अध्याय 7
घर में कोई नहीं था।
राकेश जी खेत पर चले गए।
सिर्फ रितिका ही थी। जर्सी गाय के दूध को निकाल रही थी। इसका दूध बहुत ही स्वादिष्ट और शरीर के लिए अच्छा होता है।
इसको वह खूब उबालकर गाढ़ा कर पूरा स्वयं पी जाती थी।
उसकी जो राक्षसी शक्ति थी शायद उसका कारण यही था।
गाय ने तीन बछड़े को जन्म दिया | इस गाय जिसका नाम लक्ष्मी था।
इन बछड़ों के लिए भी दूध ना छोड़ कर पूरे दूध को दोह लेती थी।
बाहर से कोई आवाज आई।
वह जल्दी से बाहर आई।
एक बाइक बाहर खड़ी थी। मोती और सविता नीचे खड़े हुए थे।
मोती को और सविता को रितिका ने भौंहों को ऊंचा कर उन्हें देखा।
मोती को वो जानती थी।
जब कभी मिनी बस से आती-जाती तब उसे देखा था।
'यह आदमी मिनी बस का ड्राइवर है ! यह अपने घर क्यों आए हैं?'
उसके मन में असमंजस था।
अपने कमर में हाथ रखकर उन्हें उसने घूर कर देखा।
सामान्य शिष्टाचार वश भी उन्हें 'आइए' कहकर भी नहीं बुलाया।
"किसे ढूंढ कर आए हो...?"
"आपसे मिलने ही आए हैं।" सविता बोली।
थैले भर के लाए हुए फलों और मिठाई को उन्हें दी।
"इसे ले लीजिएगा।"
"यह सब क्यों ?"
"अच्छी बात शुभ बात करने आए तो फल मिठाई लेकर ही तो आते हैं ना...?"
"शुभ समाचार...? रितिका ने अपने भौंहों को फिर ऊपर चढ़ाया।
"अंदर चलकर बात करें...?"
दोनों अंदर आए।
बड़ा सा खपरैल वाला घर था।
चौड़ाई लंबाई खूब थी। काफी खुली जमीन थी । कुर्सी वगैरह कुछ नहीं था। एक बेंच पड़ा था।
दीवार पर ब्लैक एंड वाइट के बहुत से फोटो लगी हुई थी।
मोती और उसकी मां सविता बेंच पर बैठ गए। रितिका नफरत से उन्हें देख रही थी।
"मेरा नाम सविता है। यह मेरा लड़का मोती है। आपकी गांव की तरफ से आने वाले लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट में मेरा बेटा मिनी बस का ड्राइवर है..."
"मैंने देखा है।
उसका दिल धड़कने लगा।
'सुंदर दामाद, प्यारी सास... दोनों ही बहुत अच्छे दिख रहे हैं। छोड़े तो अभी यह लोग तुरंत गीता को लेकर चले जाएंगे ऐसा लगता है ! उस दरिद्र का ऐसा एक सौभाग्य? नहीं। ऐसा नहीं होना चाहिए। गीता को एक ऐसे परिवार में शादी करके नहीं भेजना चाहिए.... बिना किसी समस्या के उसे शांति से जीने नहीं देना चाहिए....'
उसमें ईर्ष्या की भावना जागृत हो गई थी ।
खराब सोच भी जागृत हुई।
उनको भगाने की तैयारी करने लगी।"
"क्या.. पहने कपड़े से ही भेजना है? रूपए, पैसे होने पर कुछ भी बात करोगी क्या? खपरैल के मकान को देखकर इनके पास कुछ भी नहीं है ऐसे सोच लिया क्या? पहले लड़की दे दो बस कहोगे.... फिर घर में रहने वाले सभी चीजों पर निगाहें रहेगी.... तुम्हारे जैसे बहुत से लोगों को मैंने देखा है...." वह सांप जैसे फुफकारने लगी।
हम लोगों को तड़पाने के लिए ही ऐसी बातें कर रही है उनके समझ में आ गया।
"आप गलत समझ रही हो ?”
"कैसे भी बोलो तो मुझे क्या है ? मैं अभी उसकी शादी नहीं करने वाली। 20 साल की तो है। और सात-आठ साल बाद ही उसकी शादी करूंगी। मुझे छोड़ो भाई। पहले इस जगह को खाली करो...."
"आप एक लड़की हैं। आपकी दो लड़कियां और हैं। आप मन के विरोध को त्याग कर, समानता से आप बात करें तो सभी के लिए अच्छा है..."
"श्राप दे रही हो क्या ?"
"अरे अरे नहीं... मैं क्यों श्राप दूंगी ? मुझे जो लगा मैंने कह दिया। हम आपके यहाँ लड़की मांगने आए हैं। झगड़ा करने नहीं आए।"
शांति से सविता ने बात की।
"क्यों झगड़ा करके तो देखो...."
"आप ऐसे कैसे बोल रही हो ?"
"फिर कैसे बोलूं ? लड़की नहीं है तो चुपचाप चले जाना चाहिए ना? दुनिया में कोई और लड़की नहीं है क्या?"
"थोड़ा सोच कर देखो मां.. गीता की मेरे लड़के से शादी करवा दो तो वह... सिर्फ दामाद ही नहीं आपका बेटा बनकर रहेगा ।"
सविता ने बहुत ही नम्रता से बात की।
ताकि किसी तरह भी रितिका मान जाए । मोती के इच्छा को पूरा कर देना चाहिए । गीता मेरी बहू बन कर आना चाहिए उसने ऐसा सोचा ।
मोती के प्रेम के आगे वह सब अपमानों को सहने के लिए तैयार थी।
"मिनी बस चलाने वाले को चरवाहा बनने की क्या जरूरत ? नहीं हो सकता है तो छोड़ दो?"
"कांट कर फेंक दिया जैसे बातें मत करो अम्मा.... कहो तो हम गीता के लिए एक साल... या दो साल... रुक सकते हैं।"
"एक बार बोले तो आपकी समझ में नहीं आता ? गीता की अभी मैं शादी करने वाली नहीं! आप भले ही कितने साल रुकी रहो मैं आपको गीता नहीं दूंगी। आने दो उस गधी को यह सब उसका किया धरा है।" वह दांतों को पीसने लगी।
"गीता को कुछ भी नहीं पता। हम अपने आप आए। आप मेरा रिश्ता गीता से मत करो तो कोई बात नहीं परंतु जो मुंह में आए मत बोलिए। गीता के मन को मत दुखाओ।"
मोती दोनों हाथों को जोड़कर बोला।
"अरे रे ! ड्राइवर साहब को गीता के ऊपर बहुत ही प्यार टपक रहा है । उसको खिला-पिला कर बड़ा मैंने किया है। उसे डांटने का, उसे मारने का मुझे अधिकार है। आभूषण के दुकान पर जा रही हूं कहकर आप लोगों को उसने प्रभावित किया है! कांटे के पेड़ को काट के ही बढ़ाना चाहिए। लड़कियों को ठोक बजाकर ही बड़ा करना चाहिए। नहीं तो कुल का ही नाश हो जाएगा।" रितिका जोर-जोर से चिल्लाई।
"अम्मा... चलो मां चलते हैं।
मोती और उसकी मां उठ गए।
"इसे पहले ही कर देते तो।"
उनके साथ बाहर तक रितिका स्वयं भी आई।
सविता ने उसे आंख उठाकर भी नहीं देखा।
"वह लड़की कितने साल इसके साथ कैसे रही होगी....?"
उसे गुस्सा और रोना एक साथ आ रहा था उसने बाइक को किक मारकर स्टार्ट किया।
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