सारांश
यह एक प्रेम कहानी है। यह कहानी भी छोटे गांव की है। लड़की छोटे गांव की है। जिसकी मां नहीं है। सौतेली मां को गीता ‘मौसी’ बुलाती है। वह एक आभूषण के शोरूम में काम करती है। अप एंड डाउन करती है। बहुत प्यारी लड़की है। परंतु उसकी सौतेली मां उसे बहुत परेशान करती है। गीता परिवार के लिए सब कुछ त्याग देती है। एक बस ड्राइवर उसे जी जान उसे चाहता है। अभी सच्चे प्यार का क्या हुआ आप पढंगे तभी पता चलेगा ना!
संक्षिप्त जीवन परिचय
एस.भाग्यम शर्मा एम.ए अर्थशास्त्र.बी.एड. 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियां प्रकाशित। तमिल कहानियों का हिन्दी में अनुवाद एवं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, जैसे नवनीत, सरिता, कथा-देश, राष्ट्रधर्म, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, मधुमती, सहित्य अमृत, ककसाड, राज. शिक्षा -विभाग की पत्रिका आदि। बाल-साहित्य लेखन, विभिन्न बाल-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं व कहानियां प्रकाशित, जैसे नंदन, बाल भास्कर, बाल हंस, छोटू-मोटू आदि। वेणु, महाश्वेता देवी, साहित्य-गौरव, हिन्दी भाषा विभूषण, स्वयं सिद्धा आदि विभिन्न सम्मान मिला। 2017 वुमन ऑफ 2017 का जोनल अवार्ड मिला । राज.की मुख्य मंत्री वसुंधरा जी से यह सम्मान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। कई कहानियां प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत भी हुई।
1 नीम का पेड़ कहानी संग्रह 2 प्रतिनिधि दक्षिण की कहानियां 3 बाल कथाएं 4 समकालीन तमिल प्रतिनिधि कहानियां 5 झूला 6 राजाजी की कथाएं 7 एक बेटी का पत्र कहानी संग्रह 8 श्रेष्ठ तमिल कहानियाँ 9 आर. चूडामणी का उपन्यास दीप शिखा का अनूवाद किया और इसका बोधि प्रकाशन से 2019 में प्रकाशित |
एस. भाग्यम शर्मा
तुम्हारे दिल में मैं हूं?
अध्याय 1
सुराणा ज्वैलर्स।
शहर का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध आभूषण की दुकान।
हमेशा चहल-पहल यहां रहती है।
अच्छा स्तरीय, शुद्ध, के.डी.एम. सोना और चांदी दोनों ही यहाँ मिलती है इसलिए यहाँ बहुत भीड़ रहती है। सोने का भाव तो तीस हजार से ज्यादा हो गया है। 500 रूपये और ज्यादा भी हो जाए फिर भी लोग खरीदते रहेंगे।
सुराणा ज्वेलर्स की दुकान तीन मंजिली है।
प्रथम स्थल पर चांदी के बर्तन।
दूसरी मंजिल में सोने के आभूषण।
तीसरी मंजिल में हीरे, नवरतन जड़े आभूषण रखें होते हैं। सभी मंजिल में ए.सी. हैं जो बहुत आरामदायक है। रात के 8:30 बजे सोने के आभूषण के दूसरी मंजिल में बड़ी भीड़-भाड़ थी वहां गीता बड़ी फुर्ती से ग्राहक को उनकी पसंद की आभूषण को दिखा रही थी। वह हरे रंग का सलवार और लाल रंग का कुर्ता और हरे-लाल रंग के चुन्नी ओढ़े हुई थी। बालों को पोनीटेल से बांधी थी।
उसके कानों में नकली झुमके, गले में मोतियों का हार और नाक में छोटी सी लौंग चमक रही थी। हाथों में खूब सारी कांच की चूड़ियां पहने थी। वह गांव की खूबसूरत और सीधी-साधी लड़की थी।
उसका चेहरा बिना किसी छल-कपट के साफ सुथरा था । आंखें हिरणी जैसी और आवाज में मिश्री घुली हुई ।
वह ग्राहकों से आदर और सहनशीलता से बात करती थी। गीता जिस विभाग में थी वहां से लड़कियां कुछ ना कुछ खरीद कर ही ले जातीं थीं।
"दीदी यह चेन आपके गले में बहुत सुंदर लगेगा।"
"कौन सा ? तीन ग्राम का दिखाया था वह?"
