कहानी - इंसानियत
मैं पूरे दो साल बाद बेटे के साथ पटना आया था . बंगलुरु से पटना तक तो फ्लाइट से आया , पर पटना से अपने गाँव तारेगना तक एक घंटे का सफर ट्रेन से तय करना था . हम यह सोच कर गाँव जा रहे थे कि जो थोड़ी बहुत प्रॉपर्टी है उसे बेच कर अब बंगलुरु में बेटे के साथ ही रहना होगा क्योंकि अब मैं अकेले रहने लायक नहीं था . गाड़ी शहर से थोड़ी दूर निकली तो पटरी के दोनों तरफ हरे भरे खेत देख कर बीते दिनों की यादें मेरी स्मृति पटल पर किसी सिनेमा की रील की तरह उभर कर आँखों के सामने आने लगे .
मैं पटना में राज्य सरकार के एक कार्यालय में काम करता था . अप्रैल के महीने से ही बिहार सरकार के दफ्तर प्रातः 7 बजे से शुरू हो जाते हैं , साथ ही स्कूल भी मॉर्निंग होते . गर्मियों में मैं रांची पटना एक्सप्रेस से ही जहानाबाद के निकट तारेगना स्टेशन से पटना जाता था . सुबह लगभग साढ़े पांच की ट्रेन पकड़ता और एक घंटे में पटना पहुँच जाता था . हम डेली पैसेंजर्स और अन्य विद्यार्थियों के लिए यह ट्रेन सुविधाजनक था . जिस क्लास में भी चाहें आराम से चढ़ जाते , और स्टूडेंट्स का तो क्या कहना . अपने स्कूल के पास ट्रेन की चेन खींच कर रोक देते और जल्द से उतर कर भाग निकलते थे .
गर्मियों में उसी ट्रेन से आस पास के गाँव से कुछ महिलायें भी चढ़तीं थीं . वे अपने खेतों की सब्जियां ले कर पटना आतीं और कुछ घंटों में ही उन्हें बेच बाच कर लोकल ट्रेन से वापस लौट जाती थीं . उनकी बड़ी बड़ी टोकरियां ताजी सब्जियों से भरी होतीं , कद्दू , तरोई , भिंड्डी और गर्मी वाले लाल साग आदि से . अक्सर इत्तफाक ऐसा होता कि एक औरत अपनी बेटी के साथ उसी डब्बे में चढ़ती जिसमें मैं होता था . हम स्लीपर कोच में ही ज्यादातर चढ़ते थे . उसकी बेटी का नाम देवकी था जो मैंने उसके पुकारने से मैंने समझ लिया था . खुद उसका नाम सीता था , इसी नाम से उसके साथ वाली औरतें उसे पुकारती थीं .
सीता और देवकी दोनों माँ बेटी बड़ी हंसमुख और सुंदर थीं . माँ तो बेटी से भी सुंदर थी . अक्सर वह नीली रंग की बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी में होती थी , कभी सफ़ेद बैकग्राउंड पर साधारण प्रिंट की साड़ी पहनती थी , पर कभी भी मैंने चटक रंग की साड़ी में उसे नहीं देखा था . उसकी बेटी देवकी अक्सर शलवार , कुर्ते में होती और दुपट्टे से सलीके से अपने अंग ढक कर रखती थी . उन्हें देख कर मुझे लगता कि सुंदरता किसी श्रृंगार की मोहताज नहीं होती है .
तारेगना से पटना लगभग एक घंटे के सफर में वे दोनों अपनी टोकरियों के साथ दरवाजे के पास ही खड़ी होतीं या जगह होने पर किसी बर्थ के एक किनारे बैठ जाती थीं या कभी दो बर्थों के बीच फर्श पर बैठ जातीं . कभी वह मेरे बगल में बैठ जाती तो हम आपस में कुछ बात भी कर लेते थे . मुझे पता चला कि उसके पति का एक पैर किसी दुर्घटना में ख़राब हो गया था , पर फिर भी किसी तरह अपने खेत से सब्जियां उगा लेता था और बेचने का काम माँ बेटी करती थीं . मैंने उससे कहा भी था कि बेटी को स्कूल न भेज कर उसे सब्जी बेचने क्यों ले जाती हो . वह बोलती “ मैं अकेले तीन टोकरियाँ कैसे सम्भालूंगी . वैसे देवकी आठवीं पास है . पिता की दुर्घटना के बाद वह और आगे न पढ़ सकी . “
सीता और देवकी दोनों पटना जंक्शन के पास मीठापुर गुमटी के निकट फुटपाथ पर बैठ कर अपनी सब्जियां बेचा करती थीं . सीता ने ही बताया कि वह पिछड़ी जाति की है और माँ बेटी की उम्र में मात्र सोलह साल का फासला था . सोलहवें साल में देवकी उसकी गोद में आ गयी थी .
