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प्यार का रिश्ता


आज बहुत दिनों बाद शर्मा जी के घर जाना हुआ ।पहले तो वह हमारे घर के पास ही रहते थे तो दोनों परिवारों में घनिष्ट मित्रता थी फिर उन्होंने एक कॉलोनी में अपना घर बनवा लिया तब से वहीं रहने लगे और तब से हमारा मिलना जुलना भी थोड़ा कम हो गया ।उनकी पत्नी मेरी बहुत अच्छी मित्र है।शर्मा जी मेरे पति के सहकर्मी हैं दोनों ही इंटर कॉलेज में लेक्चरर हैं।जैसे ही में घर में घुसी ड्रॉइंग रूम में उनकी बेटी और उनके दामाद को बैठे पाया।उसे देखते ही मेरे मुँह से निकला "अरे पायल तू कब आई"।"नमस्ते आँटी"आन्टी जी हम परसों ही आये हैं।फिर अपने पति की और मुखातिब होती हुई बोली अरुण ये वर्मा आंटी हैं,पापा के दौस्त वर्मा अंकल की वाइफ ।अरुण ने मुझे उठकर नमस्ते की।तभी अंदर से सविता जी निकल कर आईं मुझे देखते ही खुशी से चहक़ कर बोलीं" अरे अपर्णा आप कब आईं"।बस कुछ ही देर हुई"में बोली।इस बार बहुत दिनों बाद आना हुआ।फिर वह अरुण की तरफ मुखातिब होती हुई बोली इनसे मिलीं ये हमारे दामाद हैं।
थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद पायल और अरुण तो चले गए शायद वो मूवी देखने जा रहे थे।
अब हम दोनों सहेलियाँ आजाद थे खुलकर बातें करने के लिये।
मैंने पूछा" पायल खुश तो है।अभी तो रहेंगे ये"।वह बोली "हाँ अर्पणा पायल बहुत खुश है ।अरुण अच्छा लड़का है जरा भी घमंड नहीं है उसमें ।इनकी शादी को एक साल होने को आया कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया इसने।पायल पर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है ।जब कहती मिलाने ले आता है।तुम्हें तो मालूम है पिछले कई सालों में कितना कुछ सहा है इसने वो तो थोड़ा साहस करके फैसला ले लिया वर्ना इसकी जिंदगी भी नीता दी की तरह नर्क बन जाती ।कितने अरमानों से इसकी पहली शादी की थी अभय के साथ ।कितना पैसा भी लगाया था पर हुआ क्या सारा पैसा केश लेकर भी उन्हें चैन नहीं पड़ा ताने दे देकर पायल का जीना हराम कर दिया था।पहले तो बताया कि लड़का लाखों कमाता है हर महीने।कई काम भी गिनाए पर बाद में पता चला सब काम विवाह तक के लिये ही थे।हमने भी जब उनके सब रंग ढंग देखे तो अगली बार हमने पायल को भेजा ही नहीं और उसका तलाक करवा दिया ।फिर पिछले साल किसी मित्र के माध्यम से अरुण मिल गया और हमने शादी कर दी।अरुण भी तलाक शुदा है उसकी पहली पत्नी खुद उसे छोड़कर चली गई थी क्योंकि वह किसी और से प्रेम करती थी।जब पायल का तलाक हुआ तो हमने लोगों की बहुत बातें सुनी ।अब तुम्ही बताओ कि समाज के डर से कोई लड़की किसी गलत रिश्ते को जिंदगी भर झेलती रहे और घुट घुट कर मरती रहे।वो भी इंसान है, उसे भी हँसी खुशी जीने का हक है।"मैंने कहा हाँ सविता ये तो तुम ठीक कह रही सब को यहाँ अच्छे से जीने का हक है।पर ये नीता दी कौन हैं ?"इस पर वह बोली "नीता दी मेरी बड़ी दीदी हैं,दिल की सीधी सच्ची एक अच्छी इंसान मेरी माँ की तरह ही पति को परमेश्वर मानने वाली।बहुत दुख उठाये हैं उन्होंने, सास जिंदा थी तब तक तो ताने दे देकर उनका जीना हराम कर रखा था ।