संडे का दिन...
आज जब सुबह-सुबह जाग कर छत अपनी आदतानुसार छत पर टहल रही थी।
तभी नज़र सामने वाले मकान पर पड़ी।
एक लड़कीं जो मुझसे उम्र में दो साल छोटी ही रही होगी, अपनी बालकनी में खड़ी हो कर नीचे देख रही थी।
मैंने भी उसकी बालकनी के नीचे की तरफ देखा, सामने का द्रश्य देखकर मैं रैलिंग से हाथ टिकाकर खड़ी हो गयी।
सामने उसी लड़कीं का हमउम्र लड़का हाथों में एक गुलाबी रंग का रोज लेकर कान पकड़े खड़ा था।
शायद वो लड़कीं उससे गुस्सा थी और वो उसे मनाने की जद्दोजहद कर रहा था।
वो लड़का उठक-बैठक करने लग गया पर जैसे वो लड़कीं हद से ज्यादा गुस्सा थी।
उसने उसी भावहीन चेहरे से उसे देखना जारी रखा। वो लड़का अब भी मायूस था।
अचानक वो लड़का जमीन पर बैठकर रोने लग गया, शायद उसे पछतावा किसी गलती का।
मैंने अब सामने देखा। लड़कीं की आंखें भी छलक आयीं थीं।
उस लड़की के घरवाले संडे का लुफ्त सोते हुए उठा रहे थे और वहीं वो लड़कीं दबे पाँव नीचे आ गयी।
मैं थोड़ा छुपकर उन्हें देखने लगे गयी हालांकि ये गलत था कि मैं किसी को वाच कर रही थी।
पर मानव प्रवत्ति के अनुसार जी ललचाया की देखा जाए कि क्या होगा।
दोनों अब एक पार्क की तरफ जाने को हुए। मैं भी छत की दूसरी तरफ जाकर उन्हें देख रही थी।
संयोगवश वो उसी पार्क में थे जिसे मैं छत से आसानी से देख सकती थी।
अचानक ही लड़कीं ने लड़के को गले लगा लिया। अब दोनों इमोशनल होने को थे।
वक़्त अब उन दोनों के करीब होकर एक दूसरे की 'प्यास' बुझाने का था।
आय मीन टू से ...!! किस्सी-विस्सी होने वाली थी उनकी ..!!!
मेरी देखने की क्षमता नही थी तो मैं वापस आकर रेलिंग से टिककर खड़ी हो गयी जहां से उस लड़की को देख रही थी।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद दोनों वापस आये, इस बार दोनों के चेहरे खिले हुए थे।
लड़के के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी और वहीं लड़कीं का चेहरा शर्म से लाल हुआ पड़ा था।
लड़का वहां से अपनी बाइक उठाकर चल पड़ा और लड़कीं भी अपने घर में जाने को हुई।
वैसे उम्र मुझसे 2 साल छोटे लगने वाले उस लड़के की बाइक चलाने की सफाई...,
और स्पीड देख कर मैं लज्जित थी। क्यूंकि जहां वो बाइक को आराम से लहरा रहा था।
वहीं मुझे स्कूटी तो छोड़ो ठीक से साईकल भी चलानी नहीं आती थी। हुँह टेलेंटलेस गर्ल ..!!!!
खैर घर मे चुपके से घुसती हुई लड़कीं को मैंने सिटी बजायीं, वो मुड़ी और मुझे अपनी तरफ देखता पाकर सहम गई।
"दो बजे लाला की दुकान पर...!!!" मैंने हाथों के इशारे से उसे कहा।
उसने हामी भरी। मैं दो बजे दुकान पर थी। तभी वो आयी। चेहरे पर 'क्रीम पोडर' की चमक दिख रही थी।
"क्या माजरा है बहन..????" मैंने आंखों से ही उससे सुबह के वाकये के सवाल का जवाब मांगा। उसके आगे जो उसने बताया सुनकर मेरी भौंहे तन गयी।
जैसे मैंने आंखों से ही कहा हो "सच मे...???"...!!! उसने फिर से हाँ की।
उसने बताया कि वो लड़का उसका 'बॉयफ्रेंड' था..!!! जिससे कल उसकी लड़ाई हो गई थी।
कारण था कि लड़का उस लड़की को किस करने के लिए फोर्स कर रहा था।
और आज वो उसे मनाने आया था।
पर मैं समझ गयी कि मनाना तो बहाना था असल मे उस लड़के ने अपना पल्ला जीत लिया था।
मैंने उससे उसकी और उसके 'बॉयफ्रेंड' की एज पूछीं और जवाब सुनकर मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं हुआ।
"स्वीट थर्टीन..!" उस लड़की ने शर्माकर कहा। मैं कुछ नहीं बोली पर उस लड़की को ये खटका।
"दीदी प्लीज किसी से कहिएगा मत...!!! भले ही अबकी बार मैं मदद कर दूंगी...!!" उसने कहा।
मैंने फिर आंखों से सवाल किया कि "कैसी मदद..???"।
"आप अगर अपने 'बॉयफ्रेंड से मिलना चाहो तो मैं मदद कर दूंगी...!!!
आय विल डेफिनेटली हेल्प यु...!!! " उसने कहा।
"ठहर जा...!!! थम जा...!!! मेरा कोई 'बॉयफ्रेंड' नहीं हैं...!!!" मैंने कहा तो उसकी हंसी छूट गई पर मेरे सख्त भाव देख वो चुप हो गई।
"आपकी एज क्या है..???" उसने सवाल किया।
"सिक्सटीन...!!!" मैंने कहा। उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं कोई अपराधी हूँ।
"क्या करूँ बहन...!!! किस्मत ही ऐसी है..!!! मेरे जमाने के लड़के तो बात करने में ही डरते थे...!!!" मैंने उससे कहा।
'जमाने' शब्द पर मैंने ऐसा ज़ोर देकर कहा जैसे मैं राजा-महाराजाओं के जमाने की थी।
उसे हंसी आ गयी।
"दी आप किसी से कहेंगे तो नहीं ना...!!!" उसने डर से कहा।
"चल जा...!!! किसी से नहीं कहूँगी...!!" मैंने कहा और वो निश्चिन्तता से चली गयी।
हालांकि मन तो हो रहा था कि उसकी फैमिली को चिल्लाकर बता दूं की लड़कीं गलत 'संगत' में हैं।
बता दूं कि जब आप लोग मगरमच्छ बेचकर सोते हो तब आप लड़कीं अपने 'बॉयफ्रेंड' से 'मुलाक़ात' करती है।
पर ठीक है जाने दो। मैं खुद से ही बोली। और उस लड़की का चेप्टर वहीं क्लोज किया।
अब वो दोनों 'मुलाक़ात' करते तो मैं खुद अपने कमरे में चली जाया करती क्योंकि किसी की 'प्राइवसी' में दखल नहीं देना चाहिए।
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अगले दिन सोमवार था यानी कि कोचिंग...!!! हाए ये मंडे...!!!
खैर मैं अपना 'झोला' आय मीन बैग को लेकर कोचिंग के लिए निकल गयी।
तभी चौराहे के लिए जाने वाले रास्ते मे मुझे वो दिखा। मेरी ही क्लास का था।
मेरे स्कूल की ब्लू टीम का कबड्डी प्लेयर और टेंथ क्लास में मेरा क्लासमेट।
जिसका रोल नंबर मेरे पीछे वाली सीट पर रहता था।
पांच बाय नौ की हाइट तो होगी उसकी, साथ ही गोरा रंग, हल्की गुलाबी रंगत लिए होंठ, होंठो के ऊपर हल्की मूंछे, घने भूरे बाल, लम्बी लेकिन शार्प नही बल्कि हल्की गोल नाक और बड़ी-बड़ी काले रंग की आंखें।
यूँ तो मुझे कोई खासा इंटरेस्ट नहीं था पर कल के हुए उस वाकये के बाद।
ऐसा लगता था कि, "यार ऐसा कोई मिल जाये तो 'बॉयफ्रेंड' बनाने में मजा भी आये...!!!"
