कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 26) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

श्रेणी
शेयर करे

कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 26)

अर्पिता की नजर खंभे के पास खड़े एक शख्स पर पड़ती है।एक क्षण को तो वो चौंक जाती है।अपनी आंखें और फैलाती है देखती है और धीरे से कहती है प्रशांत जी यहां!! इतनी सुबह सुबह कैसे? कहीं ये हमारा वहम तो नही है।बहम ही होगा।नही तो इतनी सुबह सुबह प्रशांत जी यहां क्या करेंगे।।खंभे के पास खड़ा शख्स हल्का सा मुस्कुराता है।उसे मुस्कुराते देख अर्पिता कुछ क्षण उसे देखती रह जाती है।

हेल्लो!! आगे बढिए टिकट लीजिये!! हेल्लो!! अरे कहाँ खोई है आप।।सुनिए ..! अर्पिता को अपने कंधे पर किसी का हाथ रखा हुआ महसूस होता है।वो चौंकते हुए पलटती है।

उसके पीछे सत्रह वर्ष की एक लड़की खड़ी होती है जो उसे पीछे देखते हुए कहती है अरे पीछे नही आगे।आगे देखिए और टिकट लीजिये।।मैं कबसे बोल रही हूं ।।आपकी वजह से मेरी ट्रेन और मिस हो जाएगी।जल्दी कीजिये ना।ट्रैन का अनाउंसमेंट हो रहा है।

ओह ओह!! सॉरी हां! वो हम कुछ ... अर्पिता ने धीरे धीरे अटकते हुए उससे कहा।

अरे टिकट लीजिये न।।क्यों बातो में मेरा समय नष्ट कर रहीं है।।वो लड़की थोड़ा झिड़कने वाले अंदाज़ में अर्पिता से कहती है और खुद अपना पर्स निकालने लगती है।

अर्पिता आगे बढ़ आगरा का एक टिकट बनवा कर उस टिकट के लिए पैसे बढ़ाती है।।और टिकट लेकर पहली फुर्ती में उस खंभे के पास ही देखती है।लेकिन वहां कोई नही होता है।ओह तो ये हमारे मन का वहम था सोचते हुए अर्पिता वहां से आगे चली जाती है।

कुछ आगे ही पहुंचती है कि तभी उसकी नज़र प्लेटफॉर्म की भीड़ में चलते हुए एक लंबे से लड़के पर पड़ती है।जिसे देख उसके कदम फिर से ठिठक जाते हैं।भीड़ में चलता हुआ वो लड़का पीछे देखता है उसे देख मुस्कुराता है और आगे बढ़ जाता है।अर्पिता उसे देख फिर से शॉक्ड होती है वो वहीं रुक दोनो हाथो से अपनी आंखे मसलती है और सामने देखती है।जहां उसे वो अब नही दिखता है।।ये देख अर्पिता वहां से तुरंत ही एक तरफ पड़ी बैंच पर बैठ जाती है और सोचती है, ये सब क्या हो रहा है हमारे साथ।हमे प्रशांत जी क्यों दिख रहे हैं और अगर दिख रहे हैं तो गायब कहाँ हो रहे हैं कुछ समझ नही आ रहा है।क्यों हमे उनका अक्स यहां भीड़ में भी दिखाई दे रहा है।क्या ये इश्क़ का ही कोई अजनबी एहसास है।ओह गॉड।।सच ही कहा है "शान" ने 'इश्क़ का रंग ही कमाल है'।।सोचते हुए अर्पिता उठती है और जाकर ट्रैन में चढ़ जाती है।वो अपने मां पापा के पास बैठ जाती है।ट्रैन चलने लगती है।और अर्पिता अपने माँ पापा से बातचीत में व्यस्त हो जाती है।

अर्पिता लाली ये बताइये, आपने अचानक से आने का प्रोग्राम बना लिया! आपके साथ सब ठीक तो है।कोई समस्या, परेशानी तो नही है।अर्पिता की मां ने उससे पूछा!!मां की बात सुन अर्पिता उनसे कहती है, " मां सब ठीक है आप परेशान मत होइए।।वो बस बहुत दिन हो गए न् घर नही गए, आप दोनों के साथ बैठ कर कोई पहेली हल नही की, न् ही अंताक्षरी खेली।।और तो और टीवी चैनल के रिमोट को लेकर भी तो बहस किए कितने दिन हो गए हैं बहुत याद आ रहे थे वो दिन तो सोचा घर जाकर आप सब के साथ बिताए गए उन जादुई पलो को एक बार फिर से चुरा लेते हैं।

