कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 34) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 34)

अर्पिता आकर कमरे में बैठ जाती है और कुछ देर रेस्ट करने लगती है। जरा सा फ़्री होते ही वो यादों की गलियों में पहुंच जाती है।जहां वो और उसके मां पापा होते हैं।

अप्पू :- मां पापा अगर आज यहां होते और उन्हे ये पता चलता कि हम अब और ज्यादा जिम्मेदार हो गए है तो खुशी से फूले नहीं समाते।बहुत खुशी होती उन्हे।लेकिन आज न जाने वो कहां है।काश हमारे पास कोई जादू की।छड़ी होती तो हम छड़ी घुमाते और फटाक से अपने मां पापा का पता लगा लेते।लेकिन अब हमे इंतजार ही करना होगा।।सच में कभी कभी लगता है पास में पैसा होना कितना महत्वपूर्ण है। अगर ये जॉब हम पहले से करते तो आज हमें अपने मां पापा को ढूंढने के लिए इतना इंतजार नहीं करना पड़ता।सोचते सोचते उसकी आंखो में आंसू आ जाते है जिन्हें कमरे में मौजूद श्रुति देख लेती है।

अप्पू :- व्हाट हैपेन?तुम रो काहे रही हो?
अप्पू :- हम तो नहीं रहे ये तो बस ऐसे।कहते हुए अप्पू अपने आंसू पोंछ लेती है।और मुस्कुराने की कोशिश करते हुए श्रुति को देखती है।

श्रुति :- तुझे देख ना जाने काहे ऐसा लग रहा है जैसे कि तुम मुझसे झूठ बोल रही हो।ऐसा ही है न अप्पू।।बोल मै सही कह रही हूं न।

अप्पू - सही क्या यार तुम भी न कुछ भी सोचती जाती हो।।हम बाहर जाकर बैठते है काहे कि हमें अब अकैडमी जाना है तुम्हारे प्रशांत भाई हमारा इंतजार कर रहे होंगे।अब वो खुद से तो बोलेंगे नहीं कि अभी चलना है।।अर्पिता ने बात टालते हुए कहा।तो उसकी बात सुन श्रुति ने कहा, क्या बात है बड़ी जल्दी मेरे भाई को समझ रही हो?

अप्पू :- उन्हे समझना कौन सा मुश्किल है।इतना सिम्पल और स्पष्ट व्यवहार है आसानी से समझा जा सकता है।

हैं..सिम्पल और स्पष्ट...ये कब से भाई का व्यवहार हो गया..!मेरे क्या घर में कोई भी उन्हे समझ नहीं पाता और तुम्हारे लिए भाई सिम्पल और स्पष्ट व्यवहार के हो गए..?कैसे मेरी जान ?श्रुति ने अर्पिता से पूछा तो अर्पिता कहती है .. हमे ऐसा लगता है बाकी औरो को क्या लगता है ये हमारी प्रॉब्लम थोड़े ही है...?और अब तुम ज्यादा दिमाग के घोड़े न दौड़ाओ।तुमने ये तो नहीं पूछा कि अप्पू तुम्हारी जॉब का क्या हुआ? और ये उल्टे सीधे सवालों में बड़ा इंट्रेस्ट लिया जा रहा है..?

ओह हो अप्पू, अब जॉब का क्या पुछू मै।तुम हो ही इतनी काबिल कि तुम्हे नौकरी न देकर किसी को अपना नुकसान थोड़े ही कराना है।या कहो अपने पैर पर थोड़े ही कुल्हाड़ी मारनी है।
भई टैलेंटेड लोगो की हर जगह कदर होती है।।इसलिए मैंने पूछा ही नहीं।।वैसे तुम बताओ मैंने सही कहा न।तुम्हे जॉब मिल गई है न।

अप्पू :- हां श्रुति! जॉब तो मिल गई है।और आज हमारा पहला दिन भी था हमारा तभी तो इतनी देर से आए।।

श्रुति :- गुड!तो अब फटाफट मुझे भी पता दो ताकि मै जाकर वहां अपने लिए कोई जॉब देख लूं जिससे हम दोनों साथ ही साथ जाया करेंगे।।साथ जाना और साथ आना।

