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नियति



वह स्याह काली रात थी जब उसके जीवन में भी अंधकार के काले बादल छा गए थे । वह सोचती यह रात तो खत्म हो जाएगी पर उसके जीवन में आई स्याह काली रात कब खत्म होगी। सब कुछ ठीक चल रहा था कि उसकी खुशियों को ऐसा ग्रहण लग गया था जिसकी समय सीमा दिखाई नहीं दे रही थी।इंसान भी कभी कभी कितना असहाय हो जाता है नियति के आगे, न जी सकता है न मर सकता है ।कभी कभी वह सोचती कि जिंदगी को खत्म कर लूँ फिर शाश्वत का ख्याल आता था कि उसे कौन देखेगा।

कितनी खुश थी वह अपनी शादी शुदा जिंदगी में।
शादी के बाद के वो तीन महीने पंख लगाकर उड़ गए फिर अचानक उसकी जिंदगी में एक भयानक मोड़ आया जिससे उसकी जिंदगी ही बदल गई।श्वेता जैसे सोचते सोचते अतीत में कहीं खो गई थी।अपने पापा की लाडली नन्ही सी प्यारी सी गुड़िया पढ़ने लिखने खेलने कूदने हर चीज में अव्वल थी ।वह एक भाई और एक बहिन थे पिता का अच्छा बिज़नेस था।दोनों भाई बहिन पढ़ने में अच्छे निकले।दोनों ने अच्छे संस्थान से इंजीनियरिंग की फिर अच्छी नौकरी भी लग गई।पिता ने उसके लिये कई लड़के देखे फिर एक इंजीनियर लड़का शाश्वत उन्हें पसंद आ गया ।शाश्वत उसी कंपनी में नौकरी करता था जिसमें श्वेता नौकरी करती थी।पहले सगाई फिर अच्छे से शादी भी हो गई।शाश्वत बहुत ही सुंदर और सुशील होनहार लड़का था और उसकी तनख्वाह भी अच्छी थी। शादी में शामिल उसके रिश्तेदार उसके भाग्य को सराह रहे थे।तीन महीने जैसे पंख लगाकर उड़ गए। वह जैसे सपनों की दुनिया में थी ।वह अपने भाग्य को सराह रही थी कि उसे शाश्वत जैसा पति और इतना अच्छा घर परिवार मिला। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था ।उसकी खुशियों को तो जैसे किसी की नजर लग गई थी ।शादी के एक महीने बाद ही एक दिन दोनों स्कूटी से आफिस से लौट रहे थे कि दुर्घटना घट गई। दोनो आफिस स्कूटी से साथ ही जाते थे क्योंकि दोनों एक ही जगह काम करते थे ।हर दिन की तरह आज भी वो आफिस से निकले थे शहर से बाहर खाली रोड पर थे स्कूटी की स्पीड भी तेज थी क्योंकि सड़क खाली थी कि अचानक ही स्कूटी के सामने एक सांड आ गया वो कुछ समझ पाते और ब्रेक लगाते स्कूटी सांड से बुरी तरह टकराकर गिर गई वो तो सड़क की एक तरफ छिटक कर गिर पड़ी लेकिन शाश्वत उछलकर दूर जा गिरा। उस दुर्घटना में उसे तो कम चोटें आईं थीं लेकिन शाश्वत की हालत गंभीर थी। किसी तरह उठकर उसने अपने सहकर्मियों को फ़ोन किया तो वह तुरंत गाड़ी लेकर पँहुच गए थे और उन्होंने शाश्वत को अस्पताल में भर्ती कराया था। फिर वहीं से उसने अपने और शाश्वत के घरवालों को फ़ोन किया थ।ख़बर सुनते ही वो लोग भी तुरंत रवाना हो लिये थे। लाखों रुपया खर्च करने के बाद किसी तरह शाश्वत की जान तो बच गई लेकिन उसके शरीर के निचले हिस्से को फालिस मार गई। शाश्वत का काफी इलाज चला उसके(श्वेता) पिता ने भी उसकी खूब मदद की लेकिन उसे कोई फायदा नहीं हुआ।अचानक हुए इस हादसे से वह सदमे में आ गई और वह बहुत गुमसुम और खोई खोई रहने लगी।महीनों तक आफिस नहीं गई ।