मैंने आज पहली बार उसे इतनी गौर स देखा था और अचानक ही उसकी नज़र मुझपर पड़ी।
पर अकेली मैं नही वो भी थोड़ा घबरा गया था। मैं मुंडी नीचे करके जाने लगी।
"स.... " बड़ी मुश्किल से उसने मेरा नाम लेकर मुझे रोका।
"हाए...!!! सच मे इसने बुलाया...!!! मुझे हार्ट अटैक तो नहीं आ जायेगा...!!" मैं खुद से बोलती हुई रुकी।
"वो... वो... मैं... वो... कुछ कहना था...!!!!" उसकी जबान लड़खड़ा रही थी।
"बोल....!!!!" मैंने कहा।
नाजाने क्यूँ पर मेरा मन वो सवाल सुनने को हुए जा रहा था जिसे आजकल 'थ्री मैजिकल वर्ड्स' से सम्बोधित किया।
सही मायने में वो वर्ड्स मैजिकल ही होते हैं...!!! सुनने के बाद मानो पंख आ गए हो।
पर मेरी मरी किस्मत ऐसी कहाँ थीं।
"वो मुझे तेरी बायो की नोटबुक चाहिए थी....!!!!" उसने जल्दी में कहा।
"धत्त तेरी की....!!!!" मैं मन ही मन सोच रही थी।
जहां दूसरी लड़कियां उन 'थ्री मैजिकल वर्ड्स' को सुनकर थप्पड़ मारती थी।
वहीं पर मुझे उसकी ये लाइन सुनकर लगा कि अभी इतनी जोर का रसिदूँ न कि किसी से नोटबुक मांगने लायक न रहे।
पर खैर छोड़िए। मैं गुस्से का घूंट पीकर रह गई।
"ठीक है...!!! कल मिलियो...!!! मेरी कोचिंग के बाहर...!!! ले जाना..!!!" मैंने गुस्से में कहा और तेज़ कदमों से अपनी कोचिंग हो ली।
मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी कि वो मुझसे वो 'थ्री मैजिकल वर्ड्स' क्यों कहेगा।
घर आकर आईने के सामने खड़े होकर मैंने खुद पर एक भरपूर निगाह डाली।
गेंहुआ रंग, गोल-गोल 'रसगुल्ले' कहे जाने वाले गाल, गोल नाक, हल्की गुलाबी रंगत लिए होंठ...,
चिपकी और गुंथी हुई एक चोटी, पांच बाय तीन की हाइट, बड़ी भूरी आंखें, डबल-चीन वाली गर्दन और गोल-मटोल 'हेल्दी' शरीर।
मैंने अफसोस भरी निगाह खुद पर डाली और उसकी तरफ से खुद को खुद ही रिजेक्ट कर दिया।
अनमने ढंग से बायोलॉजी की नोटबुक बैग में डाल दी। और बेमन से खाना खाकर बिना नींद वाली आंखों से सोने लगी।
पर मन में बार-बार आ रहा था की "यार..!!! इतनी भी खराब नहीं दिखती..!!! पर फिर भी ना तो किसी का प्रोपोज़ल मिला और ना ही अभी तक कोई फ़टका आस-पास...!!!"
बेचैन आंखों से सो गई।
पर दिल मे तो उससे होने वाली अगली 'मुलाक़ात' की गुदगुदी हो रही थी।
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दूसरी शाम मन में उस होंने वाली दूसरी मुलाक़ात के फूटते लड्डू लिए मैं कोचिंग गयी।
पर कोचिंग में मेरे कोचिंग मेट्स के मन मे तो आज गज़ब की ही गन्ध फैली हुई थी।
लगभग खुसुर-फुसुर करती लड़कियां अजीब इशारों में बात करते लड़के सब बिल्डिंग के नीचे ही खड़े थे।
मैंने एक लड़की से इशारों से इस अजीब माहौल की जानकारी ली तो पता चला कि आज किसी की खास 'मुलाक़ात' हो रही है।
तभी मैंने, सॉरी सिर्फ मैंने नही बल्कि पूरी क्लास के सभी बच्चों ने देखा कि....,
हमारी क्लास के ही एक लड़का और लड़की बन्द दरवाजे वाले रूम से उन्हीं के बीच से नज़रें चुराते हुए निकले।
लड़के की कालर की खुली हुई बटन और लड़कीं को बार-बार अपना दुपट्टा सही करते देख....,
मैं समझ गयी की बन्द क्लास में उनकी खास 'मुलाक़ात' में क्या हो सकता था।
और संडे के दिन उस लड़की और उसके 'बॉयफ्रेंड' की करतूत देख कर समझना मुश्किल नहीं था।
उनके जाते ही सब क्लास के भीतर घुस गए और थोड़ी देर बाद टीचर ने आके पढ़ाना शुरू किया।
क्लास खत्म होते ही सब बाहर निकल गए। मैं उसकी राह देख रही थी।
पन्द्रह मिनट तक वो नहीं आया। मैं गुस्से जाने लगी।
मैं पांच कदम ही चली थी कि अचानक मेरे कानों में वही भारी आवाज़ पड़ी।
मैं मुड़ी तो देखा सामने वही था। मन तो हो रहा था कि सुना दुं की, "वक़्त की कद्र खुद को नहीं है तो क्या सभी को नहीं होगी...!!!" पर शांति रही।
"वो.... वो...!!!!" उसकी सुई आज भी बस वो वो की उसी लाइन ओर अटकी थी।
मैंने बिना कुछ कहे उसे बायोलॉजी की नोटबुक बैग से निकाल कर थमा दी।
"गूंगा....!!!!" मैं उसे देख कर मन ही मन बोली और अपने घर के निकल आयी।
घर आकर फिर खुद को आईने में अफसोस के साथ देखा।
"ही डिजर्व बेटर यार...!!!" मैंने खुद से कहा।
और एक बार फिर अनमने ढंग और बेमन खाना खाकर बिना नींद वाली आंखों से सोने लगी।
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तीसरी शाम मैं फिर से कोचिंग के लिए निकली पर आज उससे जुड़ी किसी भी बात को नहीं सोच रहीं थी।
आज तो भई गरमा-गर्मी का माहौल था क्लास के अंदर क्यूंकि लड़को के लीडर की....,
'गर्लफ्रैंड' आज उससे मिलने क्लास में आई हुई थी और दोनों ही 'पीछे' वाली सीट पर बैठे थे।
दोनों ही चिपक कर बैठे हुए अपनी 'मुलाक़ात' कर रहे थे।
"एक दूसरे में घुस ही जाओ न...!!!" मैं मन ही मन बड़बड़ाई।
लेकिन ये सब तो सहना ही था आखिर कोचिंग वाले सर जी ने हमे यह बताया कि आज वो नहीं पढ़ाने वाले।
मैं वहीं माथा पकड़ कर बैठ गई। पर पीछे से उन दोनों के साथ दूसरे बच्चों की खी-खी मेरे कानों को रास ना आई।
मैं क्लास के बाहर आ कर बाहर बनी बेंच ओर बैठ गयी। तभी मुझे लगा कि कोई पीछे खड़ा हुआ था।
मैं मुड़ी....., एक बार फिर वही खड़ा हुआ था 'गूंगा'।
क्या करूँ..??? उसकी हरकत ही ऐसी है। जब भी मिलता है, मुहँ पर एक गज़ का टेप लगाकर आता था।
"वो...एक्चुअली...!!!!" उसकी सुई ...!!! हे भगवान आज भी वहीं अटकी हुई थी।
अब तो सच मे मन हो रहा था कि इसका मुहँ नोच लेती हूं। न रहेगा मुहँ न रहेगी ये वो मैं का तोता।
खैर मैं गुस्से को पी गयी।
"बोल....!!!!" मैं उसकी तरफ बिना देखे बोली।
"एक्चुअली...!!! मुझे ना केमिस्ट्री की नोटबुक चाहिए थी ..!!!! पर बायोलॉजी की ले गया ..!!!!" उस ने कहा।
"क्या...???? मतलब मज़ाक बना रखा है यार ...!!! जब चाहो तब कुछ न कुछ बक दो मुहँ से।
अगर केमिस्ट्री ही चाहिए तो बायोलॉजी की नोटबुक क्यों लेकर गया था ..!!!