ओके श्रुति फिर तो तुम ये दस्तावेज देख लो जो हमें वहां की एक कर्मचारी नीलम ने दिया है कहते हुए अर्पिता अपने बैग में से एक पेपर निकाल श्रुति को पकड़ा देती है।और स्वयं बाहर जाकर हॉल में बैठ जाती है।बड़ी मुश्किल से श्रुति के सामने बातें बदल कर आई होती है।बाहर आते आते उसकी आंखें भर आती है।

हॉल में प्रशांत जी पहले से ही रेडी बैठे होते है और इस समय चाय का प्याला ही पकड़े होते हैं।प्रशांत को देख अर्पिता तुरंत अपने आंसुओ को छुपा लेती है और सोफे पर बैठ जाती है।प्रशान्त के हाथ में चाय का प्याला देख अर्पिता उनकी ओर ऐसे देखती है जैसे वो उन्हे कल तय की हुई बात याद दिला रही हो।

प्रशान्त :- यूं टकटकी लगा कर देखने से अच्छा है साथ में एक कप चाय का आनंद लिया जाए क्या ख्याल है ..?

उसकी बात सुन अर्पिता कहती है नेक ख्याल है।वहीं तो हम कह रहे थे कि हमारी ...चाय.?

मै लेकर आता हूं एक मिनट..! कहते हुए वो अपनी चाय का कप वहीं टेबल पर रख देते हैं और वहां से अंदर चले जाते हैं।अर्पिता उठ कर प्रशांत की जगह बैठ जाती है और उसके तरीके से चाय का प्याला पकड़ पीने का अभिनय करने लगती है।

वहीं प्रशांत जी रसोई से बाहर आते है तो कदमों कि हलकी आहट सुन वो हड़बड़ा कर इस डर से चाय की चुस्की लेने लगती है कि कहीं उसकी चोरी ना पकड़ी जाए।

प्रशान्त उसकी ओर देखते है तो मन ही मन कहते है क्या बात है अप्पू।मेरी वाली चाय की चुस्की...! टिट फॉर टेट..हां।

प्रशान्त - अप्पू तुम्हारी चाय...! जानबूझ कर उसे छेड़ते हुए कहते हैं। हां लेकिन हमने तो ये .उठा ली हमें लगा ये हमारे लिए रख कर गए है....! नहीं वो हमारा कहने का अर्थ है कि ... कह वो चुप हो जाती है और मन ही मन खुद को कोसने लगती है।
ये भी क्या अजीब अजीब हरकते हो रही है हमारे साथ।हम ये बात करते हुए अटकने कब से लगे।कहां तो लोग अपने मन की बात धड़ले से से बोल जाते है और एक हम जो पिछले कुछ घंटो से इनके सामने अटकने लगे हैं।लोग तो इश्क में सुधर जाते है और हम बिगड़ने लगे हैं।नहीं अब हमें खुद को संयत रखना होगा हद होती है बेवकूफी की।ये एहसास है कोई डायनासोर थोड़े ही है जो इनके देखते ही हमारी बैंड बजने लगे।

अर्पिता अपने ही मन के झंझावात में उलझी होती है।तो प्रशांत जी उसकी ओर देख उससे कहते है अप्पू चाय ठंडी हो रही है..!पी लो उसे।।काहे की मुझे ठंडी चाय पसंद नहीं है।।

प्रशान्त जी के बोल सुनकर अर्पिता अपनी सोच से बाहर आती है और सॉरी कहते हुए चाय कि चुस्की लेने लगती है।

तभी श्रुति भी वहां आ जाती है और अर्पिता के साथ ही बैठ जाती है।

भाई मै कुछ सोच रही थी आपसे कहूं??श्रुति ने जानबूझकर ऐसा प्रशांत से कहा।

प्रशान्त - कहो न किसने रोका है तुम्हे!

श्रुति -: मन ही मन सोचती है रोका तो किसी ने नहीं है भाई।लेकिन क्या है न अब बात अर्पिता के साथ जॉब करने ही है तो आपसे पूछना भी तो बनता है न आखिर कम्पनी भी आप ही हैंडल करते हैं।बॉस है आखिर आप..! और कहती है हां भाई रोका तो किसी ने नहीं है लेकिन वो क्या है न कभी कभी आप पजेसिव हो जाते हो तो बस इसीलिए..!