वैसे गर्मी के अतिरिक्त सर्दियों में भी अक्सर हम सभी एक ही ट्रेन में होते . कभी ऐसा होता कि सीता मेरे लिए एक सीट रोक कर रखती थी तो कभी मैं उसके लिए . सीता को एक बेटा भी था दीपक जो देवकी से मात्र एक साल छोटा था वह अपने पिता को खेत में मदद करता था . आठवीं क्लास में फेल होने के बाद उसने पढ़ना छोड़ दिया था . पर अपने गाँव में पहलवानी के लिए मशहूर था .
सीता , देवकी और मैं ट्रेन के हमसफ़र बन गए थे . कभी दीपक भी स्टेशन पर टोकरियाँ चढ़ाने के लिए आता था , तो इस तरह से उस से भी मुलाकात होती और थोड़ी जान पहचान भी हो गयी थी . दीपक की वजह से गाँव का कोई भी लड़का देवकी की तरफ बुरी नजर से देखने का साहस नहीं करता .
ट्रेन के एक घंटे के सफर में ही टी टी बाबू भी हमारे डब्बे में टिकट चेक करने आता था . उसे खूब पता होता था कि डब्बे में बिना टिकट वाले मुसाफिर कौन हैं . फिर वह सीता और देवकी की ओर इशारा कर उन्हें बाथ रूम के पास ले जाता . सीता देवकी को वहीँ बैठे रहने को बोलती और खुद टी टी के साथ चली जाती . मैं अपनी जगह से देखता कि सीता अपनी साड़ी के आँचल के गाँठ खोलती और अक्सर दो रूपये का नोट या सिक्का उसे थमा देती . कभी टी टी उससे कुछ भद्दा सा मज़ाक भी कर बैठता और बोलता “ पैसे के अलावा कुछ और भी दे सकती हो तो मैं महीने भर तुमसे एक पैसा भी नहीं लूंगा . “
¨” ठीक है , मैं अपने बेटे से बात कर के तुम्हें बता दूंगी . “ सीता अक्सर बोलती
एक दिन उसकी बातें सुन कर मुझ से रहा न गया और मैं भी उठ कर वहां गया और टी टी की गर्दन पकड़ कर बोला “ बेटा तो तुम्हें बाद में देखेगा , मैं अभी तुम्हारा इलाज करता हूँ . “
वह अपनी गर्दन छुड़ा कर दूसरे डब्बे में चला गया .
सीता से जान पहचान होने से एक फायदा यह था कि वह मेरे घर पर ही ताजी सब्जियां बाज़ार से सस्ते दाम पर घर पर दे जाती थी . मेरी पत्नी बीमार रहती थी , उसे आँत का कैंसर था . शुरू में पता नहीं चल सकने से बीमारी बढ़ गयी थी . मेरा एक ही बेटा था चेतन जो बंगलुरु में इसी साल इंजीनियरिंग पढ़ने गया था .
एक दिन रविवार को सीता मेरे घर सब्जी देने आयी . वह बहुत खुश लग रही थी , उसने कहा ¨ मेरे बेटे को नौकरी मिल गयी है . उसे दिल्ली में किसी बिल्डर के यहाँ सेक्युरिटी गार्ड का जॉब मिल गया है . वह कल ही दिल्ली जा रहा है . दीपक हर महीने कुछ रूपये भेजा करेगा और उसने देवकी को आगे पढ़ने को बोला है . ¨
मैंने उसे बधाई दी . फिर कहा ¨ मैं पत्नी को ले कर मुंबई जा रहा हूँ . वैसे कोई चमत्कार की उम्मीद तो नहीं है , पर प्रयास तो करना ही है . ¨
इसके बाद एक महीने तक मैं मुंबई में रहा था . पत्नी का वहीँ देहांत हो गया . उसकी इच्छा के अनुसार बनारस में ही उसकी अंतिम क्रिया कर मैं अपने घर लौटा . दरवाजा , खिड़की खुली देख कर सीता सब्जी ले कर आ गयी . वह मेरा मुंडा सर देख कर समझ चुकी थी कि मेरी पत्नी अब नहीं रही . मेरा दुःख जान कर वह बहुत रोयी थी .
