अध्याय 12
बहुत महत्वपूर्ण प्रेम
इस प्रेम में जो शक्ति है वह इस दुनिया में और किसी में नहीं होता।
गहरे समुद्र में गिरे हुए को भी बचा सकते हैं।
रेत में फंसे हुए भी बचा सकते हैं।
परंतु प्रेम में डूबे आदमी को बचना बहुत ही मुश्किल है।
शरीर और प्राणों को थोड़ा-थोड़ा खत्म कर देता है। प्रेम के वेदना के कारण, अपने सारे उत्साह को मोती ने खत्म कर दिया।
उसके चेहरे पर हमेशा एक उत्साह आंखों में एक चमक आवाज में एक अपनापन भरपूर रहता था।
अब वह बिल्कुल बदल गया।
उसे अपने चेहरे को आईने में देखना ही पसंद नहीं।
ठीक से किसी काम को भी नहीं कर पाता।
ठीक से खाना नहीं खाता।
ठीक से सोता नहीं है।
हमेशा गीता के याद में ही रहता है।
अपने स्वयं जाकर उससे मिलकर बात कर, उससे अनुनय विनय करने के बावजूद उसका ह्रदय नहीं पसीजा यही बात थोड़ी-थोड़ी करके उसे खाए जा रही थी।
उसे पता था गीता मेरे बस में क्यों नहीं चढ़ती।
गीता की मौसी ने उसका अपमान किया है यह वह जानता था।
गीता को उसकी मौसी ने बहुत मारा-पीटा यह भी वह जानता था।
अपनी प्रेम को गीता ने स्वीकार नहीं किया उसे यह भी पता है।
बाकी बातें मुझे पता नहीं।
सुराणा ज्वेलर्स के दुकान पर से काम छोड़ दिया यह बात उसे पता नहीं। कल्याणपुरा के बाबूलाल से वह शादी करने वाली है उसे पता नहीं। शादी की तैयारियां बड़े जोर शोर से हो रही है उसे पता नहीं।
आज नहीं।
कल नहीं।
किसी एक दिन गीता का मन नहीं बदलेगा?
उसके बदलने तक मैं इंतजार करूंगा।
बदल सकता है।
बिना बदले भी रह सकता है।
कुछ भी होने दो, ऐसे एक फैसले पर मोती आ गया था।
"भैया... 8:30 हो गया। गाड़ी को चलाइए ! भारत ट्रांसपोर्ट की बस स्टैंड के अंदर आ गई।"
गीता की शादी के बात को रीतिका ने रहस्य बना कर रखा था। गांव में द्रोपदी के सिवाय किसी को भी यह बात पता नहीं था। कितना भी छुपा कर रखो पर बात थोड़ी बहुत पता चल ही जाती है। चूड़ी की दुकान में काम करने वाली वंदना की बहन और मनाली साथ पढ़ने से वे एक दूसरे के दोस्त थे अत: मनाली उससे कहकर रोई ।
नम्रता ने आज सुबह ही गीता की शादी के बात को अपनी बहन को बताया। भाग-भाग कर आ कर हांफते हुए आपका नम्रता मिनी बस में चढ़ी।
नम्रता के द्वारा अर्पिता और आरती दोनों को पता चल गया था।
उनकी उम्र की ही गीता युवा लड़की थी ।
इस तरह की एक बेरहमी जो होने जा रही थी उसको वह भी सहन कर पाई।
ड्राइवर मोती को यह समाचार देकर किसी तरह इस शादी को रुकवाने के लिए वे तड़पने लगीं।
नई बस स्टैंड से रवाना होकर धीरे-धीरे बस जा रही थी।
इस जिंदगी में गीता इस मिनी बस में नहीं चलेगी यह सोच कर वह इधर-उधर देखे बिना रास्ते में ही मोती का पूरा ध्यान था।
"ड्राइवर साहब को बात पता है ?"
अर्पिता धीरे से बोली।
"मालूम होने के कारण ही तो इन्होंने दाढ़ी रखी है... बहुत दुखी लग रहे हैं... बस में प्रेम गीत बजाना ही बंद कर दिया।"
"इसका मतलब उनको मालूम है..."
"मालूम होगा"
उनकी बातों को सुनते हुए मोती बस चला रहा था।
"मालूम हो कर भी चुप है..."
"और क्या कर सकते हैं वे ? अपने स्वयं के काम से मतलब रखने वाली लड़की की जिंदगी खराब कर दी..."
नम्रता बोली।
"इसीलिए दाढ़ी रखी है क्या ?"
"दाढ़ी बढ़ाए तो क्या किए हुए पाप चला जाएगा ? बेचारी वह लड़की..."
उसके पीछे खड़े होकर तीनों लड़कियां उसको ही सुनाई दे ऐसे कह रही थी तो उसे चिड़चिड़ाहट हुई।
सड़क पर चार आदमी फटाफट आ कर बस में चढ़े।
सामने आ रहे ट्रक ड्राइवर को और दूसरे मिनी बस ड्राइवर के बीच कोई झगड़ा हो गया।
ट्रक ने बस को धक्का दे दिया।
समस्या बड़ी होकर ट्रैफिक जाम हो गया।
मिनी बस को एक तरफ खड़ा कर दिया। जो लोग मिनी बस में थे वे आधे से ज्यादा उतर गए।
अपने दोनों हाथों को छोड़कर मोती उतरा नहीं। नम्रता की ओर मुड़कर देखा।
"तुम तीनों क्या बात कर रही हो ? मैंने क्या पाप किया? मेरे साथ आ जाओ मैंने उससे बहुत अनुनय-विनय किया। वह लड़की नहीं आई। मैं क्या कर सकता हूं? जब कभी भी तुम आओ तो मेरी पत्नी हो.... तुम्हारे मन बदलने तक मैं इंतजार करूंगा यह कह कर मैं आ गया।"
दुख से धीमी आवाज में बोला।
"फिर आपको समाचार ही नहीं मालूम ?"
