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पँख आज़ादी...

पंख: आज़ादी...

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किसी पहाड़ी क्षेत्र का दृश्य...
चारों तरफ केवल घना जंगल, पौधे, झुरमुटों और पेड़ों से भरा रास्ता।
गहरे काले अंधेरे में चारों ओर फैली हुई शांति ऐसी लग रही थी कि,
जैसे कोई काली हवा उस क्षेत्र के पूरे वातावरण पर कब्ज़ा जमा कर बैठी हुई हो।
झुरमुटों से झींगुरों, मेंढकों और नजाने कितने प्रकार के जीवों की आवाज़ थी।
ये आवाज़ें उस वीरान क्षेत्र को अत्यंत भयावह बना रही थी, जैसे कोई है वहाँ....!!!
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन झुरमुटों में कोई छिपा बैठा है, जो कि आदमख़ोर है।
वो आदमख़ोर नजाने किसके शिकार की तलाश में हो और जैसे ही कोई आएगा,
वो आदमख़ोर उसको बड़ी ही निर्ममतापूर्वक खा जाएगा, आनंद लेगा उसके मृत देह का।
उस मृत देह के रक्त को बड़ी ही च्वास के साथ पियेगा, उसके मांस को स्वाद ले-लेकर खायेगा।
किसी अंधेर गली का सफ़र ही रूह कँपा देने के लिए पर्याप्त होता है।
परंतु किसी जंगल के भीतर का अंधेर व वीरान रास्ता हृदयाघात देने का कार्य करने की क्षमता रखता है।
उस वीरान में अभी हवा चलने लगी, तेज़ हवा, और उस हवा की ठंडक,
उस हवा की ठंडक किसी मरे हुए व्यक्ति के देह की तरह ठंडी हो रखी थी।
उन तेज़ हवाओं के झोंकों की ठंडक से देह का रोम-रोम तक ठिठुरा जा रहा था।
लेकिन तभी उस वीरान सन्नाटे को चीरते हुए कुछ आवाज़े आ रहीं थीं।
कैसी आवाज़ें थीं ये...?????
क्या कोई जानवर है, क्या कोई आदमख़ोर है, कोई भूत, कोई पिशाच या कोई और...???
अगर उन आवाज़ों पर गौर किया जाए तो ये किसी व्यक्ति के चलने की आवाज़ थी।
शायद कोई ऐसा व्यक्ति जिसका एक पैर विकलांग है और वो उसे घसीट कर चल रहा था।
उसके पैर घसीटने में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती महसूस नहीं हो रही थी।
वह आराम से अपने पैर को घसीट-घसीट आगे बढ़ता जा रहा था।
लेकिन नहीं.....
वो अकेला नहीं था,ये कदमों की आहट किसी अकेले व्यक्ति की नहीं थीं, उसके साथ में कोई और भी है।
कोई और नहीं, बल्कि कई और थे उसके साथ में, वो पूरा झुंड था।
आगे आने पर अब उस झुंड का चेहरा साफ़ रूप से देखा जा सकता था।
उस झुंड में कोई ऐसा नहीं था जिसकी मुख पर क्रूरता और निर्ममता न हो।
उस पूरे झुंड का प्रत्येक व्यक्ति किसी जल्लाद की तरह दिख रहे थे।
AK47, beretta, adaptive combat rifle, AEK-097 और conventional multirole combat rifle।
ऐसी ही कई प्रकार के कई हथियार उन सभियों ने अपने साथ लिए हुए थे।
जिससे साफ़ तौर पर पता चल जाता है कि वह सभी डकैत थे और शायद,
शायद वो सब अभी-अभी किसी के आशियाने को लूटकर आये थे।
उनके पास घरेलू सामान था और वो कुछ सामानों से खेल रहे थे।
उनके हाथों पर लगा हुआ खून बता रहा था कि लूटने के साथ साथ किसी का घर शमशान भी बना दिया था।
"आज तो मज़ा आ गया गुरजन गुरु....!!! कितना सारा माल मिला उस गरड़िया के घर...!!!" एक ने बड़ी ही बेशर्मी से हँसते हुए कहा।
