कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 28) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 28)

प्रशांत जी अर्पिता को थाम कर उसे सीधा बैठाते है और अपने बैग में से बोतल निकाल कर उसके मुंह पर पानी के छींटे मारते हैं।कुछ ही क्षण में अर्पिता की मूर्छा टूटती है।वो अपनी आंखें खोलती है तो सामने प्रशांत जी को देख वो चौंक जाती है।एक पल को तो वो ये समझ नही पाती है कि ये सपना है या हकीकत।लेकिन जब अपने चारों देखती है तो उसे अपने जीवन की वो कठोर घटना याद आती है जिसका उससे अभी कुछ देर पहले ही सामना हुआ है।प्रशांत को देख अर्पिता फूट फूट कर रोने लगती है और उससे कहती है, हमारे मां पापा उस ट्रेन में थे वो कहाँ है ये हमे पता नही चला।हमने वहां जाकर उन्हें बहुत ढूंढा प्रशांत जी।लेकिन वो हमें नही मिले।मां पापा।।हमे जाना होगा उन्हें हमारी जरूरत है कहते हुए अर्पिता उठ जाती है और आगे कदम बढ़ाती है लेकिन हर मुलाकात की तरह इस बार भी वो अपने दुपट्टे की वजह से रुक जाती है।जरा सा खिंचाव महसूस होने पर अर्पिता पीछे मुड़ कर प्रशांत जी के पास वापस पहुंचती है और अपना दुपट्टा उनके हाथ से छुड़ा उनसे कहती है।प्लीज हमारी मदद कर दीजिए आप, हमारे मां पापा को ढूंढने में!!प्लीज।।अर्पिता को इस तरफ रोता हुआ देख प्रशांत जी खड़े हो उसकी आँखों से बहते आंसुओ को पोंछते है और हां में गर्दन हिला अर्पिता का हाथ थाम कर रेलवे अधिकारियों के रूम की ओर बढ़ जाते हैं।रास्ते मे चलते हुए प्रशांत जी अर्पिता की ओर देख उससे बोलते है
सब ठीक होगा।तुम परेशान मत हो।अंकल आंटी दोनो ठीक होंगे।।हम मिल कर उन्हें ढूंढ लेंगे ओके।।लेकिन तुम हिम्मत मत हारो।।

अर्पिता हां में गर्दन हिला देती है और बिन कुछ कहये प्रशांत जी के साथ चलती जाती है।ऑफिसर्स के कमरों के पास पहुंच कर प्रशांत जी अर्पिता को लेकर अंदर जाते है और उसका हाथ थामे हुए ही उन ओफिसर्स से ट्रेन में मौजूद घायलों को ले जाने वाली जगह के बारे में पूछते हैं।

एवम वहां से पता कर वो उसे साथ लेकर नजदीकी अस्पताल में पहुंचते है।जहां वो और अर्पिता वार्ड में घूम घूम कर देखने लगते है।लेकिन आगे बढ़ने के साथ साथ अर्पिता की उम्मीद भी टूटती जाती है।

उसके चेहरे पर शिकन देख प्रशांत जी सोचते है यहां तो हमने लगभग सभी वार्ड घूम लिए वो लोग यहां नही दिखे।तो अब हमें दूसरी तरफ जाना होगा अब अगर मैं इसे मृतकों के कक्ष में लेकर गया तो ये बिल्कुल टूट जाएगी।नही इससे अच्छा होगा मैं खुद जाकर देख कर आता हूँ।टूट कर जीने से बेहतर है एक उम्मीद के सहारे जिया जाए।सोचते हुए प्रशांत जी अर्पिता का हाथ ऊपर उठा उसे अपने दोनों हाथों से थाम कर बोले, अप्पू, मैं जरा यहां के डॉक्टर्स से बात कर के आता हूँ उनसे पूछता हूँ कि इसके अलावा और घायलों को कहां रखा गया है।यहां कुछ ही बचे है तुम यहां देखो मैं पता कर के आता हूँ और हां भरोसा रखना अंकल आंटी जहां भी होंगे बिल्कुल ठीक होंगे।।यहां से कहीं जाना नही ठीक है।

