कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 21) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 21)

प्रशांत जी परम के पास जाते हैं।और वो दोनों वहां से मॉल के अंदर चले जाते है।उस जगह जहां फन कॉर्नर होता है।दोनों जाकर वहीं मस्ती करने लगते हैं।उधर अर्पिता और श्रुति दोनों ही मॉल घूमने लगती है।कपड़े ज्वेलरी सभी अपनी पसन्द की खरीद लेती है।
परम प्रशांत को लेकर वहां से चला आता है और वो भी अपने मतलब का कुछ न कुछ देखने लगता है।अर्पिता अपने लिए एक कलरफुल और दो सादा दुपट्टा ढूंढ़ती है।जो बड़ी मुश्किल से उसे मिलते है।मुश्किल क्या अब कोई चीज मन की भी तो मिलनी चाहिए न।इसीलिए अर्पिता को भी थोड़ा समय लग गया।जिसे देख श्रुति कहती है

अप्पू यार तूने कितना समय लगा दिया फाइंड करने में।लेकिन चॉइस अच्छी है तेरी।अब मै ये दुपट्टे रखने वाले कपड़े कम ही रखती हूं।नहीं तो कसम से इन्हे मै तुझसे जरूर छीन लेती।

पगली सी लड़की।।हम तुझे वैसे ही से देते।तुम्हे हमसे कुछ भी छीनने की जरूरत नहीं।तुम्हे जो चाहिए साफ़ साफ बोलना एक बार हम एवे ही से देंगे।।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

ओके ओके।।मै जानती हूं मजाक कर रही थी।श्रुति ने कहा।

फिर ठीक है डियर।अर्पिता ने हंसते हुए कहा।दोनों की शॉपिंग पूरी हो जाती है।उधर राधिका और किरण भी नीचे आ जाती है।और वो श्रुति को कॉल करती है।

श्रुति - भाभी!! मेरी शॉपिंग हो गई है लेकिन अभी पे करना बाकी है।प्रशांत भाई जो परम भाई के साथ व्यस्त है जब वो आ जाएंगे तब ही हम आ पाएंगे न।

राधिका - ओके।फिर हम उधर ही आते हैं।न जाने कितना समय लगे।

ठीक है भाभी। आइए श्रुति ने कहा।राधिका फोन रख देती है।

किरण वो दोनों ऊपर है थोड़ा समय लगेगा।हम भी ऊपर ही चलते हैं।राधिका ने कहा और वो दोनों वहीं श्रुति और अर्पिता के पास चली आती हैं।अर्पिता और श्रुति दोनों ही एक गिफ्ट शॉप के बाहर खड़ी थी।वहां अर्पिता को एक खूबसूरत सा टैडी दिखता है।

श्रुति ये टेडी बहुत खूबसूरत लग रहा है हमे।हम इसे खरीद लेते हैं।किसी बच्चे को ही उपहार में दे देंगे।

ओके अप्पू।तुझे अच्छा लग रहा है तो ले लो।श्रुति ने कहा।हम कह अर्पिता अंदर चली जाती है और वो टेडी खरीद लेती है।लाल रंग का बेहद खूबसूरत फर वाला हार्ट शेप वाला वो टेडी उसे पहली ही नजर में आ जाता है।उसे हाथ में ले कर अर्पिता को बेहद खुशी मिलती है।वो उसे हाथ में पकड़ कर बाहर आ जाती है।जहां श्रुति सेल्फी लेने में लगी होती है।अर्पिता उसे देख कहती है पक्की वाली पगली हो श्रुति।

उधर मेंस सेक्शन में परम और प्रशांत जी दोनों ही शॉपिंग में व्यस्त होते है कि तभी प्रशांत जी का फोन रिंग होता है।वो बाहर चले आते है।

फोन पर त्रिशा होती है।जो अपनी लड़खड़ाती तोतली जुबान में कहती है छाचू! मेले लिए एत गुद्दा लेकल आना।लाल लाल छा। अतछा छा।

