Laal Dupatta Mamal kaa books and stories free download online pdf in Hindi

लाल दुपट्टा मलमल का

अब्दुल ग़फ़्फ़ार

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तेतरी देवी की सबसे छोटी बेटी के जन्म के साथ ही घर में मातम पसर गया। गांव में लोगों के घर गोबर के उपले पाथने का काम करने वाली तेतरी के कुल 9 बच्चे हुए। आठों बच्चों के जन्म के समय भी जश्न जैसा कुछ भी नहीं हुआ था लेकिन आख़िरी के जन्म पे तो मातम ही पसर गया।

हवा किन्नरों तक पहुंचते देर नहीं लगी। दस दिन बीतते ही किन्नरों की टोली आ पहुंची तेतरी के दुआर पर और उनकी सरदार शबाना ने बच्ची को गोद में उठाते हुए कहा - " बहन, मेरी बेटी ग़लती से तुम्हारे तन से पैदा हो गई है। ये मेरी अमानत है लेकिन भरोसा रखना ये एक दिन रानी बनेगी - रानी।"

बीएसएफ का जवान चेतक 'नपुंसक' था और 'किन्नर' तराना उसकी पत्नी। दोनों ने एक दूसरे के बारे में जान समझ कर ही विवाह किया था। उनकी कहानी से साबित होता है कि ईश्वर ने सबका जोड़ा ज़रूर बनाया है।

मार्च 2020 में सरहद पर 'चेतक' वीरगति को प्राप्त हो गया और   'तराना' विधवा हो गई। कहने को तो वो शहीद की विधवा हुई थी लेकिन चेतक के जाते ही उसके परिवार वालों ने तराना को घर से निकाल दिया। चेतक के परिवार वालों ने चेतक के 'नपुंसक' होने के चलते तराना को बहू के रूप में घर आने की इजाज़त तो दे दी थी लेकिन दिल से स्वीकार कभी नहीं किया। चेतक के जाने के बाद अब एक किन्नर को बहु के रूप में रखने की उनकी कोई मजबूरी नहीं थी। इसलिए उन लोगों ने तराना को घर से निकल दिया।

तराना को इस बात का कोई गिला नही था। वो सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी थी। जो लोग सिक्के के हेड और टेल दोनों पहलूओं को ध्यान में रखते हुए ज़िंदगी जीते हैं वो टेल आने पर घबराते नहीं, और ना ही निराश होते हैं। वो जानती थी कि ऐसा ही होगा। इसलिए वो घबराई नहीं और परिवार द्वारा दुत्कारे जाने के बाद फिर से अपने समाज में वापस चली गई और नेग बधाई के धंधे में लग गई।

लेकिन! हाय रे क़िस्मत! सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए।

चेतक की शहादत के पंद्रहवें दिन कोरोना को लेकर लॉक डाउन घोषित हो गया। पूरे देश में एक तरह का कर्फ्यू लग गया। कोरोना के डर से लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया। दूकान, बाज़ार सब बंद। गाड़ी सवारी सब बंद। सड़कों पर मातमी सन्नाटा पसर गया। लोग पास होकर भी एक दूसरे से दूर रहने लगे। एक महीना बीतते ही लोगों के सामने पेट चलाने की गंभीर समस्या खड़ी होने लगी।

इस परिस्थिति में बख़्शिश बधाई भला कौन देता! तराना और उसका समाज भी बेरोज़गार हो गया और हाथ पर हाथ रखकर खाने को मजबूर हो गया।

तराना की ज़िन्दगी पर तो वज्रपात ही हो गया। पहले तो उसका प्यार गया फिर रोज़गार भी चला गया। इस समाज में किसी पुरुष द्वारा किसी किन्नर को प्यार करना फिर उससे शादी करना अपने आप में एक अद्भुत घटना थी। तराना बार बार उस दिन को याद करते हुए सिहर जाती, जब चेतक से पहली बार मिली थी।

जम्मू तवि एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी। चेतक अपनी पहली पोस्टिंग पर बारामूला जा रहा था। तराना ने चेतक को हाथों का थप्पा देते हुए कहा "चल निकाल बाबू"

चेतक ने ग़ुस्से से तराना की तरफ़ देखा,,, तो देखता ही रह गया। उसे यक़ीन ही नही हो रहा था कि तराना लड़की नहीं एक किन्नर है। एक हसीन लड़की के तमाम नशेब व फ़राज़ उसके जिस्म में मौजूद थे।

तराना ने ताली बजाते हुए कहा - "कभी लड़की नहीं देखी क्या, जो ऐसे घूर रहा है!"

तराना ने बग़ल की सीट पर बैठे एक साधारण से दिख रहे नौजवान को भी उसी अंदाज़ में संबोधित किया " तू भी निकाल चिकने, देखता क्या है!"