अर्पिता रोते हुए हां में गर्दन हिला देती है।ये देख प्रशांत जी खुद को रोक नही पाते और उसके गले से लग जाते हैं।और कहते है , अप्पू रोना नही है बस भरोसा रखना है।।सब ठीक होगा।सब सही होगा।।
प्रशांत जी अर्पिता के गले से अलग होते है और वहां से बाहर चले जाते है।परेशान दुखी वो भी होते हैं।लेकिन ये सोच कर अर्पिता को जताते नही है उसे इस समय सहारे की जरुरत है अगर मुझे यूँ दुखी देखेगी तो उसे सम्हालेगा कौन।अभी यहां किरण भी नही है।।कुछ दिनों पहले ही तो एक हादसे से गुजरी है ये।। नही मुझे कमजोर नही पड़ना है।।काश मैं कुछ कर पाता।काश !! हालात क्यों इंसान को इतना बेबस बना देते है, जहां वो चाह कर भी कुछ नही कर सकता क्यों?कहते हुए प्रशांत जी अपना हाथ जोर का झटकते है जो जाकर दीवार से लग जाता है।आउच कहते हुए वो वहां से उस रूम की ओर चले जाते हैं।

जहां वो हृदय कड़ा कर अर्पिता के मां पापा को देखते लगते हैं।वहां भी उसे कोई नही दिखता है।तो वो वहां से वापस अर्पिता के पास चले आते हैं।अर्पिता जो वहीं बेंच पर बैठी हुई रो रही होती है प्रशांत जी के आने पर उम्मीद भरी नजरों से उनकी ओर देखती है।प्रशांत जी अर्पिता के पास आकर उससे कहते है, अप्पू हमे हिम्मत से काम लेना होगा आज नही तो कल अंकल आंटी जरूर मिल जाएंगे।हमे अब यहां से निकलना होगा।रात होने वाली है।और तुम्हारे घर जाने वाली रूट की सभी गाड़िया काम चलने की वजह से अभी रद्द कर दी गयी है।हमें यहां से लखनऊ के लिए निकलना होगा।प्रशांत जी की बात सुन अर्पिता उठ कर खड़ी हो जाती है।प्रशांत जी अर्पिता को वहां से लेकर बस स्टॉप पर पहुंचते हैं।और लखनऊ जाने वाली बस में दोनो बैठ जाते हैं।
अप्पू तुम इधर विंडो वाली सीट पर बैठो!मैं यहाँ इस तरफ बैठूंगा।।प्रशान्त जी की बात सुन अर्पिता उसकी तरफ देखती है।प्रशान्त जी उसे बैठने के लिये फिर से कहते है।अर्पिता वहीं वैठ जाती है।प्रशांत जी भी उसके पास बैठ जाते है।प्रशांत जी अपना फोन निकालते है और परम् का नंबर डायल करते है।अर्पिता ये देख लेती है उसे दादी की कही बात याद आ जाती है तो वो खड़ी हो बस से बाहर निकल जाती है।प्रशांत जी भी उसके पीछे नीचे उतर आते हैं।

नीचे आकर अर्पिता वही खाली पड़ी जगह पर बैठ जाती है उसकी आंखें भर आती है।वो खुद से बड़बड़ाने लगती है, " सब हमारी ही गलती है, न हम कभी यहां लखनऊ पढ़ने के लिए आते, जिससे हमारा सामना शिव और उसके दोस्तों से होता ही नहीं,जब सामना नही होता तो झगड़ा ही नही होता।न ही बात इतनी आगे बढ़ती कि हमारा अपहरण होता।अपहरण नही होता तो हमारी मासी भी आज हमारे साथ होती।हमारी तरफ आने वाली मृत्यु को मासी ले कर चली गयी। दादी ने हमे घर से निकाल दिया।हम अगर यहां नही आते तो ये सब होता ही नही।दादी हमारे मां पापा को यहां नही बुलाती और न ही उनके साथ ये हादसा होता।सब हमारी वजह से हुआ है!सब के जिम्मेदार हम ही तो है।।प्रशांत जी उसकी बात सुन कर शॉक्ड हो जाते है।और सोचते है तो ये अपनी मर्जी से इस शहर से नही जा रही थी ,बल्कि इनकी दादी ने इन्हें यहां से जाने को कहा था।।मतलब किरण की दादी इन्हें आंटी जी के साथ हुई दुर्घटना का जिम्मेदार मानती हैं।ये गलत है।हादसे किसी की भी लाइफ में कभी भी हो सकते है।।उस दिन जो हुआ वो जानबूझकर तो नही किया गया।

प्रशांत जी अर्पिता से कहते है, अप्पू, ये उल्टा सीधा सोचना बंद करो।।तुम्हारी कोई गलती नही है।और तुम अभी मेरे साथ लखनऊ चल रही हो ठीक है।चलो बैठो बस में।।

