I am in your heart? - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 11

अध्याय 11
सब बड़े खुश हुए।

मनाली और कमला बहुत ही खुश हुए।

गीता दीदी की शादी है।

जसवंतपुरा के बाबूलाल से शादी थी। ‌वे 45 वर्ष के थे।

वे सफेद धोती और कुर्ता पहनते थे। उनके मुंह में हमेशा पान रहता था। वे हमेशा उसे मुंह में रखकर ही बात करते हैं। गले में मोटी रस्सी वाली सोने की भारी चेन पहने रहते थे।

दोनों हाथों में अंगूठे को छोड़कर सभी उंगलियों में मोटी-मोटी अंगूठियां पहने रहते थे ।

जहां जाओ कार से ही जाते थे। सब काम करने के लिए नौकर थे । महल जैसे मकान... करोड़ों की संपत्ति थी।

पत्नी की मृत्यु हो गई थी।

कोई वारिस नहीं था।

मधुमेह की बीमारी, ब्लड प्रेशर सब कुछ था।। दूसरी शादी करें तो बच्चे होने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

बाबूलाल को फिर भी इच्छाएं बहुत थी। गीता के शादी के लिए राजी होते ही द्रौपदी ने उन्हें लाकर लड़की देखने की रस्में निभाई।

राकेश का मन तड़पा फिर भी उसके विरोध में ना बोल सका।

एक तरफ खड़ा होकर तमाशा देखता रहा।

बाबूलाल गीता को निगल जाएगा इस तरह से देखा।

दुबली पतली काया...

हिरन जैसी चाल

घाघरा चोली में धीरे-धीरे चल कर भव्यता के साथ चाय लेकर आई गीता।

दीदी की शादी?

इस बूढ़े से शादी?

मनाली और कमला को अभी बात समझ में आई।

वे दोनों तड़पी।

"गीता, ये ही तुमसे शादी करने वाले हैं। इनके पैरों को छूओं।" बड़ी प्यार से मौसी बोली।

गीता ने उनके बोले अनुसार किया।

"कोई बात नहीं है... उठ जाओ..." गीता के कंधे को बाबूलाल ने छूकर उठाया ।

"यहां आ जाओ।" अपने पास बुलाया।

"इसे अपने गले में पहनो" अपने कुर्ते के जेब में से चमचमाते हुए चेन निकाल कर उसे दी।

"साहब आप ही... अपने हाथों से उसके गले में डाल दीजिए....! इसमें कोई बुराई नहीं है।"

द्रौपदी बीच में अपनी टांग अड़ा रही थी।

"सोने की चेन को पहना दीजिए गीता के गले में आप ही पहना दीजिए।" हंसते हुए रितिका ने बोला।

"गीता के गले में डाल दीजिए साहब..,'

गीता बिना हिले डुले एक मूर्ति जैसे खड़ी हुई थी। बिना जान के चित्र जैसे खड़ी थी।

उसके चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं।

उसके आंखों में आंसू नहीं।

बाबूलाल ने अपने हाथों से गीता के गले में चेन को पहना दिया। ‘मुझसे तीन साल ही छोटा होगा बाबूलाल उसकी शादी मेरी बेटी से होगा क्या? मेरी पहली पत्नी जिंदा होती तो ऐसा होता?’

पापी।

चांडाल।

राक्षसी।

इसका कोई मन ही नहीं है इसने गीता की बलि चढ़ा दी। राकेश की आंखें लाल हुई। उसकी नाड़ियों मैं झनझनाहट होने लगी।

रितिका ने उसे घूर कर देखा। वह शांत हो गया।

ठीक से कमा ना सकने वाले आदमी !

ठीक से मेहनत ना करने वाले आदमी!

शुरू में ही अपनी पत्नी को दबाकर न रख सकने वाले आदमियों का हाल राकेश जैसे ही होता है। अब गूंगा बन कर हाथों को बांधकर चुपचाप खड़ा देखता रहा।

सुई के नोक के बराबर भी गुस्से से देख ले तो आज खाना नहीं मिलेगा। पीने को पानी भी नहीं मिलेगा।

राकेश जैसे बेवकूफ आदमियों की वजह से ही लड़कियां पुराने समय से बर्बाद होती रहीं हैं ।

आंखों से आंसू बहने के कारण उसे तौलिए से पोंछ कर राकेश पीछे की तरफ चले गए।

"साहब... शादी कब रखें ?" द्रौपदी ने पूछा।

"ज्योतिष जी से बात करके अच्छा दिन देखकर फिर बताता हूं..."

