कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 27) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 27)

उसका जवाब सुन युव्वी हैरान हो जाता है और कहता है।देखिये जी।।भइया चाचा अंकल जीजा ये रिश्ते नाते मेरे आपके साथ नही है।सो प्लीज इन्हें तो आप मेरे साथ बनाने की कोशिश तो करो ही मत।मेरा नाम है जो मैंने आपको पहले से ही बता रखा है तो आपसे मेरा कहना है मेरा नाम है युवराज तो आप बस वही लीजिये।

ओके।।वैसे हमे कोई शौक नही है आपका नाम लेने का।सो जस्ट चिल!!कह अर्पिता खामोश हो अपना फोन निकालती है और जाने के लिए ट्रेन सर्च करने लगती है।लगभग आधे घंटे बाद की ट्रेन है ये देख वो वहीं प्लेटफॉर्म पर बैठ कर इंतजार करने लगती है।

अरे आप मुझे गलत काहे समझ रही है।मैं साफ सुथरी स्पष्ट बात करता हूँ।जो मुझे सही लगा मैंने कहा।।लेकिन आप तो न जाने क्या समझ बैठी हैं..युव्वी ने अपनी बात की सफाई देते हुए कहा।

अर्पिता - ओह गॉड!!आप कुछ भी करें लेकिन व्यर्थ में बातें न करें।आपकी इच्छा आप का मन हमे इससे क्या लेना देना।

हां आपकी बात भी सही है मिस।खैर कोई नही शायद आपको मेरी बातों से इर्रिटेशन हो रही है।मैं चुपचाप यहीं बैठ जाता हूँ।कहते हुए युवराज वहीं बेंच की दूसरी तरफ बैठ जाता है और अपने बेग में से एक बुक निकाल कर पढ़ने लगता है।

बेहतर है कह अर्पिता सामने बिछी ट्रेन की पटरियों को देखने लगती है।जो दूर तलक ऐसे ही एक दूसरे के साथ साथ चलती जाती है।जिन्हें न एक दूसरे से कोई शिकवा है और न ही कोई शिकायत।।इन्हें न ही कोई उम्मीद है एक दूसरे से और न ही सदा साथ रहने की कोई आकांक्षा।
फिर भी वो चलती जाती है।ये उनकी किस्मत है कि कहीं जोड़ पड़ने पर वो मिल भी जाती है लेकिन ये मिलन भी कहाँ हमेशा का होता है।क्षण भर का होता है।बिल्कुल प्रेम की तरह।
अर्पिता अपनी सोच में ही डूबी हुई होती है कि तभी उसका फोन रिंग होता है जो श्रुति का होता है।साइलेंट मोड़ पर होने के कारण अर्पिता फोन उठा ही नही पाती है।फोन फिर रिंग होता है।इस बार किरण का होता है।उसका फोन लगातार रिंग होने लगता है।कभी श्रुति तो कभी किरण।कभी प्रशांत तो कभी हेमंत जी।लेकिन उसे पता ही नही चलता।पानी की बोतल उठा अर्पिता पानी पीती है।तभी उसे ट्रैन के रद्द होने की अनाउंसमेंट सुनाई देती है।

ओह गॉड इतने इंतजार के बाद ये ट्रेन अचानक से रद्द कर दी गयी क्यूं ?अर्पिता खुद से कहती है।उसकी बात युवराज सुनता हैऔर कहता है मैं पता कर के आता हूँ।

युव्वी वहां से चला जाता है।अर्पिता अपना फोन निकालकर चेक करती है जिसमे करीब बीस मिस्ड कॉल पड़ी होती है।जिन्हें देख उसका माथा ठनकता है वो सोचती है ऐसा क्या हो गया जो बीस मिनट में इतनी सारी मिस्ड कॉल आ गयी।वो भी सभी जान पहचान वालो की।।सब ठीक तो है।फोन कर पूछती हूँ।

सोल्जर्स!! कम फ़ास्ट! हमे समय रहते घटना स्थल पर पहुंचना है।न मालूम कितना नुकसान हुआ है।वो ट्रेन जो अभी बीस मिनट पहले ही निकली है कानपुर से ज्यादा दूर नही है।रेलवे सुरक्षा कर्मियों की ये आवाज अर्पिता सुनती है।वो फोन करना भूल आसपास देखती है।उससे कुछ ही दूरी पर तेजी से भागते रेलवे पुलिसकर्मी जो सेंट्रल के एग्जिट की तरफ तेजी से दौड़े जा रहे हैं।उन्हें इस तरह जाता देख अर्पिता के हृदय में कुछ अनहोनी का ख्याल आता है।बीस मिनट !! बीस मिनट पहले तो एक ट्रेन में वो भी जा रही थी।उसकी ट्रेन मिस हो गयी।लेकिन उसके मां पापा तो उसी ट्रेन में गये हैं।