उसकी बात सुन कर प्रशांत जी मुस्कुराते हुए कहते है।ठीक है माय लिटिल एंजेल।।चाचू आपके लिए गुड्डा जरूर ले आएंगे।
ओके तैंक्यू चाचू।।बाय।
बाय बच्चा।प्रशांत जी ने कहा और फोन रख दिया।

छोटे मै जरा गिफ्ट शॉप पर की ओर जा रहा हूं।तेरा काम हो जाए तो मुझे नीचे काउंटर पर मिलना।श्रुति और अर्पिता भी वहीं खड़ी होकर इंतजार कर रही होगी।प्रशांत जी ने परम से कहा और उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वहां से निकल जाते हैं।

अर्पिता और श्रुति दोनों रेलिंग की ओर मुंह किए खड़ी होती है जिस कारण प्रशांत जी को उधर से गुजरते हुए देख नहीं पाती हैं।

प्रशांत उसी गिफ्ट शॉप के अंदर चले जाते हैं।और वहां जाकर त्रिशा के लिए गुड्डा देखने लगते है।लेकिन उन्हें उसके मन का नहीं मिलता है।

राधिका और किरण दोनों उपर उसी फ्लोर पर आ जाते हैं।अर्पिता उन्हें देखती है तो उन्हें आवाज़ लगा उनके पास ही चली जाती है।चारो खड़े हो कर आगे बढ़ ही रही होती है कि अर्पिता को अपने पैरो के कपड़े खींचने का अनुभव होता है।वो रुक कर नीचे देखती है तो उसी छोटे से बच्चे को अपने सामने देखती है।उसे देख उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो नीचे बैठ उससे कहती है, " हे आप तो वही है न! उस दिन वाले।आपसे हमारी मिलाकर हुई थी।आप यहां अकेले कैसे??

वो दीदी मै खेलते हुए आ गया।उस बच्चे ने कहा।

ओह हो फिर से आपने गलती की।देखो आप तो ब्रेव है ये बात तो हम जानते है लेकिन ब्रेव होने के साथ साथ समझदार भी तो होना चाहिए न।देखो आसपास कितने सारे लोग है अगर आप खो गए तो फिर कैसे अपने मम्मी पापा के पास पहुंचोगे।न छोटे बच्चे ऐसे अकेले नहीं घूमते है।

ठीक है दीदी।मै अभी अपने मम्मी पापा के पास जाता हूं।कह वो नन्हा बच्चा अपनी छोटी छोटी आंखो से चारो ओर देखने लगता है।लेकिन उसे कोई नहीं दिखता।तब वो वापस से अर्पिता की ओर देखने लगता है।

देखा खो गए न।इसीलिए हमने कहा था कि छोटे बच्चो को बाहर जाते समय अपने मां पापा के साथ ही रहना चाहिए।चलिए हम आपको उनके पास छोड़ देते है।कह अर्पिता उस बच्चे का हाथ पकड़ लेती है और खड़े हो किरण श्रुति से कहती है।आप लोग चलिए हम इन्हे छोड़ कर नीचे काउंटर पर मिलते हैं।

राधिका उसकी बात सुन मुस्कुराती है और दोनों को वहां से ले चली जाती है।

अब आप सच सच बताईए कि आप यहां आए क्यूं थे।बोलिए..