गीता को आंखें फाड़ कर बाबूलाल देख रहे थे।

"प्यारी..." बड़े प्रेम से गीता को बुलाया।

"हां.."

"तुम अच्छा खाना बना लेती हो ?"  अपने मूछों पर ताव देते हुए पूछा।

"हां.."

"मटन, मुर्गा और मछली सब पका लेती हो ?" आंखों को गोल-गोल मटका कर पूछा।

"हां.."

"हमारी जोड़ी बहुत जोरदार है... अभी आ जाओगी क्या मेरे साथ ?"

पान और सुपारी मुंह में रखे हुए मुंह फाड़कर हंसे तो उसके बाद वहाँ ना खड़ी होकर गीता अंदर भाग कर चली गई।

"साहब को गीता के ऊपर बहुत ही प्यार उमड़ रहा है लगता है ? हम गरीब हैं फिर भी सब कुछ रीति-रिवाज से ही होना चाहिए ऐसा सोचते हैं। उसी में गौरव है! जल्दी से कोई अच्छा दिन देख लीजिएगा..."

व्यंग्य और प्रेम से द्रोपदी ने बात की।

"अब मैं सीधे ज्योतिष जी के पास ही जा रहा हूं। तेरे आदमी को भी मेरे साथ भेज दे द्रौपदी।"

द्रोपदी ने सिर हिलाया।

"यह खर्चे के लिए रख लो ! शादी होने के बाद परंपरा से निभा लूंगा"

50 रुपये के नोट की गड्डी को द्रौपदी को पकड़ाया।

जल्दी से उसे लेकर उसने ब्लाउज के अंदर रख पति से छुपा लिया।

"मैं चलता हूं ! शादी के खर्चे के जरूरत के पैसों को कल भिजवा दूंगा और गीता को अब नौकरी के लिए मत भेजना... समझ में आया?"

रितिका को देखकर बात कर रहे थे।

"समझ रही हूं साहब..."

प्यारी सी लड़की को आपको मैंने दिखा दिया। मन बदलने के पहले अपने घर के सोने के पिंजरे में उसे कैद कर लीजिएगा..."

द्रौपदी धीरे से बुदबुदाई ।

"सब कुछ मैं देख लूंगा.. यह परी अब मेरी ही है..."

बाहर खड़े कार के पास पहुंचे।

रितिका और द्रौपदी बाहर तक उनके साथ जाकर उनसे विदा ली।

"क्यों अम्मा ऐसे कर रही हो ?"

मनाली और कमला रितिका को नफरत से देखा।

"कैसे ?"

"एक बूढ़े से गीता दीदी की शादी करना की तैयारी कर रही है ? यह तो पाप है?"

"इसे पाप माने तो हमें भूखा मरना पड़ेगा।"

"वही तुम्हारी लड़की होती तो तुम ऐसा करती ?" कमला रोने लगी। गीता ही मान गई फिर तू क्यों उछल रही है?"

"गीता दीदी पूरे मन से नहीं हां बोली होगी ! उसे डरा-धमका कर तुमने कबूलने के लिए मजबूर किया होगा! तुम्हारे बारे में मुझे पता नहीं है?" मनाली फट पड़ी।

"मेरे बारे में तुझे क्या पता है रे ?"

"रुपया के लिए तो कुछ भी कर सकती हो..?"

"कल मुझे और कमला को भी ऐसे ही किसी बूढ़े से शादी कर दोगी क्या?" मनाली बंदूक जैसे फट पड़ी।

उसके गाल में जोर से चाटा लगाया रितिका ने।

"तेरी जुबान बहुत चलने लगी है ! खींच कर काट दूंगी!"

"मनाली दीदी के पूछने में क्या गलती है.... सच ही तो कह रही है" कमला ने भी प्रश्न दागा।

रितिका सहन नहीं कर सकी।

"मुंह बंद कर गधी"

कमला को भी जोर से चांटा लगाया।

कमला गिर गई।

दीवार के किनारे चटाई पर उदास लेटी हुई गीता एकदम से उठी।

"उनको मत मारो मौसी !"

