अध्याय 6
रात 9:00 बजे।
अंधेरे को चीरते हुए मिनी बस जसवंतपुरा के पास पहुंच रही थी।
गांव का रास्ता सकरा खड्डे वाला उबड़-खाबड़ रास्ते से जाने के कारण लोग उछल-उछल पड़ते। जसवंतपुरा में जाकर बस खड़ी हुई।
अब दूसरे दिन सवेरे ही यहां से चलेगी।
आज मोती ने ही बस चलाई थी।
कल दूसरा आदमी आएगा।
कल पूरे दिन मोती को आराम है। घर में ही रहेगा। गीता उसके बात को मान ले तो बस सब हो जाएगा।
कल ही अम्मा के साथ जाकर लड़की मांग लेंगे। 'बार-बार तिरछी आंखों से गीता को देखते हुए मिनी बस को चला रहा था मोती। मिनी बस में भीड़ बिल्कुल नहीं थी।
गीता और कुछ लोग ही बस में बैठे थे। बस में भीड़-भाड़ नहीं थी। गीता अपने सर को झुकाए ही बैठी रही। थोड़ी देर पहले ही खिले कमल के फूल जैसा चेहरा। मछली की जैसी आंखें।
हिल-हिल के ही हजारों कहानी बोलने वाली उसके झुमके और कानों पर आए लटे। ऊपर से पोनीटेल।
कभी सिर पर एक गुलाब लगा लेती है तो भी अच्छा लगता है नहीं लगाए तो भी अच्छा लगता है। उसके गले में 5 रुपये की मोती की माला। पहने मोती को लगता वह करोड़ों रुपए का है।
'गीता मेरे पत्र को लेकर पढ़ी होगी क्या ? मेरी कविता समझ में आई होगी क्या?
मेरे प्रेम को समझी होगी क्या?
मेरी तड़प, मेरी आसक्ति के एहसास को समझेगी?
अपनी सहमति देगी क्या?
मोती को बहुत घबराहट हो रही थी।
"जसवंतपुरा के लोग उतरिए..." सीटी बजाकर हनुमान ने आवाज दी।
एक-एक करके उतरने लगे।
"अरे... जाकर पूछ। जाकर पूछ..." क्लीनर पप्पू से धीरे से बोला मोती।
गीता उठी।
वही आखिरी यात्री थी।
वह सीढ़ी पर खड़ी हुई।
"दीदी.... मोती भैया के पत्र को पढ़ा क्या.." धीमी आवाज में पूछा।
गीता बिना जवाब दिए मिनी बस से नीचे उतरी।
"जवाब देकर जाओ दीदी..."
जसवंतपुरा में सिर्फ एक लाइट पीली हल्की जल रही थी। पास में रहे ठेली वाले दुकानों को बंद कर रहे थे।
बस से उतरे यात्री अपने-अपने रास्ते चलने लगे, गीता के पीछे ही गया पप्पू।
"दीदी... मोती भैया को मैं क्या जवाब दूं....."
"मेरे मन में कुछ भी नहीं है जाकर बोल दो...."
"दीदी..."
"दूसरी बार इस तरह का लेटर दें...
तो फिर मैं इस बस में नहीं चढ़ुगीं। दूसरी बस में चढ़कर पैदल आ जाऊंगी।"
गुस्से से बोल कर, मुड़ कर भी ना देख, अपने घर के दिशा की ओर चलने लगी।
स्तंभित होकर खड़ा रहा पप्पू।
जसवंतपुरा में मिनी बस को आधा रोड काट कर मोती ने घुमाया।
अब मिनी बस के सेंटर जाने तक इसमें कोई यात्री नहीं चढ़ेगा बस खाली ही जाएगी।
सीटी बजाने के साथ ही आखिर के यात्री के उतरते ही पैरों को लंबा करके हनुमान कंडक्टर लेट गया।
मूर्ति के सामने एक सीट पर आकर क्लीनर पप्पू बैठा।
"गीता ने क्या बोला रे"
"मेरे मन में कुछ नहीं है वह बोली..."
"फिर..."
"अब इस तरह का पत्र कोई दें... तो अपने बस में वह नहीं चढ़ेगी....।"
"ऐसी बोली क्या ?"
"हां भैया... वह लड़की तुम्हारे लिए ठीक नहीं.... उसे भूल जाओ भैया..."
"अबे..." वह गुस्से में आ गया।
"अम्मा को बोलकर दूसरी लड़की देखने को बोलो भैया...."