नौजवान ने फीकी मुस्कुराहट के साथ कहा - "मुझसे क्या मांगती हो, मैं तो ख़ुद कैंसर का मरीज़ हूं और चंदे से अपना ईलाज करा रहा हूँ।"

तराना ने सरसरी तौर पर कहा "काग़ज़ दिखा, तब मानूंगी - हाँ।"

चेतक सहित अगल बग़ल बैठे सभी मुसाफ़िरों को किन्नर के इस रवैये पर बहुत ग़ुस्सा आया।

उस नौजवान ने बैग से फाइल निकाल कर तराना के हवाले कर दिया।

वो उलट पलट कर देखने लगी।

मतलब! पढ़ी लिखी लग रही थी।

सभी मुसाफ़िर तराना के इस रवैये पर आश्चर्यचकित थे।

तराना ने नौजवान को फाइल लौटाते हुए अपने ब्लाउज़ के अंदर से पर्स निकाला। पर्स में मुड़े तुड़े ढेर सारे नोट ठूंसे पड़े थे। उसने पर्स के सारे पैसे निकाल कर, बिना गिने उस नौजवान के हवाले कर दिया।

नौजवान हक्का बक्का उसकी तरफ़ देखता रह गया। ये दृश्य देखकर सारे मुसाफिरों के होश फ़ाख़्ता हो गए। लेकिन इतना कुछ देखने के बाद भी किसी मुसाफ़िर की जेब से एक ढेला तक नहीं निकला, ना तो उस कैंसर के मरीज़ के लिए और ना ही इस किन्नर के लिए।

निर्मम-निर्दयी, स्वार्थ से भरे इस बेरहम दुनियाँ को देखकर कभी-कभी मन ऐसा सोचने लगता है कि मैं भी घुस जाऊँ घोंघे की तरह किसी सख़्त खोल में। लेकिन फिर सोचता हूँ कि सख़्त खोल में बंद होने के बाद भी पेट की आग बुझाने के लिए घोंघे को फ़िर से इस जड़, ज़मीन और मिट्टी से सम्बंध जोड़ना ही पड़ता है।

यादों के झरोखों से गुज़रते हुए दिन बीतते रहे - - - कोरोना काल में तीन महीने बैठ कर खाने से तराना और उनके साथियों का बैंक बैलेंस समाप्त होने लगा। वो सभी चिंतित रहने लगे। सोचने लगे कि यही हाल रहा तो कहां से पैसा आएगा कि पेट चलेगा।

तराना चेतक की याद में हमेशा गुमसुम रहा करती। अपने साथियों से मन भर बात भी नहीं करती। लेकिन जब पेट काट कर दिन गुज़ारने की नौबत आने लगी तब चेतक की याद भी रफ़्ता रफ़्ता ज़ेहन से जाने लगी।

तीसरी बार लॉक डाउन बढ़ने के बाद एक दिन तराना ने अपने गुरु मां शबाना से कहा - " इसी तरह लॉक डाउन बढ़ता रहा तो हम लोग तो भूखे ही मर जाएंगे।"

शबाना ने कहा - "अब समझ में आया तुझे!!! चेतक चेतक रटते रहने से पेट नहीं भरने वाला। इस भूखमरी से बचने के लिए कुछ तू भी ऊपाय बता। हम तीसरी नस्ल के लोग समाज में इस क़दर उपेक्षित हैं कि दूसरा धंधा सोचने में भी डर लगता है।"

तराना ने कुछ देर सोचते हुए कहा - "एक आईडिया है मेरे पास।"

शबाना सहित बाक़ी के छह किन्नर भी मोतवज्जो होकर तराना की बात सुनने लगे।

तराना ने कहा -" इस समय सब कुछ बंद है लेकिन किराने की दूकानें तो चल रही हैं। आदमी को जीने के लिए हर हाल में खाना ज़रूरी है। तो क्यों न हम सब मिलकर-मिलाकर एक किराने की दूकान डाल लें। लॉक डाउन में किराने की दूकान ज़रूर चलेगी और उसकी आमदनी से हमारे पेट भी चलेंगे।"

उनमें से एक सीनियर किन्नर बिन्नी ने कहा -" ये काम हम लोगों के बस का नही है। हम नेग बधाई वसूलने वाले लोग हैं। किन्नरों से इस समाज के लोग वैसे ही नफ़रत करते हैं और हमारा मज़ाक़ उड़ाते हैं। फिर भला हमसे किराने का सामान कौन ख़रीदेगा !!"

