बेसहारा
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"मम्मी,इरा का तुम्हारे साथ निर्वाह नही हो सकता।"
उमेश इन्टर मे पढ़ता था।तभी उसे अपने साथ पढ़ने वाली इरा से प्यार हो गया था।इरा क्रिस्चियन थी।रमेश नही चाहता था,उसका बेटा दूसरे धर्म की लड़की से प्यार के चक्कर मे पड़े।उसने बेटे को इरा से दूर रहने के लिए समझाया।पर व्यर्थ।
उमेश इंजिनीरिंग करना चाहता था।उसने बेटे का एडमिशन कानपुर के कॉलेज में करा दिया।उमेश कानपुर चला गया।रमेश ने सोचा था।उमेश ,इरा से दूर रहेगा,तो उसे भूल जाएगा।लेकिन ऐसा नही हुआ।उमेश और इरा रोज फोन पर बाते करते।उमेश कॉलेज की छुट्टी में आगरा आता तब उसका ज्यादातर समय इरा के साथ गुज़रता।रमेश को यह बिल्कुल पसंद नही था।वह बेटे को इरा से अलग करना चाहता था।पर कैसे?
रमेश अपने बेटे को इरा से अलग करने की कोई तरकीब सोच पाता।उससे पहले उसे कैंसर हो गया।काफी इलाज कराने के बावजूद उसकी तबियत धीरे धीरे बिगड़ती चली गई।और एक दिन वह इस संसार से चला गया।
उमेश की नौकरी उसके पिता की जगह लग गई।नौकरी लगते ही उसके लिए रिश्ते आने लगे।लेकिन उमेश ने मा से साफशब्दों में कह दिया,"मैं शादी इरा से ही करूँगा।"
मीरा जानती थी,उसका पति इरा को अपनी बहू बनाना नही चाहता था।लेकिन पति अब रहा नही था।अब उसे बेटे का ही सहारा था।बेटे की खुशी के लिए उसने पति की इच्छा को दरकिनार करके उसकी शादी इरा से कर दी।
कान्वेंट में पढ़ी इरा आज़ाद ख्यालो की मॉडर्न युवती थी।औरते ही नही मर्द भी उसके दोस्त थे।वह दोस्तो से फोन पर बाते करती थी।मॉडर्न फेशन के कपड़े पहनती थी।चाहे जिस मर्द दोस्त के साथ घूमने चल देती।मीरा चाहती थी।इरा मान मर्यादा से रहे।भारतीय बहु की तरह रहे।
इरा सास की दकियानूसी सोच से इत्तफाक नही रखती थी।इसलिए उनमे रिज झगडे होने लगे।उमेश ऑफिस से लौटता तो सास बहू के झगड़े सुनने को मिलते।इरा सास के बंधन में नही रहना चाहती थी।पत्नी के कहने पर वह माँ से अलग हो गया।
पति की मौत के बाद मीरा ने सोचा था,बेटे के सहारे शेष जीवन गुजार देगी,लेकिन बेटा उसे बेसहारा छोड़ गया था।
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ममता
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"जब तक तुम अपने माँ बाप को गांव नहीं भेजोगे।मैं नही चलूंगी"।
रचना की शादी नरेन से हुई थी।नरेन माता पिता से बहुत प्यार करता था।वह उन्हेंअपने साथ रखता था।कान्वेंट में पढ़ी आज़ाद ख्यालो की रचना को यह पसंद नही था।वह पति से कहती,"अपने माता पिता को गांव भेज दो।"
रचना ने कई बार पति से कहा लेकिन नरेन ने मना कर दिया।जब पति प्यार से नही माना, तो रचना ने ज़िद्द से काम लिया।पति तब भी नही माना, तो उसने त्रिया चरित्र दिखाया।पर उसका कोई हथकंडा काम नही आया तो वह नाराज होकर मायके चली गई।
नरेन ने सोचा था गुस्सा शांत हो जाने पर वह वापस आ जायेगी।लेकिन कई महीने बाद भी वह नही आई।तब नरेन उसे लेने जा पहुंचा।उसने प्यार से पत्नी को समझाया ।पर फिर भी वह नही मानी।
"तुम यहाँ रहना चाहती हो। रहो।लेकिन मेरा बच्चा मुझे दे दो।"
नरेन पत्नी कि गोद से बच्चा लेकर चला गया।
जैसे जल बिन मछली।वैसे ही संतान बिना माँ।
न चाहते हुए भी रचना पति के पीछे चली गई।
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स्वागत
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"माँ कन्हा है?"
नरेश दुल्हन के साथ दरवाजे पर खड़ा था।बहन आरती की थाली लिए खड़ी थी।उसके पीछे परिवार और गांव की औरते खड़ी थी।पर माँ नज़र नही आ रही थी।मा को उसकी शादी का कितना चाव था।मा ने ही उसके लिए लड़की पसंद की थी।
"बेटा ऐसे शुभ अवसर पर विधवा सामने नहीं आती।"गांव की बूढ़ी काकी बोली थी।
"माँ, माँ होती है सधवा या विधवा नही।"नरेश बोला"जब तक बहु का स्वागत करने मा नही आएगी।मैं दरवाजे पर ही खड़ा रहूँगा।"
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