बताया तो दीदी बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा जिसे देख अर्पिता मुस्कुरा देती है।चलते हुए उस बच्चे की नजर उसी गिफ्ट शॉप पर पड़ती है।वो ललचाई नज़रों से उसकी ओर देखता है।और अर्पिता के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ जाता है।अर्पिता उसका उतरा हुआ चेहरा देखती है।तो उससे पूछती है, क्या हुआ "लिटिल चैम्प"!! इस शब्द को दोहरा कर उसके चेहरे पर स्वत मुस्कुराहट आ जाती है।

वो बच्चा न में गर्दन हिला देता है।अर्पिता उसकी मासूम सी निश्छल आंखे देखती है तो उनमें उसे उदासी नजर आती है।वो अपने आसपास देखती है तो गिफ्ट शॉप देख सब समझ जाती है।वो उस नन्हे बालक को गोद में उठाती है और गिफ्ट शॉप के अंदर ले जाती है।जहां प्रशांत जी पहले से ही त्रिशा के लिए गिफ्ट लेने के लिए खड़े होते है।उस बच्चे पर ध्यान होने कारण अर्पिता उनकी उपस्थिति पर ध्यान नहीं देती है।

अब आपको जो चाहिए आप खुद से पसंद कर लीजिए।ठीक है।अर्पिता ने उस बच्चे को नीचे उतारते हुए कहा।

शॉप पर आकर बच्चे का उदास सा चेहरा खिल जाता है।अर्पिता वहीं एक तरफ खड़ी हो उस बच्चे को देखने लगती है।

वहीं प्रशांत जी अर्पिता को देख ऐसे खुश होते है जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो।वो मदद के लिए अर्पिता की ओर बढ़ते है लेकिन अपने बढ़ते कदम बीच में ही रोक लेते है और सोचते है मैंने इससे मदद के लिए कहा तो कहीं ये न समझ ले कि इत्तु से काम के लिए भी मुझे मदद की जरूरत पड़ गई।अपने सर को खुजा प्रशांत वहीं रुक जाते है।

उधर वो बच्चा दूसरी तरफ मुड़ कर जाता है तो अर्पिता भी मुड जाती है और ठीक प्रशांत जी के सामने खड़ी हो जाती है।

वो प्रशांत जी के चेहरे पर असमंजस के भाव देख सोचती है हो न हो ये यहां त्रिशा के लिए कुछ उपहार खरीदने ही आए है और शायद इन्हे अब तक कुछ समझ नहीं आया है।

तभी उसे अपने हाथ में पकड़े हुए उपहार का ख्याल आता है वो मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती है और प्रशांत जी का हाथ थाम वो गिफ्ट उनके हाथ पर रख देती है।और धीरे से कहती है, "हमें उम्मीद है कि आपको ये अवश्य पसंद आएगा"। कह उस बच्चे की ओर मुड़ जाती है।उसने एक छोटा सा फुटबॉल पसंद किया होता है।जिसे अर्पिता उस बच्चे को दिला देती है और वहां से काउंटर की ओर चली आती है।

जाते हुए एक बार फिर पीछे मुड़ती है।और प्रशांत जी को देख वहां से चली आती है।

हाय!! मेरे बिन कहे तुम्हारा यूं समझ लेना मुझे अनकहे एहसासों से रूबरू करा जाता है।।

प्रशांत जी मन ही मन कह इत्तू सी प्यारी सी स्माइल करते है और अर्पिता के पीछे पीछे चले आते है।गिफ्ट शॉप के बाहर ही उस बच्चे के माता पिता परेशान हालत में गुजर रहे होते है।बच्चा उन्हें देख आवाज़ लगता है तो वो मुड कर देखते है।

अर्पिता उनके पास पहुंचती है।उनसे कुछ कहती उससे पहले ही वो दोनो अपने हाथ जोड़ नजर झुका खड़े हो जाते हैं।

ये देख अर्पिता उनसे बस इतना ही कहती है आपको ध्यान रखना चाहिए। माना कि बच्चे शरारती होते है लेकिन फिर भी हमें उनका ध्यान तो रखना चाहिए न।ये जरूरी नहीं कि हर बार हम इनके साथ मिले।बाकी आप खुद समझदार है।सब समझते हैं।

उस बच्चे के माथे को चूम अर्पिता वहां से चली जाती है।प्रशांत जी हमेशा की तरह उसका ये रूप देख चंद लाइन कहते है और काउंटर पर पहुंचते है।सभी नीचे इकट्ठे हो जाते हैं।प्रशांत जी अपना कार्ड आगे बढ़ाते है और पे करा समान उठा कर गाड़ी की ओर बढ़ते हैं।