"हाँ भई, मुझको तो ये पिपड़ी बड़ी पसन्द आ गयी...!!" दूसरे ने हँसते हुए कहा और हाथ में ली हुई खिलौने वाली बाँसुरी बजाने लग गया।
"और मुझको तो सबसे ज़्यादा मजा आया उसमें....!!!" किसी तीसरे ने कहा, जिसके स्वर में हवस थी।
"हाँ रे....!!! उसकी नई बहू...!! आये हाये क्या बदन था, नरम नरम...!!!" पहले वाले ने उँगली से किसी लड़की के जिस्म का गलत आकर बनाते हुए कहा।
"बड़ा मज़ा आ रहा था जब उसकी चीखें सुन रहा था, आये हाये शायद किसी ने छुआ नहीं था उसको अब तक...!!" तीसरे वाला अपने घिनोने कृत्य को सोचकर गुदगुदा रहा था।
"पता होता तो कर्फ़्यू के टाइम इसी के घर पर डाका मार लेते, कम से कम भूखों नहीं रहना पड़ता...!!" दूसरे वाले ने कहा।
"ऐ चुपचाप चलो...!!! नींद आ रही है...!!! सुबह गिन लेना जो भी लूटा है...!!!" उनके सबसे आगे चल रहे उस विकलांग ने चिल्लाकर कहा जो कि उनका सरदार गुरजन था।
गुरजन की आवाज़ में इतनी सख़्ती थी कि झुंड सारे के सारे डकैत चुप हो गए।
गुरजन शक़्ल से ही खूंखार आतंकी दिख रहा था और काफ़ी अनुभवी भी।
वह सभी चल ही रहे थे कि गुरजन कोई आवाज़ सुनाई दी, उसने सभी को रुकने का इशारा किया।
सभी सचेत हो गए और इधर उधर ध्यान लगाकर आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगे।
तभी उनका ध्यान दाहिनी तरफ वाले जंगल पर गया और गुरजन समझ गया कि उनपर नज़र है।
तभी उसे कोई दिख गया, और उसने अपने दांत पीसते हुए अपनी बन्दूक उठा ली।
"तुम्हारी माँ का...!!!!!" कहकर गुरजन ने उस ओर बन्दूक की फायरिंग करने की कोशिश की।
लेकिन उसकी फायरिंग से पहले ही उस जंगल से फायरिंग शुरू हो चुकी थी।
गुरजन के बीस लोगों के गुट में से पन्द्रह मारे जा चुके थे, और बाकी छिपकर फायरिंग कर रहे थे।
गुरजन को भी कंधे पर गोली लग चुकी थी, उसने सबको बिल्कुल शांत रहने का आर्डर दिया।
सब चुपचाप हो गए और उस तरफ देखा जहाँ से कुछ मानव आकृतियां सावधानीपूर्वक बाहर आ रहीं थीं।
गुरजन ने ध्यान से उन मानव आकृतियों की कपड़ो पर ध्यान दिया।
"लगता है मर गए साले...!!!" एक ने कहा।
"नहीं कैडेट विशाल...!!! वो लोग अब भी इस जगह छिपे हो सकते हैं...!!" किसी ने कहा।
"लेकिन संकल्प सर इनकी लाशों के ढेर तो देखिए....!!! आप ख़ामख़ा डर रहे हैं...!!!
चलो हमको अब बाहर निकल कर हेड ब्रांच पर इनके मरने की ख़बर दे देनी चाहिए...!!!" कहकर विशाल बाहर आ गया।
"नहीं विशाल....!!!!" संकल्प सर ने कहा।
"फौजी है साले...!!! पिछवाड़ों में गोली भर दो सालों की मादर*** ...!!!" गुरजन चीखा।
गुरजन के आदमियों ने विशाल के सचेत होने से पहले ही फायरिंग कर दी।
विशाल के शरीर पर हर जगह गोली लग चुकी थी और वो शहिद हो चुका था।
"विशाल...!!!! तेरी तो मैं...!!" कहकर एक और सैनिक वहाँ से उठ गया।
गुरजन के आदमियों ने उसे भी ऊपर से नीचे तकगोलियों से भून डाला।
संकल्प की टीम ने भी गुरजन की गैंग पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।
लेकिन.....
