीला ने प्रशांत से पूछा तो प्रशांत बोले आपको पता चल गया!कैसे समझ लेती है आप हर मेरी हर बात!

शोभा :- कैसे क्या तुम दोनो (प्रेम और प्रशांत) को मैंने ही सम्हाला है बचपन से।और दूसरी बात जब कोई युवा लड़का कमरे में अकेले बैठे हुए बिन बात के मुस्काये तो समझ लेना चाहिए कि उसकी जिंदगी में कोई खास आ चुका है।
तो अब बताओ कौन है वो जिसने मेरे इस बेटे को अकेले अकेले मुस्कुराना सिखाया।

शोभा की बात सुन प्रशांत कहते है वो वही है जिसे आप उस दिन किरण के घर मिली थी।

अर्पिता!शोभा ने चौंकते हुए कहा।
प्रशान्त:- जी ताईजी अर्पिता!

शोभा:- लेकिन वो तो उस दिन हादसे में ..!

प्रशांत :- नही ताइ जी उस दिन अर्पिता की ट्रेन छूट गयी थी और फिर वो धीरे सारी बातें संक्षिप्त में बता देते है।

जिसे सुन शोभा कहती है वो ठीक है और तुम्हारे साथ है ये जानकर मन को सुकून मिला।लेकिन उसके मां पिताजी भी तो थे उस ट्रेन में।

प्रशांत :- जी ताईजी वो थे और ठाकुर जी की कृपा से वो ठीक है बस शरीर जल चुका है दोनो का कानपुर हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।

शोभा :- तो क्या अर्पिता इस बात को जानती है।
प्रशांत :- नही ताइ जी।वो परेशान होगी ये सोचकर मैंने उसे नही बताया।

शोभा :- तो उस दिन जन्मदिन वाले दिन अर्पिता तो वहां नही थी जब हम आये थे तुम्हारे रूम पर।

शोभा की बात सुन प्रशांत जी मुस्कुराते हुए बोले वो वहीं थी आशी याद है आपको।

वही न जो उस दिन घूंघट में थी।मुझे भी अजीब लगा था लेकिन शिष्टाचार की वजह से कुछ पूछा नही।शोभा ने सोचते हुए कहा।

जी वो अर्पिता ही थी।वो खुद ही अभी सबसे छिप कर रहना चाहती है किरण की दादी ने बहुत कुछ सुनाया है उसे।उस पर ये ट्रेन हादसे में उसका सुरक्षित रहना ये समाज उसके लिए और प्रश्न खड़े करता।तो जब तक उसके पेरेंट्स ठीक नही हो जाते तब तक के लिए उसने ये जीवन चुना है।

प्रशांत की बात सुन शोभा कहती है जैसा उसे ठीक लगे।उसका ध्यान रखना।और हां अभी कोशिश करना शीला को इसकी भनक न लगे नही तो वो क्या करेगी बताने की जरूरत नही है।प्रेम के प्रेम विवाह करने के बाद से ही वो लड़कियों तस्वीरे देखने में लगी है।ये तुम और मैं दोनो मिलकर कोई न कोई बहाना बना टाल देते हैं।तुम्हारे प्रेम की भनक लगी तो फिर सपने ही देखते रह जाओगे।

प्रशांत :- नही देखूंगा ताइ जी आप और बड़ी ताइ है न।जैसे प्रेम भाई की बात बनवाई थी वैसे ही कोई न कोई जुगाड़ लगा लेना।

हट नटखट बड़ी जल्दी है ..!शोभा ने कहा तो प्रशांत बोले जल्दी नही ताई जी मैंने तो बस कहा है बाकी अर्पिता का इंतजार तो मैं लाइफ टाइम कर सकता हूँ।लेकिन ताइ जी एक परेशानी है..!

क्या बेटे!शोभा ने पूछा तो प्रशांत बोले
मुझे अब तक उसके मन की बात नही पता।

लो।मन की बात पता नही और मेरे साहबजादे चले है सपने देखने।शोभा ने कहा तो प्रशांत ने उठकर कहा कैसे पता करूँ वो कुछ पता चलने दे तब न।परवाह भी करती है गुस्सा भी करती है।अगर मैं नही दिखूं तो मुझे ढूंढती है,और दिख जाऊं तो ऐसे भागेगी जैसे कोई इंसान नही भूत देख लिया हो।
अब बताओ मैं क्या समझूँ।

ओह हो तो अब तुम ही बताओ कि करना क्या है।शोभा ने कन्फ्यूज होते हुए कहा।

प्रशांत :- करना कुछ नही है ताइ जी आपने पूछा तो मैंने बता दिया।बाकी अब जब तक वो अपने मन की बात नही कहेगी तब तक ये सीक्रेट हम तीनो के बीच रहना चाहिए।

शोभा (हैरानी से):- अब ये तीसरा कौन है प्रशांत।
प्रशांत:- कौन क्या ताई जी अपने घर का सबसे नटखट और सबसे छोटा परम।