"नहीं ! तीन ग्राम क्यों? मैं छ: ग्राम वाले को ही कह रही हूं।"
"इतने रुपए हम लेकर नहीं आए..." जो महिला आभूषण लेने आई थी उसके पति ने कहा।
"ले रहे हो तो थोड़ा मजबूत ही लो.…! आज आप अपने वस्तु को पसंद कर लिखकर रख दो, जो पैसे हैं उसे दे दो। फिर एक हफ्ते के अंदर आकर बाकी को देकर आप उसे ले जा सकते हो।"
यह स्वयं ही योजनाएं बताती थी।
"क्यों जी, वह लड़की कह रही है वैसे ही कर लेते हैं। तीन ग्राम की चेन बड़ी जल्दी घिस जाएगी टूट जाएगी। छ: ग्राम की ही ले लेते हैं। कई साल तक ऐसा ही रहेगा।" गहने खरीदने आई लड़की बोली।
"तुम्हारी इच्छा हो गई ! बोलो तो तुम सुनोगी नहीं? नाराज हो जाओगी! “तुम्हारी इच्छा जैसी है वैसे करो।" ऐसा पति बोलेगा।
"अरे इसे खुशी से भी कह सकते हो ना ?" अपनी सफलता के खुशी में, झट से गीता हंस देती ।
सुराणा ज्वेलर्स में वही सिर्फ एक गांव की लड़की है। गीता के निष्कपट ग्रामीण भाषा को मालिक के सिवाय वहां काम करने वाले भी बहुत पसंद करते थे ।
गीता को सब लोग पसंद करते थे। सुबह के 9:30 से रात के 8:30 बजे तक काम होता था । उसका 4000 मासिक वेतन था। वह उसे वैसे ही ले जाकर पूरा मौसी के हाथ में दे देती है। गीता की मां नहीं थी। गीता जब छोटी थी तब ही पीलिया से उसकी मां मर गई थी।
गीता के पिताजी राकेश के पास थोड़ी सी जमीन थी उस पर वे खेती करते थे।
वह गीता के देखभाल करने में असमर्थ थे। अतः रितिका से उन्होंने दूसरी शादी कर ली।
शुरू में रितिका गीता को बहुत प्यार करती थी। उसे बहुत चाहती थी।
कभी उसे छाती पर सुलाती तो कभी अपने पैरों पर। सारा दिन उसे खेल खिलाती। खाना उसे तारों और चंद्रमा को दिखाकर खिलाती।
परंतु यह सब सिर्फ थोड़े दिन ही रहा । उसकी अपनी दो बेटियां हो गई। तब वह तुरंत बदल गई। वह गीता पर हमेशा बिच्छू जैसे डंक मार कर उसे तड़पाती थी। शब्दों के तीर चलाती रहती थी । उसको भरपेट खाना भी नहीं देती।
वह धारदार चाकू से उसे जख्मी करती रहती थी । यही नहीं हजारों विषैले सांपों जैसे जहर उगलती रहती थी । गीता को उसने दसवीं के बाद पढ़ाने से मना कर दिया और उसे उस आभूषण के दुकान पर काम करने के लिए भेज दिया। पाँच साल से उस दुकान पर गीता काम कर रही थी।
गीता की छोटी बहनें मनाली और कमला दोनों अच्छी गुणवान लड़कियां थी। वे दोनों गीता से बड़े प्रेम से रहती थी । उनमें अपनत्व था। वे दोनों दीदी-दीदी कहती रहती थी ।
मनाली बारवीं में और कमला दसवीं में पढ़ती थी। अपनी बहनों के लिए गीता मौसी के सारे कष्टों को सहन करती थी।
राकेश मुंह नहीं खोलते थे। रितिका के विरोध में एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाल सकते थे ।
यदि वे कुछ बोल दे तो बस शांति भंग हो जाती थी । गला फाड़ कर चिल्लाना, गालियां देना, रोना रितिका शुरु कर देती थी ।