मेरा होमवर्क भी इंकम्प्लीट रह गया इसके वजह से .!!! ये लड़के न तो खुद लिखते हैं और न ही दूसरे को लिखने देते हैं ..!! हुँह ...!!!" मैं मन ही मन बड़बड़ाई।
खैर मैंने अपने बैग को टटोला भाग्यवश नोटबुक मेरे बैग में ही थी। मैंने नोटबुक निकाल कर उसके सामने की।
उसने बायोलॉजी की नोटबुक मुझे दी। पर ये क्या उसपर तो नया कवर चढ़ा हुआ था।
मैंने अपने अंदाज में ही उससे आंखों में ही सवाल किया।
"वो कल तेरे नाखून की खरोंच से नोटबुक का कवर फट गया था ...!!मैंने सोचा कहीं तू नाराज़ न हो जाये ...!!!
इसलिए पुराना कवर हटा दिया ...!!!" उसने पहली बार किसी वाक्य को बिना अटके कहा।
"हाए...!!!! कितना स्वीट है तू...!!! यही खड़ा रह बस...!!! फ़ोटो खींच लूं तेरी ....!!!" मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली।
पर फिर याद आया मेरे पास तो मोबाइल ही नहीं। मैं थोड़ा सेड हुई पर ठीक है चलता है।
"थैंक्स...!!!" मैंने उसको मुस्कुराते हुए देखकर कहा।
उसे केमिस्ट्री की नोटबुक दे कर मैं जाने को होती, पर एक बार मुड़ कर उसके पास आई।
"कल मैं कोचिंग नहीं आऊंगी...!!! बाय...!!!!" पता नहीं पर क्यूँ मैंने उसे ये बात कह दी।
और शायद अब मेरे पंख लगने को थे। क्यूंकि मेरी ये बात सुनकर उसके चेहरे पर हल्का दुख साफ दिखाई दे रहा था।
मैं वापस जाने लगे गयी, पर उसे एक बार मुड़कर और मुस्कुरा कर देखा।
लेकिन उसकी नज़र जमीन पर थी जिससे मेरी ये हरकत वो देख नहीं पाया।
मैं मुस्कुराते हुए अपना ही होंठ दांतो से दबाकर अंदर से गुदगुदा रही थी।
मैं अभी अपने घर जाने वाले रास्ते मे ही थी।
मैं मेरी कोचिंग में एकलौती ऐसी स्टूडेंट थी जिसके घर के रास्ते मे एक कैफेटेरिया पड़ता था।
ना जाने क्यूँ हल्के गुलाबी नीली रंग वाले कैफ़े को मैं आज शर्माने वाली नज़र से देख रही थी।
लेकिन लगातार चलते हुए मेरे कदमों पर तब रोक लगी जब मैंने कैफेटेरिया में किसी जानी-पहचानी शक़्शियत को देखा।
अरे ये क्या ये तो मेरे कोचिंग वाले सर थे, जो थोड़ी देर पहले ही अपने ना पढ़ने की सूचना दे कर गए थे।
और तो और उनके साथ मे उनकी ही एक हमउम्र लड़कीं बैठी हुई थी।
और हमारे कोचिंग में सीधे बनने वाले सर उसका हाथ थाम कर और आँख से आंख मिलाकर बैठे हुए थे।
"ओह्ह तो आज सर की अपनी 'गर्लफ्रैंड' के साथ 'मुलाक़ात' है...!!" मैंने खुद से ही कहा।
अब मेरे अंदर का शैतान जागा। मैंने अपनी लोअर पजामे की जेब टटोली।
किस्मत से पचास का एक नोट जो कल ही मन्दिर के सिंघासन के नीचे से उठाए थे।
मैं उन पैसों को हाथ में लेकर कैफ़े के अंदर गयी। और जानबूझकर सर के सामने से काउंटर पर गयी।
मैं काउंटर के ऐसे तरफ थी कि सर मुझे देख सकते थे पर उनकी 'गर्लफ्रैंड' नहीं।
मैंने एक 40 वाली फ्रूट एन नट डेरी मिल्क चॉकलेट खरीदी और फिर सर को घूरती हुई निकल गयी।
घर पहुंच कर अपनी करनी पर हंसी आ रही थी। लेकिन जब अपने कमरे बाहर आई तो देखा सर सोफे पर बैठे हुए थे।
उनकी इस मीटिंग वाली बात को राज़ रखने के लिए उन्होंने मुझे कोचिंग के 'इस्पेशल' वाले नोट्स फ्री में दे दिए।
इस मस्त से सौदे के कारण मैं अपनी इस शरारत पर उछल पड़ी।
आज के दिन तो मस्त गया। इसलिए मजेदार नींद आयी थी।
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आज की शाम मुझे नहीं जाना था क्यूंकि उस दिन हमारे कोचिंग के हेड सर....,
सारी ब्रांचेस के मैनेजिंग डायरेक्टर के साथ मीटिंग रखते थे। अब उस मीटिंग में क्या होता था, वही जाने।
मैं आज बढ़िया सा पटियाला सूट पहन कर, बाल खोल घर से थोड़ी दूर बने मन्दिर में गयी।
मैं मन्दिर के अंदर जाती उससे पहले देखा एक लड़का-लड़की मन्दिर के बगीचे में बैठकर बातें कर रहर थे।
"ऐसी होती हैं...!!! 'मुलाक़ात' ...!!!!" मैं मन ही मन बुदबुदाई।
उसके बाद मन्दिर के अंदर जाने को हुई।
मैं मन्दिर के मूर्ति कक्ष के बाहर जाकर खड़ी हुई लड़कीं मैंने देखा कि मेरा 'वो' आंखें बंद करके ईश्वर से कुछ मांग रहा था।
मैं मुस्कुराई और फिर हाथ जोड़ कर भगवान को प्रणाम करने लगी।
तभी उस शांति भरे माहौल में मुझे किसी के दिल की तेज़ धड़कने सुनाई दी।
मैंने आंख खोल कर देखा तो वो पसीने से तरबतर मुझे ही देख रहा था।
मैं बिना कुछ कहे मन्दिर के बगीचे में चली गयी और उसके सुगन्धित पुष्पों की महक फील करने लगी।
तभी मुझे उसकी जबान से अपना नाम सुनाई दिया। मैं मुड़ी। उसी तरह पसीने वाले माथे के साथ वो मेरे दाहिने तरफ आया।
"बोल ....!!!!" आज मेरे मन मे थोड़ी सी चुलबुलाहट हो रही थी।
"स्कूल टाइम पर तो तू बिल्कुल अलग रहती थी ....!!" उसने कहा।
मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रह था।
मेरे दिमाग मे 'चुपके-चुपके' मूवी का वो सिन याद आ गया जिसमें राजपाल यादव...,
नकली गूंगे बने शाहिद कपूर के गलती से बोलने पर कहता है 'ये गूंगा बोला ...!!!' ।
पर अपने अंदर की ये 'पगलाइती' पर विराम लगाते हुए मैं उसे जवाब देने को हुई।
"हां यार ...!!! कभी पटी ही नहीं किसी से तो अपनी कम्पनी एन्जॉय करती थी ..!!!" मैंने उसे देखते हुए कहा।
"वैसे तूने स्कूल क्यूं छोड़ा ...!!!" उसने पूछा।
उसने पूछा तो पर एक क्वेश्चन तुरन्त मेरे मन मे भी आया कि, "हां ...!!! स्कूल तो मैंने छोड़ दिया था ...!!! फिर इसको मेरी नोटबुक्स क्यूँ चाहिए ..!!!" मेरे दिल की घण्टिया अब नगाड़े की तरह बज रहीं थीं।