पापा ने इतना कुछ किया उनके लिये, पर उनके ससुराल वाले कभी खुश नहीं हुए ।होते तो जब, जब उनकी खुद की कमाई होती शादी के वक्त तो खूब कमाई बताई थी पर शादी के बाद सब कुछ ससुराल से ही चाहिए था।उनको जीवन भर परेशान करते रहे, वो बेचारी सीधी सादी थीं दिल से काम लेती रहीं।और ससुराल वाले उनके भोलेपन का फायदा उठाते रहे।जीवन भर तनाव झेला उन्होंने इसी उम्मीद में कि एक न एक दिन जीजाजी उन्हें समझेंगे।लेकिन जीजाजी तो बिल्कुल उनके विपरीत निकले, वो प्यार के रिश्ते में उसे फंसा कर दिमाग से खेलते रहे।मेरी भोली भाली दीदी इस सबसे बेख़बर उनके इशारों पर नाचती रही। दीदी सोचती रही कि जीजाजी उन्हें प्यार करते हैं पर ये कैसा प्यार जब पति की जरूरत हो तब पति साथ न हो। हम दोनों बहिनों और भाई की शादी में भी जीजाजी नहीं आये।दीदी अकेली आतीं जब सब जोड़े से फ़ोटो खिंचवाते दीदी की आँख में आँसू आ जाते।जिन्हें वह बड़ी सफाई से छुपा जातीं।अब तुम ही बताओ अपर्णा ऐसे रिश्ते का क्या फायदा जब वो रिश्ता तुम्हारे सुख दुख में किसी काम न आये।दीदी ने जिंदगी भर अपने आप से संघर्ष किया और अपने दिल के हिसाब से जीजाजी के बारे में सोचती रही।पर अपर्णा ये दुनिया ज्यादा अच्छे लोगों के लिये नहीं बनी है।व्यक्तित्व में कुछ मिलावट भी जरूरी है ।दीदी ने हमेशा खुद से ज्यादा अपनों की फिक्र की चाहे पिता हो या पति। तभी पापा ने जहाँ रिश्ता किया इन्कार नहीं किया और पति ने कई बार खुद के मायके के कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं होने दिया उसका भी विरोध नहीं किया।शायद न करना उनकी आदत में ही शामिल न था।वह खुद की तरह ही दुनिया के अच्छे होने की उम्मीद पाले थीं। अपर्णा ऐसे रिश्ते का क्या फायदा जो आँख में आँसू दे ,चेहरे की खुशी ही छीन ले। जो दीदी हमेशा चहकती रहती थीं,वो हँसना ही भूल गईं थीं।हमारे देश में हमेशा से परंपरा चली आ रही है कि जो औरतें किसी भी कारण से अपना ससुराल छोड़ने पर मजबूर होती हैं तो दुनिया उन्हीं को बुरा कहती है।क्या एक औरत की जिंदगी इतनी सस्ती है जो किसी एक व्यक्ति की गलत सोच के कारण उसे बर्बाद कर दे और जिसके लिये वह जीवन भर त्याग कर रही है उसे अहसास तक न हो।अपर्णा दुनिया कहाँ से कहाँ पँहुच गई पर औरत की स्थिति वहीं की वहीं है।क्या एक औरत को सुख से सम्मान से जीने का हक नहीं? अरे विवाह तो दो दिलों के प्यार का, मिलन का रिश्ता होता है अगर वहीं रिश्ता तुम्हारे जी का जंजाल बन जाये तब भी क्या उसे ढोते रहना चाहिये।पहले लड़कियाँ ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं होती थीं आत्मनिर्भर नहीं थीं ।और आज जब लड़कियाँ कमा रही हैं फिर क्यों किसी की प्रताणना सहन करें।दूसरे की लड़की का तलाक हो जाता है तो लोग बातें बनाते हैं कि निभा न पाई।पर जब खुद पर बीतती है तो पता चलता है कि तकलीफ क्या होती है।में तलाक के पक्ष में नहीं हूँ ,लेकिन जब दूसरा पक्ष लड़की के समर्पित भाव का ही फायदा उठाने लगे तो भी क्या झेलते रहना चाहिये।दीदी जितना झुकती गई जीजाजी उसे उतना ही दबाते गए।