I am in your heart? - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 10

अध्याय 10

"अरे रितिका।" हड़बड़ाते हुए दौड़ी आई द्रौपदी। द्रौपदी और रितिका एक ही गली में रहती थी। रितिका और द्रौपदी में बहुत समानताएं थी। तराजू में तौले तो दोनों बिल्कुल सामान होंगी।

रितिका को एक धारधार नुकीली चाकू माने तो द्रौपदी बंदूक |‌

इन दोनों को दूसरों के जीवन को बर्बाद करना है तो लड्डू खाए जैसे स्वाद आता था।

'द्रौपदी आओ'

दोपहर का समय।

इस समय कोई काम नहीं होता ।

चटाई को बिछाकर आराम से लेटी हुई थी।

मूंगफली को खाकर बाकी वहां रखा हुआ था।

"मूंगफली खाओ द्रोपदी..."

बड़े प्रेम से उसे मनुहार करने लगी।

"तुम्हारे सिर पर तो बिजली गिरने वाली है.... तू मुझे मूंगफली खाने को बोल रही है क्या ?" रितिका के पास में चटाई पर बैठते हुए द्रौपदी बोली।

"क्या बोल रही हो ?"

"तू बर्बाद होने वाली है।"

"दीदी...."

"तेरे चेहरे पर गीता कालिक पोतने वाली है...."

"समझा कर बोलो दीदी..."

"उस करतूत को मैं अपने मुंह से कैसे बोलूं...."

"कुछ भी हो बोलो दीदी..."

"कल रात को मेरे पति शहर से आते समय.... तालाब के रास्ते में गीता को देखा... मेरे पति साइकिल पर आ रहे थे उन पर भी ध्यान न देकर दोनों जने... अपने आप को भूल कर बात करने में मग्न थे...."

"दीदी..."

"दोनों क्या बात कर रहे थे मेरे पति को समझ में नहीं आया... परंतु आखिर में उस ड्राइवर ने ‘तुम्हारे लिए मैं इंतजार करूंगा गीता’ ऐसा बोल कर गया वह इनके अच्छी तरह से सुनाई दिया ।”

"दीदी"

"मुझे तो लगता है गीता उस ड्राइवर के साथ जल्दी ही भाग जाएगी.... धोखा ना खाकर सावधानी से रह.... तेरी दो जवान लड़कियां भी हैं भूल मत जाना !"

धुआं को फूंककर उसे जलाकर आग लगा गई द्रोपदी।

"तू बहुत ज्यादा बोलने वाली है वाचाल है पर तेरे मन में रोष तो बहुत है। पर तू ऐसी तो नहीं है कि कुल का अपमान होने दें ।"

"वह बात मुझे मालूम है दीदी..."

"मालूम है ?"

"वह ड्राइवर गीता को अपने प्राणों से ज्यादा चाहता है.…जिऊं तो उसी के साथ नहीं तो तड़पता रहूँगा... अपनी अम्मा को साथ में लेकर खूब सारे फल और मिठाई लेकर लड़की मांगने आए थे.. पहने हुए कपड़े के साथ ही भेज दो। मैं छोड़ देती क्या.. जो मुंह में आया डांट कर उनको भगा दिया..."

"मुझे तुमने यह कहानी सुनाई नहीं..."

"इससे शादी करके इसे महारानी जैसे रखेगा ऐसा बोलता है... यह सब बदमाशी की बात को आपसे क्या कहूं...?"

रितिका ने दीर्घ श्वास छोड़ा।

"तुमने क्यों नहीं माना, किसलिए... गीता को लेकर भागना चाहिए.. ऐसे फैसला कर लिया क्या?"

"वही ठीक..."

"उसे भागने के लिए छोड़ देगी...?"

"छोड़ दूंगी मैं ? आज ही उसके पैर तोड़ दूंगी!"

रितिका फुफकारने लगी‌।

"अरे पागल... ऐसा कुछ मत कर देना..."

"फिर क्या करें दीदी..."

"बिना मारे, बिना पीटे मैं जो कह रही हूं वह कर..."

"बोलिए..."

