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मनोरंजन आलेख - जिन्हें नाज़ है फिल्म पर वो कहाँ हैं


बिना किसी तथाकथित बोल्ड सीन के अपनी सशक्त कथा , संवाद , अभिनय , निर्देशन , गीत और संगीत के बल पर ¨ प्यासा ¨ एक अमिट छाप छोड़ गयी है . इसीलिए प्यासा की लोकप्रियता आज भी फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में बरकरार है .


आलेख - जिन्हें नाज़ है फिल्म पर वो कहाँ हैं

यह विडंबना ही है कि आजकल बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री 100 करोड़ , 200 करोड़ ,300 करोड़ या फिर उस से भी ज्यादा कमाने की होड़ में लगी है और कमा भी रही है . पर जिस स्तर की फ़िल्में होनी चाहिए , जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले , उस से हमारी फ़िल्में बहुत दूर हैं . यहाँ हम 1950 और 1960 के दशक के एक महान कलाकार गुरुदत्त की चर्चा करने जा रहे हैं .


आरम्भिक जीवन


गुरुदत्त जो ¨ प्यासा ¨ जैसी अमर फिल्म बना कर भी प्यासा ही रह गए . बसंत कुमार शिवशंकर पादुकोणे का जन्म 25 जुलाई 1925 को बंगलोर में हुआ था जो आगे चल कर बॉलीवुड में गुरुदत्त के नाम से मशहूर हुए .


बचपन में गुरुदत्त काफी समय तक कलकत्ता में रहे , इसलिए उन्हें बंगाली भी आती थी . वहीँ की एक कंपनी में कुछ दिन टेलीफोन ऑपरेटर का काम भी किया . पर उनका मन नहीं लगा . उन्हें पूना की विख्यात कंपनी प्रभात फिल्म में 1944 में तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी मिली . इस बीच उन्हें कुछ छोटे मोटे रोल भी मिले .

देव आनंद से मुलाक़ात - 1946 में ¨ हम एक हैं ¨ के निर्माण के समय अचानक उनकी मुलाक़ात सदाबहार हीरो देव आनंद और एक्टर रहमान से हुई . देव साहब ने अपनी किताब ¨ रोमांसिंग विथ लाइफ ¨ में लिखा है कि वे इस फिल्म की शूटिंग में अपनी सबसे अच्छी कमीज़ पहन कर जाने वाले थे . पर धोबी की गलती के चलते उनकी कमीज़ बदल गयी और वह शर्ट गुरुदत्त पहने हुए थे , जो इस फिल्म में कोरियोग्राफर और एक्टर थे . दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा पड़े . यहीं से गुरुदत्त , देव और रहमान दोस्त बने . देव ने गुरुदत्त से वादा किया कि अगर वे भविष्य में फिल्म बनाते हैं तो गुरुदत्त उसका निर्देशन करेंगे . गुरुदत्त ने भी कहा कि अगर वो फिल्म बनाते हैं तो देव आनंद उसमें हीरो रहेंगे . प्रभात से कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होने के बाद कुछ दिनों तक दत्त बेकार भी रहे थे . इसी दौरान उन्होंने मशहूर पत्रिका द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया ¨ के लिए रचनाएं लिखीं .

गीता राय से शादी - 1953 में गुरुदत्त और गीता राय की शादी हुई , गीता अपने समय की मशहूर गायिका थीं .हालाकि कहा जाता है कि उनका निजी जीवन खुशहाल नहीं रहा था .

गुरुदत्त को ब्रेक मिला - 1951 में देव आनंद ने अपनी फिल्म ¨ बाज़ी ¨ का निर्देशन उन्हें दिया , जो सुपरहिट हुई . इसके बाद ¨ जाल ¨ और ¨ बाज़ ¨ का भी निर्देशन किया जो उतनी सफल नहीं हुईं . पर 50 के दशक की दत्त की फ़िल्में ¨ आर पार ¨ और ¨ Mr .एंड Mrs . 55 ¨ सुपरहिट हुईं . उन्होंने 1956 में अपनी फिल्म ¨ C . I . D ¨ का निर्माण किया , जिसमें वादे के अनुसार देव साहब को हीरो लिया . यह फिल्म भी सुपरहिट रही .

टर्निंग पॉइंट

गुरुदत्त क्रिएटिव व्यक्ति थे . उन्होंने लीक से अलग हट कर 1957 में फिल्म “ प्यासा “ बनाई जिसमें वे नायक भी थे . फिल्म हिट थी . साहिर लुधियानवी के गीत , बर्मन दा का संगीत , गीता दत्त और रफ़ी साहब की आवाजें सब ने मिल कर प्यासा को यादगार गाने दिए .


