डोर (धर्म और कर्म की)... सिमरन जयेश्वरी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

डोर (धर्म और कर्म की)...

वो आज खुद को आईने के सामने बेठ के निहारे जा रही थी।आज उसकी चेहरे की चमक एसी थी की उसके आगे चाँद की चांदनी भी फीकी पड़ जाये।
आज वो लाल जोड़े मे दुल्हनो की तरह सजी थी,और सजना मुनासिफ भी था आज उसकी शादी जो थी।
आज उसकी जिन्दगी का वो दिन था जिस दिन के सपने अधिकतर लड़कियाँ अपनी किशोरावस्था मे ही देखना शुरु कर देती है।
हालांकी उसने अपनी किशोरावस्था मे सिर्फ अपनी शादी का ही सपना नही देखा था, अपितु उसने कईयों ख्वाब संजोये थे अपने जीवन के लिये।
उन्ही मे से एक सपना वो सच कर चुकी थी वो था "डॉक्टर" बनना। हां अब सिर्फ हृदयंशी शर्मा नही थी बल्कि "डॉ. हृदयंशी शर्मा"बन चुकी थी।
लेकिन उसका दुसरा सपना आज पूरा होने वाला था, जो उसने डॉक्टर बनने के साथ-साथ देखा था की, एक फौजी से शादी करना।
उसका मन तो उसी दिन उमंगो से भर गया था की उसे देखने के लिये लड़के वाले आ रहे है और लड़का आर्मी मे है। यहा तक की उसके ससुर,सास,जेठ और जेठानी भी आर्मी मे है। आज दूर-दूर तक उसके और उसके होने वाले पति के नाम के कागज लगे हुए थे " डॉ. हृदयंशी शर्मा संग मेजर. करन शर्मा"।
वो अपने खयालो मे खोयी ही हुई थी की पीछे से आकर विद्या ने उसे गले लगा लिया और कहा," क्या दीदी खुद को जी भर कर देख लिया हो तो अब जीजू के लिये भी कुछ छोड दो।"
विद्या उसके मामा की बडी बेटी है। इतना सुनकर हृदयंशी का चेहरा शर्म से लाल हो गया।....
लगभग दो घन्टे बाद विद्या आयी और हृदयंशी से कहा," बारात आ चुकी है दीदी।
और जीजू भी एक दम handsome लग रहे है।" दोनो खिल्खिलाकर हंसने लगी।
अब वरमाला हुआ और फोटोशूट होने के बाद। सुबह अपने समाज की रस्मो के अनुसार हृदयंशी को पीली साड़ी पेह्नानी थी।
उसके बाद फेरे हुए।... फेरो के बाद विदाई के लिये हृदयान्शी को रस्मो के अनुसार लाल जोडा पहनना था। उसने अपनी बडी बहन, मम्मी और मौसी वगेरह की मदद से लाल साड़ी पहन ली।
वो लाल साड़ी पहन नयी नवेली दुल्हन के सारे शृंगारो के साथ न्याय किये हुई थी।...
विदाई की रस्म शुरु ही होने वाली थी की उसे किसी औरत के रोने और चिल्लाने की आवाज आयी,
" डॉक्टर मैडम, डॉक्टर मैडम..मैडम बचा लो मेरे बच्चे को,बचा लो मैडम।" हृदयान्शी बाहर जा कर देख्ना चाहती थी लेकिन उसने सामने लगे आईने मे देखा।
वो अब किसी की दुल्हन और किसी के घर की बहू थी, और इस तरह बाहर जाना अच्छा नही है।
वो असमंजस मे खड़ी थी। तभी उसके हॉस्पिटल की नर्स अन्दर आयी और बोली,
" डॉक्टर, ये वही औरत है जिसके बच्चे का केस अभी पिछ्ले हफ्ते ही आपके पास आया है। उस बच्चे को attack शुरु हो गया है, आपकी शादी थी।
इसलिये दुसरे शहर से स्पेशलिस्ट बुलाया था लेकिन उन्हे आने मे अभी 3 घन्टे है। हमने बच्चे को सारी दवाई और bottles लगा दी पर कुछ असर नही हुआ। हमे बच्चे की सर्जरी करनी होगी।" ...
हृदयान्शी एक बार फिर असमंजस मे थी।
तभी उसे आवज आयी," डॉक्टर.हृदयान्शी शर्मा बहर आईये।" ये आवाज और किसी की नही बल्कि करन की थी, उसने शायद नर्स की बातें सुन ली थी।
वो वही स्तभ्ध खड़ी थी लेकिन करन ने उसे एक बार और आवाज दी थी।
इस बार हृदयान्शी ने बहू होने के नाते सर से सीने तक का पल्लू ओढ़ लिया और बाहर आयी।
"जी बोलिए।" हृदयान्शी ने करन से कहा।
तभी करन उसकी ओर मुड़ कर बोले,"आप मेरी दुल्हन या मेरे घर की बहू से पहले एक डॉक्टर है, और आपको फर्ज निभाना होगा।
वो बात तो आपने सुनी ही होगी की,"कर्म ही पूजा है"। तो जाईये और अपना कर्म निभाए।" हृदयान्शी अब भी सोच मे खड़ी थी की, तभी उसके ससुर की आवाज आयी,"बेटा तुम जाऔ विदाई मे अभी बोहोत समय है, आज तुम्हे अपना कर्म निभाना है।
मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, जाऔ।" अबकी बार उसने बिना देर किये कार निकाली, और हॉस्पिटल की तरफ निकल गयी। अपने दुल्हन वाली लाल साड़ी पहने-पहने वह हॉस्पिटल जाने लगी।
हर कोई उसके इस रूप को देख कर चोंके हुए थे। हॉस्पिटल पहुचते ही वह तेज कदमो से operation theater मे जाने लगी तभी पीछे से नर्स ने कहा,"मैडम आपकी ड्रेस...." इससे पहले की वो नर्स अपनी बात रखती हृदयान्शी ने कहा," हमारे पास इतना टाईम नही है, हमे उस बच्चे की जान बचानी होगी। मुझे जल्दी से मेरा कोर्ट और ग्लव्स दो।"....
लगभग 3 घन्टे बाद हृदयान्शी OT से बाहर निकली। तब तक सारे बराती-घराती वहा पहुच चुके थे।
सभी उसको आशाजनक निगाहों से देख रहे और उसके आने इन्तज़ार सबसे ज्यादा तो करन को था। वो बाहर आयी तो करन ने आंखों से ही अपना सवाल पुछ लिया।
तभी उसने कहा,"congrats..operation successfull रहा।" "hurray!!!" सब एक साथ बोल पड़े। करन ने अपने दोस्त को भेजकर पूरे हॉस्पिटल मे मिठाई बटवा दी। और हृदयान्शी के पास आ कर बोला," आई एम वेरी प्राउड ऑफ़ यू हृदयान्शी।
आई एम फीलिंग वेरी प्राउड डेट यू अरे माय honourable वाइफ।" हृदयान्शी के चेहरे पर एक सुन्दर मुस्कान एक सुनहरी चमक के साथ छा गयी। उस बच्चे की माँ आकर उसके पैरों मे गिर गयी।
उसने उसे उठा लिया। और वो औरत हृदयान्शी से लिपट कर रोने लगी। उसे
आज लगा जेसे उसके जीवन के 7 सालो की मेहनत आज रंग लायी हो...
.
.
.
.