कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 35) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 35)

अर्पिता ट्रे ले जाकर रख देती है और कप निकालकर सिंक में रखती है तो उसे उसके नीचे रखा नोट दिख जाता है।वो उठाकर उसे पढती है जिस पर लिखा होता है, नॉट फेयर अप्पू!☹️!

ओहो मतलब नाराजगी है।लेकिन हमने ऐसा क्या किया जो नाराजगी है।हमने तो इनके भले के लिये ही तो रोका था।।बात करते है जाकर सोचते हुए वो रसोई से प्रशान्त के पास आती है जो उसे देख गर्दन नीची कर अपना फोन निकाल चलाने लगते हैं।

अर्पिता :- अब हम क्या करे कुछ बात करने से तो रहे।।परम जी और श्रुति दोनो यही आ गए हैं।
अब तो हमारी एक मात्र आस नोट वाली बातचीत ही बची है।काश हमारे पास हमारा फोन होता तो हम उसे दो मिनट में पता कर लेते लेकिन ..! खैर अब हम एक काम कर सकते है कहते हुए अर्पिता श्रुति के पास जाकर बैठ जाती है।

अर्पिता :- श्रुति ! वो हमें ऑनलाइन कुछ सर्च करना है तो क्या तुम अपना फोन दो मिनट के लिये दोगी।

श्रुति :- ये लो ! श्रुति मुस्कुरा कर उसके हाथ मे फोन थमा देती है।

अर्पिता उसका फोन ले प्रशान्त का नंबर सर्च कर उनके लिए एक संदेश लिख सेंड कर देती है।और श्रुति के फोन से उसे मिटा थोड़ा सा इंटरनेट पर सर्फिंग करने लगती है।

प्रशान्त जी जो जानबूझ कर फोन चला रहे हैं हमारी अर्पिता को थोड़ा सा परेशान करने के लिए उनके पास संदेश पहुंच जाता है।

हमे आपसे बात करनी है हम छत पर इंतजार कर रहे हैं।(अर्पिता)

प्रशांत जी संदेश पढ़ अर्पिता की ओर देखते है जो श्रुति का फोन चला रही है।

श्रुति ये लो फोन हमारा काम हो गया।।श्रुति की ओर फोन बढ़ाकर अप्पू ने कहा।और वहां से उठ कर छत पर चली जाती है।जहां इस समय कोई नही होता है।कब अक्टूबर में मध्य में शाम के समय हल्की हल्की सर्दी लगनी शुरू हो जाती है।तो रात के समय भला वहां कौन होगा।अर्पिता छत पर डाली गयी बेंच पर बैठ जाती है।

परम का फोन आ जाता है सो वो अंदर चले जाते हैं। तो प्रशान्त एक बार फिर देखते है तो अर्पिता को वहां नही पाते हैं।तो मतलब अप्पू छत पर चली गई है।देखता हूँ क्या बात करनी है इन्हें।
सोचते हुए वो वहां से उठ कर छत पर चले जाते हैं।

और जाकर अर्पिता के पीछे खड़े हो जाते हैं।
अर्पिता :- आ गए आप प्रशान्त जी।
प्रशांत :- हां।संक्षिप्त में कहा।

अर्पिता :- वो हमें ऐसे बुलाना पड़ा उसके लिए सॉरी!
प्रशान्त :- कोई ना।बताओ क्या कहना था?

अर्पिता :- कहना नही जी पूछना था।
प्रशांत :- क्या पूछना था?

अर्पिता :- आपने ये क्यों कहा कि नॉट फेयर? हमने ऐसा क्या किया ?

ये सुन प्रशान्त मन ही मन खुश होते है लेकिन ऊपरी तौर पर दिखावा कर कहते हैं तो अब ऐसा कारनामा करोगी तो क्या कहता।।

अर्पिता :- वही तो पूछा हमने? ऐसा किया क्या?
प्रशान्त :- अच्छा ! तो ये बताओ मुझे बाहर जाने से काहे रोका।मैं कितने जरूरी काम से जा रहा था और तुमने रोक लिया काहे?

प्रशान्त की बात सुन अर्पिता हंसते हुए कहती है! बस इतनी सी बात।।अरे वो तो हमने इसिलिये रोका की आपको जुकाम...!स्टॉप अप्पू! क्या कह रही हो इनसे।खुद से हो सोच वो चुप हो जाती है।

अर्पिता की बात सुन प्रशांत तो मन ही मन खुशी से भर जाते है।लेकिन फिर थोड़ा और तंग करने के उद्देध्य से कहते है.. 'क्या हुआ अप्पू' ? चुप काहे हो गयी बोलो भी काहे रोका मुझे.!