"क्या बात है?"
"गीता की शादी होने वाली है...."
"क्या... शादी? मैंने लड़की मांगी तो मना कर दिया..." और सात-आठ साल शादी नहीं करूंगी बोला... उसे सदमा लगा।
"गीता की मौसी एकदम राक्षसी है ! अब रुपयों के लालच में उस लड़की की जिंदगी को बर्बाद करने वाली है।"
"लड़का कौन है ? उसी गांव का है?"
"कल्याणपुरा के बाबूलाल जो 45 साल का बूढ़ा है.... उसकी पत्नी मर गई.. सब प्रॉपर्टी लड़की के नाम कर उससे शादी करेगा।"
नम्रता ने सब कुछ धड़ाधड़ बोल दिया।
मोती का ह्रदय तेजी से धड़कने लगा।
"मजाक कर रही हो ? या सचमुच में कह रही हो?"
"भगवान की कसम सच कह रही हूं।"
"शादी कब है ?"
"अभी आने वाले शुक्रवार को कल्याणपुर में जो देवी का मंदिर है वहां पर शादी होगी...."
नम्रता ने बोल कर खत्म किया।" उस लड़की के मौसी ने गांव में किसी को भी बोला नहीं है।"
"ऐसा है ?"
"उस लड़की की बहन और मेरी बहन दोनों साथ में पढ़ते हैं इसीलिए मुझे पता चला। नहीं तो हमें भी पता नहीं चलता। आप उस लड़की से शादी नहीं करें तो भी कोई बात नहीं। उस होने वाली शादी को तो रोकिए।"
तीनों बड़े दुखी होकर निवेदन करने लगी।
"शादी करना है इसीलिए तो तड़प रहा हूं। वह लड़की ही तो नहीं मान रही है।"
मोती की आह निकल गई।
इतने में लारी ड्राइवर और मिनी बस ड्राइवर के समस्या का समाधान हो गया।
ट्राफिक जाम ठीक हो गया ।
"भैया समस्या का समाधान हो गया... गाड़ी को निकालो"
मिनी बस में बैठे हुए एक लड़का मोती को देखकर बोला। कंडक्टर हनुमान ने भी सिटी बजाईं।
"राइट-राइट चलो भैया"
क्लीनर पप्पू ने भी चिल्लाया।
गीता की शादी है
बूढ़े के साथ शादी है
कैसे उसे रोकूंगा।
अरे यह क्या बेरहमी है?
मोती थोड़ा-थोड़ा टूट कर अपने को ही भूल गया था।
"भैया... गाड़ी को चलाओ ! सो गया क्या ? क्या हुआ ?" क्लीनर उसके पास आकर उसके पीठ को थपथपाया तब उसे ध्यान आया। बेमन से मिनी बस को मोती ने स्टार्ट किया।
मोती बिलखने लगा।
"अभी क्या हुआ ?" कंडक्टर हनुमान ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा।
"मर जाऊं ऐसा लगता है।"
"अरे रे... आदमी जैसे बात कर। डरपोक जैसी बात मत कर...."
"मुझसे नहीं हो रहा है भैया ! गीता मुझे ना मिले तो कोई बात नहीं। यह शादी तो नहीं होनी चाहिए। उसे रोकना ही पड़ेगा।"
"मैं एक योजना बताऊं क्या ?"
"बोलो।"
"चमनपुरा का जयपाल का भाई वहां के पुलिस स्टेशन का इंस्पेक्टर है। बहुत अच्छा आदमी है... बहुत सज्जन आदमी है। बहुत बढ़िया डिसिशन लेते हैं.... तुम जाकर उनसे मिलो।"
"क्या बात है बोलूं ?"
"मैं गीता नाम की एक लड़की से प्रेम करता हूं... परंपरा के अनुसार उनके घर गया था लड़की का हाथ मांग कर शादी करने की कोशिश की थी । परंतु मुझे अपमानित करके भेज दिया। अब उस लड़की गीता की शादी रुपयों पैसों जायदाद के लालच में एक बूढ़े आदमी से कर रहे हैं। उस बूढ़े की पत्नी मर गई। उस शादी को रोकने के लिए एक पत्र लिख कर दो... पक्का कोई कदम उठाएंगे...."
हनुमान के कहे योजना को मोती ने माना।
हनुमान को भी लेकर पुलिस स्टेशन गया।
इंस्पेक्टर बड़े दयालु दिखे। मोती के कहे बातों को शांति से सुना।
"शादी कब होगी...?"
"आने वाले शुक्रवार को। देवी के मंदिर में...."
"ठीक है... इन सबको एक कंप्लेंट के रूप में लिखकर दे दो..." वे बोले।
"थैंक यू सर...."
मोती बड़े उत्साह से कंप्लेंट को लिखना शुरू किया।
****