तो ये बात है तो फिर नेक काम मे देरी कैसी? खुशियों के पल तो समय से चुरा लेने चाहिए!! हर लम्हा हमे मुस्कुराते हुए जीना चाहिए!! न मालूम कब कौन सा लम्हा, कौन सी घड़ी में, जिंदगी की ये शाम ढल जाए।अर्पिता के पापा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए उससे कहा।

जी पापा! हम आपकी ये बात सदा याद रखेंगे।।कहते हुए अर्पिता मुस्कुराने लगती है।

गुड! तो अब हम लोग शुरू करते है अंताक्षरी!! वो भी अपने स्टाइल में।।उसके पिता उत्साहित होकर कहते हैं।

ओके पापा अर्पिता कहती है और अपनी मां के कंधे पर सिर टिकाकर अपने पापा के बोलने का इंतज़ार करने लगती है।

खाली पीली लाल नीली
हरी गुलाबी मय शराबी
तेरी मेरी सबकी प्यारी
शरू करो अंताक्षरी..
....
लेकर अपना अपना नाम..अर्पिता ने अपने पिता की ओर देख उनकी बात पूरी करते हुए कहा।।

हम यही .. तो अब बूझो और जानो ..।।कहते हुए
अर्पिता के पिता अपना मोबाइल निकालते है और म अक्षर से एक गाने की ट्यून अर्पिता को सुनाते हैं.. वो ट्यून क्या एक पांच सेकंड के टाइमर के साथ बजती हुई धुन होती है।वो धुन सुनती है और अपनी मां से हेल्प करने को कहती है।
तो उसकी मां कहती है।चांद, खिड़की, सामने पहचानो खुद से ..अर्पिता सुनती है औऱ फिर कहती है ..अरी बिन्दु..मेरी प्यारी बिंदु.... कह हंसते हुए कहती है।।पड़ोसन है हमारी बिंदु जी।।जो मेरे सामने वाली खिड़की में रहती हैं..!!

करेक्ट ..! कहते हुए उसके पापा और वो दोनों ही उस गाने को गुनगुनाने लगते हैं।

मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है.. अफसोस ये है कि वो हमसे कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है..।।

पिता पुत्री की ऐसी मस्ती देख अर्पिता के कंपार्टमेंट के अन्य सदस्य भी उनके साथ रुचि लेते हुए इस गाने को गुनगुनाने लगते हैं।

मेरे सामने वाली खिड़की में ..!!

अब बारी अर्पिता की होती है सो वो अपना फोन उठा ह अक्षर से शुरू होने वाले गाने की धुन बजा देती है....

जो कि जगजीत सिंह जी द्वारा गाई हुई एक ग़ज़ल होती है ..उसके बोल सुन कर अर्पिता के जेहन में एकदम से प्रशांत जी ख्याल आ जाता है।अरे वाह ये तो ग़ज़ल निकली।।जो कि आपको बहुत पसंद है प्रशांत।।

उसके पिता धुन सुन कर अपने माथे पर हाथ रख सोचने लगते है और रीना जी (अर्पिता की मां की ओर देखते है) वो न में गर्दन हिला अर्पिता से हाई फाईव करती है।

वो कुछ सोचते हुए कुछ कहने ही वाले होते है कि तभी डिब्बे में लोगो के बीच से एक आवाज आती है।

ग़ज़लों की महफ़िल सजाना कई कई शामे इसके नाम करना ये तो लखनऊ की खासियत में शुमार है।।और ये जो धुन है वो भी एक ग़ज़ल की ही है ..
जो कि सरफरोश फ़िल्म में फिल्माई गयी है।

होश वालो को खबर क्या ..!! यही है।

करेक्ट ..! यही है।अर्पिता ने उससे कहा।उसके वर्णन करने के तरीके से ट्रेन में मैजूद लोग उससे काफी प्रभावित होते है।।

अर्पिता के पापा तो उसे अपने पास आकर बैठने के लिए कह देते है।ओके अंकल कहते हुए वो भी वहीं सबके पास आकर बैठ जाता है।

पापा : हे बडी!! थैंक यू वैरी मच फ़ॉर हेल्प।।क्या नाम है आपका?
आवाज़ - ओ थैंक यू अंकल!और मेरा नाम युवराज है।युवराज त्रिपाठी!!और मैं लखनऊ बस घूमने के लिए आया था।क्योंकि ये एक टूरिस्ट स्पॉट भी है ना।।और यहां की भूलभुलैया के तो कहने ही क्या।

हां सो तो है।कुछ चीजें यहां की वाकई लाजवाब है।अब बाकी बातें बाद में होती रहेंगी लंबा सफर है ना आओ आप भी हमें जॉइन कर लीजिये।अर्पिता के पापा युवराज से कहते हैं।