प्रशान्त की बात सुन अर्पिता कहती है हम बताएंगे आपको लेकिन इससे पहले ये बताओ कि रात के नौ वजे आपका कौन सा जरूरी काम रह गया था..!वो भी इस बारिश में।जरा हमे भी तो पता चले आपके जाने की वजह..!

जाने की वजह वो....कहते कहते आ छी..करते हुए प्रशान्त फिर से छीकने लगते हैं।आ..आ छी।उन्हें छींक पर छींक आने लगती है और उसकी नाक लाल हो जाती है।

माफ कीजियेगा हम भी न एक नंबर की पगली है आपको छींके तो पहले से ही आ रही थी और हमने आपको यहां छत पर आने को कहा।सॉरी प्रशान्त जी।आप चलिए नीचे हम गर्म पानी लाकर देते है आप बस स्टीम लीजिएगा।।आप चलिए कहते हुए अर्पिता प्रशांत का हाथ पकड़ती है और उसे नीचे ले आती है।प्रशान्त तो अर्पिता की इस हरकत पर मुस्कुराने लगते हैं।

वहीं अर्पिता परेशान सी बिन सोचे समझे प्रशान्त को लेकर जाती है और जाकर हॉल में बैठा देती है।वो हाथ छोड़ आगे बढ़ने को होती है कि फिर से दुपट्टे के कारण उसे रुकना पड़ता है।अर्पिता मुड़ती है और दुपट्टा निकालते हुए बड़बड़ाने लगती है बस तुम्हारी ही कमी थी अब लगता है हमे अपना पहनावा ही बदलना पड़ेगा। प्रशान्त उसके चेहरे की ओर देखते है जो उन्हें उस समय दुनिया की समसे मासूम लड़कीं का लगता है।अर्पिता दुपट्टा निकाल लेती है और बड़बड़ाते हुए कहती जाती है तुम्हे बस इस पूरी दुनिया में इनका हाथ ही मिलता है उलझने को।ये तो कह भी देते है इनका साथ भा गया।अब इन्हें कैसे समझाए ये साजिश तो कायनात की है हम जानबूझ कर थोड़े ही कुछ करते हैं।

वो रसोई में पहुंच जाती है और पानी गर्म करने रखती है।वहीं दूसरी तरफ काढ़ा बनाने रख देती है।कुछ ही समय मे उसकी दोनो चीजे तैयार हो जाती है।वो दोनो चीजे ले जाकर हॉल में बैठे हुए प्रशान्त के पास रख देती है और खुद श्रुति के पास से विक्स और टॉवल ले आकर वहीं टेबल पर रख देती है।

प्रशान्त एक बार फिर से फोन उठा लेते है और उसे चला रहे हैं।उन्हें व्यस्त देख वो उनके हाथों से फोन छीन लेती है और उसे बंद कर खड़ी हो जाती है।

हाय! तुम्हारा यूँ मेरी चीजो पर अधिकार जता कर छीनना।मुझे अंदर ही अंदर बेहद सुकून दे जाता है।जो मुझे एहसास दिला जाता है मेरे लिए तुम्हारे मन मे छिपी इन विशुद्ध भावनाओ का।प्रशान्त मन ही मन कहते हुए मुस्कुराते हैं।

अर्पिता :- अब मुस्कुराना तो बाद में पहले स्टीम ले लो फिर ये काढ़ा पी लो नही तो सुबह तक आपकी हालत और खराब हो जानी है।

प्रशान्त :- मैं ले लूंगा तुम टेंशन न लो और जाकर रेस्ट कर लो।

अर्पिता :- आ हम कर लेंगे लेकिन कुछ देर बाद।।

ओके कह वो स्टीम लेने लगते है तो अर्पिता वहां से बाकी काम खत्म करने निकल लेती है।और कुछ मिनटों में ही सारा काम खत्म भी कर लेती है।

प्रशान्त स्टीम ले लेते है और काढ़े वाला कप ले जाकर रसोई में रखते है।अर्पिता जो वहीं काउंटर के पास वाली जमीन पर बैठ कुछ ढूंढ रही होती है सो प्रशांत उसे देख नही पाते हैं।

वो कप रख मुड़ते हुए वहां से चले जाते हैं।अर्पिता उठ कर देखती है तो भरा हुआ कप देखती है।

अर्पिता उसे लेकर बाहर निकलती है तो परम् को अपनी ओर आता देखती है।

अर्पिता :- अब तो हम इनसे कुछ न कह पाएंगे।सोचते हुए वो वापस लौटती है और नोट बुक देख एक नोट लिखती है , "प्लीज फिनिश दिस!" और वो कप एक बार फिर से ले जाकर प्रशांत के सामने रख देती है।