अर्पिता किरण श्रुति राधिका चारो आपस में बातचीत कर आगे बढ़ अपनी गाड़ी के पास पहुंचती है।जिसमें परम श्रुति राधिका किरण और अर्पिता बैठ जाते हैं।अर्पिता एक बार फिर सबसे नज़रें चुरा कर प्रशांत जी की ओर देखती है।जो अपनी बाइक पर बैठ हेलमेट लगा रहे होते है और उसी बाइक के शीशे से अर्पिता को देख रहे हैं।

परम गाड़ी दौड़ा देता है।राधिका जानबूझ कर किरण को आगे बैठाती है और श्रुति तथा अर्पिता के साथ बातचीत में लग जाती है।

प्रशांत जी भी गुनगुनाते हुए लखनऊ की ट्रैफिक भरी सड़कों पर अपनी बाइक दौड़ा देते हैं।

वहीं हमारी किरण परम को एक बार फिर से खामोश देख सोचती है कितना कम बोलते है ये चलो अच्छा है इनसे शादी के बाद सिर्फ मै बोलूंगी और ये सुनेंगे एक लड़की के लिए उसके हमसफ़र की ये क्वालिटी बहुत मायने रखती है।। हहाहा बड़ा मजा आएगा कह किरण एक दम से हंस पड़ती है जिसे सुन सभी उसकी ओर देखते है।ये देख किरण दांतो तले जीभ दबा कर कहती है फिर से गडबड कर दी किरण तूने।

राधिका उसके हावभाव देख कहती है।ऐसा होता है किरण डोंट वरी।।किरण मुस्कुराकर रह जाती है।और खुली खिड़की पर हाथ रख बाहर की ओर देख बुदबुदाती है मै और मेरे ख्यालात!उफ्फ... कभी मरवा न दे मुझे..! कहते हुए किरण एक गहरी सांस छोड़ती है और वापस से अंदर देखने लगती है।

हे किरण वैसे तुमने अपने बारे में कुछ बताया नहीं।इस बार श्रुति ने कहा।उसकी बात सुन राधिका एक बार श्रुति की ओर देखती है तो श्रुति भोला सा मुखड़ा बना कर राधिका से कहती है वो भाभी अभी परम भाई की शादी हुई नहीं न तो मुंह से निकल गया।।।

किरण श्रुति की बात सुन कहती है इट्स ओके श्रुति!! वैसे हम लगभग हम उम्र है और आज के समय के है तो कोई परेशानी वाली बात नहीं है।वैसे भी अभी मुझे भी आदत नहीं है न...!

किरण की बात सुन कर अर्पिता कहती है आप इसकी बातो का गलत अर्थ मत निकालिए इसका कहने का अर्थ है कि अभी यहां सभी हमउम्र है तो नाम लेकर बुला सकती हो।
अर्पिता की बात सुन कर राधिका उससे कहती है हम समझ सकते है तुम्हे अपनी बहन की परवाह है।और हमारा यकीं मानिए हम भी इन बातो को माइन नहीं करते।बस सबके सामने कुछ बातो का ध्यान रखना पड़ता है और हम जानते है किरण ये बात बखूबी समझती है।क्यूंकि देखा था हमने जब हम घर आए थे इन्हे देखने तब ये वहां बेमन से खड़ी थी।लेकिन आज इनकी बेबाकी देख हमे यकीं हो गया कि इन्हे इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है।

राधिका की बात सुन अर्पिता हैरान हो मन ही मन कहती है क्या दिमाग पाया है।रिश्तों की उलझन को किस तरह सुलझाना है इन्हे बेहतर तरीके से आता है।अर्पिता राधिका की बात सुन सहमति स्वरूप अपनी पलके झपका देती है।ये बाते केवल राधिका और अर्पिता के बीच ही होती है जिस कारण कोई और इन्हे नहीं सुन पाता है।