"गीता की शादी तुरंत कर दो..."

"किसके साथ करूं ? उस ड्राइवर से? मेरा कुल ही खत्म हो जाए उसके लिए राजी नहीं होंऊगी..." रितिका जोर से चिल्लाई।

"तू तो मिट्टी की माधो है..."

"दीदी..."

"तुझे कौन ड्राइवर से शादी कराने की बोल रहा है ? तुम्हारा परिवार अभी कैसा जी रहा है वैसे ही तुम्हारी लड़कियों को भी आराम रहने लायक एक आदमी को देखकर शादी कर दो....."

"ऐसे एक आदमी को मैं कहां जाकर ढूंढूं ?"

"तुझे ढूंढने की जरूरत नहीं है मैं लेकर आती हूं !. कल्याणपुरा के बाबूलाल भी लड़की ढूंढ रहा है। मैं और मेरा पति जाकर बात पक्का करके आ जाए?" आंखें फाड़ते हुए द्रौपदी बोली ।

"बाबूलाल के लड़के के लिए लड़की ?"

"उनको लड़का कहां है ? कोई बच्चा नहीं है उनके... उनकी औरत भी 6 महीने पहले टीबी से मर गई... वह अकेला है... मैं और मेरा पति उनके बगीचे में काम करते थे... तुम्हारे गांव में कोई लड़की है तो बताओ द्रौपदी.. मैं पूरी प्रॉपर्टी उसके नाम करके उससे शादी कर लूंगा। उसकी शादी गीता से कर दो.…. प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम से लिखवा लेना... आम का बगीचा, नारंगी का बगीचा, केले का बगीचा और खेती बाड़ी सब कुछ तुम्हारा। मैं भी इधर-उधर ना जा कर तुम्हारे बगीचे में ही काम कर लूंगी ?"

"यह सब होगा क्या ?"

"क्यों नहीं होगा ? हम कोशिश करें सब कुछ हो सकता है..."

"ठीक है दीदी तुम जाकर बाबूलाल से बात करो... मैं गीता को ठीक कर देती हूं।"

"उसको डांटना नहीं, मारना नहीं, प्यार से बात कर.. गीता को हां करने के लिए राजी करवा देना।"

गीता ने रीतिका के कहीं बातों को ध्यान से सुना ।

"गीता विश्वास ना कर सकी।

उसे बहुत आश्चर्य हुआ।

उसे एक भ्रम, आश्चर्य और खुशी तीनों एक साथ हुई।

यह वही मौसी है क्या?

मीठा-मीठा बोल रही है क्या यह मेरी मौसी ही है।

प्रेम की वर्षा करने वाली यह मेरी मौसी? यह सब सपना तो नहीं है? उसने अपने आप को चुंटी काटी। उसे दर्द हुआ।

उसे लगा यह सपना नहीं सच है।

मौसी को क्या हो गया।

किस वजह से बदली? कोई माया जादू हो गया क्या?

"क्या सोच रही हो...? तुम्हारे लिए ही खीर बनाई है... पीओ गीता..."

"नहीं चाहिए मौसी.... मुझे तो सिर्फ पानी ही चाहिए बस...."

"अब इस घर में... तुम्हें ही पहले खाना मिलेगा... तुम्हारी खाने के बाद ही... हम सब खाएंगे। तुम नहीं खाओगी तो हम भी नहीं खाएंगे.."

"मौसी..."

"इतने दिनों मुझे गाली देने वाली.. अचानक कैसे बदल गई देख रही हो क्या...?"

"नहीं मौसी... आप अच्छी हैं..."

"मैं अच्छी हूं.. शुरू में तुम्हें बहुत प्रेम करती थी... फिर जब यह दो लड़कियां पैदा हुई तब मैं बदल गई... तुम्हारा पिता भी बेकार आदमी... एक के बदले तीन लड़कियों को रखकर क्या करेंगे ऐसे उन्हें चिंता है, चिड़चिड़ाहट, क्या-क्या करेंगे इस वजह से मैं गुस्से वाली बन कर बदल गई। और मेरे सारे गुस्से को मैंने तुम पर दिखाया। गाली-गलौज से ही नहीं से मार-पीट से भी तुम्हें परेशान किया..."