प्रशान्त :- ओहो! मुझे लगा कि तुम आसपास नही हो तो जाकर वापस रख आता हूँ।लेकिन अब लग रहा है कि तुम पिला कर ही छोडोगी।

अर्पिता :- अभी भी लग ही रहा है।कहते हुए वो ट्रे टेबल पर रख देती है और वहां से चली जाती है।परम् जो जा तो रसोई की ओर रहा होता है लेकिन अर्पिता को देख रुक जाता है।

वहीं अर्पिता बिन कुछ ज्यादा बोले वहां से श्रुति के कमरे में जाकर बैठ जाती है।

परम :- ये भाई को समझना इतना मुश्किल क्यों है?अर्पिता के बिहेव से तो मुझे साफ समझ मे आ रहा है लेकिन भाई ये वैसे तो इतनी बतचीत करते है लेकिन इनके सामने जैसे बातें ही खर्च हो गयी हो इनकी।अब क्या बेटे परम! चलो ड्यूटी पर।यहाँ एक सिरा न सही उलझा हुआ धागा ही समझ में आ जाये तो बात बने।कहते हुए परम प्रशान्त की बताई ड्यूटी पर लग जाता है।

वहीं हॉल में बैठे हुए प्रशांत कप उठाते हसि तो उन्हें नॉट दिख जाता है।'प्लीज फिनिश दिस' पढ़ते हुए कहते है "व्हाई नॉट"। और एक ही बार मे खत्म कर देते हैं।

प्रशान्त -: छोटे! मुझे भूख नही है अभी तो मेरे लिए खाना मत निकालना मैं सोने जा रहा हूँ अभी।।आवाज देते हुए कहते हैं।और जवाब का इंतजार किये बिना वहां से चले जाते हैं।

अर्पिता प्रशान्त की बात सुन लेती है और बुदबुदाती है अभी कुछ देर बाद आपको रेस्ट मिल जाएगा तब आपको भूख और प्यास दोनो लगेगी तो एक्सट्रा रखना पड़ेगा।काहे की हमसे भूख बर्दाश्त ही नही होती।और शायद आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो।
सोच वो रसोई में पहुंच जाती है जहां परम हैरानी से उसे देख रहे है।

परम - ये सब आपने किया है?
अर्पिता :- जी।

परम :- लेकिन काहे अर्पिता जी।मैं और भाई कर लेते न।फिर काहे?

अर्पिता - काहे कि हमे लगा कि कर लेना चाहिए आप और प्रशान्त जी दोनो ही थके हुए थे तो बस सोचा कर लेते है वैसे भी इसमें समय कितना लगता है।

परम :- लेकिन हम दोनों ...! कोई नही थैंक यू।

शायद इन्हें हमारा ये सब कार्य करना अच्छा नही लगा इसीलिए ऐसा कहा इन्होंने।अबसे हमे ध्यान रखना होगा। सोचते हुए वो वहीं दरवाजे से ही वापस आ जाती है।

श्रुति जो अपने कमरे में होती है अर्पिता वहीं जाकर बैठ जाती है और उसके साथ मिल पढ़ाई करने लगती है।

परम (रसोई से)- श्रुति और अर्पिता जी आप लोग बाहर आ जाइये खाना लग चुका है।

ओके भाई श्रुति ने कहा और दोनो बाहर चली आती है।
अर्पिता और श्रुति दोनो हॉल में नीचे चटाई बिछा बैठ जाती है।परम भी आकर बैठ जाता है।श्रुति अर्पिता के लिए प्लेट लगाने लगती है।

अर्पिता :- श्रुति हमारा मन नही है अभी हम बस एक को कॉफी पीना चाहेंगे।वो तो बस तुम्हे कम्पनी देने के लिए हम यहां आ गए थे।

अर्पिता की बात सुन परम कहता है, " कहीं तुम्हे मेरी बात का बुरा तो नही लगा" वो मैं बस साफ तौर पर अपनी बात कहता हूं ..! मेरी बातों का बुरा मानने की जरूरत नही है आपको।

नही नही परम जी!हमार सच मे मन नही है।जब होगा तब हम आपके बिन कहे ले लेंगे।।।अर्पिता ने परम से कहा।

गुड!जब चाहे तब।परम ने जवाब दिया और चुपचाप बैठ अपना खाना खाने लगता है।

कुछ देर में सभी उठ जाते है तो अर्पिता श्रुति के साथ वहां से चली जाती है।जहां श्रुति बिस्तर में दुबक कर नींद की आगोश में चली जाती है।और अर्पिता अब पढ़ने में जुट जाती है।