"टीचर्स ढंग के नहीं थे यार ...!!!! पर तुझे मेरी नॉटबुक क्यूँ चाहिए ..!!! जबकि हम तो अलग अलग पढ़ते हैं ..!!" अबकी बार उसके झटका खाने का टाइम था।
"वो... वो.. मैं.... बस ऐसे ही...!!!" उसकी चोरी पकड़ी गई।
"मतलब इसे मुझसे बातचीत आगे बढ़ानी थी ...!!!" मैं अपनी ही बात पर हंसी
"चल कोई न ..!!!" मैंने कहा।
"फीस की डिटेल्स देकर तू तेरी कोचिंग में एडमिशन दिलवा सकती है मुझे ..???" उसने पूछा।
"हैं....!!!! मतलब मेरी कोचिंग में...!!! भगवान जी आज आप ज्यादा कृपा बरसा रहे हो..!!!" मैं मन ही मन बोली।
"हो जाएगा ..!!! कल ही से जॉइन कर ले ..!! बस पन्द्रह सौ रुपये एडवांस ले आना ..!!!" मैंने कहा।
"चल ठीक है ...!!! कल मिलूंगा ...!!!" उसने कहा और चला गया।
आज तो मेरी नींद भी लेकर गया था कमबख्त।
अब कोचिंग जॉइन होने के बाद रोज़ उससेहोने वाली 'मुलाक़ात' की फीलिंग अनायास ही मेरे गाल लाल कर रही थी।
अब इंतज़ार तो कल का था।
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आज हद से ज्यादा एक्साइटेड थी। क्यूंकि आज से वो मेरी ही कोचिंग में पढ़ना शुरू करने वाला था।
पर शायद ये एक्साइटमेंट मुझपर ही भारी पड़ने वाली थी।
सारे स्टूडेंट्स कोचिंग की पन्द्रह मिनट की दूरी तक वाली रोड पर इधर-उधर मंडरा रहे थे।
आज शायद हमारे सर ने कोचिंग ओपन नहीं कि थी।
मैं भी आज क्लास में पहले से जाकर अपने साथ उसके नाम की सीट रिजर्व करने को आतुर थी।
मैं रोड पर चली जा रही थी, की अचानक एक राक्षस जैसे लड़केने मेरे पैरों में अपना पैर अड़ा दिया।
मैं उसके ख्यालो में इतना खोई हुई थी मुझे उसके टांग नहीं दिख पायी और कमीने ने इसका फायदा उठाया।
मैं संभाल पाती उससे पहले ही घुटनो और पेट के बल पर जमीन पर भरभराकर गिर पड़ी।
आज मुझे दो बातों के कारण खुद ही पर गुस्सा आ रहा था।
पहला की मुझे उसके बारे में इतना नहीं सोचना चाहिए था और...,
दूसरा आज ही मुझे ये शार्ट पायजामा पहनने का भूत चढ़ा हुआ था स्साला पूरा घुटना छिला गया।
कोई और दिन होता तो उसकी अक़्ल ठिकाने लगा देती पर शायद आज ही सब कुछ होना था।
पर नहीं-नहीं अभी तो कहर खत्म ही कहाँ हुआ था, मैं उठती उससे पहले ही उन माँ के लाडलो ने अपने कटाक्ष शुरू कर दिए।
"गिर गयी 'मोटी' ...!!!!" वो अमीरजादे ये कहकर बड़े जोर के ठहाके लगा रहे थे।
मैं उठकर उसे कुछ कह पाती पर मैंने देखा कि उसने मुझे देख लिया था....,
जमीन पर गिरते हुए।
अब मेरे अपमान की सीमा क्या होगी, की आज वो पहली बार मेरी कोचिंग आया और आज ही ये कांड हो गया।
साथ ही उन कमीनो की फब्तियां भी बन्द होने का नाम नहीं ले रहीं थीं।
मेरी आँखें अब आंखों से सैलाब उमड़ने को हो गयी थीं।
मैं भागते हुए वहां से दूर कोचिंग के पीछे वाले मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठ गयी।
अपने घुटनों पर सर रखकर मैं रोने लगी, लेकिन फिर सीने को छुपाने के लिए गले मे पड़े स्टाल को...,
उतार कर मैंने अपना पूरा चेहरा ढांक लिया ताकि कोई मुझे रोते हुए ना देख पाए।
मैं अब अपने बैग को घुटने पर रखकर उसी में मुहँ दबाकर रोने लग गयी।
सारी मजाक उड़वाने वाली हरकतें मेरे नसीब में ही लिखी हुई थी मानो।
पहले तो ये गेंहुआ रंग और दूसरा ये गोल-मटोल सा शरीर।
जो भी मिलता तरह-तरह की एक्सरसाइज बताकर लज्जित महसूस करवा देता।
ऐसा नहीं था कि मैं कोशिश नहीं करती थी पर पांच बजे उठने के बाद भी घर के काम मे इतनी व्यस्त हो जाती की,
इन सब के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पायी और इसका रोष मुझे आज हो रहा था।
तभी मुझे अपने छिले हुए घुटनों पर कुछ रेंगता सा महसूस हुआ।
मैंने गर्दन उठाकर देखा तो सामने वही था मेरा 'समवन स्पेशल' ..!!
वो हाथों में बोरोप्लस की ट्यूब ले कर मेरे छिले हुए घुटनो पर लगा रहा था।
उसकी इस हरकत पर उसे गले लगाने की दिली इच्छा थी पर अभी तो आंसू ही नहीं रुक रहे थे।
"दर्द हो रहा है ना ...???" उसने क्रीम लगाते हुए पूछा।
"नहीं ...!!!" मैं उठकर जाने लगी।
फिर जो हुआ उसकी तो हाए कल्पना भी अंदर तक कंपा देने वाली थी।
उसने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे वापस वहीं बैठा दिया और दूसरे घुटने पर बोरोप्लस लगाने लग गया।
"दर्द हो रहा है ना ...???" उसने एक बार फिर से पूछा।
"नहीं हो रहा दर्द ...!!" मैंने थोड़ा कठोर स्वर में कहा।
उसने गर्दन उठायी और मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा।
'हाए...!!! बिल्कुल क़यामत लग रहा था इस तरह मुझे देखते हुए...!!' पर मेरी लाल आंखों में कोई भाव नहीं था।
पर अचानक ..!!! उसने मेरे द्वारा आंसू छुपाने के लिए मुहँपर बांधे गए स्टाल को खोल दिया।
"दर्द नही हो रहा तो ये आंसू क्यूँ ...??? झूठ मत बोल ...!!!" उसने कहा।
"दर्द के वजह रोना नहीं आ रहा ...!!!" मैंने आंदोलित लहज़ें में कहा।
"तो फिर ...???" उसने फिर एक सवाल दाग दिया।
मेरे पास जवाब नहीं था क्या कहती कि तेरे सामने गिर पड़ी इसलिए टेंसुएँ बहा रही हूं।
"सब मजाक बना रहे रहे इसलिए रो रही थी ना ....!!!" उसने खुद ही मेरा जवाब दिया।
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई। पर आज तो जैसे वो बदला हुआ सा था।
उसने अपने रुमाल से मेरे आंसू पोंछे।
"दुनिया क्या कहती है ...!!! ये सोचेगी तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएगी तू ...!!
