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खून...


जेल की चारदीवारी में आये हुए उसे कई महीने हो गए थे
पर वह हमेशा खामोश रहती और उसे जो भी काम दिया जाता पूरे मन से उसी में लगी रहती।किसी से भी बात नहीं करती थी। जेल की दूसरी कैदी आभा ने कई बार उससे बात करने की कोशिश की लेकिन वह बहुत ही संक्षिप्त सा उत्तर देती।आभा ने ठान लिया था कि वह किरण से दोस्ती करके रहेगी।एक बार किरण को बुखार आ गया तो आभा ने उसकी बहुत देखभाल की जिससे दोनों की दोस्ती हो गई।एक दिन बातों ही बातों में आभा ने किरण से पूछा कि तुम्हारी शक्ल से लगता नहीं कि तुम एक चींटी भी मार सकती हो फिर किस जुर्म में सजा काट रही हो ।इस पर किरण के चेहरे पर दुख और घृणा के भाव उतर आए और बड़ी ही वितृष्णा से बोली सूरत से सीरत का पता कहाँ चलता है अगर सूरत से सीरत का पता चलता तो क्या में इतना बड़ा धोखा खाती। उसकी बातें सुनकर आभा की उत्सुकता और बढ़ गई यह जानने की कि उसके साथ क्या हुआ। उसने पूछा कैसा धोखा? किसने दिया तुम्हें ?
वह बताने लगी।


"अठारह साल उम्र थी उसकी, जब वह दुल्हन बन कर ससुराल आई थी।पति नवीन ने कुछ ही सालों में कई जन्मों का प्यार लुटा दिया था।फिर भी तो संतुष्ट नहीं हो पाई थी वह।उसके भाग्य में शायद पति का सुख था ही नहीं इसलिये तो नवीन इतनी जल्दी छोड़कर चला गया ।वो रात बड़ी मनहूस थी उस रात नवीन जो सोया फिर कभी नहीं उठ सका था।वह सुबह उठकर जैसे ही बाथरूम में घुसी जमीन पर नवीन को पड़े हुए पाया ।नवीन और इस हालत में उसके होश उड़ गए उसने जल्दी जल्दी नवीन को हिलाया पर उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।उसने अपना सिर पीट लिया वह बर्बाद हो चुकी थी।नवीन उसको छोड़कर जा चुका था।उसकी चीख पुकार सुनकर घर के सब सदस्य एकत्र हो गए।अपनी संतुष्टि के लिये उसे अस्पताल ले जाया गया।पर डॉक्टर ने भी उसे मृत घोषित कर दिया था।डॉक्टर ने बताया कि उसे ब्रेन हेमरेज हुआ था।पर कैसे पहले से तो कोई बीमारी नहीं थी।अब क्या हो सकता था जो होना था वो तो हो ही चुका था।और वही सच्चाई थी जिसे बदला नहीं जा सकता था। भरी जवानी में पति का चला जाना मुझे भावनात्मक रूप से कमजोर कर गया बच्चे स्कूल चले जाते और ससुर दुकान पर और पीछे से में अकेली सारा दिन रोती रहती ।ऐसे समय में नवीन के दोस्त कुणाल का आना मुझे अच्छा लगने लगा ।वह घर के भी कई काम कर दिया करता था ।क्योंकि ससुर तो बुजुर्ग थे और दोनों बच्चे छोटे थे।कुणाल हमारे परिवार के लिये पारिवारिक सदस्य की तरह था, पति नवीन के साथ अक्सर घर आता जाता रहता था।इसलिये उसकी उपस्थिति से किसी को कभी कोई एतराज नहीं था ।वह घर के किसी भी काम को कभी मना नहीं करता था।हम सबको जैसे उसकी आदत पड़ गई थी।उसके आने से मेरे शोक संतृप्त मन को बहुत राहत मिलती थी।लेकिन धीरे धीरे हम दोनों मन ही मन एकदूसरे के करीब आने लगे थे। नवीन के जाने के बाद उसका आना लोगों की आंखों में खटकने लगा था।वो दबी जवान से कई तरह की बातें बनाने लगे।फिर एक दिन मैंने कुणाल को आने के लिये मना कर दिया ।कुछ दिन तो कुणाल आया नहीं उसके न आने से में बहुत बेचैन रही उधर कुणाल का भी वही हाल था।एक दिन जब मेरे ससुर दुकान पर गए थे और बच्चे स्कूल तो कुणाल आ गया।मैंने कुणाल को देखते ही कहा "कुणाल तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था" तब कुणाल ने अपने दोनों हाथ मेरे कंधों पर रखकर मुझे पकड़कर मेरी आँखों में देखते हुए कहा "क्यों नहीं आना चाहिये था मुझे? क्या तुम सचमुच चाहती हो में नहीं आऊँ?" ऐसा कहकर उसने मुझे बाहों में भर लिया था । और फिर में भी उसकी बाहों में खोती चली गई थी।