अर्पिता प्रशान्त दोनो ही अंदर चले आते हैं।और दोनो आकर सोफे पर बैठ जाते हैं।
प्रशान्त :- अप्पू, थक गई क्या?
अर्पिता:- नही !
प्रशांत :- ओके।।तो ये लो अपना सामान मैं कमरे में जा रहा हूँ।ठीक है।कह प्रशान्त जी कमरे में निकल जाते है।तो अर्पिता श्रुति के कमरे में जाकर सामान रखती है और चेंज कर बाहर चली आती है।श्रुति तब तक आकर सोफे पर बैठ चुकी होती है अर्पिता को आता देख वो कहती है, आ गयी तुम चोरनी कहीं की!!
अर्पिता :- चोरनी? हमने तुम्हारा क्या चुराया भला।
श्रुति:- मैं अगर तुमसे कहूंगी न तो बोलोगी ऐवें ही कुछ भी इसीलिए तुम पूछो ही मत।
श्रुति उठ चुकी होती है रसोई में अपने लिए चाय बनाने चली जाती है।अर्पिता उसकी बात सुन सोच में पड़ जाती है।आखिर ये कह कर क्या गयी है।जब समझ मे नही आता तो वो उठ कर श्रुति के पास चली जाती है और कहती है क्या कह रही थी तुम साफ साफ बताओ हम तबसे सोच में पड़ गए कि हमने तुम्हारा क्या चुरा लिया।
अर्पिता की बात सुन् श्रुति हंसते हुए कहती है ए ले मेरी इतनी सी बात में ही सोच में पड़ गयी।मैने तो बस हल्का फुल्का मजाक किया था और तुम तो सोच में ही पड़ गयी।।
अच्छा ऐसा क्या अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।
हां जी ऐसा ही है।श्रुति बोली।
अच्छा चाय पीयोगी।
चाय।।ईयू..! थोड़ी बहुत पी लेती हूं।लेकिन ज्यादा नही पसंद है।।अर्पिता ने श्रुति की मदद करते हुए कहा।
ओके।।लेकिन यहां तो सभी को बेहद पसंद है।प्रशान्त भाई की सुबह तो बिन चाय के होती ही नही है।ये में उनके लिए ही बना रही हूँ।वो क्या है न भाई जब भी कही बाहर से आते है तो एक कप चाय उनकी सारी थकान मिटा देती है।
ओह।।लेकिन वो तो कॉफी...!कह अर्पिता रुक जाती है।तो श्रुति कहती है कॉफी भी पी लेते है लेकिन प्रायोरिटी चाय..गर्मागर्म चाय।।
ओके।।तो क्या हम अपने लिए एक कप कॉफी बना ले।अर्पिता ने श्रुति से कहा।
तो श्रुति उसके सर पर चपत लगाते हुए कहती है कहा तो था न कि जो मेरा वो तेरा।तो अब ये प्रश्न दोबारा किया न तो सोच लेना।मुझसे झल्ली कहती हो और अब कौन झल्लीपन झलका रहा है बताओ।नई बताओ।।
श्रुति की बात सुन अर्पिता चुप हो जाती है।फिर बोलती है, हम सही कह रही हो तुम।हम पक्का आगे से ध्यान रखेंगे।
