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मन की पीड़ा

मन की पीड़ा

वैसे तो ज्यादातर लोगों को जीवन में कभी न कभी चोट लगती ही है. यह चोट शारीरिक या मानसिक भी हो सकती है. किसी हिंसा या मार पीट के चलते शारीरिक चोट पहुँचती है. इसका उपचार हम डॉक्टर से तुरंत करा लेते हैं, या कभी इसका दुखांत भी देखने को मिल सकता है. पर एक दूसरे प्रकार की चोट भी होती है जिसे मन की चोट कहते हैं, जिसकी पीड़ा को भूलना आसान नहीं होता है.

मन की चोट यानि भावनात्मक चोट, जिसका उपचार डॉक्टर भी आसानी से नहीं कर पाते और इसका कुप्रभाव आजीवन भी रह सकता है. यहाँ तक कि आदमी पागल भी हो सकता है. शरीर से स्वस्थ दिख कर भी मानसिक कष्ट से आजीवन छुटकारा नहीं मिल पाता. मानसिक चोट को परिभाषित करना तो कठिन है, पर इसके कुछ कारण हैं जो मन पर गहरा घाव दे जाते हैं इस प्रकार हैं : -

शाब्दिक - जब किसी एक व्यक्ति की बात दूसरे व्यक्ति के मन को व्याकुल, चिंतित, दुखी या क्रोधित कर जाती है.

वर्ताव या व्यवहार -जैसे हम अगर किसी व्यक्ति को किसी से मिलने से या बात करने से रोकते हैं तो यह उस के मन को आहत करता है. किसी का अनादर करना या हेय दृष्टि से देखना भी इसके उदाहरण हैं. किसी व्यक्ति को अपमानित करना और खास कर किसी और के सामने, भले ही यह किसी वजह या बेवजह हो पीड़ादायक होता है. अगर ऐसा व्यवहार कोई घनिष्ट मित्र या रिश्तेदार करे तो यह और भी दुखदायी होता है. अक्सर इस प्रकार के व्यवहार से आत्मसम्मान या अस्तित्व को ठेस लगती है.

आजकल संयुक्त परिवार के टूटने का, औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण होने का खामयाजा भी हमारे मानसिक कष्ट का एक कारण बन गया है. विशेष कर बुजुर्गों के लिए. इन्हें बाकी जीवन अकेलेपन में या वृद्धाश्रम में गुजारना पड़ता है. इन्हें अपने ही बच्चों की अवहेलना झेलनी होती है.

ईर्ष्या की भावना - जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की उन्नत्ति या अन्य किसी कारण से ईर्ष्या करता है तो स्वयं उसे मानसिक कष्ट होता है.

आलोचना - कभी हम किसी व्यक्ति की अनुचित आलोचना या टिप्पणी कर उसके मन क़ो दुखी कर देते हैं.

गाली गलौज - अभद्र गाली गलौज की भाषा से भी मन को गहरी ठेस लगती है.

* ब्रेनवाश या जबरन मत परिवर्तन करना - कभी मनुष्य को ब्रेनवाश कर के उसकी अपनी सोच अपने विचार को बदलने पर मजबूर किया जाता है. यह भी एक मानसिक प्रतारणा है.

* धमकाना - जब कोई एक व्यक्ति दूसरे को हानि पहुँचाने के लिए धमकी देता है. यह धमकी सीधे उसे भी हो सकती है या उसके कोई प्रिय संबंधी के लिए भी जिस के चलते उसे घोर मानसिक क्लेश से गुजरना पड़ता है.

* असहमति - किसी की बातों को ( जो उसकी नज़र में जायज हो ) अनसुना करना या तोड़ मरोड़ कर पेश करना या उस से सहमत नहीं होना या अस्वीकार करना भी मन को चोट पहुंचाता है.

* साइबर क्राइम - आजकल इंटरनेट के ज़माने में इंटरनेट के माध्यम से धमकियाँ भी मिलती हैँ. इतना ही नहीं कभी साइबर क्राइम से लाखों का नुकसान भी हो जाता है.

* ब्लैकमेलिंग या भयादोहन -जब किसी एक व्यक्ति की कमजोरी को अपने अनुचित लाभ के लिए हम ब्लैकमेल करते हैं तब भी उस व्यक्ति को मानसिक दुःख सहना पड़ता है.

* अकेलापन - जब किसी व्यक्ति को अकेला या निर्वासित जिंदगी जीने के लिए बाध्य किया जाता है तब मानसिक दुःख होना स्वाभाविक है.