हां श्रुति! अब तुम्हे लेकर पजेसिव होना तो मेरा अधिकार है।आखिर छोटी बहन हो तो इसमें कुछ गलत तो नहीं है।।वैसे अब यूं बातों को घुमाना बंद करो और साफ साफ बात बताओ क्या चाहती हो।।आज कौन सी बात मनवानी है?प्रशांत ने सीधा सा कहा।

अर्पिता प्रशांत और श्रुति की ये अनोखी नोकझोंक सुन मुस्कुरा देती है और अपना तथा प्रशांत दोनों का कप उठाकर रसोई में चली जाती है।

श्रुति :- भाई बात ये है कि मुझे भी अर्पिता के साथ जॉब करनी है।तो आप प्लीज़ कोई जुगाड करिए न और मुझे भी ऑफिस में कोई काम दिला दीजिए।।

श्रुति की बात सुन प्रशांत कुछ सोचते है और मुस्कुरा कर कहते है अच्छा तो तुम भी काम करना चाहती हो।ठीक है मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन मेरी दो शर्ते है जिन्हें तुम्हे माननी पड़ेगी..।अगर वो पूरी हुई तो तुम ऑफिस में आ सकती हो।प्रशांत ने शांत लहजे में श्रुति से कहा।तो उनकी बात सुन श्रुति कहती है मुझे पता था आप शर्ते जरूर लाद देंगे मुझ पर।अगर प्रेम भाई यहां होते न तो यूं बिन किसी शर्त के ही हां कह देते।

कहते अगर हमें जॉब करनी है तो ये तो अच्छी बात है आराम से करो।।और आप ने तो शर्ते ही रख दी।। न जाने क्यूं बड़ी मामी(शोभा) कहती है कि आप और प्रेम भाई स्वभाव में एक जैसे है।मुझे तो आप दोनों में अंतर ही अंतर दिखाई पड़ता है।कहते हुए श्रुति शुरू हो जाती है।

उसकी बात सुन प्रशांत जी मुस्कुराते हुए कहते है जो गई तेरी नौटंकी शुरू।।अब मेरी बात सुनो अगर जॉब करनी है तो शर्ते माननी पड़ेगी। भाई बहन का प्यार तो अभी साइड में रखो।और प्रोफेशनल बात करते हैं ये बात तो तुम समझती हो काम के मामले में मै कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं करता।प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ दोनों अलग रखता हूं।

हां भाई जानती हूं।लेकिन मुझे जॉब करनी है ।नहीं तो मै यहां बोर हो जाऊंगी।अब आप बताइए आपकी क्या शर्ते हैं।

प्रशान्त - मेरी दो बहुत साधारण सी शर्ते हैं।पहली ये कि ऑफिस में तुम मेरी बहन न होकर एक एम्प्लोई रहोगी।तुम्हारे साथ भी बिल्कुल वैसा ही व्यवहार होगा जैसे और कर्मचारियों के साथ होता है। और दूसरी शर्त ये कि तुम हमारे रिश्ते के बारे में ऑफिस में किसी से भी चर्चा नहीं करोगी।।क्यूंकि फिर कर्मचारियों के मन में कहीं न कहीं ये भावना आ ही जाती है कि फलां एम्प्लोई से बॉस कुछ नहीं कहेंगे क्यूंकि ये इनकी रिश्तेदार है।और ये आगे अपनी काबिलियत से नहीं बल्कि रिश्तेदारी की वजह से बढ़ रहे हैं।अगर इन दो शर्तों को मानो तो तुम ऑफिस में अर्पिता की असिस्टेंट बन कर आ सकती हो।अपनी बात पूरी कह प्रशांत जी चुप हो जाते हैं।

ओके भाई।।ये मै ध्यान रखूंगी।श्रुति ने प्रशान्त से कहा।उसकी बात सुन प्रशांत भी उसे ऑफिस जॉइन करने का कह देते हैं।और उठकर कमरे में चले जाते हैं।

उधर अर्पिता इस बात से बेखबर कि वो प्रशान्त जी के साथ ही काम करेगी उसे बताने के लिए एक नोट लिखती है और जाकर बाहर शूज रखने के स्थान पर रख देती है।

और अपना बैग ले वहीं श्रुति के पास आकर बैठ आती है।प्रशान्त हाथ मे चाबी ले बाहर आते हैं और एक नजर अर्पिता की ओर देख आगे बढ़ रैक से अपने स्लीपर निकालते है तो उनकी नजर अर्पिता के रखे नोट पर पड़ती है।ओह यहां भी...वो नोट उठा कर पढ़ते हैं...हमें जॉब मिल चुकी है दस से चार हमारी ऑफिस टाइमिंग है।☺️!