प्रशांत जी की बात सुन अर्पिता कहती है नही हम नही जाएंगे अब वहां।हम जा भी नही सकते अब!! हमें घर जाना है आगरा!! हम वहां की बस पकड़ते हैं।नही आगरा भी जाकर करेंगे क्या..? वहां भी जब सबको पता चलेगा कि ट्रेन हादसे में हमारे माँ पापा खो गए और हम बच गए तो सब हम पर ही सवाल पर सवाल करेंगे।ये कोई नही समझेगा कि आपकी वजह से हमारी ट्रेन मिस हो गयी।।आप की वजह से ..मतलब आप सुबह से हमारे साथ थे और हम उस सब को अपना वहम समझ रहे थे..नही.. आपको नही आना चाहिए था.. नही दिखना चाहिए था हमे आप का चेहरा..! न हम आपको देखते न ही हम सब भूल कर रुकते, न ही हमारी ट्रेन मिस होती और न ही हमे अपने माँ पापा से अलग होना पड़ता।न ही हमारे पास ये बदनामी वाली जिंदगी बचती ..अर्पिता परेशानी में बड़बड़ाती जाती है।उसे इस बात का भी होश नही रहता कि आसपास लोग खड़े हो चुके है और उसकी हरकते देख कानाफूसी करने लगे है।ये देख प्रशांत जी उसके पास जा कर धीरे से कहते है सॉरी अर्पिता,लेकिन अभी तुम्हारा मूर्छित होना ही सही है कहते हुए वो उसके गर्दन पर एक नस को पिंच कर देते है जिससे वो बेहोश हो जाती है।उसको गोद मे उठा प्रशांत जी वहां बाकी सब से कहते है ये मेरी मंगेतर है।आज सुबह जो ट्रेन हादसा हुआ है उसमें इसके माँ पापा भी थे जिस कारण ये सदमे में पहुंच गई है।मैं इसे वापस लखनऊ ले जा रहा हूँ इसकी मासी के घर।

प्रशांत की बात सुन सभी वहां से हट जाते है और प्रशांत जी अर्पिता को लेकर बस में बैठ जाते हैं।कुछ ही देर में बस चलने लगती है।प्रशांत जी अर्पिता का सर सीट से टिका देते है और उसके हाथो को थाम वहीं उसके पास बैठ जाते हैं।धीरे धीरे अर्पिता का सिर प्रशांत जी के कंधे पर आ जाता है तो वो उसे देख सोचने लगते है, इतनी सी उम्र में तुम्हे इतना दर्द मिल गया अप्पू।मैं इसे कम नही कर सकता लेकिन बांट सकता हूँ।और कोशिश करूंगा कि कभी तुम्हे अकेलापन महसूस न हो।।सोचते हुए वो देखते है कि खिड़की से ठंडी हवा अंदर आ रही है जिस कारण अर्पिता सिकुड़कर उससे चिपकी जा रही है।ये देख वो उसे ठीक से बैठाते है और खिड़की बन्द कर उसे उसके दुपट्टे से कवर कर देते है।और अपनी आंखे बंद कर सीट पर सिर टिका बैठ जाते है।उसके ख्यालो में अर्पिता के कहे हुए शव्द गूंज रहे है, न हम तुम्हे स्टेशन पर देखते न ही वो रुकती और न ही उसकी ट्रेन मिस होती।।

लेकिन मैं इससे कैसे मिल सकता हूँ मै तो दोपहर को पहुंचा था जब ये बेहोश हुई उस बेंच पर अकेले बैठी थी।फिर इसने मुझे कब देखा..!! क्या कह रही थी ये..!!मुझे कुछ समझ नही आ रहा .!
कुछ बाते इंसानों की समझ से परे होती है।इश्क़ की दुनिया भी ऐसी ही होती है यहां कभी कभी ऐसी घटनाएं हमारे सामने घटित हो जाती है जिनके विषय मे हम सोच भी नही सकते..!ये प्रेम ही तो था जिसने अर्पिता को जाने से रोकने के लिए कितने प्रयास किये।।और आखिर में सफल भी हुआ।।

अर्पिता के स्वास्थ्य को लेकर प्रशांत जी थोड़े चिंतित हो जाते हैं।वो लखनऊ पहुंचने तक वैसे ही अर्पिता का हाथ थाम उसके साथ बैठे रहते हैं।लगभग डेढ़ घण्टे में वो लखनऊ बस स्टैंड पर होते हैं।अर्पिता की बातों को याद कर वो उसे सीधा अपने रूम पर ले जाते है जहां पहुंच वो नीचे खड़े हो जाते है और श्रुति को कॉल करते हैं। श्रुति अर्पिता को देख इतनी खुश होती है कि खुशी से चिल्लाने लगती है।