जी।।यही बढ़िया रहेगा अप्पू।।और हां कॉफी वहां रखी है।आराम से बना लेना ठीक।।कह श्रुति वहां से निकल जाती है।वहीं अर्पिता अपने लिए कॉफी बनाने लगती है।कुछ ही देर में उसकी कॉफी बन जाती है तो वो लेकर हॉल मे चली आती है।और बैठकर पीने लगती है।
प्रशांत जी उधर से गुजरते है तो उसकी नजर हॉल में बैठी अर्पिता पर पड़ती है।अर्पिता को देख वो रुक जाते है और सोफे पर आकर बैठ जाते है।
तो कॉफी पी जा रही है नई।।प्रशांत जी ने कहा जो अर्पिता उनकी ओर देखती है और कहती है जी।
प्रशांत :- बहुत बढ़िया।तुम्हे इतने मगन होकर कॉफी पिता हुआ देख मेरे मन मे भी कॉफी पीने की इच्छा उठ आई है।।
ओके तो दो मिनट इंतजार कीजिये हम अभी लेकर आते हैं कह अर्पिता अपनी कॉफी का मग टेबल पर रख अंदर चली जाती है।प्रशान्त जी अर्पिता का कॉफी मग उठा कर कॉफी पीने लगते है।
स्वाद भी वही है काफी अच्छी बनाती हो कॉफी तुम अप्पू।।प्रशांत कॉफी का घूंट भर स्वाद ले मन ही मन कहते हैं।और अपनी पॉकेट से नोट बुक निकाल कर उस पर एक संदेश लिख वहीं अर्पिता जहां बैठी थी वही लिख कर रखते है और अपना मोबाइल भी उसके उपर रख देते हैं।
ये रही आपकी कॉफी।।अर्पिता ने आते हुए कहा।उसे देख वो उसका कॉफी का मग दिखाते हुए कहते है वेरी नाइस।।तब तक सामने से परम आता दिखाई देता है सो वो वहां से उठते है और जाते जाते धीरे से अर्पिता के पास आ कहते हैं सच मे अच्छी है।और वहां से कप पकड़े पकड़े रसोई में चले आते हैं।
प्रशांत की बात सुन अर्पिता हल्का सा मुस्कुराती है और वहीं सोफे पर बैठ कर कॉफी पीने लगती है।उसकी नजर प्रशांत जी के फोन पर पड़ती है तो वो टेबल पर रखने के लिए उठाती है।फोन के नीचे एक नोट देख वो मुस्कुराती है और उसे खोल कर पढ़ती है, " अगली बार से एक नही दो कप कॉफी वो भी अपने हाथ से बनाई हुई प्लीज़" ☺️!
ओके प्रशांत जी।अर्पिता मन ही मन खुद से कहती है और कुछ सोच कर उसी पर्ची को फोल्ड कर उसके पीछे लिखती है , " ठीक है फिर शाम की एक कप चाय की जगह दो कप चाय वो भी अपनी स्टाइल में..!☺️! लिख कर वो रसोई में जाती है जहां प्रशांत जी को कार्य करता देख फ्रिज के ऊपर फोन रख देती है एवं उसी के नीचे नोट रख कहती है ये आपका फोन..!
प्रशांत जी अर्पिता की ओर बिन देखे कहते हैं ओके मैं उठा लूंगा।
जी कह अर्पिता कॉफी मग रख वहां से चली जाती है।उसके जाते ही प्रशान्त जी अपना फोन उठाते है तो उसके नीचे चिट देख हल्का सा स्माइल करते हुए उसे खोल कर पढ़ते हैं!