ये पढ़ प्रशान्त जी मन ही मन कहते है।जानता हूँ अप्पू।लेकिन अब मुश्किल ये है कि कहीं ऐसा न् हो कि तुम्हे पता चले कि वो ऑफिस मेरा है तो कहीं तुम जॉब छोड़ कर ही न चली जाओ।अब इसके लिए भी कोई न कोई उपाय सोच कर रखना पड़ेगा।वैसे मेरे ख्याल से तुम्हे कोई परेशानी तो नही होनी चाहिए लेकिन फिर भी बैक अप प्लान तो रखना पड़ेगा।काहे कि अभी मैं तुम्हे यहां से जाने नही दे सकता।और नोट अपनी जेब मे रख वहां से बाहर चले जाते हैं और बाइक के पास पहुंच बाइक का हॉर्न बजा कर खड़े हो जाते हैं।

अर्पिता जो अंदर होती है हॉर्न सुन निकल कर वहां से तुरंत ही चली आती है।बाहर आकर वो बाइक पर बैठ जाती है और दोनो एकैडमी के लिए निकल जाते हैं।

प्रशान्त :- अप्पू! उदास क्यों हो?
अर्पिता हैरान हो कहती है हम उदास नही तो?आपको ऐसा काहे लगा।

प्रशान्त :- अप्पू! मुझे ऐसा लग रहा है और शायद इसकी वजह अंकल आँटी है न।

अर्पिता :- हां! वो आज हमे जॉब मिल गयी है।यानी हम इंडिपेंडेंट हो गए है तो इसकी सबसे ज्यादा खुशी हमारे मां पापा को ही होती।लेकिन अभी हमारा दुर्भाग्य हमे ये तक नही पता कि हमारे मां पापा कहां है।

अंकल आँटी ठीक होंगे अप्पू।तुम बस भरोसा रखो और खुद को सम्हालते हुए इसी तरह आगे बढ़ो।बहुत जल्द ही अंकल आँटी तुम्हारे सामने होंगे।

और सोचते है।अप्पू मुझे पता चुका है तुम्हारे माँ पापा के बारे में लेकिन् अभी उनके बारे में बताकर मैं तुम्हे परेशान नही कर सकता।जब तक मुझे ये यकीन नही हो जाता कि वो सही सलामत है तब तक मैं तुम्हे कोई झूठी उम्मीद नही दे सकता।क्योंकि डॉक्टर के अनुसार उन दोनो का शरीर काफी हद तक बर्न हो चुका है।जिससे उन्हें पहचानना काफी मुश्किल है।जब तक वो बिल्कुल ठीक और बातचीत करने योग्य नही हो जाते तब तक ये बात मुझे खुद तक ही सीमित रखनी होगी।
फिर वही जानी सी पहचानी सी खामोशी दोनो के बीच आ जाती है।और दोनो बस मिरर में देखते हुए मन ही मन बाते करते हुए एकैडमी पहुंच जाते है।जहां आज फिर वो साथ मे क्लास अटैंड करते है।
और वहां से साथ ही निकलते हैं।लेकिन उनका स्वागत आसमान में घिरे हुए बादल करते हैं।जो कभी भी बरसने को तैयार है।ये देख अर्पिता कहती है प्रशान्त जी आज तो बिन मौसम की बारिश होने के आसार नजर आ रहे हैं।

