तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 8 S Bhagyam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 8

अध्याय 8

आकाश फटने को हुआ

चांदनी भी फटनी की सोचने लगी

इधर-उधर आई मछलियां तमाशा देख रहीं थीं।

चल रही हवा भी फटने की सोचने लगी।

सब कुछ असामान्य।

भयंकर चित्कार किया गीता ने।

"बहुत दर्द हो रहा है मौसी..."

रितिका के हाथ में जो बांस की लकड़ी थी उससे गीता के पीठ पर जोर-जोर से मार रही थी।

"मत मारो मौसी.... मत मारो... मौसी...."

काम खत्म होते ही मिनी बस पर चढ़कर, जसवंतपुरा में उतर, अभी गीता घर आई थी।

आते ही उसे मारना शुरू कर दिया।

लात मारने लगी।

"मौसी मैंने क्या गलती की ?"

"इसके अलावा और क्या करना है ?"

"समझ में आए ऐसे बताइए मौसी ?"

"मोती बस ड्राइवर को... तुमने ही तो लड़की मांगने के लिए आने को बोला ?" गीता के बालों को मुट्ठी में पकड़ के दीवार से टकराई।

"मौसी मुझे कुछ भी नहीं पता ?"

"बिना मालूम हुए ही वह इतनी दूर आएगा ? उसको तुम बहुत पसंद हो। अपनी अम्मा को भी बुला कर ला लड़की मांग रहा था! पहने हुए कपड़ों के साथ ही भेज दो बोलता है। एक रुपया भी खर्चा मत करो मैं सारा खर्चा खुद उठा लूंगा। ऐसा सब बात करने के लिए तुम ही ने तो उसे सिखाया होगा ।"

"मौसी... मैं उस आदमी से एक शब्द भी कभी नहीं बोली" आंसू बहाते हुए गीता बोली।

"नाटक मत कर रे... मैं सब जानती हूं। तुम्हें खड़ा करके तुम्हारे दोनों पैरों को जलाना चाहिए"

"मौसी..."

"तू रोज पोनीटेल कर, गुलाब का फूल लगा मटकती हुई उसी के लिए तो जाती थी ? उस को आकर्षित करने ही तो जाती थी? तेरे दो छोटी बहनें हैं तूने सोच कर कभी देखा? कुछ भी हो मैं दूसरी माँ हूं ना! यदि  मुझसे पैदा हुई होती.... ऐसा एक काम तू करती... ? किसी से भी प्रेम कर आकर खड़ी हो गई.... किसी एक दिन तू उसके साथ नहीं भाग जाएगी क्या? फिर मेरी दोनों लड़कियों को मैं कैसे ब्याह कराऊंगी? सिर उठाकर बाहर जा सकती क्या?" रितिका के सांस फूलने लगी।

चटाई पर सो रही मनाली और कमला घबराकर उठ बैठी।

उनको कुछ भी समझ में नहीं आया। आंखें फाड़ कर देखने लगी। इन बातों से अपना कोई भी संबंध नहीं है ऐसे राकेश बेंच पर सो रहा था।

"मौसी मुझ पर विश्वास करो.. किसी से भी मैंने प्यार नहीं किया... किसी को भी लड़की मांगने के लिए आने को मैंने नहीं कहा...."

"झूठ मत बोल री..."

दोबारा उसके ऊपर के सिर पर जोर से मारा।

"मौसी आप चाहे तो मैं मर जाऊं ?"

"अरी बदमाश तेरे मन में ऐसी सोच भी है ? जिंदा रहके मेरे प्राणों को खा रही है वह कम नहीं है क्या अब मर के पूरी जिंदगी मुझे अपमानित करने की सोच रही है....? बेवकूफी से कुछ भी खा कर मर जाए तो लोग मुझे ही दोष देंगे..."

"मुझे कोई दूसरा रास्ता पता नहीं है मौसी..."

मौसी के पैरों को पकड़ कर रोई।

मनाली और कमला को भी बुरी तरह रोना आया।

अपनी मां के बीच में बोले तो वे उन्हीं को पीटेगी डर के मारे तमाशा देख रहीं थीं।

"अरी... रोकर, नाटककर.. दुनिया को इकट्ठा मत कर ! तू सचमुच में उस ड्राइवर को नहीं चाहती है ना?"