¨ प्यासा ¨ एक यादगार और अमर फिल्म थी . इस फिल्म के लिए वे आज भी दुनिया भर में जाने जाते हैं .इस फिल्म को न तो किसी धक - धक गर्ल , न डिंग डाँग डिंग - एक दो दिन , न झंडू बाम , न फेविकोल ,न ही पड़ोसी के चूल्हे से बीड़ी जलाने की जरूरत पड़ी और न ही सफेद बारीक साड़ी में किसी नायिका को बरसात में नहाना पड़ा था .बिना किसी तथाकथित बोल्ड सीन के अपनी सशक्त कथा , संवाद , अभिनय , निर्देशन , गीत और संगीत के बल पर ¨ प्यासा ¨ एक अमिट छाप छोड़ गयी है . इसीलिए प्यासा की लोकप्रियता आज भी फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में बरकरार है .


इसके बाद 1959 की उनकी क्लासिक फिल्म “ कागज़ के फूल “ बुरी तरह फ्लॉप रही थी , हालांकि इसमें उन्होंने अपना तन , मन धन सब लगा दिया था . कला की दृष्टि से यह एक बेहतरीन फिल्म थी . उन्हें घोर निराशा हुई थी . वे शराब का सेवन करने लगे थे . इसके बाद जो फ़िल्में उन्होंने बनाई उनमें वे हीरो तो थे पर निर्देशन स्वयं नहीं किया था . “ चौदवीं का चाँद “ , “साहब बीबी और गुलाम “ दोनों सुपरहिट रहीं थीं और “ साहब बीबी और गुलाम “ पुरस्कृत भी हुई थीं .

गुरुदत्त को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान - गुरुदत्तत द्वारा निर्मित चार फ़िल्में - “ प्यासा “ , “ कागज़ के फूल “ , “ चौदवीं का चाँद “ और “साहब बीबी और गुलाम “काफी मशहूर हुईं .प्रथम दोनों फिल्मों को अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका ¨ टाइम ¨ ने ऑल टाइम बेस्ट 100 फिल्मों की सूची में शामिल किया और दत्त को भी ग्रेटेस्ट डायरेक्टर ऑफ़ ऑल टाइम में रखा था . 2002 में विश्व में ऑल टाइम ग्रेटेस्ट फिल्म की सूची में 160 वीं पायदान पर थी , 2005 में 100 सर्वश्रेष्ट की फिल्मों की सूची में , फिर बॉलीवुड की मस्ट सी 25 फिल्मों में और 2011 में टाइम

द्वारा विश्व की 10 ऑल टाइम रोमांटिक फिल्मों में इसे स्थान मिला है . 2015 वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाए जाने वाले फिल्मों में कठिन प्रतिस्पर्द्धा के बीच विश्व के 11 श्रेष्ठ फिल्मों में इसे स्थान मिला था . वहीँ 2010 में CNN ने एशिया के प्रथम 25 एक्टर्स ऑफ़ ऑल टाइम की सूची में उन्हें रखा है .

दुखद अंत

1964 में उनकी फिल्म “ बहारें फिर भी आएँगी “ का निर्माण चल रहा था . अचानक 10 अक्टूबर की सुबह को पेड्डर रोड के अपने अपार्टमेंट में गुरुदत्त मृत पाए गए . कहा जाता है कि अत्यधिक शराब और स्लीपिंग पिल्स के सेवन से उनकी मौत हुई थी . संदेह किया जाता है कि यह आत्महत्या थी और इसके पूर्व भी वे आत्महत्या की असफल कोशिश कर चुके थे . मात्र 39 वर्ष की आयु में गुरुदत्त चल बसे . उन्होंने 16 फिल्मों में काम किया था .आठ फिल्मों के वे निर्माता भी रहे थे और कुछ में निर्देशक भी थे . उनकी फिल्म ¨ बहारें फिर भी आएँगी ¨ 1966 में रिलीज हुई जिसमें धमेंद्र नायक थे .


गुरुदत्त जैसी फ़िल्में चाहते थे , सम्भवतः अब नहीं बनें क्योंकि बाज़ार के दस्तूर बदल गए हैं , अब फिल्म इंडस्ट्री को नाज़ है 200 - 300 करोड़ या ज्यादा की सूचि में शामिल होने पर .

- शकुंतला सिन्हा -

( बोकारो , झारखण्ड )

Currently in USA

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नोट - यह रचना मौलिक है और इसे केवल आपके पास भेजी गयी है .

रचना की तिथि - 31 . 10 .2018

संपादक उचित समझें तो कुछ सुधार या बदलाव कर सकते हैं

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