युवराज हां में गर्दन हिलाता है और वो चारो अपने खेल को आगे बढ़ाते है।
अब अर्पिता के पापा अपना फोन उठाते है और बिन देखे एक सांग की धुन प्ले कर देते है।।जो कि पुरानी मूवी से ही होता है।अर्पिता गेस कर लेती है।फिर अर्पिता की बारी होती है सिलसिला चलता रहता है।उन्नाव स्टेशन के बाद ट्रेन जाकर सीधे कानपुर सेंट्रेल पर रुकती है।

ट्रैन को रुका हुआ देख अर्पिता युवराज रीना जी अर्पिता के पापा सभी गाते हुए रुक जाते हैं।

अर्पिता - पापा यहां ट्रेन कुछ देर रुकती है तो हम जाकर पानी ले आते हैं।आप लोग यहीं आराम से बैठिये।।

ठीक है लाली।।अर्पिता के पिता ने उससे कहा।अर्पिता बाहर चली आती है।और प्लेटफॉर्म पर कोई स्टाल देखने लगती है।थोड़ा आगे चलने पर उसे टी स्टॉल दिख जाता है।।अर्पिता वहां जाकर तीन कप चाय बनवाती है और वहीं बैठ कर इंतजार करने लगती है।

ओह तो आप भी यहां है सामने से आते हुए युवराज ने अर्पिता को देखते हुए उससे कहा।जी अर्पिता ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और खामोश होकर अपना फोन देखने लगती है।बेंच पर एक लोग की जगह और होती है।युवराज देख कर भी वहीं खड़ा रहता है।अर्पिता उसे देखती है और एक तरफ हट जाती है।ये देख युवराज मुस्कुराते हुए उसे थैंक यू कहता है और बेंच पर बैठ जाता है।अर्पिता अपने फोन मे व्यस्त होती है।उसे देख युवराज कुछ पल खामोश हो जाता है।फिर कुछ ही देर बाद उससे कहता है

"वैसे बड़ी ही मधुर आवाज है आपकी"।

धन्यवाद! अर्पिता ने उसे बिना देखे कहा।और फिर से चुप हो गयी।

ओके!! वैसे मैं युव्वी ! युवराज त्रिपाठी! उत्तराखंड के मसूरी से हूँ।और आप ? युवराज फिर से कहता है।

उसकी बात सुन अर्पिता उसकी ओर गर्दन उठा कर देखती है और कहती है हम जहन्नुम से..हैं।।देखना है क्या आपको, या घूमना है।

अरे आप तो बुरा मान गयी इसीलिए झूठ भी बोल गई।।आप जहन्नुम से नही है बल्कि आप तो आगरा से है आपके पापा ने कुछ देर पहले ही तो बताया।।

ओह!! तो फिर बताइये जब आप जानते है कि हम आगरा से है तो पूछा क्यों ? अर्पिता तल्ख लहजे में उससे कहती है।उसकी झुंझलाहट देख युवराज अफसोस जताते हुए कहता हूं, आय एम सॉरी जी।। वो दरअसल आपके बड़े भैया ने मुझे बताया था।मेरे ध्यान से उतर गया।और आप न मुझे गलत समझ रही है दरअसल मुझे बोलने का बहुत शौक है तो बस इसीलिए ...कह युवराज चुप हो जाता है।

ओके!! वैसे ये बात चीत करने का बड़ा ही पुराना तरीका खोज निकाला है आपने।।आपकी जानकारी के लिए हम बता दे कि आप जिनकी टीम में शामिल हो कर अंताक्षरी खेल रहे थे न् वो हमारे बड़े भाई नही हमारे पापा हैं।

क्या..!! अगेन सॉरी जी।।वो क्या है न अब आपके पिताजी इतने हैंडसम है और आप उनके साथ इतने फ्रैंक तरीके से बिहेव कर रही थी तो मैंने समझा कि वो आपके बडे भाई है।।अब मुझे क्या पता था कि वो
आपके पिताजी निकलेंगे।।युवराज ने हैरान होते हुए अर्पिता से कहा।और फिर मुंह लटका कर चुप हो गया।

अर्पिता :: अब ये आप कॉम्प्लिमेंट दे रहे थे या फिर हमारे पापा का मजाक बना रहे थे बताइये ?