भाई! आप अप्पू को ले आये! थैंक यू भाई।मैं कितना डर गई थी सुबह इसे लेकर।कितने बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे मेरे मन मे।अब जब इसे देखा है तो अब जाकर सुकून मिला है मुझे।श्रुति ने अर्पिता को देखकेर प्रशांत जी से कहा।

श्रुति के चेहरे पर मुस्कान देख प्रशांत जी श्रुति से कहते है बाते आराम से करते रहना पहले इसे अपने कमरे में ले जाओ।मैं इसके लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ।सुबह से कुछ नही खाया है इसने।।

श्रुति बोली - ठीक है भाई मैं ले कर जाती हूँ।श्रुति अप्पू को अंदर अपने कमरे में ले जाती है।तभी प्रशांत जी की नजर सामने बालकनी पर खड़े परम पर पड़ती है।जिसके चेहरे पर तनाव देख प्रशांत जी समझ जाते हैं कि परम् अभी किरण से बात करने में व्यस्त है।यानी अभी इसने अभी तक अर्पिता को देखा नही है।अभी जब तक अर्पिता मुझे स्पष्ट नही बता देती कि वो आगे क्या चाहती है। मैं इस बारे में परम किरण या किसी और को नही बता सकता।मुझे श्रुति से बात करनी होगी इस बारे में।कहीं ऐसा न हो हालात सम्हलने के बजाय और बिगड़ जाए।

सोचते हुए प्रशांत जी श्रुति के पास जाते है और उससे कहते है, " श्रुति, अर्पिता हमारे साथ है, हमे ये बात अभी किसी से शेयर नही करनी है।अर्पिता के जीवन मे अभी बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका है जिसके बारे में सोच कर ही हमारी रूह कांप जाती है"

प्रशांत की बात सुन श्रुति सोच में पड़ जाती है और पूछती है ऐसा क्या हो गया है भाई? हमारी अप्पू तो ठीक है।। यहीं है।।
प्रशांत जी बोले , अभी मैं तुम्हे हर बात स्पष्ट नही बता सकता।मैं भी थक चुका हूं बस पहले थोड़ा रेस्ट कर लूं तब आराम से बैठ कर पूरी बात बताता हूँ।

ठीक है भाई श्रुति ने कहा।प्रशांत जी ने एक नजर अर्पिता की ओर देखा जो इस समय बेहोशी में श्रुति के बिस्तर पर पड़ी हुई होती है।उसे देख कर वो वापस से बाहर हॉल में आकर बैठ जाते हैं।कुछ देर वहीं बैठे रहने के बाद वो अपने कमरे में जाते है और स्नान कर चेंज कर बाहर हॉल में आकर बैठ जाते हैं।जहां श्रुति बैठ कर उसका पहले से ही इंतजार कर रही होती है।

प्रशांत को आया देख श्रुति उसके लिए निकाल कर रखा हुआ खाना परोस कर खाने को देती है।
अर्पिता उठी! प्रशांत ने थाली टेबल पर रखते हुए श्रुति से पूछा।नही श्रुति बोली।तो फिर मैं अभी नही खाऊंगा मैं जाकर पहले अर्पिता को उठाता हूँ।तुम भी अपनी थाली लगाकर वहीं ले आना आज हम साथ ही खाना खाएंगे।ठीक है श्रुति से बोलते हुए प्रशांत जी खड़े हुए उन्होंने अपनी थाली उठाई और श्रुति के कमरे की ओर बढ़ जाते है।श्रुति प्रशांत के कहे अनुसार रसोई से अपने लिए एक थाली और लगा कर अपने कमरे में पहुंचती है।प्रशांत जी दरवाजे पर ही खड़े हो श्रुति का इंतजार कर रहे हैं श्रुति को आया हुआ देख उसके साथ कमरे के अंदर चले जाते हैं।प्रशांत जी अर्पिता को देखते है और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारते है जिसके प्रभाव से अर्पिता एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठती है।
वो सामने आंखे खोल देखती है तो श्रुति और प्रशांत जी को अपने सामने खड़ा पाती है।उसे कुछ घंटो पहले प्रशांत जी का किया हुआ व्यवहार याद आता है वो अपनी गर्दन पर हाथ रख सवालिया नजरो से प्रशांत को देखती है।वो प्रशांत जी से पूछने के लिए जैसे ही मुंह खोलती है तो प्रशांत झट से हाथ मे पकड़ी हुई थाली में से निवाला ले अर्पिता के मुख में रख देते है।और उससे कहते है जी भर के प्रश्न कर लेना अप्पू! मैं सब बताऊंगा।लेकिन अभी तुम्हे अपनी सेहत पर भी ध्यान देना है।सो बाकी सवाल जवाब होते रहेंगे।।और अगर तुमने अभी अपनी सेहत पर ध्यान नही दिया तो अंकल आंटी जब आएंगे न लौट कर तब मुझे और श्रुति को ही डांटेंगे कहेंगे!! हमने अपनी दोस्त और उनकी बेटी का बिल्कुल ध्यान नही रखा।तो बताओ किस पर डांट पड़ेगी हम दोनों पर इसीलिए हम पर रहम करो और अपना ध्यान रखो।।नही तो...कहते हुए प्रशांत जी चुप हो जाते हैं।।प्रशांत जी का इतना हक जताना अर्पिता को अच्छा लगता है।वो सामान्य होने की कोशिश करते हुए कहती है ..नही हमारी वजह से अब किसी पर डांट नही पड़ेगी..!! क्योंकि हम आपकी बात मान रहे है।एवं जब मां पापा आएंगे तो तीनों मिल कर डांट खा लेंगे ठीक ...!

