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इंतक़ाम

कहानी - इंतक़ाम

गर्मी की एक दोपहर में अर्चना के फ्लैट का कॉल बेल बजा . वह अपनी विधवा बूढी माँ के साथ उस छोटे से फ्लैट में बहुत दिनों से रह रही थी . कुछ ही देर पहले उसे नींद आयी थी . उसकी माँ ने उसे हिला कर जगाया और कहा “ जा बेटी देख , कोई आया है . “


अर्चना ने अपने कपड़े सहेजते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि सेठ का बेटा रतन खड़ा था . रतन अभी कोई छः साल का रहा होगा . जब अर्चना ने पूछा “ क्या बात है रतन ? “ तो उसने कहा “ पापा नीचे कार में हैं , आपको बुलाया है . “


“ तुम चलो , मैं आयी . “ वह बोली पर वह अंदर से डर गयी थी . पिछले तीन महीने से उसने फ्लैट का किराया नहीं दिया था . प्राइवेट स्कूल की नौकरी छूट गयी थी और किसी तरह से ट्यूशन कर वह घर के अन्य खर्चे चला रही थी . ऊपर से माँ बीमार चल रही थी .


वह सीढ़ियों से उतर कर सहमते हुए कार तक पहुंची ही थी कि सेठ ने कहा “ तीन महीने से किराया नहीं दिया है तुमने . क्या इरादा है , मुफ्त में कब तक रहोगी ? “


“ सेठजी , आप तो जानते ही हैं जल्द ही मुझे नौकरी मिलने वाली है . मेरा सेलेक्शन हो गया है , सिर्फ पोस्टिंग की बात पर देर हो रही है . मैं इसी शहर में पोस्टिंग चाहती हूँ और वे लोग दिल्ली भेज रहे हैं . अगर यहाँ से कोई दिल्ली जाने को तैयार हो जाये तो म्युचुअल ट्रांसफर के तहत मुझे ऑफर तुरंत मिल सकता है . “


“ मैं कुछ नहीं जानता हूँ तुम एक सप्ताह के अंदर किराया दे दो और साथ ही मकान खाली कर दो . “ सेठ द्वारका दास ने कहा


“ देखिये हम कोई नए तो नहीं हैं आपके लिए जो किराया ले कर भाग जाएंगे . मुझे पूरी उम्मीद है जल्द ही मुझे ऑफर मिल जाएगा . यह स्थायी नौकरी है और वेतन भी अच्छा दे रहे हैं . बस कुछ और समय दे दें . “

“ एक सप्ताह का समय दे तो दिया है , उसके बाद तुम जानो . “ बोल कर सेठ ने कार स्टार्ट किया और वह चला गया .

अर्चना सेठ की बेरुखी पर बहुत उदास हुई थी . कभी दोनों हाई स्कूल में एक साथ पढ़ते थे . द्वारका ने अर्चना से मेल जोल बढ़ाया . वह उसकी सुंदरता की तारीफ़ करते नहीं थकता और कहता भगवान् ने चाहा तो हम एक भी हो सकते हैं .पर दरअसल उसकी निगाहें अर्चना पर नहीं थीं , वह तो उसका इस्तेमाल कर उसकी मुंहबोली सहेली बेला तक पहुंचना चाहता था . अर्चना इस ग़लतफ़हमी में थी कि द्वारका उसकी सुंदरता पर मुग्ध है . बेला शहर के एक नामी सेठ की इकलौती बेटी थी . उसने बेला को बहला फुसला कर फंसाया और इंटरमीडिएट पूरा होते ही उससे शादी भी कर ली . इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी .एक साल के अंदर ही वह एक पुत्र का पिता भी बन गया .जब तक अर्चना को माजरा समझ में आया बहुत देर हो चुकी थी . उसने मन ही मन द्वारका से बदला लेने की सोची , पर उसकी औकात ही क्या थी . उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी और बी . ए .पास कर एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी , पर यह नौकरी अस्थायी थी .


अर्चना की माँ द्वारका के पिता बड़े सेठ के यहाँ 20 सालों से काम करती थी . उनके एक छोटे फ्लैट में नाममात्र के किराए पर वह अपनी बेटी के साथ रहती थी . पर अब सेठ द्वारका दास का ज़माना था जिसे पैसों के आगे कुछ और नहीं सूझता था . इस छोटे फ्लैट का भी किराया अब हजारों में था . वह किसी तरह से फ्लैट खाली कराना चाहता था .