माता पिता और भाई के बहुत समझाने पर उसने अपने आपको संभाला ।वो फिर से डयूटी पर जाने लगी ।उसके सास ससुर भी उसके पास आ गए थे।वो घर बाहर दोनों जिम्मेदारी संभालने लगी साथ ही शाश्वत की देखभाल भी।शाश्वत की हालत उससे देखी नहीं जाती थी । उसके सामने तो नहीं पर चोरी छिपे आँसू वह बहाती रहती थी। वह पूरे तन मन से शाश्वत की देखभाल में इस कदर जुट गई कि उसे अपना भी ख्याल नहीं रहता था। वह ईश्वर से दिन रात उसकी सलामती के लिये दुआ करती रहती थी।उसके लिये उसने व्रत उपवास क्या क्या नहीं किये।लेकिन उसकी हालत में कुछ ख़ास सुधार नहीं हुआ।वह अपनी जिंदगी से बुरी तरह निराश हो चुकी थी और हर समय उदास और खोई खोई रहने लगी थी।श्वेता की ये हालात शाश्वत से छिपी नहीं थी वह भी उसे रात के अंधेरे में रोते हुए देखता था पर अनजान बना रहता था।एक रात श्वेता को नींद नहीं आ रही थी तो उसने अपने हाथ पर शाश्वत का हाथ महसूस किया वह उसकी तरफ देख रहा था उसकी आँखों में आँसू थे।उसके आँसू देखकर श्वेता अंदर तक हिल गई थी।"वह बोली क्या बात है शाश्वत कुछ कहना चाहते हो"।तब वह श्वेता का हाथ अपने हाथ में लेकर अटकती आवाज में बोला था "तुम दूसरी शादी कर लो मुझे तलाक देकर"।श्वेता सुनकर हैरान रह गई।"क्या कह रहे हो शाश्वत? तुम्हें पता है शाश्वत तुम क्या कह रहे हो ? तुम मुझसे जीने का मकसद ही छीनना चाहते हो " श्वेता रोते हुए बोली ।"में तुम्हें दुखी नहीं देख सकता श्वेता,तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है इस तरह कैसे जियोगी तुम" शाश्वत ने लड़खड़ाती आवाज में कहा।"और तुम से दूर रहकर में सुखी हो जाऊँगी, तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया?।क्या इतने दिनों में तुमने मुझे इतना ही समझा।में दुखी होती हूँ तो सिर्फ तुम्हारे लिये मुझसे तुम्हारी ये हालात देखी नहीं जाती।मेरी जगह तुम होते तो क्या तुम मुझे इस हालत में छोड़ देते" श्वेता बोली।"तो वादा करो आज के बाद तुम कभी उदास नहीं होगीं"शाश्वत बोला था।"वादा करती हूँ" मुस्कराते हुए श्वेता बोली।श्वेता भी अब उस दर्द से उबरने की कोशिश कर रही थी।उसके चेहरे पर अब मुस्कराहट नजर आती, खासकर शाश्वत के सामने।कुछ ही दिन बीते कि अचानक शाश्वत के व्यवहार में बहुत बदलाव आ गया ।वह अब श्वेता पर गाहे बगाहे अपना गुस्सा निकालता रहता और उससे ठीक से बात भी नहीं करता श्वेता समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।
एक दिन "कितना नमक भर दिया है सब्जी में"कहकर उसने श्वेता को खूब खरी खोटी सुना दी।श्वेता भी इंसान थी आखिर कब तक सहती रोते हुए बोली "एक टाँग पर नाचती रहती हूँ घर बाहर, फिर भी दस बातें सुनाते हैं ठीक से बात भी नहीं करते" तो शाश्वत बोला "हाँ तो किसने कहा है सहने के लिये चली जाओ"।श्वेता उस दिन खूब रोई,शाश्वत की माँ भी यह सब देख रही थीं।उन्होंने श्वेता को समझाया कि बीमारी की वजह से चिड़चिड़ा हो गया है।