"ठीक है फिर शाम की एक चाय की जगह दो कप चाय वो भी अपने स्टाइल में☺️।"
पढ़ कर हल्की सी मुस्कुराहट गहरी हो जाती है जिसे श्रुति रसोई में आते हुए देख लेती है और कहने लगती है, भाई क्या मिल गया आपको जो इतना स्माइल किये जा रहे हो।
आवाज सुन वो अपनी गर्दन ऊपर कर कहते है कुछ खास नही श्रुति बस एकैडमी के छात्रों के बारे में सोच रहा था कितना प्यार करते हैं वो लोग।आज जब अर्पिता उन्हें पढ़ाने के लिए आगे गयी और मैं वहां से चला आया तो कुछ छात्र क्लास छोड़कर ही जाने लगे।तो बस जब भी ये घटना याद आती है तो मुस्कान खुद ही चली आती है।
ओके ओके।।वैसे इसमें इतना सोचने वाली बात नही है।काहे कि आपकी तो बात ही कुछ और है।लेकिन ये बताओ क्या अर्पिता की क्लास में भी छात्र उठ उठ कर गए थे या वहीं बैठ कर सुनने लगे।
श्रुती ने पूछा तो प्रशान्त जी ने जवाब दिया गए ही नही ,उसने अपने हुनर से जाने ही नहीं दिया किसी को।।
अच्छा! ये बात तो मुझे भी नही पता भाई।।अच्छा किया आपने बता दिया।श्रुति कहती है और कुछ सोचने लगती है।
प्रशान्त जी बाकी का कार्य करने लगते है।श्रुति को ढूंढते हुए अर्पिता भी वहीं आ जाती है।
अर्पिता :- तो तुम यहां हो हम तुम्हे बाहर ढूंढ रहे थे।
श्रुति:- अच्छा मेरी चोरनी मुझे ढूंढ रही थी क्यों? प्रशान्त जी श्रुति की ओर देखते हैं तो उसकी बातों का अर्थ समझ मुस्कुरा देते हैं।और कहते है तुम्हारे लिए भी कुछ लाया हूँ तो व्यर्थ में टांग खींचने की जरूरत नही है।
श्रुति :- अब तो मैं पक्का व्यर्थ में नही कुछ कह रही हूँ।ये चोरनी ही है।बताओ भला मेरे भाई को ही मुझसे चुरा लिया।अब तो मेरे भाई मेरे साथ कम इसके साथ ही ज्यादा उठने बैठने लगें हैं।
श्रुति की बात सुन अर्पिता उसके पास खड़े हो उससे कहती है अब समझे हम तुम काहे हमे चोरनी बनाने पर तुली हो। ऐसा तो कुछ नही किया हमने श्रुति।।और फिलहाल कोई इरादा भी नही है।।सो जस्ट चिल..!
उसकी बात सुन श्रुति कहती है।तो आखिर तुम मेरे ड्रामे को समझ ही गयी।बढ़िया।तुमने बुरा नही माना काहे कि मेरी तो आदत है मस्ती मजाक फन करने की अब यहां ति केवल भाइयो के साथ ही रहती हूं तो बस हम तीनों ऐसे ही हंसते मुस्कुराते जिंदगी जीते हैं।
हम्म..! देखा और इतना तो हम समझ ही गये हैं।प्रशांत जी अर्पिता की ओर देख अपनी पलके झपका देते है और कार्य करने लगते हैं।
अर्पिता प्रशान्त जी को कार्य करते हुए देखती है और खुद उनकी हेल्प करने लगती है।कुछ ही देर में सभी फ्री हो जाते हैं।रात का डिनर हंसते मुस्कुराते हुए करते है।
प्रशांत जी अंदर रसोई में जाते है और कुछ सोचते हुए अर्पिता के लिए काउंटर पर पेपरवेट के नीचे एक नोट छोड़ देते हैं।और बाहर चले आते हैं।अर्पिता और श्रुति दोनो ही उठकर वहां से अंदर जाती है ये देख प्रशांत जी अपना हाथ अपने सर पर रख खुद से कहते है हम भी कितने बेवकूफ हो गए हैं...!
ओ नो..हम पर नही मेरा मतलब है मुझ पर भी संगत की रंगत निखरने लगी है...! वैसे कुछ भी कहो बड़ा अच्छा साउंड दे रहा है ये लफ्ज...!
बड़ी ही अलबेली चीज होती है मुहब्बत!!