मैंने उसे पत्नी के कुछ कपड़े दिए . पहले तो वह नहीं ले रही थी . फिर मैंने समझाया कि अब ये मेरे घर में किसी
काम के नहीं रहे , इसे तुम रख लो तो वह दो सेट साड़ी , ब्लाउज और पेटीकोट लेने को तैयार हुई . मैंने उसे कहा कि मुझे तो खाना बनाने आता नहीं इसलिए अब मैं सब्जी ले कर क्या करूँगा . मैं बगल के होटल से खाना मंगवा लूंगा
. उसने कहा ¨ बाबू , रोज रोज होटल का खाना खाने से तबीयत बिगड़ जाएगी . मैं शाम को आकर दोनों टाइम का खाना बना दूंगी . सुबह तो नहीं आ सकती हूँ क्योंकि दुकान लगानी होती है . ¨
मैंने उसे बहुत मना किया , तो वह बोली ¨ मेरी जाति को ले कर आप मना कर रहे हैं न ? ¨
¨ नहीं , मुझे किसी जाति या धर्म से कोई परहेज नहीं है , मेरा काम चल जायेगा . ¨
पर न जाने किस अधिकार से वह अपनी बात पर अड़ी रही . दूसरे दिन वह अपने पति और बेटी के साथ आयी . तीनों ने मिलकर मुझ पर दवाब डाल कर अपनी बात मनवा ली . मैंने कहा ¨ ठीक है , तुम्हें कितने पैसे देने होंगे खाना बनाने के लिए . ¨
उसका पति बोला ¨ बाबू , पैसे तो हम नहीं लेंगे , पर अगर आप देवकी को पढ़ा दें तो बड़ी कृपा होगी . ¨
अब सीता और देवकी दोनों शाम को मेरे घर आतीं . सीता दो घंटे में खाना के अलावे घर के बाकी कुछ काम कर दिया करती और इस बीच मैं देवकी को पढ़ा दिया करता . देवकी काफी मन लगा कर पढ़ती थी . मैंने उसे कहा कि अगर वह चाहे तो मैं स्कूल में उसका एडमिशन करा दूंगा . पर देवकी को दिन में माँ के साथ पटना जाना होता था , वह प्राइवेट पढ़ना चाहती थी . दीपक ने भी देवकी से प्रेरणा ले कर गाज़ियाबाद से बोर्ड की परीक्षा सेकंड डिवीजन से प्राइवेट रूप से पास कर लिया था .
अक्सर अब मैं सीता और देवकी तीनों एक परिवार की तरह साथ ही ट्रेन से पटना जाते . गाँव वाले देख कर हैरत में रहते . कोई उसकी जाति को ले कर व्यंग करता तो कोई हमारे रिश्ते पर शक करता . पर हमें इन बातों की कोई परवाह नहीं थी .
देखते देखते देवकी ने फर्स्ट डिवीजन से बोर्ड की परीक्षा पास की . मैं चाहता था कि वह और आगे पढ़े . पर उसके माता पिता को डर था कि आगे पढ़ने पर उसके लिए वर भी ज्यादा पढ़ा लिखा चाहिए . फिर वैसे वर के
लिए दहेज़ भी ज्यादा देने होंगें जो उनकी हैसियत से बाहर थी . पर मैंने उन्हें समझा बुझा कर देवकी को आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए मना लिया .
इसी बीच सर्दी और खांसी के साथ मुझे मुझे तेज बुखार आता . कुछ दिनों तक तो मौसमी बुखार समझ कर मैं इसे टालता रहा . बाद में जांच करने पर टी बी निकला . वैसे तो एक दो लोग कभी हाल पूछने दो चार मिनट के लिए आ जाते थे , पर टी बी सुन कर लोगों ने किनारा कर लिया . उन्हें डर था कि छुआ छूत की बीमारी उन्हें भी न लग जाए . पर देवकी और सीता पूर्ववत आती रहीं और पहले से ज्यादा मेरा ख्याल रखती थीं . उन्हें कोई परहेज नहीं था , मैंने ही उन्हें सावधानी बरतने के सारे उपाय बता दिए थे . मेरा बेटा चेतन भी कुछ दिनों के लिए छुट्टियों में आया था . मैंने उसे छुट्टियां समाप्त होने के कुछ पहले ही वापस जाने को कहा पर वह नहीं माना . मुझे डर था कहीं उसे भी इंफेक्शन न लग जाये . वह फाइनल ईयर में था और उसे कैंपस से जॉब भी मिल चुका था .