क्या हुआ है।कौन सी ट्रेन हम कुछ समझ नही पा रहे है हमे पता करना होगा।कह अर्पिता अपना फोन पॉकेट में रख कर उस तरफ बढ़ जाती है।

सुनिए मिस.!अरे सुनिए कहाँ जा रही है ?? आपको उधर नही इधर जाना होगा अरे सुनो तो ...युवराज ने आते हुए उससे कहा।

आवाज सुन अर्पिता रुक जाती है और पीछे मुड़ कर देखती है।जहां उसे युवराज हाथ ऊपर कर आवाज देते हुए दिखाई देता है।

अर्पिता को खड़ा देख युवराज उसकी तरफ भागा भागा आता है।और उसे थैंक यू कहता है।परेशान अर्पिता थैंक्यू का कारण समझ ही नही पाती है तो वो उससे पूछती है, " थैंक यू" लेकिन किसलिए?

युवराज :: क्योंकि आपकी वजह से मेरे साथ हादसा होते होते बच गया।

मतलब ? हम कुछ समझे नही अर्पिता ने हैरानी से कहा।।

मतलब ये कि जिस ट्रेन को मैने जाने दिया था उस ट्रेन के साथ दुर्घटना हो चुकी है।वो पटरी से उतर चुकी है तो इनडायरेक्टली आपकी वजह से मेरी जान बच गयी।।सो थैंक यू।।युवराज ने अर्पिता से कहा।।तो उसकी बात सुनकर अर्पिता को गहरा धक्का लगा।उसकी आँखों के सामने उसके मां पापा का चेहरा आ गया।

मां पापा !! अर्पिता कहती है और फौरन पटरियों की ओर दौड़ पड़ती है।
युवराज :: ओह नो।।अंकल आंटी जी को तो मैं भूल ही गया और क्या बेवकूफी कर बैठा ।।मुझे इनके साथ ही जाना चाहिये!! कहते हुए वो अर्पिता के पीछे दौड़ पड़ता है।रुकिए हमे पटरियों की ओर नही एग्जिट की ओर जाना चाहिए सुनिए आप .. मिस सुनिए तो..अर्पिता बेतहाशा दौड़ पड़ती है।आगे प्लेटफॉर्म खत्म होता है तो वो रुक जाती है औऱ दोबारा मुड़ कर एग्जिट की ओर दौड़ जाती है।।

युव्वी भी उसे देख उसके पीछे जाता है।अर्पिता बाहर रोड पर पहुंचती है।अर्पिता ऑटो , ई रिक्शा बस कार सभी आने जाने वाले वाहनों को रुकवाने की कोशिश करने लगती है।लेकिन कोई वाहन नही रुकता।उसके पीछे हांफता हुआ युवराज भी पहुँचता है।सॉरी जी।वो मेरे ध्यान से निकल गया कि उस गाड़ी में आपकी फैमिली भी सफर कर रही थी।

अर्पिता उसकी बातों पर ध्यान नही देती।उसके मन मे उस समय केवल उसके मां पापा का ख्याल चल रहा होता है।परेशान सी अर्पिता बार बार हाथ रोक वाहन रुकवाने की कोशिश करती है लेकिन हर बार सब उसे देख झल्लाते हुए आगे बढ़ जाते हूं।समय गुजरता देख अर्पिता का पारा हाई हो जाता है वो युवराज से पूछती है, " आपको बाइक चलानी आती है" उसकी बात सुन युवराज हैरानी से उसकी ओर देखता है।हमने पूछा कि आपको बाइक चलानी आती है या नही..अर्पिता ने दोबारा तेज आवाज में उससे पूछा।उसकी आवाज सुन वो हकलाते हुए हां में गर्दन हिला देता है।

गुड।तो अब बाइक चलाने के लिए रेडी रहना।।कह अर्पिता सड़क के किनारे जाकर लिफ्ट के लिए खड़ी हो जाती है।उसकी नजर सामने से आते हुए एक बाइक सवार पर पड़ती है जैसे ही वो उससे कुछ मीटर की दूरी पर आता है अर्पिता अपने हाथ से बालों को सम्हालते हए कदम आगे बढ़ा देती है।हाथ के साथ ही उसके हाथ मे दुपट्टे का छोर भी होता है जिससे बाइक सवार को आगे कुछ दिखता नही और वो एक झटके में अपनी बाइक रोकता है।ये देख अर्पिता फौरन उसके पास जाती है और उसकी पीठ पर दो अंगुलियां एक गन का आकार दे, सटा कर उससे कहती है, लीव एंड एंड मूव बैक!! और चिल्लाना तो बिल्कुल नही।।
युव्वी प्लीज बैठो और बाइक को लेकर चलो!युवराज अर्पिता का ये रूप देख हैरान हो जाता है उसे समझ नही आ रहा कि करे क्या..!ओह गॉड!! काश हमे बाइक राइड करना आता तो इस इडियट को इतना नही झेलना पड़ता।।युव्वी सिट ऑन द बाइक एंड राइड नाउ!!अर्पिता ने तेज आवाज में युव्वी से कहा।