अपने रंग में ऐसे रंगती है कि इंसान खुशी खुशी रंगने को तैयार हो जाता है जैसे कि हम..☺️!सोचते हुए वो रसोई की तरफ बढ़ जाते हैं।जहां श्रुति और अर्पिता दोनो ही काउंटर के पास खड़ी होती है।
अर्पिता दरवाजे पर खड़े प्रशान्त जी को देखती है तो वो काउंटर की तरफ इशारा करते है।अर्पिता काउंटर की ओर देखती है तो पेपरवेट देख वो श्रुति से कहती है तुम्हारे भाई पूछ रहे है कि ..तुम कुछ और तो नही लोगी।
है..भाई कहाँ है...श्रुति ने अर्पिता से पूछा तो अर्पिता बोली कहाँ क्या सामने देख न..!कहाँ कहाँ कर रही है।बातें करते हुए वो आगे कदम बढाती है और श्रुति के चेहरे की ओर देखते हए हाथ बढ़ा कर चुपके से पेपरवेट के नीचे रखा नोट उठाती है..!प्रशान्त जी अर्पिता की हरकत देख हौले से मुस्काते है और वहां से चलते बनते हैं।
श्रुति उन्हें जाते हुए देख नही पाती है।सो अर्पिता से कहती है अच्छा तो अभी तक भाई का नाम ले मुझसे मस्ती की जा रही है..अप्पू।अगर ऐसा है न तो फिर तुम मुझसे बच कर रहना।।
हाये. चल ठीक है देखते है श्रुति..कौन किससे बच कर रहता है।।खैर अभी तो हमे टहलने जाना है छत पर तुम्हे चलना है तो चलो।।अर्पिता मुस्कुराते हुए श्रुति से कहती है।
उसकी बात सुन श्रुति कहती है अब लग रही है कि तुम मेरी दोस्त हो।।लेकिन मैं टहलती नही हूँ मैं तो अब पढ़ाई करूंगी फिर सो जाऊंगी।।तुम्हे जाना है तो तुम जाओ।
ओके फिर हम आते है कुछ ही देर में।।श्रुति से कह अर्पिता छत पर चली जाती है।जहां प्रशान्त जी पहले से ही अपना डेरा जमाए बैठे होते हैं।अर्पिता उन्हें देख नही पाती है और गली में जल रही ट्यूब लाइट की मदद से नोट पढ़ती है..!
मदद के लिए शुक्रिया।वैसे आज तुम्हे यूँ खुल कर मुस्कुराता देख अच्छा लगा।बस यूं ही खुश रहा करो।☺️..!
अर्पिता के चेहरे पर बड़ी वाली मुस्कान आ जाती है।और वो मुस्कुरा कर छत के दूसरे हिस्से की तरफ देखती है तो उसकी हंसी गुल हो जाती है और वो बिजली की तेजी से दरवाज़े की ओट में हो जाती है।
उसकी ये हरकत देख प्रशान्त जी कुछ नही कहते बस मुंह फेर कर हंस लेते हैं।सामने परम फोन् पर किरण से बात करने में व्यस्त होते है वो प्रशान्त को खुद से ही हंसते हुए देख लेते है और कहते है..लगता है ये इश्क वाला लव प्रशान्त भाई को गिरफ्त में ले चुका है तभी तो अकेले में ही हंसे जा रहे हैं।
परम की बात सुन फोन के दूसरी तरफ बात कर रही किरण एक दम से चुप हो जाती है औऱ फिर कुछ सोच कहती है .. ..काश वो लडक़ी अर्पिता होती..!
क्या ..?अर्पिता..?लेकिन् क्यों? परम ने हैरानी से पूछा।
ओह गॉड मैं भी न क्या बोल गयी।कुछ नही परम जी।ये तो बस ऐसे ही मुंह से निकल गया।किरण टालने की कोशिश करते हुए कहती है।लेकिन हमारे परम कहाँ कम पड़ते है जब तक बात की तह तक नही पहुंचेंगे तब तक कहाँ रुकते है।अब मामला प्रेम जी का हो या प्रशांत का।
ये अच्छा है किरण जी।बात शुरू कर के फिर वहीं रोक देना।अब बात छिड़ ही गयी है तो फिर पूरी करने में क्या हर्ज है..!