चल अब थोड़ा सा हंस दे ..!!! ये रसगुल्ले ना मुरझाए हुए अच्छे नहीं लगते ..!!" उसने मेरी आँखों मे झांक कर देखते हुए कहा।
मैं मुस्कुरा उठी।
"दैट्स लाइक अ गुड गर्ल ...!!!" उसने कहा। अब तो मानो मेरे उतावले पन की सीमा ही नहीं रह गयी थी।
उसने मेरा बैग उठाया और मेरी कलाई पकड़ कर मुझे ले जाने लगा।
घुटने तो छिले हुए थे पर उसके पीछे किसी हवा में उड़ रहे पत्ते की तरह चली जा रही थी।
वो मुझे उसी लड़के के सामने ले गया। उसने मुझे उसकी तरफ देखकर आंखों से इशारा किया।
मैं समझ गयी। मैंने उस रहिसज़ादे के कान के नीचे ऐसा लाफा मारा की उसके गाल पर लाली छा गई।
"आज के बाद ये बेहूदा हरकत की न तो तेरे बाप को बता दूंगी ...!!!" मेने कहा और वहां से जाने लगी।
वो मेरे पीछे ही खड़ा मुस्कुराते हुए मुझे देख रहा था।
मैं अभी थोड़ा आगे बढ़ी ही थी कि वो बाइक लेकर मेरे सामने आ गया।
मैं बिना उसके कुछ कहे या आना-कानी किये बाइक की पिछली सीट पर बैठ गई।
वो बाइक को मेरे घर की तरफ लम्बे वाले रस्ते से ले गया जहां तरह-तरह के हरे घने पेड़ पौधे रस्ते में पड़ते थे।
एक तो वो मेरे साथ और ऊपर से ये नजारे। आज तो पहली बार दिल मे...,
"तुझे देखा तो ये जाना सनम...
प्यार होता है दीवाना सनम..." वाला गाना बज रहा था।
लम्बे रास्ते से जाने पर आधे घण्टे का सफर मानो चुटकी बजाते ही खत्म हो गया था।
कुछ ही देर में वो मेरी कॉलोनी के गेट पर था। पर अचानक मेरा दिमाग ठनका।
"बस यही रोक दो ...!!! वरना कोई देख लेगा ...!!!" मैंने कहा।
उसने गाड़ी रोक दी। मन तो नहीं था पर हाँ मैं बाइक से नीचे उतर गयी।
"अबसे रोज़ यहीं आ जाया करना ..!!!" उसने कहा।
"ठीक है ....!!" रूढ़िवादी परिवार पली-बढ़ी मैं आज उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा ना सकी।
"दो मिनट रुक ...!!!" मैंने कहा।
मैंने उसके बाइक के स्टैंड पर पैर रख कर दोनों घुटनो की बोरोप्लस पोंछ दी।
उसने मना नहीं किया क्यूंकि वो भी समझ गया कि मैं अपने घर पर कुछ भी नहीं बताने वाली थी।
मैं जाने लगी और फिर कदमों को थोड़ा रोक उसे पलटकर और मुस्कुराते हुए देखा।
जवाब में वो पहले से ही मुस्कुरा रहा था।
मैं घर आ गयी। और अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर दिया।
कपड़े बदलकर रूम में आई और स्पीकर पर गाने बजाते हुए नाचने लगी।
घर पर किसी ने भी कोई सवाल नहीं किया मेरी इस अजीब हरकत के लिए।
अब तो बस मानो जिंदगी उड़ान भर रही थी। एक ऐसा उड़ान जिसका ना आगा पता था ना पीछा।
बस चलते जाना था।
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अब वो रोज़ मेरी कोचिंग आता, मेरे साथ पढ़ता और मेरे साथ मेरी डेस्क पर बैठता।
उसके शारीरिक आकर्षण के कारण सारी लड़कियां मुझसे जलने लगी थी।
और उन्हें और ज्यादा जलाने के लिए मैं रोज़ उसके साथ बाइक पर जाया करती।
मुझे उसके बारे में बोहोत जानकारी प्राप्त हो गयी।
जैसे बिचारा अनाथ था। चाचा-चाची के होने के बावजूद एक अनाथआश्रम में पला बढ़ा।
बड़े होकर उसके चाचा उसे महीने भर के लिए तीन हजार रुपये दिया करते थे।
जिसमे सर पर छत के लिए वो अपने दोस्त के साथ ही रह करता था और...,
बाइक उसे टेंथ में अच्छे नंबर लाने के वजह से स्कूल की तरफ से मिली थी।
बातों-बातों में उसने बताया कि उसका इंटरेस्ट नेचर एयर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में हैं।
बट उसके पास कैमरा नहीं था, मेरे लिए बोहोत बड़ी ओपोर्च्यूनिटी थी ये।
मैंने सालभर अपनी पॉकेटमनी सम्भाली, किसी के भी दिए पैसे गुल्लक में सम्भालने लगी।
मेरे पास पर्याप्त मनी इक्कट्ठा हो चुकी थी।
मैंने कोचिंग के पास पड़ने वाली इलेक्ट्रॉनिक की दुकान से एक छोटा कैमरा लिया।
और उसे उसके बर्थडे पर दिया।
पहले तो वो मना कर रहा था पर जब दोस्ती को आड़े लिया तब कहीं जाकर माना।
देखते-देखते बोर्ड्स के एग्जाम भी नजदीक आ गए थे।
एक दिन वो मुझे लेने नहीं आया। मेरे पास मोबाइल नहीं था और ना ही था उसका मोबाइल नंबर।
मैं कोचिंग की तरफ जा रही थी कि अचानक मेरी नज़र एक छोटे बच्चों के स्कूल के प्लेग्राउंड पर गयी।
वहां पर मेरी तरफ पीठ किये ब्लू कलर की जैकेट पहने हुए एक लड़का अपने से बराबर लड़कीं से 'मुलाक़ात' करने आया हुआ था।
और अचानक ही मुझे वो मेरे घर के सामने वाली बालकनी वाली लड़की और उसके 'बॉयफ्रेंड' के बीच हुए सिन का रिक्रिएट वर्ज़न दिखा।
यानी कि उनका लगातार वाला स्मूच सीन चल रहा था।
लड़कीं ने अचानक मुझे देख लिया और हड़बड़ा गयी। लड़के का चेहरा मैं देख नहीं पाई।
हालांकि मैं रुक कर उनके सीन को देख भी नही रही थी बस चले जा रही और...,
मेरी और उस लड़की की नज़र टकरा गई।
मैं दबे पांव वहां से निकल गयी। लेकिन शायद आज झटका खाना मेरे नसीब में था।
मैं कोचिंग जा ही रही कि देखा ब्लू वही लड़की बाइक पर बैठकर मेरे बगल से निकली।
इस दफ़ा मैने लड़के की शक़्ल देख ली थी पर देखने के बाद मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
वो वही था। मेरा 'समवन स्पेशल'। मैं कांप गयी। मतलब इसकी भी आलरेडी 'गर्लफ्रैंड' थी।
और एक मैं बुद्धू उससे इतना करीब जुड़ गई थी।
मैं अपने आंसू रोके क्लास में आई। थोड़ी देर बाद में वो भी आ गया।
पर आज मैंने उसे कोई तवज्जो नहीं दी।
न तो उसे मुस्कुरा कर देखा और ना ही कोई प्रतिक्रिया दी।