"संकल्प सर....!!! हमारी राइफल्स और गन्स खाली होने वाली हैं...!!!" एक ने डरकर कहा।
"जो डर गया वो मर गया अनिकेत...!!! आज शहिद भी हो गए तो भी इसके सामने नहीं झुकेंगे...!!!" संकल्प ने कहा।
और अनिकेत के कहे अनुसार उन सभी की बंदूके खाली हो गईं थीं।
गुरजन समेत उसकी गैंग के बचे हुए तीन आदमी समझ गए कीवो लोग निहत्थे हो चुके हैं।
उन्होंने आगे बढ़कर फायरिंग जारी रखी और संकल्प के बाकी साथियों को गोलियों से भर दिया।
संकल्प भी लड़ता लेकिन कोई फ़ायदा नहीं रहा और वो ज़मीन पर गिर पड़ा।
गुरजन ने ज़मीन पर निहत्थे संकल्प की खोपड़ी पर बन्दूक तान दी,
और तभी वातावरण में गोली चलने की आवाज़ हुई....!!!!

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पलँग पर आराम से सोया हुआ वह व्यक्ति डर से उठकर बैठ गया।
उसकी साँसे बहुत तेज़-तेज़ चल रही थीं और माथे पर पसीने की लड़ियाँ थीं।
"हे भगवान....!!!" उसने ईश्वर से हाथ जोड़े।
"संकल्प भैया...!!!" पीछे से जानी पहचानी बाजुओं ने उसे पकड़ा।
"अरे दीपू तू...??? कब आयी रे...??" संकल्प ने खुश होते हुए कहा।
"भैया आप इतने डरे हुए क्यूँ लग रहे हैं..??? कोई बुरा सपना देखा क्या...??" दीपू ने पूछा।
"कुछ नहीं...!!! बस....!!!" संकल्प को समझ नहीं आया कि वो क्या कहे।
"वही सपना था...???" दीपू ने पूछा।
"ह्म्म्म....!!" गहरी सांस छोड़ते हुए संकल्प ने कहा।
"आप इतना मत सोचा करिए उस बात को, इसी वजह से आपको ऐसे सपने आते हैं...!!!" दीपू ने कहा।
"ह्म्म्म...!!! वो छोड़, ये बता कैसे याद आ गयी आज भैया की...???
तुझको तो तेरे पेट्स से ही फुर्सत नहीं मिलती की अपने भैया से मिले...!!
कभी कभी लगता है कि मैं भी तेरा पेट बन जाऊँ, कम से कम भाव तो देगी चुड़ैल...!!!" संकल्प ने दीपू के गाल खींचते हुए कहा।
"तुम तो ऑलरेडी एक पेट हो...!!" दीपू ने कहा।
"अच्छा और कौनसा...??" संकल्प ने पूछा।
"चमगादड़...!! बस पेड़ पे उल्टे लटके रहते हो...!!" दीपू ने हँसकर कहा।
"अच्छा...!! रुक तुझे बताता हूँ...!!!" कहकर संकल्प ने दीपू की चोटी खींच दी।
"मम्मी......!! ये देखो भैया फिर से मार रहे हैं...!!" दीपू ने चिल्लाकर कहा।
"तू मेरी बैंड बजाने आती है...!!" संकल्प ने हँसकर कहा।
दीपू रूम से चली गयी और संकल्प बाथरूम ने नहाने के लिए घुस गया।
उसने शावर के नीचे नहाते हुए सामने लगे चेस्ट तक के आईने में खुद को देखा।
उसके हाथ के उंगली उसके सीने पर बने नाख़ून के खरोंचों पर चली गई।
उन निशानों को देखकर संकल्प भावुक हो गया था और नहाते हुए भी उसकी आँसू बह गए थे।

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किसी गुफ़ानुमा कमरे में...
"तुम्हें इतना ज़्यादा चाहने लगूँगी इसका अंदाज़ा नहीं था मुझको...!!!" उसने उसके सीने पर सर रखकर बोली।
"मैं भी नहीं जानता था कि मेरी जिंदगी में इतना खूबसूरत हीरा आएगा....!!!" उसने उसके गालों पर उंगली फेरते हुए कहा।
"तुम मुझे छोड़कर मत जाना कभी...!!" वो बोली लेकिन उसकी आँखों के कोर भीग गए।
"सब समय के हाथों हैं...!! अगर भगवान ने चाहा तो ही हम साथ रहेंगे...!!!" उसने उसके आंसू पोंछते हुए कहा।
वो चुपचाप उसके सीने पर सर रखकर रोती रही और रोते हुए ही सो गई....!!