अर्चना को दिल्ली के स्कूल में नौकरी मिल गई थी पर बड़े शहर में घर की समस्या के चलते वहां नहीं जाना चाहती थी ,वहां भारी भरकम रकम किराए में निकल जाती . कोई उपाय नहीं देख कर उसने दिल्ली में ज्वाइन करने का फैसला किया . वह अपनी माँ से साथ दिल्ली गयी . किस्मत ने उसका साथ दिया और स्कूल मैनेजमेंट ने एक स्टाफ क़्वार्टर उसके नाम अलॉट कर दिया . स्कूल से उसे कुछ एडवांस भी मिल गया .


अर्चना ने उस क़्वार्टर में कुछ कामचलाऊ इंतजाम किया और माँ को वहीँ छोड़ कर को दो दिनों के लिए वह अपने पुराने शहर में लौटी . स्टाफ क़्वार्टर्स कॉलोनी के लोगों ने उसे भरोसा दिया कि इस बीच वे उसकी माँ की देखभाल करेंगे .


यहाँ आ कर अर्चना ने देखा कि सेठ ने उसका सारा सामान फ्लैट के बाहर बरामदे में रखवा दिया था . उसने सेठ द्वारका दास को बकाया किराया दे कर कहा “ मैंने किराया लौटा दिया . कल मैं सामान के साथ शिफ्ट कर जाऊंगी . देरी के लिए मुझे दुःख है . उम्मीद है अब और कोई शिकायत तो नहीं होगी आपको . पर आपने भी कुछ दिन इंतजार न कर मेरा सामान बाहर निकलवा कर अच्छा नहीं किया है . “


“ अकड़ती क्या है , इतने दिन तक 100 रुपये मासिक रेंट दिए तो क्या एहसान किया है . सामान अच्छी तरह से बाहर रखवा दिया है , गनीमत है कि फेंकवाया नहीं है . अभी इसी फ्लैट का मुझे पांच हजार मिल जायेगा . “


यह सुन कर अर्चना का मन सेठ के प्रति क्रोध और नफरत से भर गया . वह सोचने लगी कि कभी किस्मत ने साथ दिया तो सेठ से बदला जरूर लेगी . वह अगले दिन अपने सामान के साथ दिल्ली आ गयी . नए स्कूल में वह पूरी लगन से पढ़ाने लगी . इसी दौरान उसके माँ का निधन हो गया . अब सारा ध्यान उसने अपने

कैरियर पर लगाया . उसने अगले कुछ वर्षों में एम . ए . और पी एच डी भी पूरा किया .वह दिल्ली विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुई .


अर्चना सुंदर थी , उसकी ओर सहकर्मियों का आकृष्ट होना स्वाभाविक था . उसी कॉलेज में एक लेक्चरर थे पारसनाथ . इत्तफ़ाक़ से वे भी नया नया लेक्चरर बने थे .वे सेठ द्वारका दास के छोटे कजन थे और उम्र में अर्चना से कुछ छोटे ही थे . उनका दिल अर्चना पर आ गया . वे भी उसकी ओर आकृष्ट हुए . उससे मिलना जुलना चाहते थे . अर्चना को पता चल गया था कि पारस द्वारका दास का कजन है . पारस एक दो बार उससे मिलने भी आये , पर अर्चना ने उनमें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई . फिर भी यदा कदा पारस अर्चना से मिला करते थे .


अगले साल उसी कॉलेज में द्वारका सेठ का बेटा रतन भी पढ़ने आया . वह फर्स्ट ईयर में था . रतन पहली पंक्ति की बेंच पर बैठा था . फर्स्ट ईयर का पहला क्लास था . पहले अर्चना ने अपना परिचय दिया . फिर अर्चना ने सभी विद्यार्थियों को बारी बारी से अपना परिचय देने को कहा . जब रतन की बारी आयी तो वह खड़ा हो कर बहुत देर तक अर्चना की तरफ देखता रहा , वह उसकी सुंदरता और स्मार्टनेस से बहुत प्रभावित हुआ था . जब अर्चना ने दुबारा उससे परिचय देने को कहा तब उसे होश आया . उसने अपना परिचय देते हुए कहा “ मैम , मैं आपको जानता हूँ , मैं रतन हूँ द्वारका दास जी का बेटा . “


