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खुशियों की दहलीज़...

अरुणा खिडकी से सट कर खड़ी थी।

वो अपनी शादी से पहले का दिन याद कर रही थी , जब माँ ने उसे अपने कमरे में बुलाया था।

कमरे मे जब वह पहुँची तो उसे एक उदासी महसूस हो रही थी। माँ के पास जाकर अरुणा ने देखा की माँ की आंखोँ के कोरो से आंसू छलक रहे थे। अरुणा की आंखें बडी हुई। उसकी माँ ने जब अरुणा को देखा तो अपने आँसुओ को पोछते हुए बोली," आ गयी।" "हा माँ।" अरुणा ने दबे स्वर में कहा। अब माँ ने कहना शुरु किया," देख बेटी, कल तेरी शादी है। मैने अपनी जिन्दगी मे बहुत मुश्क़िले देखी है। पर हमेशा याद रखना बेटी की डोली भले मायके से उठती है और अर्थी ससुराल से। मेने भी इसी परम्परा को माना है, और अब तुझे भी इसे आगे तक ले जाना है।" अरुणा ने हां में सर हिला दिया। ससुराल आने के बाद ही ससुराल वालो ने उसे परेशान करना शुरु कर दिया था। रोज-रोज पति मार-पीट करता। और एक दिन अरुणा सब का मुहँ बन्द कर दिया, उस रोज जब उसका पति दारु पीकर उसे मारने लगा तो उसने वही किया जो सीख उसकी माँ ने उसे दी थी। उस रात उसने अपने पति से बचकर छत की तरफ दौड़ लगा दी। छत को मून्डेर पर पहुँच कर जब मुड़ कर देखा तो उसका पति हाथ मे बेल्ट लिये उसकी तरफ बढ रहा था। उसने मन मे खुद से कहा," अगर आज तू इस राक्षस के हाथ लगी तो जीवन भर इसके जुल्मो को सहना पडेगा।" बस पलक झपकते ही अरुणा घर की सातवीं मंजिल से नीचे गिर गयी थी। ये नजारा देख कर उसके पति के होश ठिकाने आ गये। दुसरे दिन पुलिस आयी, पोस्टमार्टम हुआ और केस को मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या का रूप दे दिया गया। अरुणा का शव तो जल चुका था ,उसकी सारी चीजो को घर से निकाल कर फेंक दिया गया , बस एक चीज थी अरुणा की जो घर मे रह गयी थी वो थी उसकी "आत्मा"। अब उसकी आत्मा बेझिझक घूमती थी। बस अपने अतीत को याद कर जब वह रोती तो उसके पूरे ससुराल वालो को सुनाई देता। सब समान्य हो गया, उसके पति ने जब दूसरी शादी करी तो उसके गुस्से की कोई सीमा ना रही। उसके पति की चिल्लाने की आवाज सुन कर सब वहा आये तो देख की अरुणा ने अपने पति की गर्दन पकड़ी हुई है। देखते ही देखते उसने अपने पति को इस दुनिया से हमेशा के लिये बाहर कर दिया। उसके बाद उसके ससुराल वालो ने दूसरे ही दिन वह घर छोड दिया और कही और बस गये। लेकिन अब भी अरुणा के रोने की आवाज रात को उस घर से आती थी। वहा आस पास के इलाके मे यह खबर फैल गयी की वह घर भूतिया घर है। अब बस उस घर मे एक तन्हाई थी और उसके साथ रहने वाली अरुणा की आत्मा। और वह हरदम यही सोचती रहती की वह घर तो उसके लिये गम का महल बन चुका जो उसके "खुशियोँ की दहलिज" होनी चाहिये थी .....

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