मैं एक महीने में ही ठीक हो चला था पर डॉक्टर ने सलाह दी कि टी बी के जर्म्स पूरी तरह मरने में कुछ और समय लगेगा . संयोगवश उसी समय मेरे बेटे को बंगलुरु में पीलिया हो गया . वह एक मित्र के साथ एक रूम शेयर करता था और दोनों मेस से खाना मंगा कर खाते थे . चेतन को बीमारी ठीक होने तक बाहर का खाना न खा कर परहेज का खाना खाने की जरूरत थी . मैं अपनी बिमारी से परेशान था ही , बेटे की बिमारी से और विचलित हो गया . सीता ने स्वयं बैंगलोर जा कर चेतन की देखभाल करने की पेशकश की .
सीता बंगलुरु गयी . वहां पूरे दो महीने तक रह कर जब चेतन पूरी तरह से ठीक हो गया तब वापस आयी . चेतन ने दोनों माँ बेटी को मेरी बीमारी में देखभाल करते देखा था और फिर सीता अपना घर बार छोड़ कर उसकी सेवा के लिए भी चली गयी थी . इन सब बातों से वह बहुत प्रभावित हुआ . इस एक महीने में सीता का पति और बेटी देवकी दोनों ही मिलकर किसी तरह अपनी सब्जी की दुकान लगाते . मैं अब बिलकुल ठीक हो गया था .
चेतन ने बंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी ज्वाइन किया . वह दो रूम के एक फ्लैट में रहने लगा . उसने दीपक को बंगलुरु बुला कर उसी अपार्टमेंट में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी दिलवाई . फिर उसे एक कंप्यूटर का कोर्स भी कराया और उसे अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स की सोसायटी ऑफिस में नौकरी भी मिल गयी . चेतन ने इसी बीच उस फ्लैट को इ एम आई पर खुद खरीद भी लिया . दीपक को सोसायटी के स्टाफ क्वार्टर में एक छोटा सा कमरा मिला था , वह उसी में रहता . पर रोज चेतन के लिए खाना , नाश्ता समय निकाल कर बना देता था .
सीता और देवकी सब्जियां बेचने अब पटना नहीं जाती थीं . वहीँ के लोकल बाजार में बेचा करतीं या फिर थोक खरीददार को बेच देतीं हालांकि इससे पैसे कुछ कम मिलते थे . पर दीपक से कुछ आर्थिक मदद मिल जाती थी . दीपक ने अपनी बहन देवकी को बंगलुरु बुलाया . चेतन ने उसे भी एक कंप्यूटर का कोर्स कराया और तीन महीने में देवकी ने कामचलाऊ कन्नड़ का भी कोर्स भी पूरा कर लिया . अब वह भी उस सोसायटी के ऑफिस में काम करने लगी . देवकी ही अब चेतन का खाना बनाने लगी थी .
मैं रिटायरमेंट के बाद बेटे के साथ बंगलुरु रहने लगा . मेरे लिए चेतन ने यहाँ सभी तरह तरह की की सुख सुविधा का प्रबंध कर दिया था . मैं बेटे के साथ बहुत खुश था . पर यह ख़ुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही . मुझे पक्षाघात हुआ . इस दौरान दीपक और देवकी दोनों भाई बहन मेरी देखभाल करते , चेतन के पास उतना समय नहीं था . कुछ सप्ताह के लिए मैं बिस्तर पर ही रहा . मुझे अपना होश नहीं रहता और बिस्तर गंदा हो जाता . दीपक या देवकी जो भी होता निःसंकोच मेरी साफ़ सफाई कर दिया करते . मैं थोड़ा ठीक होने लगा था और छड़ी के सहारे चलने लगा था हालांकि बोली में कुछ लड़खड़ाहट थी . पर अपना सभी काम आराम से कर लेता था .