“ ओके , सिट डाउन . बाद में मुझसे मेरे चैम्बर में मिलना . “


जब रतन अर्चना से मिलने गया तो वह बोली “ तुम बहुत बदल गए हो , मैं तो तुम्हें पहचान नहीं सकी थी . “


“ मैम , आप भी तो काफी बदल गयी हैं . 10 - 12 वर्षों पहले से ज्यादा स्मार्ट और सुंदर दिख रही हैं . “


“ थैंक्स , इसे मैं कॉम्प्लीमेंट्स समझूँ या तुम्हारी शरारत . “


“ आप दोनों ही समझें . “


उसी समय अर्चना ने अपने मन में कुछ प्लान बनाया और सोचा कि अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे . उसने कहा “ तुम जब चाहो मुझसे मिल सकते हो और जो भी पढ़ाई के बारे पूछना हो पूछ सकते हो . हाँ , मेरे बारे में अपने पापा को नहीं बताना . “


“ क्यों मैम ? “

“ कुछ बातें पर्सनल रहें तो ठीक है . “

“ ओके , मैम . “ रतन बोला . अर्चना की बातों को वह ठीक से तो नहीं समझ सका था फिर भी पर्सनल रखने की बात पर न जाने क्यों उसके मन में लड्डू फूटने लगे थे .

अब रतन अर्चना की क्लास में पहले से ही जा कर पहली पंक्ति में बैठा करता और उसका ज्यादा ध्यान पढ़ाई की जगह अर्चना के चेहरे पर रहता था . पहले क्लास टेस्ट में बहुत कम अंक मिले तो अर्चना ने उससे मिलने को कहा . जब वह अर्चना से मिला तो वह बोली “ तुम्हें इतने कम मार्क्स क्यों मिले ? तुम्हें कुछ समझ में न आये तो मुझसे चैम्बर या घर में भी मिल सकते हो . “


एक दिन अर्चना कॉलेज नहीं आयी तो रतन उसे घर जा पहुंचा और उससे न आने का कारण पूछा तो बोली “ बस थोड़ी सर्दी थी . जानबूझ कर नहीं गयी कि कहीं तुमलोगों को भी न सर्दी हो जाये . “


“ मैम , आपने पिछले टेस्ट की कॉपियां और रिपोर्ट अभी तक जमा नहीं की है . प्रोफेसर साहब बोल रहे थे अब तक जमा हो जाने चाहिए थे . “


“ अरे हाँ , मैं भूल गयी थी . कॉपियां तो चेक कर ली हूँ , बस टोटल कर रिपोर्ट की एक प्रिंट लेनी है . तुम फ्री हो तो मिल जुल कर यह काम जल्द हो जायेगा . “


“ मैं बिलकुल फ्री हूँ , खास कर आप के लिए . “


“ ऐसी क्या ख़ास बात है मेरे लिए . “


“ कुछ तो है , इसीलिए एक दिन नहीं देखा तो मिलने आ गया . “


“ तुम फिर शरारत पर आ गए . अच्छा तुम एक काम करो . मैं तब तक चाय बना कर लाती हूँ . कॉपियां मेरे बेड पर पड़ीं हैं , उन्हें ले कर टेबल पर रखो . मेरा तो तन बदन दर्द से टूट रहा है . “ बोल कर उसने दोनों बाहें ऊपर उठा कर अंगड़ाई ली . फिर तो रतन की आँखों के सामने अर्चना का वक्षस्थल था जिसे वह जी भर कर देखे जा रहा था . फिर उसने रतन से पूछा “ क्या देख रहे हो ? “


रत्न ने नजरें फेर लिया और कहा “ ज्यादा दर्द है तो मैं दबा दूँ ? “


“ वो मौका भी मिलेगा , पर अभी नहीं . “ और मुस्कुरा कर किचेन में चली गयी .