इसमें सिर्फ दीदी की ही गलती नहीं है हमारे समाज में लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि वही तेरा घर है जैसे भी हो वहीं रहना।क्यों जिस घर में वह जन्म लेती है बड़ी होती है शादी के बाद वही घर पराया हो जाता है।जो माँ बाप ससुराल वालों की लाखों की माँग पूरी करते हैं वो क्यों नहीं कहते कि हम तेरे साथ हैं ?क्यों वह उसे उसके हालात पर अकेला छोड़ देते हैं।हर बात की एक सीमा होती है अपर्णा यही कारण है कि आजकल माँ बाप की सोच बदल रही है।अब माँ बाप नहीं चाहते कि उनकी बेटी घुट घुट कर जीवन व्यतीत करे।इसलिए आजकल तलाक होने लगे हैं।ऐसा नहीं है कि पहले औरतों पर जुल्म नहीं होते थे।पहले भी यह सब होता था लेकिन पहले औरतें सहने के लिये विवश थीं।में ये नहीं कहती कि औरतों को समझौता नहीं करना चाहिये,बल्कि औरतों को समझौता करना ही पड़ता है क्योंकि वही अपना घर छोड़कर जाती हैं लेकिन एक सीमा तक ही।गलत का विरोध करना ही चाहिए अगर वह रिश्ता तुम्हारे लिये बना है तो कभी टूटेगा नहीं।वर्ना जबरन रिश्ते को ढोने से कोई फायदा नहीं। पायल के केश में ऐसा ही था पहले तो ससुरालवालों ने कह दिया कि सारा पैसा केश दे दो हम ही जेवर बगैरह बनवा देंगे और जब शादी हुई तो उसकी सास ने उसका जीना हराम कर दिया, ये कह कह कर कि कुछ भी नहीं दिया ऐसे भी कोई शादी करता है।और हद तो तब हो गई जब अभय भी इस सबमें अपनी माँ का साथ देने लगा।कुछ ही महीनों में लड़की मुरझा गई। हमेशा चहकने वाली पायल ख़ामोश सी हो गई।जब मैंने उसे अपनी कसम देकर पूछा तो उसने सब बातें बताई ।जब अभय लेने नहीं आया और उसका फ़ोन आया कि अकेली आ जाये उसके पास समय नहीं है।तब मैंने बात की मैंने कहा "पहली बात तो वह तब आएगी जब तुम अपनी माँ को समझाओ कि अहसान में रोटी नहीं खिला रहीं मेरी बेटी को,जो दिन रात ताने देती रहती हैं।दूसरी बात हम जितना देना था दे चुके अब हमारे पास फूटी कौड़ी नहीं है और आइंदा मेरी बेटी को ताने न दें वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा।और अगर तुम्हें अपनी पत्नी की जरा भी परवाह है तो इज्जत से मेरी बेटी को लेने आओ।मेरे इतना कहते ही वो बदत्तमीजी करने लगा था।मैंने भी कह दिया कि तुम तो इस रिश्ते के लायक ही नहीं थे।इसके बाद वह नहीं आया और दो महीने बाद पायल के पास फ़ोन आया आना है तो आजा वर्ना वहीं रह।तभी मैंने ठान लिया ऐसा व्यक्ति जो अपनी माँ समान औरत से बदतमीजी कर सकता है उसकी क्या कद्र करेगा।अगर हम पायल का तलाक नहीं करवाते तो अभय के साथ उसका रिश्ता दर्द का रिश्ता बन जाता जो जिंदगी भर दर्द ही देता रहता।"
में अपने घर आ गई लेकिन मेरे मन में अब भी उसकी बातें घूम रही थीं।क्यों औरत के भाग्य में सिर्फ सहना ही लिखा है ? कितनी औरतें होंगी जो ऐसे दर्द के रिश्ते के साथ जीने को विवश हैं?क्यों औरत की कद्र तब तक है जब तक उसके जीवन में पुरुष का साथ है।में ये नहीं कहती कि सभी औरतें सही होती हैं और सभी पुरुष बुरे होते हैं।ये अपनी अपनी किस्मत की बात है कि किसे प्यार का रिश्ता मिलता है किसे दर्द का।





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