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संकल्प कांप रहा था, उसने जल्दी से नहाया और तैयार होकर हॉल में आ गया जहाँ दीपू माँ के साथ बैठी हुई थी।
"लो माँ...!!! भैया भी आ गए....!!" दीपू ने कहा।
"क्या बुराई कर रही है मेरी....??" संकल्प ने दीपू के कान उमेठ दिए।
"छोड़ उसे...!! अरे तू तो ऐसा ही सोचता रहता है...!! वो तो कुछ बता रही थी...!!" माँ ने कहा।
"खड़ूस....!!!" दीपू ने उसे जीभ चिढ़ाते हुए कहा।
"देखो माँ....!!!" संकल्प ने कहा।
"अरे मत कर दीपू....!!! चल बता भैया को...!!" माँ ने कहा।
"अरे हाँ...!!! मुझे न एनिमल ऐक्टिविस्ट का अवार्ड मिला है लास्ट वीक...!! ये देखो...!!" कहकर दीपू ने मोबाइल से फ़ोटो दिखाया।
"वाओ यार....!!! कोंग्रेट्स....!!!" संकल्प बोला।
"वांव यांर...!! कोंघरेट्स...!!!" बालकनी से आवाज़ आयी।
"ये कौन बोला...???" दीपू ने पूछा।
"अपने भैया से पूछ लें...!!" माँ ने हँसकर कहा।
"चल मिलवाता हूँ....!!!!" कहकर संकल्प ने दीपू को अपने पीछे चलने को कहा।
तीनों बालकनी में गए जहाँ एक चैन से लटके पिंजरे में बोलने वाला पहाड़ी तोता था।
"इनसे मिलो दीपू...!!! ये हैं मिस्टर हैरी...!!!" संकल्प ने उसका परिचय करवाया।
"हेल्लो...!!!" हैरी ने कहा।
"भैया व्हाट इज दिस....????" दीपू ने नाराज़ होते हुए कहा।
"माय पेट....!!! अब सिर्फ तुझे थोड़ी न पेट रखने का राइट है एनिमल एक्टिविस्ट...!!!" संकल्प बोला।
"भैया बात वो नहीं हैं, आपने हैरी को केज में रखा हुआ है एंड मैं अपने पेट्स केज में नहीं रखती...!!!" दीपू ने कहा।
"अरे पर मैं कौनसा उसे गलत ट्रीट करता हूँ...!! ही इज लाइक माय फैमिली....!!!" संकल्प ने कहा।
"पर भैया किसी को कैद रखना गलत होता है, किसी की उड़ान रोकना अच्छी बात नहीं है...!!
वैसे भी हम जिससे प्रेम करते हैं, हमारी खुशी उन्हीं की खुशी में होती है...!!!" दीपू ने कहा।
"पर मैं अपने हैरी को कैसे छोड़ दूं दीपू...!! आय लव हिम टू मच..!!!
आय एम नॉट लीविंग हिम एंड देट्स माय बुलहेडेडनेस...!!!" संकल्प ने कहा और अपने रूम में चला गया।
संकल्प ने कमरे का गेट लगा दिया और बेड पर निढाल हो गया और एक बार फिर,
भूतकाल की घटनाओं में गुम हो गया...!!!

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उसी जंगल में...
गुरजन ने ज़मीन पर निहत्थे संकल्प की खोपड़ी पर बन्दूक तान दी,
और तभी वातावरण में गोली चलने की आवाज़ हुई....!!!!
गुरजन की बन्दूक की नोंक संकल्प के ऊपर से हट गई और सबकी नज़र आवाज़ वाली दिशा की ओर गयी।
संकल्प ने भी उस तरफ देखने की कोशिश की, सामने कोई काया थी।
वो काया बलखाती सी, कमर लचकाती सी उस तरफ आयी, वो कोई स्त्री काया थी।
"क्यूँ मार रहा है निहत्थे को....!!!" उस मधुर स्वर वाली ने कहा।
"ज्वाला हुज़ूर...!!! इसने हमारे आधे से ज्यादा आदमी मार दिए, अब इसे क्यूँ न मारूँ...??" गुरजन ने गुस्से में कहा।
"रे इसकी शक़्ल देख....!!! फट रही है...!!! मत मार बिचारे को...!!