रतन कॉपियां टेबल पर रख कर वहीँ कुर्सी पर बैठा अर्चना का इंतजार कर रहा था . थोड़ी देर में वह दो कप चाय लेकर आयी . वह भी एक कुर्सी ले कर उसके करीब बैठ गयी और बोली “ लो चाय पियो . मैं एक एक कर कॉपियां तुम्हें दे रही हूँ , तुम उनके मार्क्स टोटल कर मुझे देते जाओ .”

रतन कापियों के अंक टोटल कर अर्चना को बढ़ाता था .इस क्रम में वह अपनी कोहनी जानबूझ कर उसके वक्ष से स्पर्श करता था . पहली बार तो उसने सॉरी कहा तो अर्चना बस हँस कर रह गयी . फिर तो रतन जब भी

कॉपी उसे देता उसके अंग स्पर्श करता . आखिरी कॉपी देते समय जब रतन ने कोहनी से उसके वक्ष स्पर्श किया तो अर्चना ने उसके गाल पर किस कर कहा “ नॉटी बॉय “

रतन के गाल आरक्त हो गए , वह भी उत्तेजित होकर अर्चना की ओर बढ़ना चाहा तो वह दूर हटते हुए बोली “ अभी नहीं , तुम्हारा आज का काम हो गया अब तुम जाओ .”


इसके बाद अक्सर किसी न किसी बहाने रतन बड़ी उम्मीद ले कर अर्चना से मिलने आता , पर वह जो चाहता था वैसा कुछ नहीं होता .एक दिन जब वह मिलने आया था तो अर्चना ने कहा “ सेकंड ईयर के टेस्ट के पेपर तैयार करने हैं .मैं बोलते जाती हूँ तुम उन्हें कंप्यूटर पर लिखते जाओ , फिर प्रिंट ले कर उसके ज़ेरोक्स लेने होंगे .तुम फ्री हो न .”


“ मैं तो आपके लिए दिन रात फ्री हूँ , आप हुक्म करें .”


रतन कंप्यूटर पर लिख रहा था , अर्चना बिलकुल करीब बैठी थी . बीच बीच में माउस चलाते समय वह अपनी कोहनी से उसके वक्ष को छूना नहीं भूलता .अर्चना भी कोई एतराज नहीं जताती थी . इससे रतन का साहस बढ़ता गया और अंत में उसने वक्ष को हाथों से सपर्श करना चाहा तो वह एक झटके से उठ खड़ी हुई और बोली “ नो , यह सब शादी के बाद की चीज होती है .”


“ तो चलिए , जल्द शादी भी कर लेते हैं .” रतन के मुंह से अचानक निकल गया


“ पागल हो क्या , मैं उम्र में तुमसे काफी बड़ी हूँ .”


“ तो क्या हुआ , दोनों एडल्ट तो हैं .आपने प्रियंका चोपड़ा और निक के बारे में सुना ही होगा ”


“ और द्वारका दास को यह मंजूर होगा ? “


“ मैं वह सब मैनेज कर लूंगा अगर आपको मंजूर है .”


“ पर मेरे नाम का जिक्र न करना .”


रतन ने जब पापा को फोन किया और अपनी बात कही तो वे गुस्से में बोले “ मैंने तुम्हें दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा है या प्रेम लीला करने के लिए . “

“ पापा , अगर आप चाहते हैं कि मेरा मन पढ़ाई में लगे तो मेरी बात मान लें . उसके बाद मैं मन लगा कर पढूंगा वरना मेरा ध्यान हमेशा उस लड़की की ओर रहेगा . “ रतन ने कहा . पर उसने अर्चना का जिक्र न कर उसकी जगह जानबूझ कर लड़की कहा .

“ तब तो तुम कॉलेज से नाम कटवा कर वापस आ जाओ . वैसे भी बी ए , एम ए . कर के तुम्हें कौन सी क्लर्की या किसी नौकरी के पीछे भागना है . “

“ हाँ , ठीक ही कहा आपने . मुझे तो आपकी गद्दी पर ही बैठना है . फिर तो अच्छा है , मैं यहीं शादी कर लेता हूँ . फिर बाद में किसी न किसी तरह बी ए कर ही लूंगा . “