युवराज ':: अरे कॉम्प्लिमेंट है जी भला मेरी क्या मजाल जो मैं किसी का मजाक बनाऊं।मुझे मजाक बना कर आपसे अपनी बेइज्जती थोड़ी ही करानी है।।उसे तो आप कॉम्प्लीमेन्ट ही समझिए।।

धन्यवाद ! अर्पिता ने उसे कहा।तब तक उसकी चाय पैक हो उसके पास आ जाती है सो वह अपना फोन अपनी पॉकेट में रख चाय कप ले चली जाती है।

उसे जाता देख युवराज खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहता है बड़ी अजीब बंदी है अपना नाम तक नही बताई और चाय लेकर चली भी गयी।

तभी उसका फोन रिंग होता है फोन पर फ्लैश हो रहे नाम को देख उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और वो झट से फोन उठा बातों में लग जाता है।

उधर अर्पिता चाय ट्रैन में बैठे हुए अपने मां पापा को जाकर देती है।उसे देख उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।और चाय निकालते हुए वो दोनों उससे कहते है क्या बात है लाली!! अभी हमारे मन मे चाय की तलब उठ ही रही थी औऱ आप ले भी आई।

हां जी तभी तो हमें पता चल गया और हम ले आये।।और अब आप दोनों आराम से चाय की चुस्कियां लेते हुए बातचीत जारी रखिये हम पानी की बोतल लेकर अभी आते हैं।ठीक है।

ओके लाली लेकिन जल्दी आना दो मिनट बाद ये ट्रैन चलने लगेगी। अर्पिता के पिता ने उससे कहा।वो मुस्कुराते हुए हां कहती है और वहां से बाहर चली जाती है।

बाहर जाकर वो पानी की बॉटल लेती है और मुड़ कर जाने लगती है।तभी उसे प्रशांत जी का अक्स फिर से दिखाई देता है।वो देख वो बड़बड़ाती है, " हम भी पगला गए है, जानते है कि वो यहां नही है लेकिन फिर भी हमे दिख रहे है" ।।नही,हो सकता है ये हकीकत हो। कहीं सच मे तो वो यहां नही है। हो सकता है प्रशांत जी इसी ट्रैन में चढ़ कर किसी काम से यहां आ गए हो।

अर्पिता! अर्पिता ! लाली आप वहां क्या कर रही है।।चलिये ट्रैन चलने वाली हौ।।सीटी लग चुकी है अर्पिता! अर्पिता के पिता ने ट्रैन के दरवाजे से आवाज देते हुए उससे कहा। अर्पिता अपनी ही सोच में डूबी हुई होती है उस पर रेलवे स्टेशन का ढेर भरा कोलाहल! सो अपने पिता की आवाज वो सुन नही पाती।

अर्पिता।लाली!! हां!! कहते हुए वो एक दम से आवाज देती है। सामने ट्रैन को चलते हुए देख वो उसकी तरफ दौड़ पड़ती है।।लेकिन आगे यात्रियों से टकराते हुए वो रुक जाती है।ट्रैन धीरे धीरे अपनी रफ्तार पकड़ती है तो दूसरे दरवाजे पर खड़ा हुआ युवराज नीचे उतर आता है। अर्पिता वहीं खडे हो अपने पिता को अपना मोवाइल दिखाती है।

👍 करते हुए अर्पिता के पापा जी अपनी सीट पर जाकर बैठ जाते है।अर्पिता की ट्रेन मिस हो जाती है और वो जाकर बेंच पर बैठ जाती है।परेशान सी अर्पिता अपना फोन निकालती है औऱ अपने पिता को कॉल लगा कर कहती है , " पापा हम अगली ट्रैन पकड़ कर आते हैं"।आप हमारी चिंता न करना हम पहुंच जाएंगे।।ठीक है।।

ठीक है लाली अपना ध्यान रखना।।अर्पिता के पिता ने अर्पिता से कहा।उसके पिता फोन रख देते हैं।

हे तो आपकी ट्रेन मिस हो गई।युवराज ने अर्पिता के पास बैठते हुए कहा।।

अर्पिता - जी ! और लगता है आपने जानबूझ कर मिस कर दी।

हां जी मुझे लगा ये ट्रैन जाने देनी चाहिए..!क्योंकि आप की भी ट्रेन मिस हो गयी है और एक इंडियन होने के नाते मुझे महसूस हुआ कि दूसरे इंडियन की मदद करनी चाहिए ..!!

ओह रियली आपने हमारे बारे में इतना सोचा उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भइया जी..अर्पिता ने मुस्कुरा कर हाथ जोड़ते हुए कहा जिसे सुन कर युवराज के खिले से मासूम चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी।और वो एक दम हैरानी से कहता है, क्या कहा .. भइया..जी?

क्रमशः ...