अप्पू!रुको यार आगे नही बढ़ना आगे गहरी खाई है।रुक जाओ प्लीज़!अरे मेरी बात तो सुनो... चारो ओर हरियाली ओढ़े धरती।पहाड़ पेड़ नदिया झरने।कहीं ऊंचाई तो कहीं नीचे गहरी खाई।और ढलान भरे रास्ते। इन्ही रास्तो पर अर्पिता दौड़ती जा रही है।और उसके पीछे उसे रोकते हुए दौड़ रहे है प्रशान्त।

प्रशान्त :- रुक भी जाओ।।पैर फिसल गया तो लुढ़क जाओगी।बात तो सुनो एक बार..।मुझे सच मे चित्रा की फीलिंग्स के बारे में नही पता था।उसने यूँ अचानक व्यक्त की अपनी फीलिंग्स जिसे जान मैं खुद हैरान हूं।

अर्पिता रुकती है और पीछे प्रशान्त की ओर मुस्कुराते हुए देखती है।आंसू और मुस्कुराहट का संगम एक साथ उसके चेहरे पर झलक रहा है..वो हाथ उठाती है बाय करते हुए पीछे कदम बढाती है जहां वो नीचे ढलान की वजह से लुढ़कती चली जाती है.! अप्पू...नही ......!

एक झटके से उनकी आंख खुलती है और पसीने से तरबतर माथा।

अप्पू।।तुम.! कमरे की लाइट जलती है।और कमरे में टंगी घड़ी पर एक नजर पड़ती है जिसमे रात के दो बज रहे हैं।

प्रशान्त :- थैंक गॉड! ये सपना ही था।वो उठते है अपने आसपास देखते है जहां परम् अभी भी गहरी नींद में सो रहा होता है।

प्रशान्त बिस्तर से उठते है और एक शॉल लेकर बाहर हॉल में पड़े सोफे पर आकर बैठ जाते हैं।और सोचते हुए कहते है ये कैसा सपना था।अप्पू ..पहाड़ी ढलान..उसका गिरना।नही नही सोचते हुए ही वो परेशान हो जाते हैं।धड़कने बढ़ जाती है तो वो परेशानी में उठ कर टहलने लगते हैं।

वहीं अर्पिता जो लेट नाइट अध्ययन कर रही होती है कॉफी की तलब लगने पर उठकर कमरे से बाहर चली आती है।तो प्रशांत को बाहर परेशान टहलता हुआ देखती है।

कुछ सोच वो मुस्कुराती हुई रसोई में जाती है और दो कप कॉफी बनाती है।और लेकर प्रशान्त के पास आ उसके पीछे खड़ी हो जाती है।

प्रशान्त :- अप्पू, तो तुम आ गई अपनी कॉफी के साथ?

अर्पिता :- जी !
प्रशान्त :- अच्छा किया।सिर दर्द कर रहा था मैं भी सोच ही रहा था चाय के बारे में..तब तक तुम कॉफी ले आई।

अर्पिता :- जी सॉरी।हमे लगा आप कॉफी ...हम अभी चाय लेकर आते हैं।कहते हुए वो दोनो मग नीचे रखती है और जाने के लिए मुड़ती है तो प्रशान्त उसके आगे आए कहते हैं।बहुत जल्दी में रहती हो नई..! मैंने बोला क्या जाने को।नही न सब ठीक है तुम यहीं रुको मैं कुछ बिस्किट लेकर आता हूँ तुम्हे मिलेंगे नही न्..!प्रशान्त ने कहा।

अर्पिता :- कॉफी के साथ बिस्किट? ईयू..!कोई कॉम्बिनेशन ही नही इसका मतलब इन्हें अब भूख लगी है।और अब इस समय ये खाना तो खाएंगे नही अब लगभग दो घण्टे बाद ब्रह्म मुहूर्त जो प्रारंभ हो।जाएगा।

प्रशान्त रसोई से आ जाते हैं तो अर्पिता उनके साथ कॉफी एन्जॉय करने लगती है।

प्रशान्त :-बिस्किट ?
अर्पिता:- नही।

प्रशान्त :- वैसे अब तक जाग कैसे रही थी तुम।
अर्पिता :- वैसे ही जैसे आप जाग रहे हैं?

प्रशान्त :- वो मैं तो बुरे सपने की वजह से जाग गया।
नही तो मस्त गहरी नींद में सो रहा था।

अर्पिता :- तो आप सपनो पर यकीन करते हैं।
प्रशान्त:- हां।।बिल्कुल?
अर्पिता :- ओके।कह कुछ पल के लिए चुप हो जाती है।

प्रशान्त :- वैसे तुमने बताया नही की अब तक काहे जग रही हो.?पढ़ाई कर रही थी क्या..?