आ हां कहते हुए युव्वी उस युवक की बाइक पर बैठ जाता है और अर्पिता भी उस युवक के पीछे हाथ रख बैठ जाती है।

युव्वी बाइक दौड़ा देता है तो अर्पिता पीछे बैठी हुई मन ही मन भगवान जी से सब ठीक होने की प्रार्थना करने लगती है।बाइक चलाते हुए युवराज उससे कहता है, आप चिंता न करे अंकल आंटी बिल्कुल ठीक होंगे।आप हिम्मत रखिये!! धैर्य रखिये!! हम अभी दस मिनट में पहुंच जाएंगे।।अर्पिता उसकी बातों का कोई जवाब नही देती।वहीं बाइक सवार वो बीच मे चुपचाप बैठा अपनी किस्मत को कोस रहा होता है।सोचता है आज न जाने कौन सी मनहूस घड़ी में मैं घर से निकला था।जो आज मेरे साथ ये हादसा हो गया।अब तो जान माल के लाले पड़ रहे है।बस भगवान आज मैं सही सलामत घर पहुंच जाऊं तो अगले ही दिन ट्रैन पकड़ कर मैं तेरे दर पर माथा टेकने आ जाऊंगा।बस आज बचा लेना ।।

युवराज जितना हो सकता उतना तेज बाइक राइड करता है।ये देख वो बाइक सवार अपनी आंखें बंद कर लेता है वहीं अर्पिता बस जल्द से जल्द घटना स्थल पर पहुंचने के इंतजार में सड़क को निहारती जाती है।थोड़ा और आगे जा कर युवराज टर्न लेता है और बाइक को रेलवे पटरियों की ओर दौड़ा देता है।कुछ ही देर में वो तीनो ट्रैन के टूटे फूटे उल्टे सीधे पड़े डिब्बो के सामने होते हैं।वो भयानक दृश्य देख एक पल को तो अर्पिता, युवराज और वो बाइक सवार बाइक पर बैठे ही बैठे सिहर जाते है।

युवराज बाइक रोकता है तो अर्पिता नीचे उतरती है और बाइक सवार की ओर देख कर हाथ जोड़ फिर अपने कान पकड़ती है एवं वहां से डिब्बो की ओर दौड़ पड़ती है।बाइक सवार उसके खाली हाथ औऱ व्यवहार देख हैरानी से युवराज की ओर सवलिता निगाहों से देखता है।उसकी परेशानी समझ युव्वी उससे कहता है भाई, इस गाड़ी में उस लड़की के मां पापा भी है, इसीलिए वो इस तरीके से लिफ्ट लेकर यहां आई।सीधी तरह से कोई उसकी मदद ही नही कर रहा था।

ओह गॉड!! आय एम सॉरी।बाइक सवार ने कहा।उसकी बात सुन युवराज बाइक की चाबी उसे सौंप कहता है भाई थैंक्स तो हम लोग आपको कहते है जो आप चुपचाप हमारी बात मान बैठे रहे।।अब आप जाइये आपका जो समय वेस्ट हुआ उसके लिए सॉरी।लेकिन अब मुझे भी निकलना होगा, नही तो फिर मैं उसे ढूंढ नही पाऊंगा बाय.. कह युवराज भी अर्पिता के पीछे चला जाता है।बाइक सवार अपनी बाइक ले वहां से चलता बनता है।