कुछ ही देर में गाड़ी किरण के घर के सामने रुकती है तो अर्पिता किरण और राधिका गाड़ी से उतर आती है।किरण राधिका के गले लग जाती है एवम् उससे "फिर मिलेंगे" कहती है। राधू मुस्कुराते हुए उसके गाल पर हाथ रखती है।और वापस से गाड़ी में बैठ जाती है।परम और किरण एक दूजे को देखते हैं।और केवल होंठ हिला एक दूसरे से बाय कहते हैं।परम गाड़ी आगे दौड़ा देता है।अर्पिता और किरण दोनों घर के अंदर आ जाती है और हॉल में ही बैठ जाती है

जहां बीना जी दया जी दोनों को देखती है तो क्या हुआ, क्या कहा सब जानने के लिए उनके पास चली आती है।

बीना जी - क्या हुआ अर्पिता? इशारे में पूछती है।उन्हें देख अर्पिता मुस्कुराते हुए अपना दायां हाथ आगे कर सब ठीक है का इशारा करती है।ये जान बीना जी दोनों हाथ जोड़ ऊपर नीचे करती है और वहां से रसोई में चली जाती है।

मासी हम लोग अभी आते हैं।अर्पिता ने थोड़ी सी तेज आवाज़ देकर बीना जी कहा।

ओके लाली।बीना जी ने कहा।
चल किरण! हम लोग चलकर कमरे में फ्रेश न अप होते है।अर्पिता कहते हुए खड़ी हो जाती है।

हम चलो।किरण ने खड़े होते हुए कहा।दोनों अपने कमरे में पहुंच जाती है।

अब बता किरण! क्या हुआ!! बात बात आगे बढ़ी कि नहीं थोड़ी सी।इतना तो हमें यकीन है कि तुझे वो पसंद तो आ ही गए होंगे।हम सही कहरहे है न किरण!अर्पिता ने किरण को छेड़ते हुए पूछा।

अर्पिता की बात सुन किरण कहती है।हां अर्पिता।सही कहा तुमने।वैसे तुम्हारे मुंह पर तो साक्षात सरस्वती जी ही विद्यमान रहती है।जब बोलती हो वो बात सही ही होती है। मै खुश हूं इस रिश्ते से अगर न कह देती तो पछताती।नई कह किरण स्माइल कर देती है। जिसे देख अर्पिता कहती है आय हाय क्या बात है...! एक ही मुलाकात में सुर ताल बदल गए लड़की के।

हम सो तो है ऐसी ही हूं मैं।कह दोनों हंस देती है।वैसे तुझे मै कुछ डिजाइन दिखाती हूं जो मैंने और राधिका जी ने मिल कर पसंद किए है।ये देख मेरे फोन में कुछ पिक्स है।किरण ने अर्पिता को फोन दिखाते हुए कहा।

वाऊ किरण इट्स प्रिटी यार।।अच्छी पसंद है उनकी।अर्पिता ने कहा।और सभी पिक्स देखती है।

तुम कुछ नहीं लाई अर्पिता वहां से।खाली हाथ ही दिख रही हो।किरण ने अर्पिता से पूछा ?उसकी बात सुन अर्पिता हैरान हो कर कहती है ओ हां किरण "हम लाए थे लेकिन श्रुति के पास ही भूल गए" गाड़ी से उतरते समय न हमने ध्यान दिया और न ही उसने।।बड़े ढूंढने पर हमने अपनी पसंद के कुछ दुपट्टे खरीदे थे।वो भी भूल आई।।

अर्पिता चुप हो जाती है उसका चेहरा लटक जाता है।जिसे देख किरण उसे छेड़ते हुए कहती है .. हां हां सच पता चलने की कुछ ज्यादा ही खुशी हो गई तुम्हे!! जो खुशी खुशी में चीज़े भी भूलने लगी।वैसे ये बता तेरी रोमांस की गाड़ी कुछ आगे बढ़ी...!किरण ने साफ साफ अर्पिता से पूछा..!

