खाली हाथ नहीं लौटते... सिमरन जयेश्वरी द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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खाली हाथ नहीं लौटते...

खाली हाथ नहीं जाते...
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"काका....???? ओ काका...!!! क्या लाये हो मेरे लिए....!!!" उसने काका के गाल पर उंगली फेरते हुए कहा।
"अरे गुड्डे तेरे लिए, ये तो सबके लिए है...!!!!! फिर भी ये देख ये अंगूर तेरे लिए लाया हूँ....!!!" उसके काका ने कहा।
फिर उसके काका ने बाल्टी से धुले हुए अंगूर का एक गुच्छा साफ कपड़े में पोछा और एक प्लेट में रख उसे दिया।
गुड्डू खुशी-खुशी प्लेट लिए अपने काका की गोद में बैठ गया और चाव से अंगूर खाने लग गया।
"अरे सीतराम...!!! काहे इतना खर्चा किये हो तुम...!!! जब एकहई शहर में रहते हैं...!!!
जब भी आओगे तो कुछ न कुछ फल-मिठाई लेकर ही आओगे...!!" सीतराम के पास बैठे व्यक्ति ने कहा।
"अरे तुलसीराम भैया....!!! माना हम एक शहर में रहते हैं, लेकिन ये घर भी तो मेरे घर समान है,
और अपने घर आओ, तो कभी खाली हाथ नहीं जाते...!!!" सीतराम ने कहा।
उस साधारण से परिवार की बातें चल रही थी कि सभी ने सीतराम को सोने के लिए कह दिया।
यह एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार था और उन्ही का इकलौता बेटा गुड्डू।
गुडडू अभी केवल सात साल का है और चीजों को बहुत जल्दी सीखता है।
सीतराम महमानों वाले कमरे में चला गया और लेट गया, तभी गुड्डू उधर आया।
वो जाकर सीतराम के पास लेट गया और सीतराम उसपर प्यार से हाथ फिराने लग गया।
"काका....!!! एक बात पूंछू..????" गुड्डू ने कहा।
"हां बिल्कुल...!!!!" सीतराम ने कहा।
"आप जब भी कहीं आते हो या जाते हो तो कुछ न कुछ खरीदते ही हो..!!!!
ऐसा क्यूँ, आपके पैसे खर्च नहीं होते, आपकी मम्मी आपको डांटती होगी न...???" गुड्डू ने मासूमियत से पूछा।
"हम्म...!!! ये तो बहुत अच्छा सवाल किया तुमने...!!!" सीतराम ने कहा।
"अरे बताओ न...????" गुड्डू ने ज़िद की।
"अरे बेटा, घर एक स्वर्ग होता है...!! और घर के बड़े देवता...!! और जब हम भगवान जी की पूजा करते हैं..!!!!
या उनके मंदिर जाते हैं तो क्या लेकर जाते हैं, ये तुम बताओगे मुझे...???" सीतराम ने कहा।
"जब भगवान जी के मंदिर जाते हैं तो प्रसाद लेकर जाते हैं...!! जैसे मिश्री, केला, अमरूद जैसे फल...!!!" गुड्डू उंगलियाँ गिनते हुए बताने लग गया।
"हाहा....!!! तो बताओ, कभी खाली हाथ जाते हो भगवान जी के मंदिर में...!!!" सीतराम ने पूछा।
"कभी नहीं...!!!" गुड्डू ने कहा।
"बस फिर...!!! इसलिए मैं भी जब इधर आता हूँ तो खाली हाथ नहीं आता...!!!
तुम्हारे पापा और दादी मुझसे बड़े हैं...!! और मुझे उनका आशीर्वाद चाहिए...!!" सीतराम ने हंसकर कहा।
"वो तो मुझसे भी बड़े हैं...!!! ह्म्म्म....!!!" गुड्डू मन ही मन कुछ तो सोचने लग गया।
अगले दिन उसके काका चले गए और गुड्डू भी स्कूल के लिए निकल गया।
घर लौटते टाइम उसे सड़क पर बनी लाला की दुकान दिखाई दी और उसका दिमाग कौंधा।
कुछ टाइम बाद गुड्डू घर गया और उसके हाथ में एक लॉलीपॉप और एक चिप्स का पैकेट था।
"हम्म...!!! तो आज हमारे गुड्डू को चिप्स खानी थी....!!!! मुझे बता देते तो मैं बाज़ार से बड़ा वाला पैकेट लाता...!!!" गुड्डू के पापा ने उसे गोद में उठा लिया।
"नहीं पापा मन तो नहीं था पर....!!!!" गुड्डू बोलते हुए चुप हो गया।
"पर...????" उसके पापा ने पूछा।
"कुछ नही...!!!" गुड्डू ने कहा।
सारी स्थिति सामान्य रूप में हो गयी।
ऐसे करते-करते हफ्ता भर हो गया कि गुड्डू स्कूल या कहीं से आते समय कुछ लेकर आता।
भले ही वह 1 रुपये आलू टॉफ़ी हो।
हफ्तेभर बाद जब सीतराम लौटकर आया तो गुड्डू के पापा ने उसकी यह हरक़त सीतराम को बताई।
सीतराम माज़रा समझ गया और गुड्डू को अपने पास बुलाया।
"गुड्डुज़ मैंने सुना कि तुम रोज़ स्कूल से आते टाइम कुछ न कुछ लेकर आते हो...???" सीतराम ने कहा।
"हाँ...!!!" गुड्डू ने हां में गर्दन हिलाई।
"लेकिन क्यूँ, सबको बताओ...???" सीतराम ने कहा।
"क्यूँकि अपना घर मंदिर जैसा होता है और घर के बड़े भगवान जी के जैसे...!!!
और जब भी भगवान जी के घर आओ तो खाली हाथ नहीं आओ, क्यूँकि आशीर्वाद नहीं मिलता...!!!" गुड्डू बड़ी सहजता से बोला।
सब उसकी मासूमियत पर हंस रहे थे साथ ही उसके बालमनकी चंचलता पर मोहित।
की किस प्रकार उसने यह बात सिख ली, कि भगवान के मंदिर में 'कभी खाली हाथ नहीं जाते'।
बच्चों का मन तो होता ही ऐसा है, जो सीखा दो सिख जाएँगे, अब ये तो आप पर है कि आप उसे किस प्रकार सिखाते हैं।
धन्यवाद💝 पसन्द आने पर कमेंट जरूर कीजियेगा ☺️।
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