एक काम कर इसको अपने साथ ले चल, अस्तबल में घोड़े का पिछवाड़ा साफ़ करेगा फ़ौजी....!!!" ज्वाला ने कहा और सब संकल्प पर हँसने लग गए।
गुरजन के आदमियों ने संकल्प को रस्सियों में बांध दिया और घसीटते हुए अपने अड्डे पर ले गये।
संकल्प उधर उन सब के साथ बंधुआ मजदूर की तरह रहा करता था।
वो वहाँ से निकलने के लिए रोज़ नई तरक़ीब सोचता पर उस तरक़ीब की कोई न कोई कमी निकल ही आती थी।
इसी तरह संकल्प एक दिन अपनी बहन व माता को याद करके दुःखी हो रहा था।
उसे वो पहला दिन याद आ रहा था जब उसका सिलेक्शन आर्म्ड फोर्सेज़ में हुआ था।
वो और दीपू तो बहुत खुश थे पर माँ, माँ को सिर्फ चिंता रहती थी कि एकलौता लड़का वो भी फौज में।
उनको डर था कि कहीं उसे कुछ हो न जाये, और ये सोचते हुए आँसू आ गए।
उसे कुछ हुआ तो नहीं लेकिन वो अपने परिवार से दूर ज़रूर हो गया था।
वो आँखे बंद करके वहीं बैठा रहा लेकिन तभी उसे किसी के पास होने का एहसास हुआ।
उसने आँखे खोलकर देखा तो सामने कुछ मीटरों की दूरी पर बने टीले के ऊपर,
ज्वाला बैठी हुई थी, और अस्तबल के बाहर बैठकर रो रहे संकल्प को ही देख रही थी।
संकल्प ने उसे अपनी ओर देखते हुए पाया तो अपने आँसू तुरन्त पोंछे और अंदर पड़े अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया।
उसे नींद नहीं आ रही थी, वो बेचैन हुए जा रहा था और इसी कारण वापस बाहर आकर बैठ गया।
उसने देखा ज्वाला अब भी वहीं बैठी हुई उस जगह पर ही देखे जा रही थी।
संकल्प ने अपनी नज़रे नीची कर ली और आधे घंटे तक यूँ ही नीचे देखता रहा।
जब उसे लगा कि ज्वाला अब उस टीले पर नहीं तो उसनेनज़रें उठा ली।
ज्वाला अब उस टीले पर नहीं थी बल्कि अस्तबल में ही आ चुकी थी।
संकल्प अब डर रहा था, उसे इतने दिनों में ये तो पता चल ही गया था कि ज्वाला सिरफ़ीरी है।
"रो क्यूँ रहे हो...???" ज्वाला उसके पास बैठ गयी।
"जी कुछ नहीं हुज़ूर.....!!!" संकल्प ने कहा।
"झूठ बोलने से क्या फ़ायदा...??? तुम्हारे आँसू तो मैंने देख लिए थे...!!!" ज्वाला ने कहा।
संकल्प के पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं, वो बस ख़ामोश रहा।
"घरवालों की याद आ रही है न...???" ज्वाला ने पूछा।
"ह्म्म्म....!!!" संकल्प बस इतना कह पाया।
"कौन-कौन है तुम्हारे परिवार में...???" ज्वाला ने पूछा।
"मां और बहन....!!!"संकल्प ने बताया।
"मैं जानती हूँ कि तुम्हारे मन मे क्या आ रहा होगा...!! यही की मुझे क्या...??
मुझे किसी के परिवार की कोई कदर ही नहीं होगी क्यूँकि मेरा तो खुद का कोई परिवार नहीं...!!" ज्वाला ने कहा।
संकल्प हैरान था, क्यूँकि वो वाकई ये बात सोच रहा था।
"घर था, परिवार था पर सब बिखर गया, सब लूट लिया गया हम से...!!
सबको मार डाला था नक्सलियों ने, बस मैं बची थी और बच कर भी क्या किया...??
डकैत बन गयी, अपनी आबरू पर किसी की गलत नज़र पड़ते ही उसका क़तल कर देती...!!
बस तभी से ज्वाला बन गयी और अब तो ये आदत में शामिल हो गया...!!!