क्या किया परम ने प्रशांत,शीला ने कमरे में अंदर आते हुए पूछा।शीला को अचानक से आया देख प्रशांत बुदबुदाते हैं मां आ गई अब ये साथ में फोटो जरूर लाई होंगी।।कोई बहाना सोच लूं जब तक ये फोटो दिखाती है ..फोन फोन..हां फोन कह प्रशांत फोन उठा लेते है और खुद ही परम के फोन पर कॉल लगा उसे कट कर देते हैं।

प्रशांत की ये हरकत देख शोभा कहती है तुम भी परम से कम नही हो।

हां भाई जो ठहरे कजिन ही सही।कॉल देख परम कॉल बैक करता है तो प्रशांत शीला के कुछ कहने से पहले ही फोन ले छत की ओर भाग जाते हैं।

प्रशांत के इस तरह जाने पर शीला कहती है देखा जीजी मैं फ्री होकर जैसे ही बात करने आई इसके पास ये फोन ले चला गया।अब आप ही बताओ मैं क्या इसकी कोई दुश्मन हूँ।जो मेरे आते ही फुर्र हो जाता है।

शीला की बात सुन शोभा मुस्कुराते हुए कहती है सच में उसका फोन आ गया था परम का था,अब जब ये वहां नही है तो हालचाल तो लेना होगा, है कि नही।हमने तो इसे अचानक बुला लिया परम की शादी से रिलेटेड सारी बातचीत के लिए।अब दिन ही कितने बचे है चालीस पैतालीस दिन ही तो बचे हैं।और ये दिन यूँ ही देखते देखते निकल जाएंगे।

हां जीजी।आप सही कह रही है मैं भी न एक दम से ही कुछ भी सोचने लगती हूँ।अब ये तो अभी आयेगा नही हम दोनो चल कर बाकी काम निपटा लेती हैं।शीला ने कहा और दोनो बातें करते हुए वहां से चली आती है।

छत पर प्रशांत परम का फोन कट कर वीडियो कॉल लगाते है और बातचीत करने लगते हैं।

प्रशांत :- छोटे आज हॉल में कैसे बैठे हो?

परम :-कैसे क्या भाई आज श्रुति ने बाहर से खाना मंगवाया है तो आज की मेरी छुट्टी।

ओह।वैसे श्रुति हैं कहां!प्रशांत ने पूछा।

परम उठा और बालकनी के पास जा खड़े होते बोले श्रुति यहीं हॉल में है।लेकिन अर्पिता वो अकैडमी से आने के बाद कमरे से बाहर ही न निकली।

लेकिन क्यों छोटे!तूने कुछ मजाक या शरारत तो नही की।साफ साफ बता मुझे।प्रशांत ने फ्रिकमंद हो पूछा। तो परम अपने स्वर को गंभीर कर बोले हां भाई,मैंने उनसे कहा कि आप घर गये है और चाची आपको लड़कियों की फोटो दिखाएंगी।और मेरी इस बात पर वो खामोश हो कमरे में चली गयी तबसे निकल कर आई ही नही।सॉरी भाई वो तो मैं आपकी मदद करने की कोशिश कर रहा था।

तुम सॉरी मत कहो छोटे।न जाने किस बात से उसने खुद को दायरे में बांध लिया।न मैं पता कर पा रहा हूँ और न ही समझ पा रहा हूँ हुआ तो हुआ क्या।क्या डर सता रहा है उसे जो वो एकदम से इतनी बदल गयी है।कुछ तो चल रहा है उसके मन में तभी तो वो आजकल जरा सा समय मिलते ही चित्रा के पास जा बैठती है।प्रशांत ने सोचते हुए कहा तो परम बोले भाई हो न हो ये आपके और चित्रा के रिश्ते को लेकर कश्मकश में है।अगर ये आजकल चित्रा के साथ ज्यादा समय व्यतीत कर रही है तो एक ये बात भी हो सकती है इनके इस बदलाव की।

हां छोटे मुझे भी ऐसा ही आभास हो रहा है।लेकिन फिर इस वजह से कुछ नही कह रहा कि जब वो ही आगे कुछ नही कहना या सुनना चाहती तो मैं क्या बोलूं।

भाई बोलना नही करना पड़ेगा।आपको चित्रा और खुद का जो दोस्ती का रिश्ता है न उसे छोटी भाभी को समझाना पड़ेगा तब जाकर आपको पहले वाली छोटी भाभी वापस मिलेंगी।नही तो बस इंतजार ही मिलेगा दोनो को।

ठीक है छोटे तो एक काम करो न ये फोन अर्पिता को देकर आओ मुझे उससे अभी बात करनी है।प्रशांत ने कहा तो परम ठीक भाई कह फोन ले श्रुति के कमरे में चले जाते है जहां अर्पिता की हल्की लाल आँखे देख वो समझ जाते है कि यहां पढ़ाई नही हो रही थी।
परम (अर्पिता से):- आपके लिए फोन!
अर्पिता :- जी कह फोन हाथ में ले लेती है तो परम वहां से चले जाते है और जाते हुए दरवाजा भी बन्द कर जाते हैं।

अर्पिता (बिना शान की ओर देखे) :- हां शान कहिये!
शान :- पहले मेरी ओर देखो।
अर्पिता:- शान! इतनी जिद काहे करते हैं आप!
शान:- अभी तो की ही नही मैंने जिद।अगर करने पर आ गया तो तुम क्या करोगी।

अर्पिता :- तो यही कहने के लिए फोन किया आपने।

फोन किया था तुमसे कुछ पूछने और बताने के लिए।प्रशांत ने गंभीर होकर कहा तो अर्पिता बोली क्या बताने के लिए शान?