वो अजीब निगाहों से मुझे देख रहा था। मानो मेरी बेरुख़ी का कारण जानना चाहता था।
मैं चुपचाप कोचिंग खत्म होते ही घर जाने लगी।
रास्ते मे वो अपनी बाइक लेकर आया और मेरे सामने बाइक को रोक दिया।
मैं बिना उसकी तरफ ध्यान दिए अपने रस्ते जाने लगी।
वो दौड़ते हुए आया और मेरी कलाई को पकड़ लिया। अबकी बार मैं मुड़ी नहीं।
"हाथ छोड़ मेरा ...!!!" मैंने कहा।
"नहीं पहले तू बता गुस्सा क्यूँ हैं ...???" उसने मेरे सामने आते हुए कहा।
"मैं नहीं गुस्सा ....!!" मैं कहकर जाने लगी। पर उसने एक बार और रोक लिया।
"बताए बिना जाने नहीं दूंगा ...!!!" इस बार उसने मेरी आँखों मे देखकर कहा।
"मैं तेरे और तेरी 'गर्लफ्रैंड' के बीच मे आकर, लड़ाई करवा कर 'चुड़ैल' नहीं बनना चाहती ...!!!" मैंने उससे कहा।
"मेरी 'गर्लफ्रैंड' ..??? मैंने कब 'गर्लफ्रैंड' बना ली ...???" उसने कहा।
"अच्छा तो वो लड़कीं कौन थी तेरे साथ ...???" मेने सवाल दागा।
"अच्छा वो लड़कीं ...!!!" उसने अपने माथे पर हाथ रखकर कहा।
"हाँ वो लड़कीं ..!!!!" मैंने उसे चिढ़ाने के अंदाज़ में कहा।
"तू यहीं रुकना बस दो मिनट ...!!!" उसने कहा और किसी को कॉल लगाया।
मैं ना चाहते हुए भी वहीं पर खड़ी हुई थी। तभी उसका एक लड़का वहां आया।
मेरे आश्चर्य की सीमा तब ना रही जब मैंने उस लड़के को वही ब्लू जैकेट को पहने हुए देखा।
"अबे तेरी वजह से यहां मैं फंस गया हूँ ...!! चल अपनी प्रेम कहानी सुना इसको ...!!! " उसने उस लड़के से कहा।
उस लड़के की बात सुनकर मुझे समझ आया कि अच्छा तो वो लड़कीं इसकी 'गर्लफ्रैंड' थी।
और मैं अपने वाले पर शक कर रही थी।
"सॉरी ....!!!" मैंने कान पकड़ कर कहा।
"कोई बात नहीं मेरी रसगुल्ला ...!!!" उसने पहले बार मेरे गालों को छूते हुए कहा।
वैसे तो मुझे अपने लिए ये शब्द अच्छा नहीं लगता था पर जब वो कहता तो मैं खुश हो जाय करती थी।
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अब समय की रफ्तार के साथ बोर्ड्स एग्जाम भी खत्म हो चुके थे। मेरा एडमिशन एक लोकल कॉलेज में हो गया था।
और मेरे दिए हुए कैमरे से क्लिक की हुई शानदार फोटोज़ के कारण, उसे एक कम्पनी के द्वारा फोटोशूट करने की जॉब मिल गयी थी।
और उसे अब ग्रेजुएशन करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि कम्पनी की तरफ से उसे सालाना पैकेज पचास हजार का मिला था।
जो आगे चल कर और भी ज्यादा होना तय था।
मैं खुश हो गयी थी। पर अभी तक ना तो उसने वो 'थ्री मैजिकल वर्ड्स' बोले थे और ना ही मैंने।
अब मेरा कॉलेज खत्म होने को था और मैं मान कर बैठ गई थी कि उसके दिल में कुछ नहीं है।
लेकिन जब मेरा कॉलेज खत्म हुआ और मेरे कॉलेज में फेयरवेल पार्टी थी।
तब वो नकली आइडेंटिटी के साथ मेरे कॉलेज में आया। हम दोनों अब एक कैंटीन में बैठे हुए थे।
दोनों के सामने एक एक कप चाय थी जिसे खामोशी में ही हम दोनों पी चुके थे।
अचानक ही उसने अपने हाथों से मेरे हाथ थाम लिए। मैं दिल की तेज धड़कनों के साथ उसे देख रही थी।
और फिर उसने वो कहा जिसे सुनने के लिए मैं पिछले साढ़े चार साल से इतंजार कर रही थी।
"I LOVE YOU ...!!!!!" उसने कहा।
आज मेरे दिल के कानों में घण्टिया, नगाड़े, डी.जे, ड्रम सबकुछ एक साथ ही बज रहा था।
"टेंथ क्लास से ही तुझे पसन्द करता था ..!!! पर कहने की हिम्मत आज ही हुई है ..!!!
तुझपर कोई फोर्स नहीं करूंगा ..!!! तेरा जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर है .!!!!" मेरा जवाब उसके सामने आता उससे पहले ही उसने झुकी नज़रों के साथ कहा।
"जवाब सुने बिना इतना कुछ कह रहा है ....!!!" मैंने उसकी झुकी में झांक कर देखते हुए कहा।
"इसका मतलब तू भी ...!!!!" उसने नज़रें उठाई।
मैंने हाँ में पलके झपकाई। और आज पहली बार वो हुआ। उसने उठकर मुझे ज़ोर से गले लगा लिया।
मैंने भी उसे इसके लिए मना नहीं किया।
उसकी बाहों में खोई जरूर लेकिन मेरे घर मे अलग ही तूफान चल रहे थे जिनसे मैं अनजान थी।
अपने जीवनभर याद रहने वाले पलों को जी कर जब मैं घर पहुंची तो घर का माहौल कुछ अजीब था।
मेरे घर में पहुंचते ही मुझे मेरी माँ पकड़ कर कमरे में ले गयी।
और कमरे में पहुंचकर मैं ऐसी खबर सुनती हूँ कि बस जैसे शरीर को लकवा मार गया हो।
मेरी मां ने मुझे बताया कि मेरा रिश्ता तय हो चुका है।
"क्या ....????? पर मुझसे पूछे बिना आप लोग ये फैसला कैसे ले सकते हो ...???" इस बारी मन मे नहीं सोचा डिरेक्ट बोल दिया मेने।
"हाँ तो क्या हर चीज में तेरी मरझी पूछे ...!!!" मेरे परिवार का जवाब था।
"पर मुझे नहीं करनी शादी ...!!! अभी तो कॉलेज खत्म हुआ है और अभी से शादी ...!!!! दिमाग खराब हो गया है आप लोगों का ...!!!" मैंने कहा।
"किस लड़के के चक्कर मे है ...!!!! बता ...!!!" और ये गया उनका सबसे तीखा वाला तीर निशाने पर।
"जरूरी नहीं है कि अगर मुझे कोई पसन्द होता तभी मैं शादी के लिए मना करती ...!!! लेकिन इतनी जल्दी शादी ये तो सरासर गलत है ...!!" मैंने इस वक़्त उसका नाम लेना सही नहीं समझा।
क्यूंकि मैं जानती थी कि, अगर आज मैंने उसका नाम लिया तो मेरी विदाई की कार उसकी अर्थी के ऊपर से चलवा दी जाएगी।
कई घण्टो को बहस चली। घर में मातम जैसा माहौल पसरने लगा था। और मेरी बात को खत्म करने के लिए उनका आखरी और सबसे सटीक निशाने वाला तीर उन लोगों ने छोड़ दिया।
"बोहोत बड़े व्यापारी हैं वो लोग ...!!! पूरे शहर में नाम चलता है उनका ...!!!