अर्पिता :- जी अब पूरे दिन में यही कुछ घण्टे मिलते है अगर इन्हें भी नींद में वेस्ट कर दिया तो कैसे हम अपने सपने को पूरा करेंगे।

ये बात भी सही है।वैसे अगर मेरी कुछ मदद चाहिए तो बेझिझक बोल सकती हो।प्रशान्त ने अपनी कॉफी का मग नीचे रखते हुए कहा।

अर्पिता :- जी बिल्कुल।हम अवश्य पूछेंगे।

प्रशान्त के गले मे हल्की हल्की सी खराश होती है जिसे देख अर्पिता समझ जाती है और धीमे से कहती है अब पक्का जुकाम होना है इन्हें।

प्रशान्त :- कुछ कहा तुमने?
अर्पिता :- न्..नही नही।कुछ नही।

प्रशान्त :- ठीक है।तो अब जाकर सो जाना।रात काफी हो गयी है समझी।काम मे साथ साथ आराम भी जरूरी है।

अर्पिता :- जी।।

प्रशान्त - ओके।अब मैं जाता हूँ सुबह फिर से रूटीन पर लगना है।गुड नाईट।।

अर्पिता :- गुड नाईट।प्रशान्त उठ कर चल देते है और चार कदम आगे बढ़ मुड़ते हुए कहते है, 'सुनो नाईट का मतलब नाईट नॉट स्टडी'!

जी!अर्पिता ने कहा तो प्रशान्त👍 कर वहां से चले जाते हैं।अर्पिता कॉफी कप उठा उन्हें साफ कर रख वहां से वापस चली आती है।

कुछ घण्टो बाद सुबह हो जाती है तो सभी उठकर अपने अपने कार्य मे लग जाते हैं।

प्रशान्त :- छोटे आज फिर ये एक व्यक्ति का भोजन बच गया है काहे?

परम :- काहे की अर्पिता जी ने मना कर दिया था।

प्रशान्त :- लेकिन क्यों?
परम् -अब ये क्यों है मुझे नही पता।

प्रशान्त :- ओके कोई नही।इसे मैं फिनिश कर लूंगा बाकी तुम अब टिफ़िन लगा लो मैं रेडी होकर आता हूँ।कहते हुए चारो ओर एक सरसरी नजर दौड़ाते है और बाहर चले आते हैं।

बाहर सोफे पर टेबल पर मैगजीन रखी होती है जिसे देख वो मुस्कुराते हुए उसके पास जाते है और झुक कर मैगजीन में नीचे रखे नोट को निकाल कर पढ़ते है ," आज हमें मंदिर जाना है, आप ऑफिस जाने से पहले एक बार स्टीम ले लेना।हम मंदिर से ही ऑफिस पहुंच जाएंगे।तो आज इंतजार नही करना।☺️!
पढ़ कर प्रशान्त के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।अब बात तो माननी पड़ेगी न तभी तो इश्क़ निभाया जा सकता है।कहते हुए वो कमरे में चले जाते है जहाँ बाथरूम में लगे गीजर में पानी गर्म करते है और पांच मिनट स्टीम ले मुस्कुराते हुए तैयार होने लगते हैं।

तैयार हो वो बाहर आते है जहां परम् श्रुति उनका इंतजार कर रहे हैं।

श्रुति वैसे तुम अर्पिता के साथ काहे नही गयी?प्रशान्त ने पूछा।

श्रुति :- हां। भाई कह रही थी उसे मंदिर जाना है।आज किसी का जन्मदिवस है तो बस उसके लिए ही प्रार्थना करनी है।

प्रशान्त (मन ही मन) :- वाह मेरी प्यारी सिस्टर और भाई।अपने भाई का जन्म दिवस ही भूल गए और वो जिसे मैंने अभी बताया तक नही न जाने कैसे पता कर लिया उसने कमाल है?

परम् :- चले श्रुति।।
श्रुति :- हम्म।कह परम् के साथ निकल जाती है।और प्रशान्त अपना हेलमेट उठाते है तो उसके नीचे चिट के साथ एक उपहार देख मुस्कुराने लगते हैं।

मुझे कुछ यूं भा गया है तुम्हारा ये परवाह करने का अंदाज़।
कि अब मेरी नजर घर के हर कोने में एक श्वेत कागज का टुकड़ा ढूंढती है।

कहते हुए वो उपहार और नोट उठा अपने बैग में रख ऑफिस के लिए निकल जाते हैं।

क्रमशः..