शाम को श्वेता सब्जी आदि लेने निकली लेकिन पर्स ले जाना भूल गई और वह रास्ते से लौट आई तो जैसे ही दरवाजे पर पँहुची उसने सुना उसकी सास अपने बेटे से कह रही थी "दिन भर तो बेचारी लगी रहती है, आफिस घर सब संभालती है, फिर भी तू उसके साथ कैसा व्यवहार करता है"।तो शाश्वत रुँधे गले से बोला "यह सब करना मुझे भी अच्छा नहीं लगता है ।जब भी उसे दुख पंहुचाता हूँ,मेरा दिल रोता है ।पर इसके अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं है।में चाहता हूँ श्वेता मुझे तलाक देकर अपना घर बसा ले।क्योंकि में नहीं चाहता कि वह इस तरह घुट घुटकर जिन्दगी गुजारे"।उसकी यह बात सुनकर उसकी माँ भी रोने लगी थी।"आप होते कौन हैं मेरी जिंदगी का फैसला करने वाले और आपने कैसे सोच लिया आपके व्यवहार से तंग आकर में आपको छोड़कर चली जाऊँगी"कहते हुए श्वेता ने कमरे में कदम रखा।"पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ सुख का रिश्ता नहीं होता सुख दुख का रिश्ता होता है।मैंने आपके साथ सुख दुख में साथ निभाने की कसमें खाई हैं और में मरते दम तक कसमें निभाउंगी।मेरी जिंदगी में अगर सुख होंगे तो आप जल्दी ही ठीक हो जाओगे चाहे कोई डॉक्टर कुछ भी कहे"।उस दिन के बाद श्वेता ने अपने आपको और व्यस्त कर लिया था।उसने निश्चय किया कि अब वह अपनी जिंदगी को नहीं कोसेगी और न ही उदास रहेगी।वह कुछ ऐसा करेगी कि नकारात्मक विचार उसके दिमाग में आये न।नकारात्मक विचारो का प्रभाव अपने आस पास के व्यक्तियों पर भी पड़ता है ये तो वह जान ही गई थी।उसे ज्योतिष विद्या में रुचि थी तो उसने निश्चय किया कि क्यों न में दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ज्योतिष का कोर्स करूँ।इससे में व्यस्त रहूँगी और कुछ नया सीखने को मिलेगा और दिन रात उसके दिमाग में यही चलता रहता।

एक दिन श्वेता बैठी चाय पी रही थी तो टेलीविजन पर एक कार्यक्रम आ रहा था ज्योतिष के ऊपर उसके नीचे लिखा हुआ था ऑनलाइन ज्योतिष सीखें।उसके दिमाग में एक विचार आया कि "क्यों न में इसी से ज्योतिष सीखूँ" और तुरंत ही उसने नीचे दिए नंबर पर फ़ोन मिला दिया।फिर बात चीत कर ऑनलाइन कोर्स की क्लासेज करना शुरू कर दिया।उसको इस तरह व्यस्त और खुश देखकर शाश्वत भी खुश था और वह भी खूब मन से एक्सरसाइज वगैरह में फियोथेरेपिस्ट का सहयोग कर रहा था ।श्वेता ने नौकरी के साथ साथ कड़ी मेहनत करके ज्योतिष का कोर्स कम्पलीट किया।ज्योतिष सीखने पर उसे अपने कई सवालों के जबाब मिल गए। उसके जानने वालों को जब पता चला कि उसने ज्योतिष का कोर्स किया तो वह अपनी व अपने बच्चों की जन्म पत्रिका दिखाने बनवाने आने लगे।जिससे श्वेता और व्यस्त रहने लगी।ज्योतिष में उसकी रुचि और बढ़ती जा रही थी। इधर उसकी देखभाल और पूजा प्रार्थना से शाश्वत धीरे धीरे ठीक होने लगा था। कई सालों की उसकी तपस्या अब सफ़ल होने लगी थी।जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी थी। वह समझ गई थी कि बुरे से बुरे वक्त में भी हम धैर्य बनाये रखकर सकारात्मक सोचकर परेशानियों से पार पा सकते हैं।और अपनी जिंदगी में खुशियों को फिर से ला सकते हैं।




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