परवरिश Sunita Agarwal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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परवरिश

उस दिन फिर माँ बेटे में किसी बात पर झगड़ा हुआ था और इस झगड़े ने हर बार की तरह रौद्र रूप धारण कर लिया।माँ बेटे दोनों में जोरदार बहस हो रही थी।न माँ चुप होने को तैयार थी न ही बेटा।अंजली ये सब देखकर परेशान हो रही थी उसने अंकित का हाथ पकड़ा और बोली ये क्या तरीका है माँ से बात करने का पर अंकित ने उसका हाथ झटक दिया।काफी देर झगड़ने के बाद दोनों शांत हो गए। अंजली अंकित का ये रूप देखकर चिंतित हो गई कि जो सख्श अपनी माँ से इस तरह व्यवहार कर सकता है वह कभी जब उसके मन कि न होने पर उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा। हालांकि कमी माँ बेटे दोनों में थी दोनों ही जिद्दी और कलहप्रिय थे। आपस में झगड़ा करना उनके स्वभाव का हिस्सा था महीने पन्द्रह दिन में जब तक वह झगड़ नहीं लेते उन्हें चैन नहीं मिलता। अंकित का ये व्यक्तित्व अपनी माँ की ही परछाई था । लेकिन हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है उसकी सीमा से पार जाकर हम किसी के साथ व्यवहार नहीं कर सकते फिर वो तो उसकी माँ है। वह अंकित को समझाती कि उसे माँ से इस तरह बात नहीं करनी चाहिये अगर वो कुछ गलत भी कहती हैं तो उनको कायदे से समझाओ इस तरह संस्कारों को ताक पर रख कर नहीं ।फिर गुस्सा शांत होने पर दोनों का गुस्सा किसी न किसी बहाने अंजली पर निकलता। अंजली ऐसी परिस्थिति से घबराती थी क्योंकि उसने मायके में तो कभी ऐसा नहीं देखा था रिश्तों में हमेशा एक मर्यादा रही जो कभी किसी ने पार नहीं की। फिर वही रूठने मनाने का दौर चला अंजली अपनी सास के लिये खाना लेकर गई पर उन्होंने खाने से इन्कार कर दिया।फिर अंकित ने बहुत खुशामद करके खाना खिलाया तब जाकर खाया।
इसी तरह जिंदगी की गाड़ी हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ती रही । जिंदगी के इस सफर में उसे कई बार ऐसा लगा कि अब गाड़ी पटरी से उतरी और तब और सब खत्म ।लेकिन शायद माँ के दिये पति भक्ति के संस्कार उसमें इतने कूट कूट कर भरे थे कि जिसने उसकी जिंदगी की गाड़ी को पटरी से उतरने नहीं दिया। हालाँकि रिश्तों की इस गाड़ी को खींचने में वह कई टूटी बिखरी लेकिन हर बार उसने खुद को संभाल लिया । फिर उसकी जिंदगी में दो नन्हे फरिश्तों ने जन्म लिया उन्हें पाकर तो जैसे उसे जीने का मकसद ही मिल गया। समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा और उसके सास ससुर भी इस दुनिया में नहीं रहे। नहीं बदला तो अंकित का व्यवहार अच्छे मूड में होता तो लगता इससे अच्छा कोई व्यक्ति नहीं है और जब क्रोधित होता तो सारे रिश्ते नातों को ताक पर रख देता। बच्चे बड़े हो रहे थे लेकिन अंकित को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कभी हुआ ही नहीं।उसने कोई काम मन लगाकर किया ही नहीं तो घर में पैसे की तंगी बनी ही रही ।वह तन मन से बच्चों की परवरिश में जुट गई इसी उम्मीद में कि इनकी जिंदगी संवार सकी तो उसका जीवन सार्थक हो जाएगा। इसके लिए उसने कड़ी मेहनत की स्कूल में पढ़ाया ट्यूशन किये फिर अपने घर पति और बच्चों की देखभाल। लेकिन जब बच्चों का पढ़ाई के प्रति ज्यादा रुझान न देख वह परेशान हो जाती। "क्या इनका भी भविष्य नहीं संवार पाऊँगी।