"सचमुच में नहीं चाहती।"

"तो फिर एक काम कर"

"करती हूं..."

"कल से तुम उस ड्राइवर के मिनी बस में नहीं चढ़ोगी..." उसने फैसला किया।

"मौसी" गीता थोड़ी देर के लिए स्तंभित हो गई ।

"मेन रोड तक पैदल जा।

वहां से दूसरी बस लेकर अपने काम पर जा..."

"ठीक है मौसी" बहुत मुश्किल काम था फिर भी गीता ने कुछ नहीं कहा।

"ऐसे ही वापस आते समय भी मिनी बस में नहीं आओगी। दूसरे बस में आकर उस रोड में उतर आंखें बंद कर पैदल आओ।"

"ठीक है मौसी.."

"मुझे धोखा देने की सोची तुमने... तो तुम्हें काट कर गड्ढे में दबा दूगीं। समझ में आया ?"

"मैं समझ गई।" वह थूक को निगल गई।

"दूसरी बार ऐसी बात हुई तो... मैं मनुष्य नहीं रहूंगी.."

अपने कठोर शब्दों से रितिका ने चेतावनी दी।

इतनी मार खाने के बाद गीता उठ भी नहीं पाई।

भूख से पेट में खलबली मच गई।

बुरी तरह प्यास लग रही थी।

धीरे से लड़खड़ाते हुए उठ कर पानी पिया। हमेशा ठंडी रोटी होती थी। आज वह भी नहीं थी।

"क्यों री ? रोटी नहीं है देख रही है क्या? तेरी रोटी को मैंने गाय को खिला दी। आज भूखी रह तभी तुझे अक्ल आएगी.." जल रहे एक धीमी रोशनी को भी रितिका ने बंद कर दिया ।

घर के अंदर अंधेरा हो गया।

उसी जगह पर लेट गई गीता।

आंखों से आंसू बहते रहे।

'मैं क्यों पैदा हुई'

'मैंने कोई पाप नहीं किया फिर मुझे यह दंड क्यों'

'लड़की पैदा ही नहीं होना चाहिए। पैदा हो तो बिना मां के तो जिंदा नहीं रह सकते'

'अम्मा ! मुझे पैदा करने वाली मां दस महीने मुझे अपने गर्भ में रखने वाली मां! मुझे क्यों इस मिट्टी में छोड़ कर तू चली गई?'

सवेरे तक गीता को नींद ही नहीं आई।

'आएगी ?

गीता आएगी?

आज गीता आएगी?

मिनी बस में चढ़ेगी?'

मोती को हर एक दिन धोखा ही रहा।

मोती बेमन से ही मिनी बस चला रहा था।

उसको अपनी जिंदगी ही बेकार लगाने लगी।

'गीता से मैंने प्यार किया क्या गलती है ?

उसके मना करने पर भी उसके घर जाकर लड़की मांगना गलत था?

मैंने ही अपने देवी के लिए आफत ढूंढ कर दे दी क्या?'

मोती ने गीता के घर जाकर आने के बाद जो घटना घटी उसके बारे में पप्पू से कहा तू मालूम कर उनके घर क्या हुआ।

"वह लड़की अब हमारे बस में नहीं आएगी भैया.... उसकी मौसी ने गीता की बहुत पिटाई की... और बड़े रोड तक पैदल जा कर वहां से दूसरी बस में जाने के लिए बोला...."

"तुझे किसने बोला ?"

"गीता के घर के पड़ोस में एक लड़का टीवी शोरूम में काम करता है ना... उसी ने मुझे कह कर बहुत दुखी हुआ।

'मुझे पसंद नहीं बोले तभी छोड़ देना चाहिए था ना। क्यों वह ड्राइवर भैया ने मां को लेकर उनके घर गए ? गीता के कहने पर ही उसके घर आए ऐसा आरोप उसके ऊपर लगाकर गीता को उसकी मौसी ने अपमानित कर खूब पिटाई की। बेचारी वह लड़की, अब तो आप ड्राइवर भैया को बता देना। अब बहुत सोच समझ कर काम करें। इस लड़की की मौसी नाग है नाग। मुझे बहुत बुरा लगा.. रोज सवेरे तो ठीक है। काम खत्म होने के बाद रात में तीन किलोमीटर चलकर सुनसान जगह से तालाब के किनारे होकर पैदल आना...?"