ऐ किरण .. ये क्या कहे जा रही है.!पगली हो गई है तू..! शशश चुप कर!!किसी ने सुन लिया न तो शामत आ जानी है...! कितनी आसानी से सब कह लेती हो तुम..?अर्पिता ने थोड़ा बिगड़ते हुए किरण से कहा।उसकी बात सुन किरण कहती है हां तो .. अब ऐसी हूं तो हूं..! उसमे क्या करू मैं।।सही नाम दिया है मैंने तेरी प्रेम कहानी को "बीरबल की खिचड़ी" वाला इश्क़!! जो न कभी पकेगा! और न ही कभी खतम होगा!! बस ऐसे ही भावनाओ की पावन आंच में सिकता रहेगा।और जिसका स्वाद ऐसा होगा जिसे तुम हमेशा महसूस करोगी अनंत से अनंत तक...?अरे वो कहते है न शिद्दत वाला इश्क़....?वही है ऐसा मुझे लगता है।किरण एक बार शुरू हो जाती है तो रुकती नहीं है और उसकी बात सुन अर्पिता बीच में ही सोच में पड़ जाती है।

ओह हो मै भी न कहां पहुंच गई हूं।अब ये तू जाने और वो जाने।और अब मेरी बातो पर इतना मत सोचो।मैंने तो बस अपना ओपिनियन रखा है। जब तक तुम लोग नहीं चाहोगे तो बात आगे कैसे बढे।कह कर किरण चुप हो जाती है और वहां से निकल जाती है। वहीं हमारी अर्पिता एक बार से प्रशांत जी को याद कर मुस्कुराने लगती है।और खुशी से झूमते हुए प्रशांत जी को याद कर गुनगुनाते हुए डांस करने लगती है।

कहते है खुदा ने इस जहां में सभी के लिए किसी न किसी को है बनाया हर किसी के लिए,तेरा मिलना है उस रब का इशारा मानो मुझको बनाया तेरे जैसे ही किसी के लिए...

(उधर प्रशांत जी मॉल से निकल कर अपनी एकेडमी में पहुंचते है।मॉल में थोड़ा ज्यादा समय व्यतीत करने के कारण आज लेट चुके हैं।एकेडमी में पहुंचते ही वो सीधा अपने क्लासरूम में पहुंचते है। उसके व्यक्तित्व से इतर आज मुस्कुराहट उसके चेहरे पर झलक रही है।प्रेम जो एक खूबसूरत अहसास है इस एहसास को वो बखूबी जी रहे है।)

प्रशांत - इवनिंग गाइज!! आज के क्लास की शुरुआत एक खूबसूरत गाने के साथ...करते हैं।कहते हुए प्रशांत एकेडमी के एक छात्र का गिटार लेते है और उसे ट्यून करते हुए अपनी आंखे बंद करता है।जहां उसे अर्पिता की झलक दिखती है।उसके मुंह से खुद ब खुद एक गाने के बोल निकलने लगते है....

कहते है खुदा ने इस जहां में सभी के लिए किसी न किसी को है बनाया हर किसी के लिए।।तेरा मिलना है उस रब का इशारा मानो...मुझको बनाया तेरे जैसी ही किसी के लिए..

अर्पिता इसी गाने को अपनी आवाज में ट्यून कर गुनगुनाती है..

कुछ तो है तुझसे राब्ता! कुछ तो है तुझसे राब्ता
कैसे हम जाने, हमे क्या पता, कुछ तो है तुझसे राब्ता..

...

एक ही समय पर अलग अलग जगह दो लोग इस प्यारे से एहसास को अपने अपने अंदाज में जी रहे हैं...महसूस कर रहे है..! उनके इस हाल ही में शुरू हुए राब्ता को....!

क्रमश....