कड़क रोटी... सिमरन जयेश्वरी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कड़क रोटी...

"उफ़्फ़!!! यार मैं तंग आ चुकी हूं। इस रोटी मेकर को भी आज ही खराब होना था।" किचन में रोटी बना रही अर्चना ने अपने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा। "क्या हुआ अर्चना। क्यों परेशान हो गई तुम।" निखिल ने फ्रिज से पानी निकाल कर पीते हुए पूछा। "यार निक तुम जानते हो कि कितनी अड़चनों के बाद हमारी शादी हुई और मम्मी जी ने भी मुझे आज शादी के तीन साल बाद असेप्ट किया है। और आज जब वो इतने सालों बाद मुझसे पहली बार मिलने आए है तो मैं उन्हें ढंग-का खाना नहीं दे सकती।" अर्चना ने थोड़ा उदास होते हुए कहा। "अरे!! तुम चिंता मत करो सब ठीक होगा।" निखिल ने अर्चना को दिलासा देते हुए कहा। अर्चना अब अपने अतीत में खो गयी। उसके सामने इतने सालों में सही गयी निखिल की मम्मी की नफरत, उसके और निखिल की शादी की दिक्कतें सब एक चित्र बन उसके समक्ष आ गया। वो याद करने लगी कि किस प्रकार उसका स्कूल में निखिल से मिलना कॉलेज साथ में पढ़ना उन दोनों के बीच पनपा प्रेम जिसे वह शादी के पवित्र रिश्ते से जोड़ना चाहते थे अर्चना के परिवार को कोई दिक्कत नही थी और निखिल के पिता, बड़ी बहन व बड़े भैया भी राजी थे परंतु निखिल की मम्मी जी इस रिश्ते से नाखुश थी जिसका परिणाम निकल की निखिल ने अर्चना से शादी कर दूसरे शहर में जॉब करना शुरू कर दिया। और इसी बीच उन दोनों के दो प्यारे प्यारे बेटे भी उनके जीवन में आ गए। पर मम्मी जी के मन की खटास मिटने नाम नही ले रही थी। और दो महीने पहले जब निखिल के पापा को हार्ट अटैक आया था। इस संसार को त्यागने से पहले उन्होंने अपनी आखरी इच्छा यही जताई थी कि वो उससे कम से कम एक बार मिले उसे एक्सेप्ट करे। बस उनकी अंतिम इच्छा को मायने रखते हुए ही वो आ रही थी। यह सब सोचते हुए अर्चना की आँखें नम हो गई। देखते-देखते शाम हो गईं। निखिल मम्मी घर आ चुकी थी। अब तक सब सही था लेकिन खाने की मेज पर जब वह बैठी तो अर्चना का दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी आँखें भरी सी हो गयी। उसका मन हुआ कि वो कही भाग जाए पर उसके पास कोई दो-राह नही थी। उसने खाने में सब्जी के साथ वही कड़क रोटी परोसी। निखिल की मम्मी ने खाना बिना कुछ खा लिया अर्चना अब भी मुंडी निचे झुकाये खड़ी थी खाने के बाद निखिल की मम्मी कमरे में गयी और फिर वापस आयी उनके हाथ में कुछ था। वो अर्चना के पास आई। "बेटा ये मत सोचो की मैं तुमसे या तुम्हारे खाने से नाराज़ हूँ। मैं बस खुद से नाराज़ थी। मैं चाहती थी कि मेरे बच्चे मुझसे अलग न हो। मैं जड़ से ज्यादा प्रोटेक्टिव थी। आज जब मैंने तुम्हारे हाथ की रोटियां खाई मुझे मेरी बेटी की याद आ गयी। वो भी ऐसे ही रोटियां बनाती थी। लेकिन मेरी प्रोटेक्टिवनेस की वजह से उसने मुझसे रिस्ट तोड़ लिया। और आज तुम मुझे मेरी बेटी के रूप में मिली हो। बस अबसे हम साथ रहेगें।" और इतना कह वह अर्चना के गले लग रोने लगी। अर्चना के आँखों में जो आंसू रुके थे वह भी बह गए। और इतने दिनों में आज वह सुकून से रो सकी थी। और उसकी "कड़क रोटी " ने उसे माँ समान सास दी थी....