"नहीं हो सकता। इस जिंदगी में मेरी शादी होगी... तो सिर्फ गीता से...!"
मोती बड़े वैराग्य से बोला।
"तुमको हम सुधार नहीं सकते भैया" कहकर पप्पू भी दूसरी जगह जाकर सो गया।
तालाब के रोड पर मिनी बस तेज चल रही थी।
'हो सकता है क्या ?
गीता को फिर से बोल सकते हैं क्या ?
सोच भी नहीं सकता ऐसे ही छोड़ सकते हैं क्या?
अभी तक दिल में ताला लगा कर रखें इच्छाओं का क्या करें?
भूलने के लिए मैंने प्यार किया?
मिटाने के लिए ही मैंने सपनों को संग्रहित किया?
जलाने के लिए क्या मैंने फूलों को इकट्ठा किया?
तोड़ने के लिए कि मैंने कांच का प्रेम महल बनवाया?'
अब मोती के मन में एक तूफान सा छा गया।
"खाना खाओ, मोती" घर के अंदर से सविता ने पूछा।
"नहीं चाहिए मां"
"क्यों नहीं चाहिए रे... आते समय होटल पर कुछ खाकर आ गया क्या ?"
"नहीं अम्मा"
"तझसे तो भूख सहन नहीं होती..."
असमंजस में लड़के को सविता ने देखा।
उसने रुपयों को भगवान के आले में रखकर संदूक से एक लूंगी लेकर मोती ने कपड़े बदले।
उसका चेहरा असामान्य था।
"तुझे पसंद है इसीलिए आज पूरी और आलू मटर की सब्जी मैंने बनाई है। तू मना कर रहा है..."
सविता ने बहुत मनोहार किया।
"भूख नहीं है..."
"क्यों भूख नहीं है ? बस में कोई समस्या थी क्या? कोई पीकर परेशानी खड़ी किया क्या?"
"नहीं"
"फिर?"
"मन ठीक नहीं है।"
"मन ठीक नहीं ? उस लड़की ने डांटा क्या?"
मोती बिना बोले चुप रहा।
"बोल रे.... उस लड़की से बात कर ली ?"
"मैंने बात नहीं की... पप्पू से बात करने को बोला"
"क्या बोली.."
"उस लड़की के मन में कुछ भी नहीं है ऐसा बोल दिया..."
जो हुआ उसको मोती ने पूरे विस्तार से बता दिया।
"यही तेरी समस्या है क्या ? इसीलिए भूख नहीं लग रही... खाना नहीं चाहिए बोल रहा है क्या?"
"हां"
"गीता एक वयस्क लड़की है। बड़ी समझदार पारिवारिक लड़की है। अपनी मौसी से डरने वाली लड़की है। वह हमेशा सिर झुका कर रहती है। तुमने ही मुझसे कई बार कहा। ऐसी लड़की से प्रत्यक्ष में जाकर पूछो तो उसे पसंद नहीं आया, मेरे मन में कुछ नहीं है यही बोलेगी..."
"फिर क्या करें अम्मा ?"
"उस लड़की से अब कुछ मत पूछो। कल तुम और मैं दोनों उसके घर जाकर, गीता के मौसी से लड़की मांगेंगे...."
"अम्मा..."
उसकी आंखों में फुलझड़ी जलने लगी।
उसकी आवाज में तबले की ध्वनि सुनाई दी। उसके मन में वर्षा होने लगी।
उसके शरीर में एक उत्साह फैल गया।
"अब खुश है ना ?"
"खुश हूं..."
"बड़े लोगों के पास पूछने वाली बात को एक छोटे लड़के से कहकर पूछवाना बहुत गलत है।"
सविता ने एक दीर्घ विश्वास छोड़ा।
"मुझे नहीं बोलना चाहिए इसलिए पप्पू से पूछने को बोला..."
"ठीक है अब फिक्र छोड़...! वैसे भी कल उनके घर हम जा रहे हैं ना...."कहते हुए हाल ही में दो पूरी और सब्जी रख कर उसे सविता ने दिया।
"खा ले रे"
"अम्मा..." उसने अम्मा को देखा।
"सब अच्छी तरह से होगा। मैं सब कुछ कर दूंगी...." आश्वासन देने वाली अम्मा को आंखों से देखते हुए उसने खुशी से पूरी खाना शुरू कर दिया ।
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