बीच में आकर रोकी।

"देखा गीता... इन दोनों के बर्ताव को देखा ?"

"छोटी लड़कियां ही तो है.…मुझसे जो प्यार है... इस वजह से... इसके लिए मार रही हो..." उसने मनाली और कमला को अपने आगोश में ले लिया।

"नहीं दीदी... नहीं आपको यह शादी नहीं करनी चाहिए ?" मनाली अनुनय विनय करने लगी।

"उस बूढ़े आदमी के लिए आपने हां क्यों भरी ?" जोर से कमला चिल्लाई।"

"मनाली और कमला तुम दोनों पहले रोना बंद करो.…."

दीदी...

"कल्याणपुरा के बाबूलाल मुझे बहुत पसंद है। मैं अपनी इच्छा से ही शादी कर रही हूं। तुम लोग मौसी से बहस करके मार क्यों खा रही हो ?"

"दीदी झूठ मत बोलो ?"

"मेरी अम्मा नहीं है जो पिता है वह भी बिना जिम्मेदारी वाला। बेचारी मौसी क्या करेगी ? युवा हो या बूढ़ा किसी के साथ मेरी शादी करने की सोच रही हैं यही बहुत बड़ी बात है नहीं?"

दीदी...

"मुझे रोज रोज रोटी-रोटी प्याज खा-खा कर मेरी जीभ मर गई । कल्याणपुरा के बाबूलाल के साथ सात फेरे लूं... तो मांस, मच्छी, बकरा मुर्गा आदि तो रोज खाने को मिलेगा ? नहीं मौसी...."

सिर झुका कर रितिका को देखा।

"हां... हां सही..."

रितिका ने थूक को निगला।

"बाबूलाल की पत्नी होने पर रोज एक सिल्क की साड़ी पहन सकती हूँ। गले में खूब सारे गहने पहन सकती हूँ और महल जैसे मकान में रानी जैसे रह सकते हूँ। जहां जाए तो वहाँ कार से जाकर उतर सकती हूँ । ऐसे ही है ना मौसी।"

फिर से उसने रितिका को देखा।

"हां..."

"मेरे अच्छाई के लिए जो शादी मौसी करवा रही है उसके बारे में कोई गलत मत सोचो।"

"नहीं दीदी तू अम्मा से डरती है...."

"मैं नहीं डर रही..."

"तुम इस तरह बोल रही हो तो अम्मा ने तुम्हें कुछ कह कर धमकी दी है..."

"मनाली... दीदी ने तो तुम्हें सब कुछ विस्तार से बता दिया ना ? उसी को बार-बार ना कह तुम दोनों जल्दी से खाना खाने आ जाओ...."

"तुम उस बूढ़े से शादी करने के बदले मोती ड्राइवर के साथ भाग जाती ना दीदी वह बहुत अच्छे आदमी हैं वह तुम पर जान छिड़कते हैं ! परंपरा के अनुसार घर आकर उन्होंने लड़की मांगी! खराब ख्यालों वाली मेरी मां ने ही उन्हें डांट डपट कर गाली-गलौज कर भगा दिया..."

"यह सब तुम्हें किसने कहा ?"

"चूड़ी के दुकान में काम करने वाली वंदना की बहन मेरे साथ ही पढ़ती है। उसी ने मुझे बताया...."

"यह सब झूठ है मनाली..."

"झूठ, सच होने दो। पर तुम उस बूढ़े से शादी मत करो दीदी..... उससे तो तुम्हारा मर जाना ही ठीक है...."

मनाली फूट-फूट कर रोने लगी।

"क्यों री। तेरा मुंह बंद ही नहीं होगा क्या ? उसको जो नहीं मालूम वह भी तुम सिखा दोगी लगता है! तुम स्कूल में पढ़ने जाती हो? या तरह-तरह की गप हांकने के लिए?"

गुस्से से बांस के टुकड़े को लेकर आ मनाली के पीठ में जोर-जोर से रितिका मारने लगी।

उसे बचाने गई गीता को भी दो-चार पड़ गए ।

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