शान :- यही की मुझे आने में एक दिन और लगेगा तो कल की क्लास तुम अटैंड कर लेना प्लीज!

अर्पिता :- ठीक है।और कुछ?
शान :- नही।
अर्पिता :- तो हम रखें।और एक नजर चुपके से प्रशांत को देखती है।

शान:- ठीक है बाय।
अर्पिता :- बाय कह फोन कट नही करती रख देती है।और सोचती है पता नही कर पा रहे हम कुछ एक सप्ताह हो गया,चित्रा तो इतनी अंतर्मुखी है कि आपके बारे में बात तक करना पसंद नही करती ऑफिस में।और अगर हम कुछ कहें तो ये कह झिड़क देती हैं बॉस की बुराई करना अच्छी बात तो नही।अब भला हमे कैसे पता चले।अब जो होगा ईश्वर खुद ही करेंगे।

वहीं अपने घर बैठे हुए प्रशांत भी यही सोचते है कि इस बात को सुन लाल आँखे हो रखी तुम्हारी लेकिन फिर भी अपने मन की बात को जुबां पर नही आने दे रही हो।हे ठाकुर जी अब आप ही कुछ करो ऊपर देखते हुए वो हाथ जोड़ कहते है और छत से नीचे चले आते हैं।परम अपना फोन लेने कमरे में आते है तो अर्पिता का उतरा हुआ उदास चेहरा देख वो उसके पास उचित दूरी बना कर कर बैठते हुए कहते हैं जब तकलीफ हो रही है तो उसे बयां भी करो।भाई से नही कह सकती मुझसे तो बोल सकती हैं न आप?

आपसे!क्या बोले हम?

परम:- वही जो इस समय आपके मन को बहुत तकलीफ दे रहा है इतना कि आप की इन हल्की लाल आंखों का कारण है।

उधर फोन पर आवाजे सुन प्रशांत अपने कमरे में बैठ आवाज का कारण पता करने लगते हैं।

अर्पिता :- हां!आपसे बोल सकते है,क्योंकि आप हमारे राजदार हैं न।ये सच है कि हमारे मन में एक बात है जो हमे आपके भाई की तरफ बढ़ने से रोक।रही है।और वो है आपके भाई और चित्रा का रिश्ता।हमें ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं उनकी इस दोस्ती में प्रेम छुपा है जो अभी सामने नही दिख रहा लेकिन कभी न कभी वो सामने आयेगा।अब आप यही देख लीजिये जब उन्हें चोट लगी थी।तब वो ही आई थी त्रिशा को लेकर भले ही छोटी स जख्म था लेकिन आई थी न।और त्रिशा वो नन्ही सी बच्ची उनमे कहीं न कहीं अपने पिता को ढूंढने की कोशिश करती है।हालांकि उसे अभी नही पता कि पिता होते क्या है लेकिन आप खुद देखिये चित्रा के बाद अगर त्रिशा को कोई प्यारा है तो वो शान हैं।ऐसे में हम उन के बीच कैसे आ सकते हैं।हमने अभी जैसे तैसे खुद को रोक पाया है ये हमारे लिए कितना मुश्किल हो रहा है आप नही समझ पाएंगे।

कहते कहते अर्पिता की आँखे भर आती है तो परम कहता है तो आप इस बात को लेकर इतना चिंतित है।अब ये बताओ मेरा भाई है ही इतना हैंडसम और केयरिंग कि किसी को भी उससे प्रेम हो जाये।लेकिन क्या आपको मेरे भाई की तरफ से ऐसा महसूस हुआ कि वो आपको छोड़ कर चित्रा या किसी और के इतने करीब है कि उसके लिए किसी से लड़ाई मोल ले।आपको कभी लगा ऐसा कि उन्होंने किसी और के लिए खुद को बदला हो हमेशा चाय चाय करने वाले मेरे भाई को आपके हाथ की एक कप कॉफी का इंतजार रहता है।बताइये कभी आपको ऐसा महसूस हुआ कि मेरे भाई ने किसी और लड़की की इतनी परवाह की हो कि उसके लिए वो सर्दियों की बारिश में भीगे हो।बताइये....!जवाब दीजिये न।जाने क्या उल जलूल सोच कर बैठी हैं आप।

परम की बात सुन अर्पिता भावुक हो जाती है वो बस इतना ही कह पाती है हम सच में पगली हैं।इतनी सी बात नही समझ पाये।वहीं दूसरी तरफ फोन पर अर्पिता की बात सुन अपने आंसू पोंछते हुए हुए शान कहते है हम्म पगली ही हो तुम, मेरी पगली..!

क्रमशः....