अर्पिता डिब्बो के पास पहुंचती है।एवं उनकी हालत देख उसके चेहरे पर परेशानी और तनाव के भाव उभर आते हैं।वो सीधे अपनी मां पापा के आरक्षण वाले डिब्बे को देखते हुए पीछे से आगे बढ़ती है।डिब्बो के अंदर कराह,आह चीखने चिल्लाने की भयानक आवाजे आती हैं।जिन्हें अगर कोई भी सुन ले तो उसकी आँखों के आंसू रुक ही न पाए।इतना मर्म स्पर्शी दृश्य है वहां।रेलवे के जवान डिब्बो में चढ़ घायलों,मृतकों सभी को बाहर निकाल रहे है।वो जगह रक्त के कारण लाल हो चुकी है।लोगो की पीड़ा देख, उनके कराहने की आवाज सुन अर्पिता की आंखे भी भर आती है।वो परेशान सी इस डिब्बे से उस डिब्बे की ओर बढ़ रही है।और आगे साथ ही बढ़ रही है उसके ह्रदय की धड़कनें।मां पापा आप ठीक हो ..कहाँ है आप।अब कितनी लंबी ट्रेन लग रही है ओह गॉड..मां पापा कहां है आप कहते हुए अर्पिता आगे बढ़ती जाती है।और अपने रिजर्वेशन वाले डिब्बे के पास पहुंच ही जाती है।जिसके आगे पीछे के दोनों डिब्बे पूरी तरह क्षति ग्रस्त हो चुके है एवम उनसे बीच बीच मे आग की लपटें भी निकल रही है।।ऐसा लगता है जैसे उनमें से किसी एक डिब्बे में ब्लास्ट हुआ हो और जिसका असर बाकी डिब्बो पर पड़ा हो।।वो समझ जाती है कि यहां ब्लास्ट हुआ है और स्टेशन पर लोग पैनिक न हो इसिलिये ट्रैन का पटरी से उतर जाने की बात कही गयी है।जिससे रेलवे वालो को समय मिल सके और वो स्टेशन पर मौजूद लोगों को बिन परेशानी के सम्हाल सके।।

मां पापा!!अर्पिता जोर से चीखती है।युवराज भी उसके पीछे ही आ रहा होता है।वो ये दृश्य देखता है तो एक पल को तो अवाक रह जाता है।

वहां कुछ बचा हो तब तो वो कुछ करे।उन डिब्बो के अंदर कुछ भी नही बचता।। अर्पिता अंदर जाने की कोशिश करती है लेकिन धुंए और गर्म लोहे के करण नही जा पाती है।माँ पापा चिल्लाते हुए अर्पिता वही चारो ओर पागलो की तरह घूमने लगती है वो अपना फोन निकालती है और अपने माँ पापा को कॉल करती है लेकिन उनका नंबर बंद होता है।तब तक युव्वी अर्पिता के पास आता है और उसे सम्हालते हुए उससे कहता है अंकल आंटी जी बिल्कुल ठीक होंगे..!हो सकता है फोन की बैटरी डैड हो गयी गयी हो या हो सकता है इन डिब्बो में ही वो नही हो सेना ने यहां फंसे हुए लोगो को पहले ही निकाल लिया हो। चलो आगे चल कर देखते है।इतनी बड़ी ट्रेन है एक बार कोशिश करनी चाहिये..!!युवराज अर्पिता को सांत्वना देते हुए कहता है।

उसकि बात सुन अर्पिता तेजी से आगे बढ़ जाती है और आगे के डिब्बो में अपने माँ पापा को खोजने लगती है।आप दोनों ठीक होंगे।।हमे गॉड जी पर पूरा भरोसा है।आप दोनों के अलावा हमारा अब बचा कौन है।नही गॉड जी हमारे साथ ऐसा गलत नही होने देंगे।आप दोनों ठीक होंगे..कहते कहते अर्पिता का गला भर जाता है।वो फफक फफक कर रोने लगती है।और जल बिन मछली की तरह तड़पते हुए अपने माँ पापा को ढूंढने लगती है।कभी दौड़ते हुए आगे जाती है तो कभी पीछे आती है।लेकिन उसके माँ पापा उसे नही मिलते हैं।वो कुछ सोच कर दौड़ते हुए रेलवे आर्मी के पास पहुंचती है और उनके द्वारा निकाले गए लोगो को देखते हुए उनमे अपने माँ पापा को ढूंढने लगती है।सुबह से दोपहर हो जाती है उसका फोन भी ऑफ हो चुका है।रेलवे के कर्मचारी वहां से जा चुके है।ये खबर न्यूज़ बन कर पूरे भारत मे फैल चुकी है।अर्पिता को भी रेलवे सुरक्षा बलों द्वारा वहां से जाने को कह दिया जाता है।इस समय वो इतनी टूट चुकी है कि उसे कुछ समझ ही नही आ रहा है।क्या करे, कहाँ जाए।।युवराज उसे सम्हालते हुए वहां से वापस कानपुर स्टेशन पर ले आता है।और लाकर उसे एक बेंच पर बैठा देता है।और उसके लिए पानी लेने चला जाता है।दोनो के लिए ही ये जगह अनजानी होती हैं।अपने माँ पापा के बारे में सोचते हुए अर्पिता बेहोश हो जाती है वो बेंच से नीचे गिरने वाली होती है कि तभी दो हाथ आकर उसे थाम लेते है।वो हाथ प्रशांत जी के होते है जो ये खबर सुन कर अर्पिता को ढूंढते हुए लखनऊ से कानपुर चले आते हैं ...

क्रमशः .....