ओके वैसे भी अब कुछ हो तो सकता नही क्योंकि अर्पिता ही अब नही है।मैं बताती हूँ क्योंकि उसके मन मे आपके प्रशान्त भाई के लिए सॉफ्ट कॉर्नर जो था।।पहली नजर का प्रेम..!वही था उसके मन में अभी जब आपने जिक्र किया तो मेरे मन से ये बात निकल गयी।। मैं आपसे अब बाद में बात करती हूं।कहते हुए किरण फोन रख देती है।परम उसकी आवाज में भारीपन साफ महसूस कर लेते हैं।वो समझ जाते हैं किरण अर्पिता को याद कर रो रही है।परम को इस बात का बहुत अफसोस होता है कि वो चाह कर भी किरण के दुख को दूर नही कर पा रहा है।
परम् - मन तो कर रहा है कि अभी किरण को एक फोन लगाऊं और उसे बताऊं कि अर्पिता को लेकर दुखी होने की जरूरत नही है लेकिन फिर अर्पिता से किया प्रॉमिस याद आ जाता है।
ठाकुर जी सब जल्द ही ठीक हो जाये बस। परम बड़बड़ाता है और प्रशांत की ओर देखने लगता है।जो अभी तक मुस्कुरा रहे हैं।
अभी तक प्रशांत भाई मुस्कुरा रहे है कहीं इसका कारण अर्पिता का यहां होना तो नही एक बार फिर से जासूसी करनी पड़ेगी परम ...कि कहीं इसका कारण अर्पिता है या कोई और है।सोचते हुए परम आसपास देखता है लेकिन किसी को देख ही नही पाता हैं।अब हमारी अर्पिता छुप जो गयी थी।
यहां तो मुझे कहीं अर्पिता नजर नही आ रही है।अब ऐसी सूरतों में दो ही कारण हो सकते है या तो इसका कारण अर्पिता है जो इस वक्त यहां से जा चुकी है।या फिर इसका कारण कोई और ही है जो यहां होकर भी नही है।खैर पता तो लगाना ही होगा।आखिर अब तक बैचलर रहने के पीछे कहीं कोई ऐसा कारण तो नही है।लगता है ठाकुर जी मुझे मेरे भाइयो का मैच मेकर बना कर भेजा है।जो हर बार मेरे सामने मेरे भाइयो को लाकर खड़ा कर देते है।।खैर परम् बेटे लग जाओ काम पर अभी से...!कह वो प्रशांत के पास आकर बैठ जाते है।वहीं प्रशान्त जी एक बार फिर से दरवाजे की ओर देखते हैं लेकिन अर्पिता तब तक नीचे जा चुकी होती है।
नीचे आकर अर्पिता बालकनी में खड़ी हो जाती है।वो अपने हृदय को स्पर्श करती है तो उसे उसकी धड़कने बढ़ी हुई महसूस होती है।इतनी ज्यादा कि उनके शोर को वो खुद से सुन पा रही होती है।
कैसा ये शोर है धड़कनों का।जो बेतहाशा दौड़ी जा रही हैं।वो भी तब जब निगाहों का तुमसे मिलना हुआ।ये इश्क़ का बड़ा ही प्यारा एहसास है जो हम लफ्जो में बयां नही कर पा रहे हैं।
सबको जीवन में होता है एक बार ! कहते है जिसे पहली नजर का प्यार.!!खुद से ही अर्पिता कहती है।और वही खड़े खड़े आसमान में तारों को निहारने लगती है।
ऊपर प्रशान्त और परम बैठ कर बातो में लग जाते हैं।कभी परम अपनी ऑफिस की गपशप सुनाते है तो कभी प्रशान्त जी अपनी बातो का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं।
परम :- वैसे भाई!मैं सोच रहा था कि अर्पिता ठीक है ये बात किरण को बता देनी चाहिए।वो उसके लिए बहुत परेशान होती है।आज अचानक से अर्पिता की बात छिड़ गई वो बहुत भावुक हो गई थी तो बस मन मे ख्याल आया कि...!