“ नहीं , नहीं तू रुक . मैं समय निकाल कर आ रहा हूँ . सब देखभाल कर फैसला लूँगा . “


इधर इसी बीच अर्चना ने रतन के चाचा और सेठ द्वारका के कजन पारस नाथ से सम्पर्क बढ़ाया . कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल चोपड़ा से उनकी अच्छी बनती थी . उसने पारस को कहा कि चोपड़ा से नजदीकी हम दोनों के प्रमोशन में काम आएगी . चोपड़ा की उम्र करीब 35 वर्ष थी और वे विधुर थे . उनकी कोई संतान न थी . अर्चना रतन , पारस और चोपड़ा तीनों से मिलती रही . अपनी सुविधा के अनुसार वह रतन और पारस से अलग अलग मिलती और उसने प्यार के झूठे खेल में उन्हें फंसा कर रखा था . उसका असल मकसद कुछ और था जिससे दोनों ही अनभिज्ञ थे . वह चोपड़ा में अपना बेहतर भविष्य देख रही थी .


अर्चना ने पारस नाथ को कह रखा था कि द्वारका दास या रतन किसी को उनकी नजदीकी की खबर तब तक न दे जब तक वह नहीं कहे . यही बात उसने रतन से भी कहा कि पारस नाथ या द्वारका को उनकी नजदीकी की बात तब तक न बताए जब तक वह नहीं कहे .


कुछ दिनों बाद अर्चना ने पारस और रतन को अलग अलग कहा कि वे अपनी शादी की बात द्वारका दास को बता सकते हैं और उन्हें जल्द ही यहाँ बुलाने को कहा . साथ में उसने दोनों को याद दिलाया कि द्वारका को उसके बारे में कुछ भी नहीं कहना है . उसने कहा कि इसे सरप्राइज़ ही रहने दिया जाए .


रतन और पारस ने अलग अलग अर्चना को बताया कि सेठ द्वारका दो दिनों के बाद आने वाले हैं . अर्चना ने दोनों से कहा कि वह होटल में खुद उनसे मिलने आएगी और सरप्राइज़ करेगी . उसने दो अलग होटलों में अलग अलग समय दिया था , एक को लंच पर और दूसरे से डिनर पर .


रतन अपने पापा के साथ होटल में अर्चना का इंतजार करता रहा , पर वह नहीं आयी न ही उसने कोई संदेश भेजा . इसके बाद द्वारका अपने कजन और रतन के साथ दूसरे होटल में अर्चना का इंतजार कर रहे थे . वह तो नहीं आयी पर होटल का एक स्टाफ ने आ कर द्वारका को एक लिफाफा पकड़ाया और कहा “ इसे एक औरत ने आपको देने को कहा है . “


द्वारका ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ना शुरू किया “ सेठ द्वारका दास , कभी आपने मुझे यूज़ किया था और फिर दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया था , मैं वही अर्चना हूँ . यहाँ तक कि अपने घर से निकाल दिया था . इस बार मेरी बारी है . अपने बेवकूफ बेटे और कजन को समझा दो कि अर्चना बहुत दूर जा चुकी है . मैंने मिस्टर चौपड़ा से कोर्ट मैरेज कर लिया है और दोनों ने इस कॉलेज से त्याग पत्र दे दिया है . बहुत दिनों से मैं बदले की आग में जल जल रही थी , अब जा कर मेरी ज्वाला शांत हुई . “

द्वारका ने बेटे से पूछा “ तो तुम दोनों चाचा भतीजे एक ही लड़की के चक्कर में फंसे थे . और वह कोई लड़की नहीं बल्कि एक औरत है अर्चना जिसे मैं भी जानता हूँ . ”

द्वारका दास पत्र को हाथ में लिए देर तक खामोश सोचते रहे कि यह कैसा बदला है . तब पारस ने कहा “ क्या हुआ भैया ? “


जबाब में वे बोले “ अर्चना तुम दोनों को बेवकूफ बना कर चोपड़ा के साथ भाग गयी है . अब हमें चलना चाहिए . “

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नोट - यह रचना मौलिक है और इसे केवल आपके पास भेजी गयी है . इसे अन्यत्र कहीं भी भेजी नहीं गयी है , न ही कहीं प्रकाशित हुई है और न ही विचाराधीन है .

रचना की तिथि - 2. 10 .209

संपादक उचित समझें तो कुछ सुधार या बदलाव कर सकते हैं

यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी व्यक्ति , स्थान या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है

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