* यौन शोषण - यौन शोषण से व्यक्ति क़ो शारीरिक और मानसिक दोनों कष्ट होते हैं. यह काफी संवेदनशील और दीर्घकालीन कुप्रभाव देता है. यौन शोषण कोई बाहरी या परिवार का सदस्य भी कर सकता है. बचपन में हुए यौन शोषण का दुष्परिणाम भविष्य पर भी बुरा असर करता है. ऐसे में कभी कम आयु से ही इन बच्चों में सेक्स की इच्छा जागृत हो जाती है या फिर भविष्य में अनिच्छा भी हो सकती है. इसके अतिरिक्त तनाव, परिवार से दूरी, स्कूल जाने में भय आदि समस्याएं हो सकती हैं. कार्यक्षेत्र में भी यौन शोषण होते हैं. इसके चलते तनाव के अलावा कार्य में अरुचि, भय, मोटिवेशन में कमी, विश्वास में कमी आदि समस्याएं हो सकती हैं.

* ब्रेक अप - तलाक या अन्य कारणों से किसी नजदीकी रिश्ते के टूटने से घोर मानसिक आघात होता है. इस जख्म को आत्मशक्ति के बल पर भरा जा सकता है.

* प्राकृतिक आपदा - अचानक आयी प्राकृतिक आपदा से जान माल का काफी नुकसान होता है. इसके परिणामस्वरूप भी मानसिक ट्रॉमा होता है.

* मनपसंद जीवन साथी नहीं मिलना - अरेंज्ड मैरेज में कभी देखा जाता है कि अपने सपनों का जीवन साथी नहीं मिल पाता है. ऐसे में दोनों में टकराव की संभावना होती है और मानसिक कष्ट होता है. पर अक्सर इसे आत्मबल से और आपसी एडजस्टमेंट से निपटा जा सकता है.

ऊपर लिखी सभी बातें मानसिक कष्ट देनेवाली हैं. इसके अतिरिक्त मन में तो भावनाओं का समंदर छुपा है. कभी कभी किसी की मामूली बात से हमारी भावनाएं आहत होतीं हैं. यह कुछ देर के लिए हो सकता है और अक्सर हम इस से समय के साथ खुद अपनी शक्ति से निपट लेते हैं. किसी दो व्यक्ति के विचार बिलकुल हू बहु नहीं मिल सकते हैं. हमें एडजस्ट करना होता है और इन्हें नज़रअंदाज़ करना ही सर्वोत्तम उपाय है.

मानसिक पीड़ा को अन्य बीमारियों जैसा ऊपर से नहीं देख सकते हैं. इसके उपचार के लिए आजकल मनोचिकित्सक या कॉउंसलर हैं. पहले तो इनकी पीड़ा को समझना होता है फिर उसके कारणों और लक्षणों को.

* किसी भी प्रकार के मानसिक कष्ट के लक्षण- डिप्रेशन, परिवार या समाज से अलगाव, भय, क्रोध, नशापान, अनिंद्रा या निंद्रा का ह्रास, निराशावादी होना, थकावट, तीव्र हृदयगति, दर्द, बुरे स्वप्न आदि लक्षणों में एक या एक से ज्यादा लक्षण हो सकते हैं.

डॉक्टर दवा तो देते हैं जिस से स्ट्रेस या तनाव कम हो जाये और नींद ठीक से आये. पर सबसे जरुरी है इनके साथ प्रेम के बोल और एक सौहार्दपूर्ण और सुरक्षित वातावरण प्रदान करना. उन्हें विश्वास दिलाना कि भविष्य में उनके साथ किसी प्रकार का शोषण नहीं होगा. उनकी शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ा कर उनमें आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और आशा की ज्योति पैदा करना होगा. इनके उपचार के लिए कॉउंसलर या थेरेपी या दोनों की भी जरूरत पड़ सकती है. यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है पर फलदायक होगी. बेहतर है कि अपनी स्वयं की शक्ति कमजोर पड़े इसके पहले ही डॉक्टर की सलाह लें. कुछ मामलों में संतुलित भोजन, व्यायाम, मैडिटेशन या योग भी लाभप्रद होते हैं.

मन की पीड़ा कम करने के लिए अपनी भावनाओं को ऐसे साथी या रिश्तेदार से शेयर करें जिन पर आपको पूरा भरोसा हो. सामाजिक कार्यों में रूचि लें और उनमें भाग लें, या स्वयंसेवक की भूमिका निभाएं, हो सके तो नए लोगों से दोस्ती बनायें इनसे भी फायदा होगा.

शकुंतला सिन्हा

( बोकारो, झारखण्ड )

Presently in USA

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