रिश्ता तोड़कर कितनी बेइज्जती होगी खबर भी है तुझे ...!!! बस और कुछ नहीं समझाना ...!!
अगर तूने इस शादी से मना किया तो हम सबका का मरा मुहँ देखेगी ...!!!" ये आखरी शब्द घर के मुखिया जी के थे।
अब ये शब्द सुनने के बाद कोई भी लड़की अपने सपनो का क़त्ल कर ही देती है।
मैंने भी वही किया।
लेकिन अगर सिर्फ शादी का दबाव होता तो सहन भी किया जा सकता था।
कहीं मेरा किसी लड़के के साथ 'लफड़ा' हो और इसलिए मेरी मनाही है।
ये सोचकर ही मुझसे मेरा मोबाइल छीन लिया गया और मुझे घर मे नज़रबंद रखना शुरू कर दिया।
एक महीने बाद कि तारीख पर मेरी शादी की डेट भी फिक्स कर दी गयी।
मैं कमरे में बंद हो कर रोटी पर अंदर ही अंदर मुझे अपनी हालात पर हंसी आ रही रही।
जिस दिन लव स्टोरी शुरू हुई उसी दिन उसका दि एन्ड भी होना तय कर रखा था किस्मत ने।
खैर इन सबसे परे लेकिन मैं उसे बताना चाहती थी, जिससे वो मेरी उम्मीदे छोड़ देता।
मैं अब रोज़ इस जुगत में रहती की कहीं से अपना मोबाइल पा लूं, उसे खबर कर दूं फिर इस आग के दरिया में कूद जाऊं।
शायद मेरी दूर की रिस्तेदार की लड़कीं मेरे लिए फरिश्ता बन कर आई हुई थी।
मैंने ना चाहते हुए लड़की को उसके बारे में बता दिया और रिक्वेस्ट करी की वो मुझे कहीं से मोबाइल दिलवा दे।
या मेरी उससे मुलाक़ात करवा दे।
शायद उसकी शादी भी ऐसे ही किसी दबाव में की गई थी, इसलिए वो तुरन्त राज़ी हो गयी।
मेरे घरवालों की रज़ामन्दी और मोबाइल लेकर वो मुझे पास वाले मन्दिर में ले गई।
मैंने उसे कॉल करके बुलाया।
शायद मुझसे मिलने की तड़प उसे भी थी कि वो पहली कॉल के आधे घंटे के अंदर ही वहां आ गया था।
आते ही उसने सबसे पहले मुझे गले लगा लिया था, वो रिस्तेदार की लड़कीं बहार खड़े होकर पहरा दे रही थी।
मैंने अब उसे सब कुछ बता दिया।
"मैं बात करूंगा ...!!!! प्लीज अभी ये शादी टाल दो ...!!!" उसकी आँखों मे आज आंसू थे।
"ये शादी नहीं टल सकती ...!!" मैंने कठोर लहज़ें में कहा।
"तो तुम क्या चाहती हो ...???" उसने रोते हुए पूछा।
"तुम्हारी गलती नहीं है इसमें ...!!! समय तो तुम्हे भी नहीं मिला था ...!!! खैर अब हम दोनों का अलग हो जाना ही बेहतर रहेगा ...!!!" मैंने कहा।
वो मेरे हर फैसले की इज्जत करता आया था..,
और मेरे द्वारा आज अपने परिवार की शान के लिए करने जा रही इस शादी का फैसला उससे मानना पड़ा।
"शादी में जरूर आना ...!!!!" मैंने उससे कहा और मैं वहां से लौट आयी।
जानती थी कि अगर रुकी तो 'कोई' देख सकता था और रुकती तो कभी जा नहीं पाती।
देखते ही देखते शादी का वो दिन आ चुका था। मेरे दिमाग मे 'अल्ताफ़ राजा' जी के गाने का वो लाइन घूम रहा था।
"जब आ गया नवम्बर.... तब ऐसी भी रात आयी...
मुझसे तुम्हे छुड़ाने.... सजकर बारात आयी...."
मैं अब खुद को उस अनजान बन्दे के साथ शादी के बंधन में बांधने को तैयार कर चुकी थी।
शादी का माहौल हर तरफ हो रखा था। हर कोई खुश था, नाच गया रहा था।
अगर कोई उस खुशनुमा माहौल में टूटा हुआ था तो मैं बस और बाहरी दुनिया मे वो था।
खैर बारात आयी।
कमरे से बाहर आने के पहले ही एक हाथ का घूंघट करने का आदेश मुझे दिया गया था।
रूढ़िवादी परिवार की शादी में दुल्हन का घूंघट उठाना इज्जत उतरने के जैसा था।
मैं अकेली नहीं थी, मेरे दूल्हे को भी एक सेहरा पहनाया गया और वो भी बूत बना बैठा हुआ था।
कुछ ज्यादा ही सुनता था अपनी मां बाप की शायद।
खैर मेरे लिए ये घूंघट काफी फायदेमंद रहा, मेरे आंसू किसी की नज़र में पड़ना अब नामुमकिन था।
उसके बाद आज कल के इस फोटोशूट वाले जमाने मे बिना फोटोज के ही शादी हो चुकी थी।
मेरी विदाई हुई।
मेरे सुसराल में केवल तीन ही लोग थे।
ससुर जी, सासु मां और पतिदेव बाकी कुछ नौकर-चाकर।
ससुराल आयी तो सासु मां ने कहा कि मजबूरन मुझे वहां भी दो दिन तक रिश्तेदारों के मुहँ बन्द रखने के लिए घूंघट करना होगा।
खैर अब तो ये घूंघट अच्छा लगने लगा था, कोई मेरे संजीदा भाव नहीं देख सकता था।
इस बीच अपने पतिदेव से मैं दूरी बनाए हुए थी। रात को उनके कमरे में आने से पहले ही सो जाती।
उन्हें भ8 भनक लग चुकी थी इसलिए मेरे जागने से पहले ही वो अपने पापा के ऑफिस निकल जाते थे।
नई बहू से एक महीने तक खाना भी नहीं बनवाया जाता इसलिए उनके टिफ़िन की झंझट अभी तक मेरे पलड़े में नहीं आयी थी।
अभी तक मैंने मेरे पतिदेव के द्रश्य नही लिए थे।
हां लेकिन मेरा ससुराल मॉडर्न जमाने का भी था।
रिश्तेदारों के जाते ही ससुर जी ने फरमान जारी किया कि मैं और मेरे पतिदेव...,
हनीमून के लिए जाएंगे।
मेरे लिए ये सदमा था। खैर ठीक है अब यही सच था जिसके साथ मुझे रहना था।
टिकट्स भी देश के नहीं विदेश के बुक हुए थे।
जिस दिन निकलना था, सासु मां ने जमकर तैयारी करवा दी थी।
मैं खुश भी थी कि जिन मां बाप के प्यार के लिए तरसी थी वो मुझे अब मिलेगा।
घर से एयरपोर्ट जाने तक का सफर मैंने ससुर जी के कहने के बावजूद घूंघट में ही किया था।
एयरपोर्ट पर कार से मुझसे पहले मेरे पतिदेव उतरे थे।
एयर समान उतरवा कर वो आगे-आगे चले जा रहे थे और मैं उनके पीछे।
मैंने घूंघट तो खोला पर अब उनकी पीठ मेरी तरफ थी, जिससे उनका चेहरा देखना नामुमकिन ही था।