शबाना ने तराना का समर्थन करते हुए कहा -" ख़रीदेगा क्यों नहीं! हम लोग दूसरा धंधा करना ही नहीं चाहते। किसी भी शास्त्र, धर्म ग्रंथ या क़ानून में नही लिखा कि हम लोग सिर्फ़ नेग बधाई वसूलने का ही काम करेंगे। तराना सही कह रही है। हमें किराने की दूकान डाल लेनी चाहिए।"

एक युवा किन्नर निशा ने भी तराना का समर्थन करते हुए कहा -" अब तो हमारे समाज के लोग भी अधिकारी, मेयर, पार्षद बनने लगे हैं। फिर किराने की दूकान चलाने में क्या हर्ज़ है! भूखे मरने से तो बेहतर है कि हम किराने की दूकान डाल कर देखें। "

काफ़ी सोच विचार के बाद सब ने पैसे इकट्ठा कर जून महीने में किराने की दूकान डाल ली और उसे चलाने की ज़िम्मेदारी तराना और निशा को दे दी।

पहले ही दिन दो हज़ार चार सौ रुपये की बिक्री हुई। जिससे सभी किन्नर बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन अगले ही दिन बिक्री घट कर हज़ार के भीतर आ गई और एक महीने तक यही सिलसिला चलता रहा। तराना और निशा ग्राहकों की बाट जोहते रहते लेकिन ग्राहक उनकी दूकान पर नहीं आते। इस परिस्थिति से सभी किन्नर मायूस रहने लगे।

बिन्नी ने कहा - "मैं ना कहती थी कि लोग हमारा सहयोग नहीं करेंगे। ये समाज हमें बराबरी का दर्जा कभी नहीं देगा।"

शबाना ने कहा - "ऐसा नहीं है बिन्नी। लोग बदल रहे हैं समाज  बदल रहा है। हमें भी बदलना होगा और धैर्य से काम लेना होगा। लॉक डाउन में हर आदमी बेरोज़गार है, हर आदमी परेशान है। लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं। जोड़ तोड़ से लोग अपना परिवार चला रहे हैं। फिर बिक्री कम होना स्वाभाविक बात है।"

तराना ने कहा - " जो ग्राहक आ भी रहे हैं वो लॉक डाउन तक के लिए ऊधार मांग रहे हैं। अगर हम लोग थोड़ा रिस्क उठा कर ऊधार देना शुरू करें तो लॉक डाउन के बाद हमारे पैसे वापस भी मिल जाएंगे और दूकान भी चल निकलेगी।"

निशा ने भी यही बात कही।

फिर बिन्नी ने कहा - " लेकिन हमारे पास कौन सा क़ारून का ख़ज़ाना गड़ा पड़ा है। ऊधार देने के लिए तो और पूंजी की ज़रूरत पड़ेगी। फिर किसके चेहरे पर लिखा है कि वो ईमानदार है और ऊधार लौटा देगा!!"

शबाना ने कहा - " तराना ठीक कह रही है। भरोसा तो रखना ही पड़ेगा। हम अपने गहने बेचकर दूकान में लगा देंगे। लॉक डाउन बीतने के बाद फिर आमदनी बढ़ेगी तो ख़रीद भी लेंगे। इस आपदा में जो अवसर मिला है उसका लाभ हमें ज़रूर उठाना चाहिए। लॉक डाउन नहीं रहता तो नगद क्या ऊधार भी, लोग हमसे ख़रीदने से कतराते। लेकिन इस वक़्त सभी मजबूर हैं और आपदा विपदा में लोग भेद नहीं कर पाते।"

फिर सबकी सहमति से थोड़ा थोड़ा ऊधार दिया जाने लगा। ग्राहक जुड़ने लगे। दूकान चलने लगी। नतीजा ये निकला कि गाड़ी चल निकली और अगस्त से रिकवरी भी शुरू हो गई, लोग ऊधार लौटाने लगे। अक्तूबर आते आते आठ दस हज़ार रोज़ की बिक्री होने लगी।

ज़िंदगी फिर से पटरी पर आने लगी। एक दिन तराना के मोबाइल पर सरकारी विभाग से फोन आया कि वो आकर अपने पति के मुआवजे का चेक रिसीव कर ले।

तराना के ख़्वाब व ख़्याल में भी ये बात नही थी। वो तो सब कुछ छोड़कर अपनी दुनिया में वापस लौट आई थी। ये ख़बर पाकर तराना हवाओं में उड़ने लगी। पहले उसके मन में आया कि उसके ससुराल वाले कहीं अड़चन न डाल दें। फिर उसने सोचा कि चेक जब उसके नाम से है तो दूसरों की दाल कहां गलने वाली!