उसकी बाहों में मुझे सुकून का अहसास हुआ और तभी मुझे लगा कि कहीं में कमजोर न पड़ जाऊँ तो मैंने खुद को उसकी बाहों से अलग कर लिया। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई शायद बच्चे स्कूल से आ गए थे।कुणाल तभी वहाँ से चला गया लेकिन उसका स्पर्श मुझे अंदर तक रोमांचित कर गया शायद वह जवान और कई साल के अतृप्त तन का उद्वेग था जिसे में प्यार समझ बैठी थी।हालांकि हमने अपनी मर्यादा नहीं लांघी थी किंतु मेरे सोए हुए अरमान जागृत हो गए थे।इसके बाद यदा कदा कुणाल मुझसे मिलने आने लगा । हम दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले बातें करते रहते ।कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते ।हमारे इस संबंध की जानकारी सारे गाँव को जो गयी और एक दिन मेरे ससुर ने कुणाल को मेरे साथ देख लिया तो उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तो वह निकल भागा लेकिन तभी पड़ोस के लोगों ने उसे भागते देख लिया और पकड़ कर उसकी खूब धुनाई कर दी। उसे पुलिस के हवाले करने ही वाले थे तो वह किसी तरह जान बचाकर भाग छूटा।सारे गाँव में होती इस बदनामी से मेरे ससुर बहुत परेशान हो गए थे। मायके में मेरे भाई के पास ख़बर की लेकिन मेरा भाई नहीं आया। माँ बाप का तो पहले ही देहांत हो चुका था।
अब कुणाल से सिर्फ फ़ोन पर ही बातें होती थीं।हम दोनों एक दूसरे से मिलने के लिये बेचैन थे।कुणाल भी शादी शुदा था लेकिन उसकी पत्नी कई साल पहले उसे छोड़कर चली गई थी ।कुणाल ने कहा कि वह हमेशा के लिये मुझे अपना बनाना चाहता है।इस पर मैंने कहा कि "में अपने बच्चों को नहीं छोड़ सकती"।इस पर वह बोला " जब तुम मेरी हो तो तुम्हारे बच्चे भी मेरे"।फिर योजनानुसार एक दिन में अपना सामान और बच्चों को लेकर निकल पड़ी ।उस दिन मेरे ससुर किसी काम से बाहर गए हुए थे ।कुणाल मुझे गाँव से बाहर ही मिल गया था।हमें लेकर कुणाल एक मंदिर में गया जहाँ उसके कुछ जानने वालों के सामने पंडित ने हमारे फेरे करवाये।शादी के बाद वह मुझे अपने घर ले गया जहाँ उसके घरवालों ने हमें घर में घुसने नहीं दिया और फिर अपने दोस्त के पुराने मकान में ले गया क्योंकि उसके दोस्त ने नया घर बनवा लिया था वो सब वहाँ रहने चले गए थे।हम उसी घर में रहने लगे कुणाल की एक छोटी सी किराने की दुकान थी ।एक दो महीने खूब अच्छे से बीते बच्चे भी कुणाल को पापा कहने लगे थे। लेकिन फिर कुणाल शराब पी कर घर आने लगा।घर में पैसों की तंगी रहने लगी तो में सिलाई का काम करने लगी क्योंकि सिलाई मुझे अच्छे से आती थी ।जिस दोस्त के घर में हम रह रहे थे उसकी पत्नी से मेरी अच्छी मित्रता हो गई थी उसी के सहयोग से मुझे सिलाई के लिये कपड़े मिल जाते थे।इस पर भी कुणाल शराब के नशे में मुझे ताने मारता कि वह उसके बच्चों को पाल रहा है ।में कहती कि तुम्हें पहले से पता था कि मेरे बच्चे हैं।इस पर बात बढ़ जाती और वह मुझपर और मेरे बेटे नितिन पर हाथ तक छोड़ देता ।मुझे अब अपने फैसले पर पछतावा होने लगा था कि मैंने क्षणिक शारीरिक सुख के लिये अपने पिता समान ससुर की इज्जत, मान मर्यादा और अपने बच्चों का भविष्य दाव पर लगा दिया था।में नितिन को अपनी बाहों में भर कर आँसू बहाती।कितना प्यार करता था नवीन बच्चों को, उनकी हर फरमाइश तुरंत पूरी करता था।