अध्याय 4
"मनाली यहां आना।" गीता बड़े प्यार से बुलाई।
"क्या बात है दीदी।"
"आ बच्चे में बताती हूं।"
हाथ में रखे पुस्तक को उल्टा रखकर मनाली उठी। एक छोटे से आभूषण की डिबिया को मनाली को गीता ने पकड़ाया।
"यह ले लो ।"
"यह क्या है दीदी ?" असमंजस से पूछा मनाली ने।
"ले कर देखो।"
आभूषण के डिब्बे को लेकर खोला।
डिब्बे में दो ग्राम का सोने की चेन थी।
शुद्ध के. डी. एम. सोना होने के कारण चमाचम चमक रहा था।
"किसके लिए है यह चेन ?"
"तुम्हारे लिए ही है।"
गीता ने उसके हुक को उतार कर मनाली के गले में पहना दिया।
"दीदी जो रुपए तुम कमाती हो उसे लाकर पूरे के पूरे कवर को ही अम्मा को दे देती हो। फिर आपके पास चेन लेने के लिए पैसे कहां से आए ?"
"रोजाना जो ग्राहक आते हैं वे जो सोना खरीदते हैं उसमें से कुछ परसेंटेज मालिक हम लड़कियों को देता है। जो रोजाना कम से कम 50 तो होता है। उसी मैं लेती नहीं थी और मालिक को ही जमा करने को कह दिया था। अब एक साल हो गया उन रुपयों से तुम्हारे लिए मनाली मैंने चेन खरीद ली।"
"तुम्हारे पैसे से तुम ने खरीदा उसको मुझे क्यों दे रही हो दीदी ? दीदी आप ही अपने गले में पहनों।" मनाली ने अपने गले में पहने हुए चेन को उतारने की कोशिश करने लगी।
"नहीं मनाली।"
"दीदी"
"मुझे तो मोती के माला ही पसंद है। अब तुम सफेद मोती के हार मत पहनो ! तुम्हारे गले में ही यह हार सुंदर लगता है।"
इन दोनों की बातों को सुनकर रसोई के अंदर काम करने वाली रितिका भाग कर बाहर आई।
वह काली, मोटी, और उसके सारे बाल सफेद थे और उसका चेहरा भी बहुत भयंकर लग रहा था। जिसमें शांति का भाव बिल्कुल नहीं था। चेहरे पर गुस्सा और कठोरता छाई हुई थी।
"अरी.... उस हार को उतार।"
मनाली को डांटते हुए उसने कहा।
"अम्मा।"
"उतारने को कह रही हूं ना ?"
मनाली जल्दी से उसे उतारने के लिए रितिका के पास आई।
उसे लेकर छूकर घूर कर रितिका ने देखा। फिर नफरत से गीता की तरफ घूमी।
"निकम्मी तेरे में अक्ल है क्या ?"
"मौसी"
"खरीदा तो खरीदा, तीन ग्राम का तो खरीदती और नगीने जड़े हुए होते तो कम से कम मैं पहनती ? केवल दो ग्राम का लेकर आई है?" रितिका चिड़चिड़ाते हुए बोली।
"तीन ग्राम के लिए बहुत ज्यादा रुपए चाहिए ना मौसी।"
"अच्छा छोड़। अब कुछ भी लेकर आए तो मेरे हाथ में देना। तू बहुत बड़े आदमी जैसे उसके गले में पहना दिया। पढ़ने वाली लड़की कहीं घुमा कर आ जाएं तो वह फिर मिलेगा क्या ?"
उसने उस चेन को आभूषण के बक्से में रखा और उसे अपने लोहे के संदूक में रखकर ताला लगा दिया।
"दीदी"
कमला ने गीता के कंधे को झकझोरा। बड़ी फ्रॉक पहनी हुई थी। दो चोटी की हुई थी और जिसे मोड़ कर बांधा हुआ था।
"बोल कमला"
"सिर्फ मनाली को चेन लेकर आई हो ! मैं भी तुम्हारी छोटी बहन हूं ना मेरे लिए कुछ नहीं?"
"तुमको क्या चाहिए कमला ?"
"अंगूठी"
"तीन महीने ठहर जाओ जरूर ले कर दूंगी"
"सचमुच में दीदी ?"