अर्पिता की बात सुन कर प्रशांत जी के दुखी परेशान से चेहरे पर क्यूट वाली मुस्कान आ जाती है वहीं श्रुति को उन दोनों के बीच की बाते समझ तो नही आती है लेकिन अर्पिता का साथ देते हुए मुस्कुराने लगती है।अर्पिता नाम मात्र के लिए दोनो का मन रखने के लिए उनका साथ देते हुए मुस्कुराने लगती है।लेकिन मन ही मन बहुत दुखी है।प्रशांत जी अपनी और श्रुति दोनो की थाली लेकर बाहर चले जाते हैं।रसोई में जाकर थालियां सिंक में रखते है और खुद हाथ धो कर अपनी आंखो में छुपे हुए आंसू पोंछ लेते है।मैं जानता हूं अप्पू तुम बहुत ज्यादा दुखी हो केवल हम लोगो की वजह से सब भूल मुस्कुराने की कोशिश कर रही हो।लेकिन एक कोशिश कर तो रही हो।यही बड़ी बात है।जब तक तुम दिल से मुस्कुराने नही लगती तब तक मैं तुम्हे अकेला नही छोड़ सकता।।न कभी नही..!निश्चय करते हुए प्रशांत जी अपने कमरे में चले जाते है।श्रुति पानी पीने के लिये पानी का जग उठाती है जो खाली होता है।अप्पू मैं अभी आती हूँ पानी नही है यहां सो लेकर आती हूं तुम रेस्ट करो तब तक।।मेरे वापस आने पर फिर हम ढेर सारी बातें करेंगे।।श्रुति ने कहा।।ओके श्रुति अर्पिता बोली।श्रुति वहां से बाहर चली जाती है और अर्पिता हाथ मुंह धुलने के लिए बाथरूम चली जाती है।जहां वो शॉवर चला बाथ लेने लगती है।शावर से गिरती हुई बूंदों के साथ साथ उसके मन मे भरी असीम वेदना भी आंसुओ के जरिये निकलने लगती है।उसकी आंखो के सामने उसके मां पापा का चेहरा आ जाता है और कानों में उनके फोन पर कहे हुए वो शब्द..!!श्रुति पानी लेकर कमरे में आती है तो अर्पिता उसे नही दिखती है।।शायद बाथरूम गयी होगी ये सोच वो पानी का जग टेबल पर रखती है और कमरे में टहलते हुए इधर से उधर टहलने लगती है।दस मिनट बीत जाते है लेकिन अर्पिता अभी तक निकल कर नही आई है ये देख श्रुति घबरा जाती है वो अर्पिता को दो तीन आवाजे लगाती है।लेकिन अर्पिता कोई जवाब नही देती है।
अप्पू, क्या हुआ आवाज क्यों नही दे रही हो तुम ठीक तो हो श्रुति ने बाहर दरबाजे से ही पूछा।फिर भी कोई जवाब न आने पर वो दरवाजे पर हाथ रखती है दरवाजा तुरंत ही खुल जाता है ये देख श्रुति अंदर जाकर देखती है तो उसकी चीख निकल पड़ती है।।

क्रमशः ....