अध्याय 5
"पुरानी बस स्टैंड वाले सब लोग उठ जाइए।"
कॉन्टैक्टर हनुमान ने आवाज दी।
उसके पहले स्टाप पर ही बहुत से लोग उतर गए थे ।
गीता और कुछ लोग ही सिर्फ उस बस में बैठे थे। पुराने बस स्टैंड में मिनी बस के रुकते ही गीता दोनों हाथ को फैला कर उठी।
"जल्दी से ले जा कर दे रे" क्लीनर पप्पू से धीरे से बोला मोती।
मोती के दिए पत्र को अपने शर्ट के पोकेट से बाहर निकाला पप्पू ने और गीता के पीछे जल्दी-जल्दी जाने लगा।
"दीदी" धीरे से बुलाया।
नीचे उतरी गीता तुरंत मुड़ी।
"इसे ड्राइवर मोती भैया ने आपको देने के लिए बोला।"
जल्दी में ही गीता के हाथों में देकर लपक के मिनी बस में चढ़ गया।
"भैया ठीक चलो"
बड़े उत्साह से उसने सीटी बजाई।
गीता पसीने से तरबतर हो गई।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पप्पू के दिए हुए, मुड़े हुए कागज को डरते हुए, चौंक कर देखा।
उसकी कुछ भी समझ में नहीं आया।
किसी ने देखा होगा क्या?
कुछ भी समझ में नहीं आया।
"ड्राइवर मोती भैया ने आपको देने के लिए बोला दीदी"
पप्पू की आवाज साफ उसके कानों में गूंज रही थी।
लोगों की भीड़ थी।
नहीं तो उसी जगह उस पत्र को फाड़ कर फेंक देती।
जल्दी से उस पत्र को अपने हैंडबैग के अंदर रख दिया।
सुराणा ज्वैलर्स की तरफ चलने लगी। दोपहर को 2:00 बजे से 3:30 बजे तक आभूषण की दुकान पर बहुत भीड़ थी।
वहां काम करने वालों का लंच टाइम वही होता है।
सभी को भूख लगने लगी।
गीता ने जल्दी से खाना खाया। टिफिन बॉक्स को वाश बेसिन में धोया। पप्पू के दिए हुए कागज हैंड बैग में रखा था। उसे चुपचाप बाहर निकाली। नीचे के मंजिल में जो बाथरूम था उधर जाने लगी। उसे फाड़कर फेंकने के लिए खोला। उसके टुकड़े-टुकड़े करने के पहले उसमें क्या लिखा है देखने की उसे उत्सुकता हुई।
'पढ़े या ना पढ़े ?'
कई-कई बार सोचा।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी उंगलियां कांपने लगी। मौसी रितिका उसकी आंखों के सामने आकर खड़ी हुई उसे ऐसा लगा । उसकी धड़कन बढ़ गई।
'यह सब मौसी को पता चले तो मुझे नौकरी पर नहीं भेजेगी'
'बाहर भी जाने नहीं देगी।'
'साधारणतया अपने शब्दों से हृदय को छेदने वाली, यह बात पता चले तो चुप रहेगी क्या ? मुझे मार डालेगी। जिंदा जला देगी।
'मौसी को पता चले हैं तभी समस्या है ? मैं तो पढ़ते ही उसे फाड़ कर फेंक दूंगी?"
उसने कागज को खोला।
टेढ़े मेढ़े अक्षरों में मोती के लिखे कविता पर उसकी आंखें चली गई।
'मेरा हृदय !
इसे टुकड़े टुकड़े करने के पहले
एक बार इसे पढ़ लो!
उसके बाद मोटे अक्षरों में शुरू हुआ।
आगे पढ़ी।
आंखों के रास्ते
कब तुम
दिल में उतर गई
मैं जान ही न पाया।
तुम्हारी झुकी आंखों ने
कभी ना देखा
मेरी आंखों के दर्पण में
अपना चेहरा।
एक बार भर नजर
देखो मुझे
तो जान पाऊं मैं
क्या मैं भी
तुम्हारे दिल में हूं?
यह जान तुम्हारे लिए
यह शरीर तुम्हारे लिए
यह पूरा संसार हम दोनों के लिए ही है
गीता तुम्हारे मन में मैं हूं कि नहीं?
आज ही बता दो
तुम्हारे जवाब को!
हजारों-हजारों सोच में
मोती
ड्राइवर, लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट।
पूरा पढ़ने के बाद उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे मोती जैसे चमकने लगी।
कविता लिखे हुए कागज को जल्दी से टुकड़े टुकड़े किया। फटे हुए कागज के टुकड़ों को टॉयलेट में डाल दिया और पानी चला दिया।
'गीता तुम्हारे दिल में मैं हूं या नहीं?
आज ही बोल दो तुम्हारे जवाब को।
हजारों-हजारों सोच के साथ तुम्हारा मोती'
आखिर के शब्द बार-बार उसके कानों में गूंज रहे थे। मोती उसके आंखों के सामने आकर गया।
सुंदर गोल चेहरा, घूंगराले बाल जो माथे पर मंडराते हैं।
हमेशा कुछ कहती हुई विशाल आंखें। तीखी, लंबी नाक।
ऐठी हुई मूछें। नीचे का होंठ थोड़ा मोटा।
हंसते समय चमकते हुए सफेद दांत।
टाइट आधी बाहों का शर्ट। गले से चिपका एक सोने की चेन।
पता नहीं कभी एक बार उसे गीता ने देखा था। उसका नाम मोती है यह भी उसे पता नहीं था ।
उसकी निगाहें, नटखट हंसी, अपने से जबरदस्ती बोलना, उसे उत्तेजित किया था ।
उसके समझ में नहीं आया ऐसा नहीं।
समझती है।
मैं उसके लिए लालायित हूँ उसकी समझ में आता है।
मोती सुंदर है।
मोती बीड़ी सिगरेट कुछ भी नहीं पीता।
मोती किसी भी लड़की से हंसकर बातें नहीं करता।
मोती साफ सुथरा आदमी। रोजाना मिनी बस में चढ़ते हुए,
उसका ह्रदय उसकी तरफ जाते हुए उसने महसूस किया, दूसरे ही क्षण उसे कठोर लोहे के सांकलों से अपने आप को बांध लिया था ।
मिलेगा तो सोच सकते हैं।
बात पूरी होगी तो इच्छा रखनी चाहिए।
यह प्रेम नहीं मिलेगा।
यह इच्छा पूरी नहीं होगी।
सोच कर, मिलकर, आशा रखकर, फिर निराशा में डूबो तड़पो परेशान हो आखिर में सिर में चोट लगने के सिवाय कुछ नहीं....
पूरी जिंदगी ठीक ना होने वाली वेदना से आंसू बहाने से...…
शुरू में ही दूर रहना अच्छा है।
इसलिए गीता उसे कभी भी नहीं देखती थी।
'उसे पनपने नहीं देना चाहिए'
'मेरे मन में कुछ भी नहीं है आज ही पप्पू से बोल देना चाहिए'
गीता ने सोच कर अपने आप में एक फैसला कर लिया ।
******