क्या मुझे ऐसे ही जीना होगा बिना किसी मकसद के" उसके सपने तो पहले ही टूट ही चुके थे अब बच्चों को लेकर जो सपने हैं वो भी पूरे नहीं होंगे वह दिन रात इसी चिंता में घुलती रहती। अंकित इन सब बातों से बेखबर अपनी ही सोच में गुम था उसने जिंदगी को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। कभी कभी उसे चिंता भी होती कि कहीं बच्चे भी अपने पिता की तरह गैरजिम्मेदार निकले तो दूसरे ही पल उसका दिल कहता नहीं मेरे बच्चे जरूर कामयाब होंगे मेरे दिए संस्कारों और परवरिश में कुछ तो असर होगा उन पर और उसने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और बच्चों को समझाने में, उनकी जरूरतों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं वरती।बच्चों का हौसला बढ़ाती रही उन्हें प्रेरित करती रही साथ ही साथ ईश्वर से भी उनकी कामयाबी और सद्बुध्दि के लिये प्रार्थना करती रही। उसकी प्रार्थनाओं और ईश्वर की कृपा का ही नतीजा था कि बच्चों की पटरी से उतरती गाड़ी धीरे धीरे दुबारा पटरी पर आने लगी थी। वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगे बिना किसी कोचिंग संस्थान के। अंकित को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था क्योंकि जब बच्चों के बोर्ड के परीक्षा परिणाम आशा अनुरूप नहीं आये तो उसकी दृष्टि में वह किसी लायक नहीं रहे थे। उसे सब चीजें, व्यक्ति परफेक्ट चाहिये थे वो खुद कितना परफेक्ट है इस बात पर कभी गौर ही नहीं किया था या वो अपने गुणों की कमी उनसे पूरी करना चाहता था।
अंजलि की अंधेरी जिंदगी में उम्मीद की किरण तब दिखाई दी जब उसकी बेटी अवनी का स्टेट बैंक में सेलेक्शन हो गया। उसने राहत की सांस ली कम से कम नौकरी तो मिली जिन अभावों में उसने जिंदगी काटी है वैसी तंगी तो नहीं रहेगी उसकी बच्ची के जीवन में। फिर उसके लिये अच्छा घर वर भी मिल जाएगा । उसके सपने टूटे पर उसके बच्चों के सपने तो पूरे होंगे ।अब छोटे बेटे अर्पित की बारी आई वह upsc की तैयारी करना चाहता था हालांकि अंजलि चाहती थी कि जो नौकरी पहले मिले उसे पकड़ ले साथ ही तैयारी भी करता रहे। क्योंकि upsc की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिये कड़ी मेहनत चाहिये। और अर्पित इतनी संजीदगी से पढ़ाई नहीं कर पाता था। अपनी माँ की बात मानकर अर्पित ने लिपिक पद के लिये भी परीक्षा दी थी जिसमें उसका सेलेक्शन हो गया था।अंजलि की बहुत बड़ी मुश्किल मानो हल हो गई थी।अर्पित ने नौकरी जॉइन कर ली और साथ ही साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करता रहा ।इस बीच अवनी भी असिस्टेन्ट मैनेजर बन चुकी थी। उसके लिये एक अच्छा रिश्ता भी मिल गया लड़का गौरव भी असिस्टेन्ट मैनेजर था। देखने में सुंदर और सुशील स्वभाव का था। गौरव और अवनी की शादी खूब धूमधाम से हो गई। अवनी तो गौरव जैसा दामाद पाकर निहाल ही हो गई। दो साल बाद जब अर्पित का भी upsc में चयन हुआ तो मानो जिंदगी से उसकी सारी शिकायतें दूर हो गईं उसे लगा उसका जीवन सार्थक हो गया। इस प्रकार उसके उस अटूट ईश्वर विश्वास की एक बार फिर से जीत हुई थी जिसके दम पर वह जिंदगी की तमाम मुश्किलों से जूझती आई थी।