प्रशांत :- परम किरण की हालत मैं समझ सकता हूँ लेकिन अर्पिता के मन की बात तो हम सब जानते हैं।किरण के घर जरूर कुछ न कुछ तो ऐसा हुआ है जिस कारण वो वहां नही जाना चाहती।मुझे तो बस आधी अधूरी बात ही पता है छोटे।और आधी अधूरी बात के बारे में कोई राय बना लेना ये तो सही नही है न।।इसिलये हम उसके निर्णय के विरुद्ध नही जा सकते।हो सकता है हमने कोशिश की सब सही करने की तो वो यहां से चली जाए।अब उसका यूँ इस तरह कहीं और जाना मेरे हिसाब से तो सही नही है।ये बात तो तुम समझ रहे हो न्।
परम :- हां ये बात तो है।अच्छा अब मैं नीचे जा रहा हूँ सर्दी सी लग रही है।
अच्छा तो बातें बनाई जा रही है।सीधे क्यों नही कहते कि फोन बज रहा है।प्रशान्त परम् को छेड़ते हुए उससे कहते हैं।
तो परम कहता है हां भाई।अब ये भी एक तरह की जिमेदारी ही है न तो निभानी तो पड़ेगी।
प्रशांत :- जिम्मेदारी! या ड्यूटी? छोटे हां!!
परम् - अब जो भी आप समझो भाई।मैं तो चला अब बाय कह परम् नीचे चला आता है।
परम के जाने के बाद प्रशांत कहते हैं।सॉरी छोटे! मेरी वजह से तुम्हे भी सफर करना पड़ रहा है।लेकिन् तुम नही जानते छोटे उसे यहां रोकने के लिए मैने कितने पापड़ बेले है।क्या क्या तिकड़म नही लगाई मैंने।तब जाकर वो रुकी है।ऐसे कैसे अपनी किसी हरकत से उसे जाने पर मजबूर कर दूं।।यहां है तो मुझे भरोसा भी है कि वो ठीक है मैं सुकून से अपना काम कर लेता हूँ अब अगर कहीं और चली गयी तो कैसे पता लगाऊंगा।।
सोचते हुए कुछ देर और वहीं बैठे रहते है।तभी उसका फोन रिंग होता है।नंबर देख वो फोन उठाते हैं जो कानपुर के सिटी हॉस्पिटल से होता है।कुछ देर वो बात करते है।बात करए हुए कभी उसके चेहरे पर खुशी तो कभी हल्के परेशानी के भाव उभरते हैं।लगभग पांच मिनट बात करते है फिर नीचे चले आते हैं जहां उनकी नजर अर्पिता को ढूंढती है।
अर्पिता बालकनी में खड़ी होती है उसे अपने पीछे किसी की नजरे होने का एहसास होता है वो पीछे मुड़ देखती है तो वहां प्रशान्त उसे दिखते हैं।
वो उन्हें देख खुद से ही झिझकती है और बालकनी से उठ कर श्रुति के कमरे की ओर आती है लेकिन रास्ते मे प्रशान्त जी होते है उनसे नजर चुरा कर वो दो कदम ही रख पाई होती है कि उसे एक खिंचाव महसूस होता है और वो वहीं कि वहीं रुक जाती है।
वो मन ही मन कहती है अब तो कायनात भी कोई मौका नही छोड़ रही..!न् जाने ये हालत क्यों हो गयी ऐसी हमारी कि न तो इनका सामना करना बन पड़ रहा है और न ही इनसे दूर जाना समझ आ रहा है।और उस पर ये निगोड़ा दुपट्टा..अभी के लिए हमारा दुश्मन..जब भी उलझेगा तो इन्ही से उलझेगा..!लगता है किसी जन्म में खूब यारी रही होगी इनकी इससे ...!
वहीं प्रशान्त जी मन ही मन कहते है कितना चुराओगी नजरे हमसे..!जितना भागोगी उतना ही
ये कायनात हमे आपके पास ले ही आएगी..!हाय मेरा सच्चा वाला दोस्त.....
क्रमशः...