खैर उनकी पीठ देखकर ही उनके हैंडसम होने का अनुमान मैं लगा चुकी थी।
कभी प्लेन म सफर किया तो नही था पर इतना नॉलेज तो इंटरनेट के माध्यम से था ही।
फ्लाइट में नंबर के अकॉर्डिंग अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी। मेरी विंडो सीट थी। मैं बस उसी के बाहर का द्रश्य देखने लगे गयी।
इस बीच मुझे एहसास न हुआ कि मेरे पतिदेव कब आकर मेरी बगल वाली सीट ओर विराजित थे।
और जब तक मुझे खबर हुई वो अपने मुहँ पर रुमाल डालकर सो चुके थे।
अब मेरी भी नींद लग चुकी थी। सुबह मुझे एक एयर होस्टेस ने आकर जगाया था।
शायद मेरे पतिदेव परमिशन के बिना आवाज़ भी लगाना मुलाज़िफ नहीं समझते थे।
मेरी जगह कोई और लड़कीं होती तो अपने पति की शालीनता पर खुश होती पर..,
मैं सोच रही कि आवाज़ भी नहीं लगा सकते, कैसे रहूंगी पूरी जिंदगी इनके साथ।
खैर इसी बीच मैं अपने मायके से पूरी तरह कट चुकी थी। और उनके कॉल भी काट दिया करती थी।
हम दोनों एयरपोर्ट पर उतरे।
मेरे पतिदेव की पीठ आज भी मेरी ही तरफ थी और साथ ही उन्होंने मुहँपर रुमाल बांध रखा था।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं उन्हें पतिदेव-पतिदेव से क्युँ सम्बोधित कर रही हूं।
क्या उनका कोई नाम नही है ..????
लेकिन मेरे पतिदेव का नाम ही 'देव' था देव माथुर।
खैर हम दोनो होटेल के लिए एक टैक्सी में बैठ गए थे...!!! इस दफ़ा मेरे पतिदेव ड्राइवर के साथ आगे तो मैं पिछली सीट पर विराजमान हो रखी थी।
होटल आते-आते रात हो चुकी थी और सफर की थकान भी अपन ज़ोरो पर थी।
मेरे पतिदेव ने रूम की चाभी और रूम नंबर स्लिप काउंटर पर रखवा दिया था।
मैं रूम में गयी और नहाने के बाद सो गई। आदतानुसार सुबह पांच की जगह सात बजे मेरी नींद खुली।
मैंने देखा शर्टलेस होकर खिड़की से समुद्र का नज़ारा देखते और इस बार भी मेरी तरफ पीठ किये हुए वो खड़े थे।
मैंने अपने आप को देखा। जस की तस थी। मतलब उन्होने मुझे बिना मरजी के हाथ भी नहीं लगाया था।
मैं उठकर उनके पीछे गयी। और उनकी खुली हुई पीठ पर हाथ रख दिया।
वो मुड़े। लेकिन जब वो मुड़े तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ।
मुझे लगा मैं सपना देख रही हूं। मैंने अपने चिंकोटी भी काटी पर नही ये सच था।
मेरे सामने 'वो' खड़ा था। मेरा समवन स्पेशल'। लेकिन मुझे देखकर वो मुस्कुरा रहा था।
"ये सब क्या है ...???? तू यहां क्या कर रहा है ...???" मैंने खुद को उससे दूर करते हुए कहा।
"सब बताता हूँ ..!!! पहले बैठ जा ...!!!" उसने मेरा कन्धा पकड़ कर कहा।
"दूर रह यार ...!! मेरी शादी देव से हो चुकी है ...!!! और तू अब इस तरह मुझे स्टॉक नहीं कर सकता ...!!!" मैंने उसका हाथ विरोधाभास लहज़ें में झटक कर कहा।
वो एक बार फिर से मुस्कुरा उठा।
"जिसे देव माथुर समझकर तूने शादी की है ...!!! वो मैं ही हूँ ..!!!!" उसने कहा।
"जिस दिन तुझसे आखिरी बार मिलकर गया था उस दिन ही शहर छोड़ने का फैसला कर लिया था ..!!!!
पर रास्ते मे एक कार दिखी एक्सीडेंट हुई पड़ी थी ..!!! हर कोई फ़ोटो खींचने में व्यस्त था ..!!!
मैंने कार का दरवाज़ा दो चार की मदद से खुलवा कर उस शक़्स को बाहर निकाला ..!!!
वो असली देव माथुर था ...!!! मैं उसे हॉस्पिटल लेकर गया पर उसकी डेथ हो गयी थी ..!!!
उसके पेरेंट्स को जब बुलाया गया तब हॉस्पिटल में आने के बाद देव की माँ बेहोश हो गयी ...!!!
होश में आने के बाद उन्होंने मुझे ही देव समझ लिया था ..!!!
और डॉक्टर का कहना था कि अगर उन्हें सच पता चला तो वो सह नहीं पाएंगी ..!!!
इसलिए देव के पापा ने मुझसे रिक्वेस्ट करी की मैं उनके बेटे देव माथुर का रूप बन कर सबके सामने रहने लगे जाऊँ ..!!!
मैं देव की माँ की हालत देखकर मना नहीं कर पाया ..!!!
एक्सीडेंट का कारण मेरी प्लास्टिक सर्जरी हुई थी, ये बात देव के पापा ने सबको बताई थी ..!!!!
उन्होंने मुझे देव की होने वाली पत्नी से शादी करने के लिए मिन्नतें की ..!!
तब मैं भी नहीं जानता था की जिससे देव की शादी होने जा रही है वो तू ही है ..!!!
यहां तक कि तू हमेशा घूंघट में रहती थी और मैं भी ऐसे किसी को उसकी मर्जी के बिना नहीं देखना चाहता था ..!!!
इसलिए देव की होने वाली पत्नी से दूरी बना कर रखता था ...!!!
जब पहली बार फ्लाइट में बिना घूंघट के तू सो रही थी, तब मुझे पहली बार पता चला कि ...,
देव की होने वाली पत्नी तू ही थी..!!!
मैंने होटेल आकर तुझे सब बताना चाहा था इसलिए मुहँ छुपा रखा था..!!!" उसने पूरी कहानी मुझे बता दी।
जो बताया वो सुनकर मेरा दिमाग मेरे ससुराल वालों के लिए सहानुभूति, दुख से भर उठा।
खैर मुझे मेरे 'समवन स्पेशल' के सामने अब असहजता नहीं हो रही थी।
उसने मेरे गालों को छूकर मुझे ये एहसास दिलाया कि यह सब वक़्त की करामात है।
इसमें ना तो उसकी गलती थी और ना ही मेरी।
पर मैं नहीं जानती थी कि चौराहे पर पहली बार उससे मिलने वाला और शादी से पहले मन्दिर में आखरी बार जो मिला था...,
उससे आज इतने दिनों बाद मेरी ऐसी 'मुलाक़ात' होना तय था।
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समाप्त