"मैं और मेरी लड़की जहर खाकर मर जाते हैं। तुम और तुम्हारी लड़की गीता आराम से जियो।"I
ऐसी बात बोल कर उन्हें डरा धमका कर दबा देती थी । उसके बाद धीरे-धीरे राकेश की आदत वैसे ही हो गई। अपनी दोनों बेटियों को रोज पराठे, घी लगाकर रोटियां, कभी पूरी आदि बना-बना कर खिलाती।
गीता को सिर्फ सूखी रोटी देती। सब्जी के बदले मिर्ची और प्याज दे देती। गीता बिना कुछ कहें सूखी रोटी को स्कूल लेकर जाती थी । वह कभी रोती भी नहीं थी।
उसने अपने दुख को किसी से बांटा भी नहीं था । जो हो गया है वह बदल नहीं सकता। जो अपनी तकदीर में है वह बदल नहीं सकता। अच्छा बुरा जो हो रहा है होने दो । वह किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं करती थी । किसी भी चीज की इच्छा भी नहीं करती थी ।
बिना कोई खुशी के वह यंत्र जैसे अपने दिन को काट रही थी।
"गीता" कहकर सलोनी ने उसके कंधे को धक्का दिया जो उसके साथ काम करती थी ।
"हां"
"8:30 बज गए"
"बजने दो।"
"8:40 पर तुम्हारे गांव जाने वाली मिनी बस निकल जाएगी। यदि तुम उसे छोड़ दो तो मेन रोड से तीन किलोमीटर तालाब के किनारे से तुझे चलना पड़ेगा ना। अंधेरे में तुम कैसे अकेली जाओगी?"
सलोनी ने फिक्र से पूछा।
आभूषण लेने आए ग्राहक को वह सोने की चूडियां दिखा रही थी।
"यह डिजाइन पसंद है क्या देखिए।"
"इसी डिजाइन में पाँच ग्राम की एक चूड़ी ही चाहिए। जिसके बीच-बीच में ओरिजिनल मोती जड़े हुए होना चाहिए ।"
चूड़ियां लेने आई अमीर महिला ने यह साफ कह दिया। कुछ भी डिजाइन दिखाओ तो वह होंठ को पिचकाती थी। उसे संतुष्ट करना ही नहीं हुआ। गीता बिना चिड़चिड़ाए एक-एक डिजाइन को दिखाती रही। 8:30 से ज्यादा समय हो गया।
"मैडम, आप जो मोतियों के बीच-बीच में लगे हुए डिजाइन की चूड़ियां चाहती हैं तो आपको तीसरे मंजिल पर जाना पड़ेगा।"
"फिर तुम ही आकर दिखा दो बेटी।"
वह महिला गीता को छोड़ने वाली नहीं लगी।
"गीता तुम रवाना हो। मैं मैडम को तीसरी मंजिल पर लेकर जाती हूं।" सलोनी बोली।
सलोनी का इसी शहर में घर था। वह दुकान में ताला लगने तक रहती थी। गीता से सहानुभूति रखने वाली सिर्फ सलोनी ही थी ।
"सलोनी तुम्हें परेशानी होगी ?"
"इसमें कोई परेशानी नहीं है। यही तो अपना काम है ? बातें करते मत रहो, जल्दी से रवाना हो। पुरानी बस स्टैंड में जाकर खड़ी रहो।"
उसको एक युक्ति सलोनी ने बताई।
"थैंक्स सलोनी"
गीता हैंडबैग को टांग कर अपनी जगह से उठी।
"लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट गया होगा या नहीं गया होगा ?"
"चला गया होगा तो क्या करें ?"
"दूसरी बस में चढ़कर आमेर रोड तक जाऊंगी। वहां से एक बस गांव के बाहर छोड़ती है। वहां से तीन किलोमीटर तालाब के किनारे पैदल चलना पड़ेगा ?"
सेकंड फ्लोर से फटाफट उतर कर पुराने बस स्टैंड की तरफ जल्दी-जल्दी गीता चलने लगी।
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