चेतक जाते-जाते भी प्यार लुटा गया था। उसके भविष्य को सुरक्षित कर गया था। ये सोचते सोचते उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

"शायद मैं उसे उतना प्यार नहीं दे पाई जितना उसने मुझे लौटाया। मैं हमेशा सशंकित ही रही और वो बाजी मार गया।"

वो फिर यादों में खो गई - - -

ट्रेन में पहली मुलाक़ात के बाद ही चेतक उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसका मोबाइल नंबर ले लिया था और ड्यूटी के दौरान जब भी फुर्सत मिलती उससे ढेर सारी बातें किया करता।

तराना ने कुछ दिनों तक इस लगाव को गंभीरता से नहीं लिया। वो चेतक के प्रेम को हवा हवाई ही समझती रही। लेकिन चेतक अपनी धुन का पक्का था और तराना को अपने प्यार का यक़ीन दिलाने में वह कामयाब रहा। फिर तो तराना पर भी प्यार का भूत सवार होने लगा। उसकी सहेलियाँ लाख समझातीं कि मर्दों पर कभी विश्वास  मत करना लेकिन तराना कहां माननेने वाली थी! वो चेतक की दीवानी हो गई।

एक दिन तराना ने मोबाइल पर ही कह डाला - " इतना प्यार है तो मुझसे शादी कर के दिखाओ।"

सेकेंड भी न गुज़रा होगा कि चेतक ने हामी भर दी। तराना को यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि कोई पुरुष किसी किन्नर से विवाह करने की बात भी सोच सकता है।

उसने फिर पूछा - "सच!!!"

चेतक - "तुम्हें झूठ क्यों लग रहा है!"

तराना - " नहीं - - मतलब - - प्यार तक तो ठीक है - - पर शादी - - करके तुम्हें क्या मिलेगा!!!"

चेतक - "बस तुम्हारा प्यार चाहिए और कुछ नहीं और हां - - शादी से पहले मैं एक बात और बताना चाहता हूँ।"

तराना ने पूछा -" क्या! "

चेतक -" मैं नपुंसक हूँ"

बिना कुछ सोचे ही तराना का जवाब था - " तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। प्रेम का शरीर से क्या संबंध!"

चेतक - "एक और शर्त है।"

तराना - "मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है।"

चेतक - " सुन भी तो लो - - - शादी से पहले मैं तुम्हें एक गिफ्ट देना चाहता हूँ।"

तराना ने कहा -" गिफ्ट किसे पसंद नहीं होता लेकिन क्या मैं जान सकती हूँ वो गिफ्ट क्या होगी!!"

चेतक ने कहा - "लाल दुपट्टा मलमल का "

तराना ने आश्चर्य से दोहराया - " लाल दुपट्टा मलमल का ! ! ! मतलब ! ! ! "

चेतक ने कहा - " मतलब क्या! मैं तुम्हें लाल दुपट्टा मलमल का ओढ़े देखना चाहता हूं, बस।"

तराना ने कहा - " क़ुबूल है।"

गिफ्ट पाकर तराना बेहद ख़ुश तो हुई लेकिन सोचती रही कि लाल दुपट्टा मलमल का, का आख़िर मतलब क्या है!!

आख़िरकार परिवार और समाज का विरोध झेलते हुए चेतक ने तराना से विवाह कर ही लिया। परिवार के लोग उनसे अलग हो गए, सारे रिश्तेदार नाराज़ हो गए। मोहल्ले वाले नफ़रत की निगाह से चेतक को देखने लगे। फिर भी वो अपने फैसले पर अटल रहा।

लेकिन - - - अफ़सोस - - - ये ख़ुशियाँ बहुत दिनों तक क़ायम न रह सकीं और चेतक के शहादत की ख़बर आ गई।

इतनी जल्दी इतना सब कुछ कैसे हो गया ये तराना के समझ में नहीं आ रहा था। अभी तो उसके हाथों की मेंहदी भी ठीक से नहीं सूखी थी।

फिर तराना को बार बार चेतक का गिफ्ट "लाल दुपट्टा मलमल का" याद आने लगा। कभी चेतक की याद बनकर तो कभी वहम और अंधविश्वास बनकर।

क्या इतनी जल्दी साथ छोड़ जाने का सिंबल था - - - लाल दुपट्टा मलमल का!

वो आंख बंद कर के ईश्वर को उलाहना देने लगी " मेरा क्या क़ुसूर भगवन जो तुने ना तो मुझे स्त्री बनाया और ना ही पुरुष। किन्नर बनाकर भी तुझे संतोष नहीं मिला और मेरे नसीब का प्यार भी इतनी जल्दी छीन लिया। मैं तुम्हें दोष दूं, या उस मां को जिसने मुझे जन्म तो दिया लेकिन कभी खोज ख़बर नही लिया। आज अगर जन्म देने वाली माँ मेरे पास होती तो उसकी गोद में सिर रखकर रो तो लेती।

शबाना ने तराना को टोका - - - कहां खो गई मेरी रानी बिटिया!!!

और तराना आंखें मीचते हुए खड़ी हो गई।

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