"सचमुच में कमला"
"हाय मुझे दीदी ने अंगूठी लेकर देने को बोला है" जोर से चिल्लाते हुए कूदते-फांदते भागी कमला।
उसे स्वयं को प्रेम, प्यार नहीं मिला है इस वेदना को छोड़कर जितना वह दूसरों को दे सकती है उतना प्रेम, प्यार और खुशी बांटती है।
यह एक समझौते का विषय है।
यह एक तृप्ति कारक भाव है।
मनाली और कमला दोनों निष्कपट हैं। रितिका जैसे वे दोनों खराब नहीं है।
वे दोनों जोर से बोलने से भी डर जाती थी।
उन दोनों को गीता ने ही बचपन से गोदी में खिलाया है।
गीता अपनी दोनों बहनों पर जान छिड़कती थी। उन्हें अपने आंखों का तारा समझती थी।
"अरे गीता वहां पर क्यों स्तंभित होकर खड़ी है री ? सोने की चेन लेकर आ गई है इसीलिए झूले में बैठाकर नहीं झूला सकते। गधा हमेशा गधा ही होता है। आकर पिछवाड़े में पड़े जूठे बर्तनों को साफ कर दे ।" कर्कश आवाज में बोली रितिका।
"अभी आई मौसी ।"
डर कर भागी गीता।
मोती के लेकर दिए हुए बिरयानी को कंडक्टर हनुमान, पप्पू क्लीनर दोनों ने बड़े चाव से खाया।
"भाई साहब आज कोई विशेष बात है ?" बड़ी उत्सुकता से पप्पू ने पूछा।
"हां"
"आपका जन्मदिन है ? वह उछलने लगा।
"नहीं"
"और क्या है भाई साहब?" वे पीछे पड़ गए।
"और क्या ? वह लड़की गीता ने तुम्हारे प्रेम को मान लिया?"
"नहीं रे"
"जन्मदिन भी नहीं है, उस लड़की गीता ने तुम्हारे प्रेम को स्वीकार भी नहीं किया। फिर किसलिए यह सब ? कोई खुशी की बात हो तो ही खा सकते हैं। मिल रहा है इसीलिए पूरे मन से नहीं खा सकते भैया।"
बिना खाए आधे में ही पप्पू उठा तो उसके पीठ पर प्रेम से एक मुक्का मोती ने मारा।
"अबे बहुत नखरे मत कर ? चुपचाप बैठ कर खा। शांति से बैठ कर खा रहे हनुमान ने भी गर्दन को ऊपर किया।
"हमें वैसे ही बिरयानी लेकर खिलाया क्या मोती ? कोई खुशखबरी नहीं है क्या?"
"खुशखबरी तो है।"
"उसे पहले बताओ।"
"मेरे प्रेम को मेरी मां ने स्वीकृति दे दी। गीता से मेरी शादी करने के लिए माँ तैयार हो गई।"
फुले हुए गाल पर नए खून का प्रवेश हुआ जैसे मोती शरमाया ।
"बस इतनी सी बात ? मैंने तो कुछ और ही सोचा? तुम्हारी मां की बात दूसरी है। पहले उस लड़की के मन में क्या है मालूम करो। पहला प्रेम हमेशा सफल नहीं होता है।"
"भैया ! डायलॉग्स ज्यादा मत मारो। मेरा प्रेम जीतेगा।"
"जीतना चाहिए सिर्फ मुंह से बोलने से हो जाएगा ? उस लड़की से मुंह खोल कर बातें करो भाई।"
"डर लगता है भाई"
"तेरी बात सुने तो हंसी आती है"
"शर्म भी आती है।"
"तू आदमी है ना मोती ? निडर होकर बात कर। शर्माए तो बात नहीं बनेगी । वह लड़की तुम्हें गर्दन उठाकर भी नहीं देखती। मुझे पता नहीं क्यों संदेह हो रहा है।"
"संदेह ?"