मैंने तुम्हें पकड़ लिया, इसके लिए माफ़ी चाहूँगी...!!!" ज्वाला ने कहा।
"सब समय की बात होती है हुज़ूर...!!!" संकल्प ने कहा।
ज्वाला वहाँ से चली गयी, लेकिन रोज़ रात को उसी टीले पर बैठकर संकल्प को देखा करती।
संकल्प को अब अपने रिहा होने की राह ज्वाला के ज़ज़्बातों में दिखने लगी थी।
लेकिन ज्वाला संकल्प को दिल दे बैठी थी और ये संकल्प समझ गया था।
उसने ज्वाला के ज़ज़्बातों पर काबू पा लिया और कोई समझ नहीं पाया।
एक दिन यूँ ही ज्वाला और संकल्प साथ मे थे कि संकल्प ने अपनी बात कही।
"तुम एक साधारण जिंदगी क्यूँ नहीं जी लेती हो...???" संकल्प ने उसे बाहों में भरकर कहा।
"जिस राह पर हूँ उसमें राह बदलने पर या लौट जाने पर सिर्फ एक ही नतीजा मिलता है, मौत...!!" ज्वाला ने कहा।
"कब तक इसी तरह रहोगी...??? मेरे साथ चलो...!!" संकल्प ने कहा।
"नहीं...!!! ये कभी नहीं हो पायेगा...!!" ज्वाला ने रोकर कहा।
"जैसा तुम चाहो...!!" कहकर संकल्प ने बात टाल दी।
कुछ दिन बाद वो दोनों उसी तरह मिले और संकल्प ने सोच लिया था कि वो इस बार ज्वाला को कह देगा।
"तुम मुझसे बहुत प्रेम करती हो न ज्वाला...???" संकल्प ने पूछा।
"बोहोत...!!!" ज्वाला ने कहा।
"तो अगर मेरी खुशी किसी बात में हुई तो तुम उसे एक्सेप्ट करोगी...???" संकल्प ने कहा।
"बिल्कुल...!!!" ज्वाला ने कहा।
"मुझे इस कैद से आज़ादी चाहिए....???" संकल्प ने डरते हुए कहा।
ज्वाला कुछ देर तक चुप रही लेकिन फिर संकल्प की ओर मुस्कुरा कर देखा।
"मैं जानती थी कि किसी न किसी दिन तुम ये बात ज़रूर कहोगे...!!
ठीक है, तुम्हें आज़ादी दे देती हूँ, क्यूँकि हम जिससे प्रेम करते हैं, हमारी खुशी उन्हीं की खुशी में होती है...!!" ज्वाला ने कहा।
संकल्प भीतर से खुश था, उसने ज्वाला के ज़ज़्बातों का फ़ायदा जो उठा लिया था।
अगले दिन संकल्प को ज्वाला निकालने ही वाली थी कि गुरजन ने उसे रोक दिया।
गुरजन ने उन दोनों की सारी बातें सुन ली थी और उसने ज्वाला को कह दिया कि वो संकल्प को नहीं जाने देगा।
ज्वाला ने बंदूक उठा ली और संकल्प के सामने गुरजन और उसके आदमी एकलौती ज्वाला से मुठभेड़ कर रहे थे।
संकल्प ने ज्वाला की मदद की, गुरजन के सारे आदमी मारे गए लेकिन गुरजन ने,
गोली खाकर भी ज्वाला को शूट किए बिना हार नहीं मानी।
ज्वाला जब संकल्प की बाहों में आख़री सांसे ले रही थी तब संकल्प को भी एहसास हुआ,
उसे पता चला कि वो भी ज्वाला को पसन्द करने लगा था पर कोई फायदा नहीं रहा।
ज्वाला जा चुकी थी और इधर सर्चिंग टीम ने संकल्प को ढूंढ लिया।
लेकिन संकल्प का दिल तो ज्वाला के साथ ही जा चुका था....

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वर्तमान में...
संकल्प ये बातें सोचते हुए सो चुका था और उसके दिमाग में ज्वाला की एक ही बात गूँज रही थी।
" जिससे प्रेम करते हैं, हमारी खुशी उन्हीं की खुशी में होती है...!!!"
अगली सुबह संकल्प उठा और दीपू को भी उठाया और अपने साथ बालकनी में ले गया।
"तू सही कहती है दीपू, हम जिससे प्रेम करते हैं, हमारी खुशी उन्हीं की खुशी में होती है...!!!" कहकर संकल्प ने हैरी को पिंजरे से निकाला।
"मैं तुम्हें आज़ादी देता हुँ मेरे दोस्त...!!!" कहकर संकल्प ने हैरी और उसके पँख को आज़ाद कर दिया।

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समाप्त....


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