तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 2 S Bhagyam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 2

अध्याय 2

अपनी हाथ की घड़ी को गीता ने देखा। आठ बजकर पैंतालीस मिनट हुए।

साधारणतया आठ पैंतालिस तक लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस पुरानी बस स्टैंड को पार कर लेती है।

आज अभी तक नए बस स्टैंड से ही रवाना नहीं हुई।

"बड़े भाई साहब..."

क्लीनर पप्पू ने संकोच से बोला।

"क्या है रे ?"

"समय हो गया भैया..."

"होने दे"

"गाड़ी को निकालिए भाई साहब ! भारत ट्रांसपोर्ट की बस, स्टैंड के अंदर आ गई है। हम अभी भी रवाना नहीं हुए तो समस्या आ जाएगी। आज मूछों वाला कल्लू ही उसका ड्राइवर है। वह उतर कर मारने आ जाएगा ना।"

"कुछ भी हो मैं देख लूंगा। तुम अपने काम को करो।" चिड़चिड़ाते हुए मोती बोला।

पता नहीं कौन-कौन उस लक्ष्मी मिनी बस में आकर बैठे।

पर अभी तक गीता नहीं आई।

गीता के आने पर ही उसकी गाड़ी रवाना होगी।

साधारणतया 8:30 बजे दुकान का काम खत्म हो जाता है। 8:35 तक जल्दी से आकर गीता खड़ी हो जाती है ।

ड्राइवर अपने सामने वाली सीट पर एक तोलिया को बिछाकर रखता है। ताकि गीता के आते ही वह वहां बैठे यह उसकी इच्छा होती थी। उसकी यह बहुत दिनों की इच्छा है।

परंतु गीता एक दिन भी वहां नहीं बैठी। कोई भी बड़ी बुजुर्ग औरत को वहां वह बैठा देती।

वह अपने झुके हुए सर को ऊपर नहीं उठाती। मोती उसे तिरछी निगाहों से देखते हुए बस को चलाता। बस के स्पीकर में तेज आवाज में ह्रदय को उकसाने वाले प्रेम गीत को चलाता था।

किसी पर भी गीता ध्यान नहीं देती थी। आधे घंटे में मनोहरपुर आ जाएगा। वह उतर कर बिना मुड़े ही सीधी चली जाती थी । उसने कभी मोती से एक शब्द भी बात नहीं की‌। उसने कभी उस पर एक नजर नहीं डाली। कभी मुस्कुराई तक नहीं। चूड़ियों के दुकान में काम करने वाली नम्रता, फोटोस्टेट की दुकान में काम करने वाली अर्पिता, मोबाइल की दुकान में काम करने वाली आरती सभी इसी मिनी बस में ही चढ़ते थे। वे सब बस से उतरने तक हंसती रहती थीं।

हर एक का मजाक बनाकर मस्ती से रहती थी । मोती से भी जबरदस्ती बात करती थीं ।

"ड्राइवर को हम लड़कियां अच्छी ही नहीं लगती है । उस नकचढ़ी को ही देवी मानता हैं।"

"रोज उसके लिए जगह रिजर्व करके रखता है देखा ?"

"वह नखरे वाली तो बैठती ही नहीं।"

"तुम चूड़ी की दुकान में..., यह फोटोस्टेट की दुकान में... मैं मोबाइल की दुकान में काम करते हैं। सिर्फ वही कीमती आभूषण के दुकान में काम करती है। ड्राइवर को ब्रेसलेट, चैन, अंगूठी आदि भी ले कर दे सकती है। उस लालच में पड़ा है दिखता है।"

वे जान बूझकर इस तरह की बातें करतीं थीं ।

ड्राइवर के पीछे खड़े होकर इस तरह व्यंग्य बाणों को चलाते हुई मोती को परेशान करतीं थीं ।

मोती, गीता से प्रेम करता है यह सच है।

तीन साल से गीता को अपने प्राणों से भी ज्यादा चाहता था। उसके लिए तड़पता था। उसके लिए अपने आप को गलाता रहता भी था।

उसके लिए दुखी भी होता था।

गीता को कुछ पता नहीं था । वह मुड़कर देखती भी नहीं। ये बात उन जवान लड़कियों को मालूम थी। इसीलिए व्यंग्य बाण छोड़ती रहती थी।

"मनोहरपुर आने तक ही प्रेम गीत बजता हैं। फिर...."

"फिर...?"

"बाद में विरह के गीत ही....."

"इसका अंत कहां जाकर होगा ?"

"ड्राइवर दाढ़ी बढ़ाए तो अच्छा लगेगा ?"

मोती बात ही नहीं करता। मुस्कुरा देता। उसे गीता के साथ मिला कर बात करना उसको अच्छा लगता था।

"इन युवा लड़कियों को मेरा दुख समझ में आता है। मेरे प्रेम का पता चलता है। परंतु जिस को मालूम होना चाहिए उसको मालूम नहीं हो रहा हैं । सचमुच पता नहीं है ? या नहीं मालूम होने का नाटक कर रही है?" भारत ट्रांसपोर्ट भारी आवाज के साथ बस स्टैंड के अंदर घुसी। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस के पास टकराते हुए खड़ी हुई।

"मोती.... बस को चलाओ भाई"

बस कंडक्टर हनुमान परेशान हो दौड़कर आया।

"भैया.... पाँच मिनट ठहर जाओ "

"खेल रहे हो क्या मोती ? अब एक मिनट भी यहां ठहर नहीं सकते।" हनुमान घबराया।

मोती जवाब ना दे सकने के कारण परेशान हुआ।

"गीता तुम्हें क्या हुआ ? जल्दी आ जाओ ना। तुम्हें छोड़कर चले जाए तो तुम्हें तीन किलोमीटर चलना पड़ेगा।"

"मोती वह लड़की अभी भी नहीं आई क्या ?"