अचानक चेतन ने मेरे कंधे हिलाते हुए कहा “ पापा , कहाँ खो गए , जल्दी उठिये . गाँव आ गया है . गाड़ी सिर्फ दो मिनट के लिए रूकती है . मैं भी भूत की गलियों से निकल वर्तमान के चौराहे पर आ गया . सामने तारेगना का फ्लेटफॉर्म था . इन दो सालों में स्टेशन की रूप रेखा बदल गयी थी . काफी साफ़ सुथरा नया और बड़ा प्लेटफार्म बन कर तैयार था . प्लेटफार्म पर सीता अपने पति के साथ हमें लेने आयी थी .
हम बाप बेटे दोनों तो सोच कर आये थे कि अपना मकान और खेत बेच बाच कर बंगलुरु लौट जाएंगे . पर सीता ने मना करते हुए कहा ¨ बाबू आप अपनी मिट्टी से नाता न तोड़ें , इससे जुड़े रहें . अपने पुरखों की निशानी जब तक हो सके , इसे बचाये रखें . ¨
मेरे साथ चेतन भी सोच में पड़ गया . हम दोनों जमीन बेचने की सोच कर आये थे . मैंने कहा ¨ मेरा क्या ठिकाना , मेरे बाद चेतन यह सब नहीं संभाल पायेगा . ¨
¨ आप चिंता न करें , आप आये हैं तो एक काम कर दें अपने जमीन आदि चेतन के नाम रजिस्ट्री कर जाएँ . इस पर जो भी खेती करनी होगी , हम देख लेंगे और उसकी पूरी आमदनी आपको ईमानदारी से सौंप देंगे . आपको हम पर भरोसा है न ? ¨ सीता ने कहा था
¨ जमीन तो कुछ ख़ास नहीं है इस पर तुमलोग सब्जियां लगा कर अच्छी कमाई कर सकते हो . इस मकान का मैं क्या करूँगा ? ¨
¨ जब चेतन बाबा यहाँ आएंगे तो उनके रहने के लिए यह रहेगा . उनका परिवार बढ़ेगा . छुट्टियों में गाँव की हवा का आनंद लेने यहाँ आया करेंगे .आपके मकान की साफ़ सफाई हमलोग कर दिया करेंगे . भविष्य में अगर बाबा चाहें इसे बेच देंगे . ¨
लगभग दो सप्ताह के बाद हम बैंगलोर वापस आये . अब मुझे बेटे से बात कर एक अहम फैसला लेना था .
एक दिन मैंने बेटे से पूछा ¨ तू किसी लड़की को जानता है ? ¨
¨ एक लड़की है इला , इसी अपार्टमेंट में रहती है और मेरे ऑफिस में ही काम करती है . अक्सर मेरे केबिन में बिना काम के आ जाती है और मुझे कैफेटेरिया चलने के लिए फ़ोर्स करती है . पर आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं ? ¨
¨ मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता सोच रहा हूँ तेरी शादी करा बहू के हाथों का भोजन कुछ दिन कर लूँ मरने से पहले . अगर तू उसे चाहता है या तुमने कोई वादा किया है तो बोल , उससे शादी की बात करूँ . ¨
¨ नहीं , ऐसी कोई भी बात नहीं और मैंने कभी उसे उस निगाह से नहीं देखा है . वैसे भी वह क्रिश्चियन है . ¨
¨ तू जात पात या धर्म में विश्वास करता है ? ¨
¨ नहीं , मुझे जाति या धर्म से कोई फर्क नहीं पड़ता . इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है . ¨
¨ ठीक है , मैंने मन ही मन देवकी को बहू बनाने की सोची है . ¨
¨ आप उसे मेरे लायक समझते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है , पर उसकी इच्छा भी जान लें . ¨
दीपक रोज की तरह शाम को हाल चाल पूछने आया था . थोड़ी देर में देवकी आयी और किचेन में चली गयी . दीपक ने पूछा ¨ अंकल आप अपनी प्रॉपर्टी बेच कर निश्चिंत हो गए न . ¨
¨ बेच कर तो नहीं आया हूँ , पर उसके देखभाल का अधिकार तुम्हारे माता पिता को दे कर आया हूँ . वैसे मेरे मन में एक बात आयी है , सोचा पहले तुम से और देवकी से बात कर लूँ . ¨
“ हाँ , बोलिये अंकल . “
¨ मैं सोच रहा हूँ कि मेरी संपत्ति में तुम्हारी बहन का हक़ हो . ¨
¨ यह कैसे संभव है ? और वैसे आप लोगों ने जितना किया है हम भाई बहनों के लिए उस उपकार का हम जीवन भर ऋणी रहेंगे . ¨
तब तक देवकी भी चाय ले कर आयी .