प्रशांत :- हां अप्पू।।और एक विशेष बात बताऊं बारिश चाहे किसी भी देश की हो बिन मौसम की बेहद खास ही होती है।।चलो हम लोग जल्दी जल्दी निकलते है।।तभी उन्के जेहन में अर्पिता की कही हुई चंद लाइन गूंजती है "कहीं तो होगा"।।ख्याल आते ही वो मन ही मन कहते है ठाकुर जी बारिश हो जाये।क्योंकि अप्पू को बारिश में भीगना बेहद पसंद है।प्लीज़!प्लीज! आज बारिश करा दीजिये।।
मन ही मन प्रार्थना कर वो बाइक स्टार्ट करता है और धीरे धीरे दौड़ा देता है।कुछ ही आगे पहुंचे होते है कि बारिश की बूंदे पड़ने लगती है।ये देख प्रशान्त जी मन ही मन बेहद खुश होते है और ठाकुर जी का धन्यवाद करते हैं।

हाय आज बेमौसम की ये बारिश! उस पर तुम्हारा मेरे साथ होना।और ये बाइक राइडिंग सब मिलकर मुझे मेरी पहली लांग ड्राइव का एहसास करवा रहे हैं।प्रशांत मन ही मन खुश होते हुए कहते हैं।वहीं अर्पिता बारिश की बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस करने लगती है।थोड़ा आगे ड्राइव करने के बाद प्रशान्त जी बाइक को परिवर्तन चौक पर रोक लेते हैं।और अर्पिता से कहते है तुम्हारी पसंदीदा बारिश तो जस्ट एन्जॉय।।मैं अभी आया ओके कह प्रशांत जी वहां से चले जाते हैं।
वही अर्पिता एक बेंच पर बैठ जाती जिसके ऊपर छत टाइप होती है वो हाथो को फैला जी भर कर बारिश से खेलती है।तभी वहां प्रशान्त जी वापस आ जाते है उनके हाथ मे चाय की दो कुल्हड़ होती है जिसे देख अर्पिता हंसते हुए कहती है बारिश की बूंदों में चाय..! क्या बीमार पड़ने का इरादा है।नुकसानदायक होगी ऐसे तो।

अप्पू पी कर तो देखो यार।।एक तो इतनी मुश्किल से लेकर आया हूँ तुम्हारे लिए और तुम ही ऐसे ...बोल रही हो।कभी तो इस मासूम से बन्दे की बात मान लिया करो।।प्रशान्त ने अर्पिता से कहा तो उसकी बातें और हावभाव देख उसे हंसी आ जाती है
वो कहती है मासूम और आप।।खैर मुद्दा ये नही मुद्दा ये है कि हमने आपकी कौन सी बात नही मानी बताओ जरा.!

वो तो मैंने बस ऐसे ही...! असल मे मुझे बारिश में चाय पसंद है और अकेले वहां बैठ कर पीना मुझे सही नही लगा तो......

तो आप यहां हमारे लिए ले आये हैं।अब इतने प्यार से लाये है तो मना करना नही बनता। लाइये कहते हुए वो चाय का प्याला फुर्ती से लेती है और चाय पीने लगती है।चाय पीते हुए उसकी नजर सामने ग्राउंड पर पड़ती है तो वो अपनी स्लीपर वहीं उतार और चाय वहीं बेंच पर रख भीगने लगती है।ग्राउंड में कुछ कपल और लोग भी होते है वो अर्पिता को ऐसे भीगते देख मुस्कुरा देते हैं।वही कुछ उपद्रवी तत्व भी होते हैं।जो किसी युवा लड़कीं को भीगता हुआ देख हंस हंस कर आपस में बात करने लगते है।प्रशान्त की नजर उन पर पड़ती है तो वो अपनी चाय वहीं रख अर्पिता के सामने जाकर खड़े हो जाते है।उनकी ये हरकत उन तत्वों को संदेश देने के लिए काफी है कि ये लड़कीं यहां अकेली नही है।प्रशांत को देख वो।सभी एक दम से चुप हो जाते हैं और वहां से खिसक जाते हैं।

प्रशांत घड़ी देखते है जिसमे लगभग आठ दस हो चुके है यानी यहां आए हुए दस मिनट हो चुके है अब हमें निकलना चाहिए नही तो बीमार पड़ जाएंगे।आखिर सर्दियों वाली बारिश है।

प्रशान्त - अप्पू! अब हमें यहां से निकलना चाहिए।घर पहुंचने में देर हो जाएगी।और ज्यादा भीगे तो ...आ छी।।छींके आते हुए सर्दी लग जायेगी।कहते हुए प्रशांत जी एक बार फिर छींकते है।