उनका अंग्रेजी माध्यम स्कूल में दाखिला करा रखा था ।यहाँ तो बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे थे।इसी तरह जिंदगी आगे बढ़ती रही और देखते ही देखते तीन साल गुजर गए नितिन अब 11साल का और नव्या 14 साल की हो गई थी।नव्या भी रंग रूप में मुझपर ही गई थी किशोरावस्था होने के कारण उसका रूप और निखरने लगा था ।वह घर के काम में भी मेरी मदद करने लगी थी और बेटा दुकान पर कुणाल की मदद करने लगा था।कुणाल तो अब भी शराब पीकर घर आता था।मैंने बहुत समझाने की कोशिश की पर उस पर कोई असर नहीं पड़ा।एक दिन मैंने ध्यान दिया कि कुणाल नव्या को कुछ अजीब ही नजरों से घूर रहा है ।कोई काम हो तो नव्या को ही आवाज देता, उसे अपने साथ खाने के लिये बिठा लेता।में कुछ कहती तो कहता "क्या बाप बेटी साथ खाना नहीं खा सकते"? में चुप हो जाती।अब वह बेटे को दुकान पर बिठा कर चाहे जब घर आने लगा।एक दिन तो उसने नव्या को अपने पैर दबाने के लिये कहा, नव्या उसके पैर दवा ही रही थी तभी में वहाँ पँहुच गई और देखते ही बोली "ये क्या कर रहे हो बेटियों से कोई पैर दबवाता है क्या"?तब वह बोला "तुम काम कर रहीं थीं और पाँव में बहुत तेज दर्द हो रहा था इसलिये मैंने बोल दिया" आगे से नहीं कहूँगा"।मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था मुझे कुणाल का नव्या के प्रति बदला रवैया परेशान कर रहा था।में अब कुणाल के आने के समय ही नव्या को पढ़ने के लिये कहती और कुणाल के कुछ भी मांगने पर खुद ही सारे काम करती।कुणाल नव्या के बारे में पूछता तो कह देती पढ़ रही है।

कई दिनों से मुझे बुखार था नव्या पर ही घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी। मुझे दवा देकर नव्या और नितिन अपने कमरे में सोने चले गए।में और कुणाल अपने कमरे में सो गए।अचानक आधी रात को मुझे कुछ आवाज सुनाई दी।मैंने कुणाल को जगाना चाहा तो देखा कुणाल बिस्तर पर नहीं था।और कुणाल की जगह पर नवीन सो रहा था। "ये यहाँ कैसे आ गया ?और कुणाल कहाँ गया?"
मेरा मन अनजानी आशंका से घबराने लगा।में तुरंत बच्चों के कमरे में भागी ।वहाँ अंधेरा था और नव्या की दबी सी आवाज सुनाई दी मम्मी बचाओ।मैंने तुरंत लाइट जलाकर देखा तो मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई।कुणाल ने नव्या को बाहों में कस रखा था और एक हाथ से उसके मुँह को बंद करने की कोशिश कर रहा था ताकि वह चीख न सके।मुझे कुछ नहीं सूझा मैंने इधर उधर देखा तो पास ही अलमारी में आम काटने का गड़सा दिखाई दिया मैंने आव देखा न ताव उठाकर कुणाल के सिर पर जोर जोर से प्रहार करने लगी और तब तक करती रही जब तक कि कुणाल निढाल होकर गिर न पड़ा।नव्या कुणाल की पकड़ से आजाद होकर मुझ से लिपटकर रोने लगी। आवाज सुनकर सब लोग इकट्ठे हो गए। उन्होंने कुणाल को हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ।में निर्विकार सी वहीं बैठ गई ,मुझे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं था ।पर मेरे चेहरे पर इस बात का सन्तोष था कि मैंने अपनी बेटी को बर्बाद होने से बचा लिया ।पुलिस आई और कुणाल की हत्या के जुर्म में मुझे गिरफ्तार कर लिया ।इतना कहकर किरण चुप हो गई। कुछ ही देर में फिर बोली "अब तुम ही बताओ क्या गलत किया मैंने उसका खून करके, हाँ मैंने खून किया उसका, पर उसने तो एक साथ कई खून किये मेरे विश्वास का ,मेरे प्रेम का , एक पिता के रिश्ते का।

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