"हां संदेह ही। उस लड़की के गांव में कोई रिश्ता तय होगा ऐसा लगता है। इसीलिए वह तुम्हें गर्दन उठाकर भी नहीं देखती। नहीं तो इन तीन सालों में कभी तो तुम्हें नजर उठाकर देखा होता, तुमसे बात की होती, हंसी होती।"
"अरे नहीं भैया तुम बोल रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने उसके बारे में अच्छी तरह पूछताछ कर ली हैं । अपनी मौसी के डर के कारण ही वह ऐसा सब करती है।"
"उस लड़की से प्रेम निवेदन करने के अलावा सब काम अच्छी तरह से निभा रहे हो।"
हनुमान और पप्पू दोनों खाना खा चुके थे ।
"आज कैसे भी कह दूंगा।"
"बस में बोलोगे ?"
"और क्या करूं ?"
"तुम्हारे मन में जो है लेटर में लिखकर तुम मत दो अपने पप्पू से देने के लिए बोलो ! पढी की नहीं उसका जवाब वह लड़की दूसरे दिन तुम्हें बता देंगी।"
हनुमान जो बोल रहा है उसे सही लगा।
"ठीक है भैया जैसे तुम कह रहे हो वैसे कर दूंगा।" बड़े उत्साह से मोती ने सिर हिलाया।
मोती अच्छी कविता लिखता था।
दसवीं में पढ़ रहा था तब से उसको कविता में एक रुचि जागृत हुई और कविता लिखने लगा।
कॉलेज में कई बार कविताएं लिखने से उसकी बहुत प्रशंसा हुई थी ।
कॉलेज में उसने गणित लेकर बीएससी की। पर गणित में वह बहुत कमजोर था। गणित उसकी समझ में नहीं आता था।
दो साल के बाद वह पढ़ नहीं सका। उसने कॉलेज छोड़ दिया। उसे सफलता ना मिलने से उसे छोड़कर ड्राइवरी की ट्रेनिंग ली। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट मिनी बस ड्राइवर के काम में आ गया।
उसके बाद कविता लिखने का कोई मौका उसे नहीं मिला। अब फिर उसने एक सुंदर कविता लिखी और उसके द्वारा गीता को अपने प्रेम के बारे में अपनी इच्छा जाहिर कर दी।
गीता कविता पसंद करती है क्या?
मालूम नहीं।
फिर भी अपने मन की बात को कविता के रूप में बता दिया। ट्रांसपोर्ट के शेड में रहते हुए पप्पू को सफेद कागज लाने को बोला और कविता लिखकर खत्म की। फिर एक बार पढ़ कर देखा। उसे तृप्ति हुई। उसमें से छोटी-मोटी गलतियों को ठीक किया। और उसे अपने जेब में रख लिया।
इसे गीता को कब देना चाहिए?
रात को ही काम खत्म करके घर जाते समय दे देंगे ? नहीं।
हाथ में लेकर वह बिना पढे तालाब के किनारे फेंक देगी तो ।
सुबह काम पर आते समय पुराने बस स्टैंड पर रोक कर उतरते समय पप्पू को देने को बोले तो।
दिन में देंगे तो भी पढ़कर फाड़ेगी।
मोती ट्रांसपोर्ट शेड से बाहर आया। कंडक्टर हनुमान और क्लीनर पप्पू दोनों पहले ही मिनी बस में चढ़ गए थे।
"चलें भैया ?"
"अरे पप्पू"
"बोलिए भैया" उनके पास जाकर खड़ा हुआ।
"इस पत्र को मैंने दिया कहकर गीता को दे दो।"
"दे दूंगा भैया।" कहते हुए उसके चेहरे पर एक खुशी का प्रकाश दिखाई दिया।
"बस से उतरते समय देना है। मोती भैया ने दिया है कह कर देना।"
"ठीक है भैया।"
"गीता को ना देकर किसी और लड़की को मत दे देना । नहीं तो समस्या खड़ी हो जाएगी।"
"मैं क्या बच्चा हूं क्या ? मैं सब कुछ जानता हूं। मैं देख लूंगा।"
"यह मेरी जिंदगी का सवाल है ध्यान रखना।"
"डरो मत ! मैं सब ठीक-ठाक कर लूंगा। मेरे हाथों की रेखा बड़ी भाग्यशाली है। कल ही देखना लड़की तुम्हारी गोद में आकर गिर जाएगी।"
"मेरे गोद में भी ना आए न कंधे पर आए। मेरे प्रेम को स्वीकार कर ले तो बस है। मैं अपनी मां से कह कर उसके मौसी से लड़की मांगने के लिए कह दूंगा।" कहकर मोती बस को स्टार्ट किया।
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