मैंने कहा ¨ वह सब छोड़ो और मेरी बात गौर से सुनो . मैं देवकी को अपनी बहू बनाना चाहता हूँ . ¨
दोनों भाई बहन कुछ देर तक हतप्रभ मुझे देखते रहे . फिर दीपक बोला ¨ अंकल आपको हमारी जात पता है न . और चेतन भैया को यह अच्छा लगेगा . ¨
देवकी भी वहीँ खड़ी यह सब सुन रही थी . मैंने उससे पूछा ¨ तुमने सब बात सुन ली है , अब तुम अपनी मर्जी बताओ . मेरी बहू बनोगी ? ¨
¨ अंकल , आप मुझे शर्मिंदा न करें . इतनी ऊंचाई पर मुझे न चढ़ा दें जहाँ से मैं नीचे उतर ही न सकूँ . पर मैं अपने मन की बात आपको बताना चाहती हूँ . ¨
¨ बिना संकोच कहो . ¨
¨ आप और चेतन बाबू मेरे लिए आराध्य हैं , देवतुल्य हैं . मैंने चेतन बाबू को कभी राखी तो नहीं बाँधी है , पर सदा बड़े भाई की नज़र से देखा है . मैं उनके बराबर खड़ा होने के लायक नहीं हूँ . आप दोनों मेरे लिए सदा पूज्य रहेंगे . इसके अलावा एक और बात . . ¨
¨ हाँ कहो , इसके अलावा भी कुछ कहना हो तो . ¨
¨ वो सातवीं मंजिल वाली इला मैम हैं न , मेरे ऑफिस में दो तीन बार आई हैं . उनके बातचीत से लगा कि वे मन ही मन वे चेतन को चाहती हैं . मुझ से पूछा था कि चेतन बाबू मुझसे प्यार तो नहीं करते ? ¨
¨ तब तुमने क्या कहा ? ¨
¨ वही जो आपसे कहा था , चेतन बाबू मेरे लिए आसमान पर विराजमान देवता हैं . मैं वहां तक नहीं पहुँच सकती हूँ , बस दूर से ही उनकी अराधना करुँगी . ¨
¨ तब मैं इला से रिश्ते की बात करूँ . ¨
¨ हाँ , मुझे तो वह अच्छी लड़की लगती है . पर उसका धर्म आप जानते हैं न ? ¨
¨ हाँ , मैंने बेटे से भी पूछ लिया है . उसे भी जात पात या धर्म से कोई फर्क नहीं पड़ता है . ¨
देवकी जाने लगी तो मैंने उसे रोक कर कहा “ तुम मेरी बहू तो नहीं बन सकी पर मेरी बेटी तो बनी रहोगी न ? “
“ वो तो मैं हूँ ही और रहूंगी भी . “
“ तब मेरी बात सुन , आज से ही तेरे लिए अच्छे वर की तलाश करूंगा . अपने भाई और बापू से बोल दे कि तुम अब मेरी जिम्मेवारी हो . पर मेरी पसंद तुम्हें भी पसंद आएगी तो ? “
“ यह भी कोई पूछने की बात है , मेरे लिए भगवान का वरदान होगा . “
दोनों भाई बहन हँसते हुए निकल गए . मैंने बेटे से कहा “ देखा कितने निःस्वार्थ भाव के हैं ये लोग . दूसरी लड़की होती तो तुम्हारा रिश्ता झट से स्वीकार कर लेती . मैं इस गलतफहमी में था कि ये हमारा बड़प्पन था जो देवकी को बहू बनाने जा रहा था पर यह लड़की तो हमसे भी आगे निकल गयी . अब इंसानियत के नाते हमें देवकी के लिए जल्द ही एक अच्छा लड़का देखना होगा और इस काम में तुम भी मेरी मदद करना . “
====================================================================================
( कहानी पूर्णतः काल्पनिक है )