"हां भैया"

"तुम गाड़ी को चलाओ। धीरे-धीरे चलते रहो। सामने आए तो चढ़ जाएगी। नहीं तो पुराने बस स्टैंड में खड़ी होगी" वह बोला।

हनुमान को मोती के प्रेम के बारे में पता था। उन्होंने भी बहुत समझाया।

"मोती तुम्हें यह प्रेम नहीं करना चाहिए ! मैं भी देखता ही रहता हूं। वह लड़की तो तुम्हें मुड़ कर भी नहीं देखती। क्यों तड़प रहे हो ? दूसरी लड़की.... नहीं मिलेगी ?"

"दूसरी लड़की मिल जाएगी। परंतु गीता जैसी लड़की नहीं मिलेगी।"

"जब तुम उस पर इतना मरते हो तो तुम्हें उस लड़की को अपने प्रेम के बारे में बताना तो चाहिए ना ?"

"बताना है"

"कब"

"समय आने पर बताऊँगा।"

"वह समय कब आएगा ?"

"मालूम नहीं"

मोती अपने होंठ को पिचका देता।

"तुमसे बात करूँ तो मैं पागल हो जाऊंगा। छोड़ो।" हनुमान बात करके परेशान हो गया। मोती के दृढ़ता और विश्वास पर उसे आश्चर्य हुआ।

"बीड़ी, सिगरेट, शराब कोई भी तो गलत आदत उसमें नहीं है। ऐसा एक आदमी को ढूंढ निकालना मुश्किल है। उस लड़की का भाग्य ही खराब है। इसीलिए तो वह मोती को मुड़ कर भी नहीं देखती।"

वे अपने अंदर ऐसे गुनगुनाती।

बिना गीता के आए ही मिनी बस को मोती ने रवाना किया। देर से रवाना होने के लिए जान बूझकर पूरे बस स्टैंड का एक चक्कर लगाकर तब रवाना हुआ।

फिर भी गीता नहीं आई।

मिनी बस धीरे-धीरे रवाना हुई।

"क्यों री बस कछुए की चाल चल रही है !" मोती के पीछे खड़ी आरती बोली।

"जिसे आना चाहिए वह नहीं आई ना। इसीलिए ड्राइवर सर का मूड ऑफ हो गया ऐसा लगता है।" अर्पिता व्यंग्य से हंसी।

"क्यों री आज आभूषण के दुकान वाली नहीं आई क्या ?" नम्रता बोली।

"सुबह तो काम पर आई थी।"

"फिर आधे दिन की छुट्टी लेकर चली गई होगी ‌"

"ऐसे ही होगा।"

"ड्राइवर साहब कोई गाना लगाओ ना ? हम नहीं सुनेंगे क्या? हमारे भी कान हैं?"

मोती को आरती छेंड़ती ।

"डी. वी. डी. प्लेयर खराब है।" मिनी बस पुराने बस स्टैंड पहुँच गई।

"झूठ बोल रहे हो।"

"रिपेयर है तो छोड़ो ना। क्यों परेशान कर रही हो। चाहे तो उतर जाओ। गाने बजाने वाले बस पर चढ़ जाओ।"

अचानक चिड़चिड़ा कर वह बोला।

"क्यों आरती तुम्हें इसकी जरूरत थी क्या ? वह देवी नहीं आई तो दुख में हैं। तुम अलग परेशान कर रही हो।" अर्पिता उसके कंधे से टकराकर बोली।

मिनी बस पुराने बस स्टैंड में आकर खड़ी हुई, भाग कर आ कर गीता चढ़ी।

वह पसीने से तरबतर हो गई थी।

वह बुरी तरह हांफ रही थी। गीता को देखकर एकदम से मोती का चेहरा खिल गया। उसका गुस्सा एकदम से गायब हो गया।

करोड़ों-करोड़ों तितलियां उसके चारों ओर उड़ रही है ऐसा उसे महसूस हुआ।

'बसंत ऋतु आ.. आ.. आ.. इस गाने को चलाया।

डी.वी.डी. प्लेयर ऑन किया।

"डी.वी.डी. प्लेयर खराब है आपने बोला? अब कैसे ठीक हो गया? हम भी पैसे देकर ही इस बस में आते हैं। पता है?" आरती गुस्से से बड़बड़ाई ।

मोती कंधों को उचकाते हुए हंसा।

उसके अंदर उत्साह आ गया था अब वह मिनी बस को तेज दौड़ा रहा था।

गीता के लिए जो जगह उसने रिजर्व कर रखा था वह खाली पड़ी थी वहाँ कोई नहीं बैठा।

गीता के आते ही अपने तौलिए को मोती ने उठा लिया।

गीता उस पर नहीं बैठी।

"दादी.... तुम आकर बैठो।"

उसने एक बुढ़िया को वहां बैठाया। ऊपर के राड को कस कर पकड़ लिया।

"मैं जिस फूल को ढूंढ रहा था... एक दिन शाम को खिला" बस का दूसरा गाना शुरू हो गया। आरती, अर्पिता और नम्रता एक दूसरे को इशारा करके हंसने लगीं।

"चुप रह री ! हमें क्या करना है?"

जलन की वजह से नम्रता बोली ।

किसी भी बात की परवाह ना करके कंडक्टर हनुमान से "एक मनोहरपुर टिकट" खुल्ले पैसे गीता ने दे दिए।

*****