पप्पू की आंखें नम हुई।

इसको सुनकर मोती के मन के अंदर कांटे चुभे जैसा जख्म हुआ।

"मेरी वजह से ही ?"

'सब कुछ मेरी वजह से ही हुआ ?' उसे बहुत दुख हुआ पश्चाताप हुआ।

"गीता को इस समस्या से किसी न किसी तरह ऊपर उठाना पड़ेगा।

'कैसे करें ?'

'गीता को नहीं रोना चाहिए। उसे किसी तरह की तकलीफ नहीं होना चाहिए। उसको हमेशा हंसती हुई और खुश रहना चाहिए'

'मेरी वजह से ही उसे कष्ट हुआ उसे मुझे ही मिटाना पड़ेगा।'

'क्या कर सकते हैं ?'

'गीता तो एक देवी है। जिसे गुलाब के फूलों पर सोना चाहिए। उसे कांटों के जंगल में बर्बाद होने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।'

'गीता एक देवी है वह सिर्फ मेरी है।'

'गीता एक वीणा है जिसे सिर्फ मैं ही बजा सकता हूं।'

'आखिर में सिर्फ एक बार गीता से पूछ लूं।'

अपने सपने को स्वयं ही सच करना होगा।

अपने जीवन को हमें ही संभालना होगा। अपने भाग्य में लिखे हुए को हमें ही बदलना होगा।

"मोती भैया...." कंडक्टर हनुमान ने धीरे से बुलाया।

"कहिए..."

"तुमसे मैं उम्र में बड़ा हूं... तुम्हारे साथ पाँच साल से काम कर रहा हूं। उस अधिकार से मैं तुमसे कुछ कह सकता हूं मोती ?"

"पहले बोलो।"

"तुम इसे गलत मत लेना।"

"नहीं लूंगा।"

"अभी भी तुम गीता के बारे में ही सोच रहे हो ?"

"हां।"

"मैं तुमसे पूछ रहा हूं.... तुम कितने सुंदर हो.…., तुम इतने होशियार बड़े अच्छे गुण वाले, तुम्हारे इन सब गुणों से क्या तुम्हें दूसरी लड़की नहीं मिलेगी ? उस लड़की ने तुम्हें पसंद नहीं कह दिया। अब वह लड़की हमारे बस में भी नहीं आती है। तुम्हारी वजह से ही उस लड़की को समस्या हो गई । उसकी मौसी ने भी तुम्हें लड़की नहीं दूँगी कह दिया। चुपचाप उस लड़की को भूल जा मोती।"

"भैया...." वह अधीर हो गया ।

"मिलेगी मालूम हो तो रुक सकते हैं। इच्छा कर सकते हैं। वह लड़की तुम्हें नहीं मिलेगी। सच को तुम मत झूठलाओ। हमेशा की तरह हंसते हुए खुश रहो।"

"बड़े भैया..."

"उम्र हो गई तुम्हारी मां के बारे में सोचो। तुम उनके इकलौते बेटे हो। तुम्हारी शादी करके तुम्हारे बच्चे के साथ थोड़े दिन रहने की ठुमरी माँ की इच्छा हो रही होगी । उस मां की इच्छा की कद्र करो मोती..."

"मैं नहीं कर पा रहा....! हमेशा गीता की याद आती है।"

"तुम्हारे सोचने का कोई फायदा नहीं। वह लड़की तुम्हारे बारे में सोचती नहीं।"

"वह मौसी से डरती है भैया"

"आगे तुम क्या करोगे ?"

"मैं स्वयं की उससे बात करूंगा..."

"वह लड़की अपने बस में चढ़ती ही नहीं है.... बस में चढ़कर तुम्हारे पास में खड़े रहे बात करने की नहीं सोचती। वहां जाकर तुम बात नहीं कर सकते। उस लड़की के घर की तरफ सिर रखकर भी तुम सो नहीं सकते। कहां जाकर मिलोगे?"

"रोज गीता मेन रोड पर उतर कर वहां से तालाब के किनारे ही तो पैदल जाती है ना ? वहां जाकर मिलता हूं। और बात करता हूं।"

अपने कंधों को मोती ने झटका दिया।

"मुझको तो लगता है तुम उस लड़की के लिए अच्छा नहीं कर रहे हो..."

कंडक्टर हनुमान ने दीर्घ विश्वास छोड़ा।

******