ठीक है चलिए कहते हुए अर्पिता और प्रशान्त दोनो वहां से निकलते हैं।

रास्ते मे अर्पिता को महसूस होता है कि प्रशान्त जी छींकते हुए बाइक राइड कर के चल रहे हैं।यानी सर्दी लग गयी है।कुछ ही देर में घर पहुँच जाते हैं।जहां जाकर दोनो चेंज कर सोफे पर आकर बैठ जाते हैं।

प्रशान्त अर्पिता को देखते है जिसे झुरझुरी महसूस हो रही है ये देख वो सोचते है शायद भीगने की वजह से सर्दी लग गयी है।और इन्होंने इतने सारे कपड़े खरीदे लेकिन गर्म कपड़े खरीद कर ही नही लाई है।वो घड़ी देखते है जिसमे रात के नौ बज।चुके हैं।यानी अभी भी बाजार जाया जा सकता है ये सोच वो परम् से कहते है :-

मुझे अभी जरूरी काम से जाना है।आज का कार्यभार तुम सम्हाल लो छोटे!

परम् :- ठीक है।।तो कितनी देर में आओगे वापस।
प्रशांत :- ज्यादा नही यही कोई एक घण्टा।

परम् :- ठीक है।।कहते है तो प्रशान्त जी तुरंत ही वहां से चले जाते हैं उन्हें छींके आती जा रही है।ये देख अर्पिता उठती है और तेजी से प्रशांत जी की तरफ जाती है और जानबूझकर उनसे टकरा कर आगे बढ़ जाती है।अचानक टकराने के कारण प्रशान्त के हाथ मे पकड़ी बाइक की की रिंग छूट कर गिर जाती है जिसे अर्पिता उठा तुरंत वापस लौट आती है।परम जो उन दोनों को ही देख रहा है उसे अर्पिता की हरकत समझ मे आ जाती है और वो मन ही मन कहता है किरण बोल तो सही रही थी।अब भाई के मन का पता करना है।

प्रशान्त अर्पिता को।चाबी उठाते हुए देख लेते है लेकिन उससे कुछ कहते नही और परम् के पास जाकर कहते है बाहर अभी भी बूंदाबांदी हो रही है तो तुम अपनी गाड़ी की चाबी दे दो मैं बस यही पास तक ही जा रहा हूँ।

परम् :- गाड़ी की चाबी तो अंदर कमरे में है वैसे ऐसा क्या जरूरी काम आ गया भाई जो अभी हो सकता है सुबह नही।

प्रशान्त -: वैसे तो है एक जरुरी काम।लेकिन अब अगर तुम कह रहे हो तो सुबह ही कर लूंगा।कह वो वहां से अपने कमरे में चले जाते हैं।

ये जान अर्पिता गहरी सांस ले कहती है शुक्र है ये अभी इस समय नही जा रहे हैं।स्वास्थ्य भी जरूरी है कहते हुए वो एक कप पाइपिंग हॉट मसाला टी तैयार करती है जो उसकी मासी बनाती थी।वो उसे एक कप में निकाल कर प्रशान्त को देने के लिए उसके कमरे में जाती है।जहां प्रशांत जी मुंह पर रुमाल रख छींके जा रहे है।

अर्पिता चाय का प्याला उसकी टेबल पर रख देती है एवम "आपके लिए चाय, पी लीजिएगा" कहते हुए वहां से बाहर आ जाती है।प्रशान्त जी उठ कर चाय लेते है तो उन्हें फिर से एक नोट मिलता है वो मुस्कुराते हुए उसे पढ़ते है :-

सबसे पहले तो शुक्रिया बारिश के लिए।और सॉरी चाबी लेने के लिए।।☺️।इसे पढ़ प्रशान्त जी मुस्कुराते है और कहते हैं :-

अब सॉरी इतनी जल्दी तो नही मिलेगी कुछ तो परेशान करना बनता है।।

और एक दूसरा पेपर लेकर उस पर कुछ लिखकर ☹️ बना उस पेपर को फोल्ड कर चाय फिनिश कर वापस उसी कप के नीचे रख देते है।

लगभग पांच मिनट बाद अर्पिता वहां आती है और खाली प्याला की ट्रे ले वहां से चली जाती है।...

क्रमशः