"मौसी.... आपको क्या हुआ ?"

"मैंने तुमसे जो निष्ठुर व्यवहार किया है उसके लिए मैं तुमसे माफी मांग रही हूं गीता।"

"मौसी, बड़ी-बड़ी बातें मत बोलो.... मैंने कभी भी आपको मौसी नहीं समझी.. मौसी-मौसी बोलूं फिर भी मन के अंदर मां ही समझती थी....

आप मुझे कितनी भी गाली देती मारती कोई गलती नहीं... बस आप यह सब कुछ मेरे अच्छाई के लिए ही करती होंगी... आपको सारे अधिकार है मौसी..."

"मेरी राजकुमारी... तुम मुझ से इतना प्रेम और सम्मान रखती हो मुझे पता ही नहीं चला। अब सपने में भी तुमसे नाराज नहीं होंगी..."

उसने गीता को अपनी छाती से लगाया और उसे चूमा...

"गीता सिहर गई।

उसका शरीर रोमांचित हो गया।

मैं इसी प्यार के लिए तो तड़पती थी उसने ऐसा महसूस किया!

इस प्यार के लिए ही तो तड़पती थी!

इस बदलाव का ही तो मैं इंतजार कर रही थी!

रितिका का एक ही चुंबन गीता के मन को पिघला दिया... वह झूठा चुंबन था।

वह जलाने वाला।

जहरीला चुंबन।

अपने को गहरे खड्डे में डालने वाला विपक्ति कारक चुंबन है इस बात को गीता समझ नहीं सकी। उसे लगा इसी क्षण मेरा शरीर चला जाए अच्छा है।

गीता... तुम लड़का पैदा होती तो यहां वहां उधार लेकर तुम्हें मैं विदेश में पढ़ने के लिए भेज देती... तुम भी बहुत कमा कर... मुझे और तुम्हारी बहनों को गहने, कपड़े खरीद कर देती... हमें भी बिना दुख दिए बिना कष्ट के रखती और मेरे बेटियों का भी ध्यान रखती। क्या करें तुम लड़की पैदा हो गई! फिर भी... तुम ही इस घर की बड़ी लड़की हो... कुल की दीपक हो... सारे कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ तुम पर ही है, तुम्हारे बहुत सारे कर्तव्य हैं..."

"हां... ठीक है मौसी..."

"मेरे लिए... तुम्हारी छोटी बहनों के लिए तुम्हें एक काम करना है..."

रितिका ने अपने जाल को फेंका ।

"करूंगी मौसी..."

"कुछ भी हो तो करोगी क्या ?"

"हां..."

"बात से पलट तो नहीं जाओगी...?"

"आपके लिए, मेरी बहनों के लिए मैं अपनी जान भी दे सकती हूं मौसी..."

"जान देने की जरूरत नहीं.."

"फिर क्या करना है ?"

"तुम्हारी मां के फोटो के सामने शपथ लेकर... बोलो.."

टीन के संदूक में पड़े गीता की मां की एक पुरानी काली सफेद चित्र को बाहर निकाल कर रितिका लेकर आई।

"मेरी मां की शपथ खाकर मैं कहती हूं आप जो बोलेंगी मैं करूंगी।"

"तुम्हें अपनी मां के सामने लिए शपथ को छोड़ना नहीं चाहिए।"

"कौन सी बात है बोलिए ना मौसी।"

"मैं जिसे कहूं उससे तुम्हें शादी करनी है..."

"कौन है बताइए मौसी..."

"कल्याणपुरा के बाबूलाल से ।"

"कर लूंगी मौसी..."

बिना कुछ सोचे फट से गीता ने बोला...

"सच कह रही हो क्या गीता..."

"मैंने अम्मा की शपथ लिया है मौसी ! कल ही कहो तो मैं तैयार हूं...."

गंभीर आवाज से गीता के बोलते ही आश्चर्यचकित रह गई रितिका।

उसने पति के द्वारा शादी की तैयारियां करना शुरू कर दिया।

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