कॉपोरेट्स के व्यूह में स्त्री Neelam Kulshreshtha द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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कॉपोरेट्स के व्यूह में स्त्री

कॉपोरेट्स के व्यूह में स्त्री

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

"इस समाज में कैरियर ओरिएंटेड लड़कियों के लिए कोई ख़ास जगह नहीं है। "ये है फ़िल्म ' कॉर्पोरेट ' हीरोइन सीनियर एग्ज़ेक्युटिव निशिगंधा ऊर्फ़ विपाशा बसु का संवाद है. ये तय है कि 'कॉर्पोरेट्स ' फ़िल्म के रिलीज़ होने के चौदह पंद्रह वर्षों के बाद नौकरीपेशा लड़कियों ने समाज में जगह ज़रूर बनाई है . ये बात सन २०१४ में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक सर्वे ने साबित भी की है कि सिर्फ़ सत्ताईस प्रतिशत लडकियां शादी के बाद कॉर्पोरेट्स की नौकरी छोड़तीं हैं। फिर भी ये समाज के लड़की के लिए चिपके टेबू से स्वतंत्र नहीं हो पाईं हैं। समाज नौकरीपेशा के साथ घरेलु लड़की भी चाहता है। मेरे ख़्याल से ये बात अनुचित भी नहीं है क्योंकि जब किसी लड़की को शादी करनी है तो घर के दायित्व निबाहने ही होंगे। ये गैस, कुकर व मेड के कारण ये अपनी ज़िंदगी व घर खींच ले जातीं हैं। और आजकल के अधिकतर पति भी पत्नी का हर कदम पर साथ दे रहें हैं। इस फ़िल्म में दिखाने की कोशिश की गई है कि वे मर्द की तरह कॉर्पोरेट जगत में चालें तो चल सकतीं हैं लेकिन क्या करेंगी उस औरतनुमा या दिल का जो कम्बख्त नरम पड़कर मुसीबत मोल ले लेता है चाहे वह घर हो कॉर्पोरेट जगत।

अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति को अपनाते कॉपरेट जगत में जहां बॉस को भी फ़र्स्ट नेम से सम्बोधित किया जाता है।ऐसी दुनिया में बिना बिंदी, बिना चूड़ी के पेण्ट कोट में पोनीटेल हिलाती आत्मविश्वास व होठों पर सफ़ल व गरूर भरी मुस्कान लिए हाथों में फ़ाइलें लिए चलती निशिगंधा। स्मार्टनेस इतनी कि लगता है उसे चाय या कॉफी के तरोताज़ा करने के विज्ञापन में पोट्रेट किया जा सकता है। ये रीतेश नाम के युवक के साथ 'लिव-इन 'में रहती है व उसी रीतेश के जीजा जी विनय सहगल की कंपनी में काम करती है। हाथ में जाम लिए, सिगरेट का धुंआ उड़ाती ये अपनी जूनियर मेघा के सामने बिखर जाती है, "मै कलकत्ते में थी। शादी के छः महीने बाद मेरा तलाक हो गया। बंबई आने पर रीतेश ने मुझे संभाला ."

कॉर्पोरेट्स जगत शक्तिशाली, तेज़ दिमाग वाले रईसों की दुनिया है। विदेशी या देशी कंपनियों से नित नए गठबंधन, प्रतिद्वंदियों को पछाड़ाने के लिए के लिए मार्केटिंग दांव पेच, धन, कॉलगर्ल्स व डिटेक्टिव का प्रयोग ---यहां तक कि किसी की ह्त्या भी। ऐसे जगत में काम करने जा पहुँची है आज की शिक्षित स्त्री, जो इंजीनियर है, सोशल वेल फ़ेयर ऑफिसर है या मानव संसाधन विभाग का प्रबंधन संभाल रही है। अडनानी ग्रुप के सोशल वर्क प्रोजेक्ट में काम करने वाली मेरी एक मित्र ने मुझसे चौदह पंद्रह वर्ष पूर्व कहा था, "विवाहित स्त्री कॉर्पोरेट्स में अपने को सही ढंग से को -ऑप नहीं कर पा रही। "

"बात घर की देख रेख से टकरा रही होगी ?"

"हाँ, शाम को साढ़े छ;बजे तक ऑफिस टाइम होता है लेकिन वह आठ बजे से पहले घर नहीं पहुँच पाती। ' को घर पहुंचकर ये कहना भी ना बनाये लेकिन इतनी ताकत नहीं बची होती कि घर वालों को अपनी खिली मुस्कराहट दे सके। लेकिन इधर के वर्षों में समय भी जैसे तेज़ी से बदला है। वॉट्स एप से सामान की होम डिलीवरी, किसी टाउनशिप में बच्चो के लिए' क्रेच 'आदि ऐसी सुविधाएं हो गईं हैं कि आज की स्त्री पैर जमाकर कॉर्पोरेट्स के बीच खड़ी है।

हाँ, तो बात निशिगंधा की हो रही थी। इसकी महत्वकांक्षाओं का सफ़र तब आरम्भ होता है जब रीतेश विदेश से असफ़ल होकर लौटता है। निशिगंधा प्रतिद्वंदी कंपनी की शर्ली को पटाकर व शॉपिंग मॉल में बुलाकर गोपनीय सूचनाएं लेती रहती है। विनय सहगल के प्रतिद्वंदी मारवा जो छः महीने में 'मिंट बेस्ड 'कोल्ड ड्रिंक लांच करने जा रहे हैं लेकिन उन लोगों ने अफ़वाह उड़ा रक्खी है कि वे मिनरल वॉटर लांच करने जा रहे हैं। यदि अधिक पैसा बनाना है तो बॉस की नज़र में चढ़ाना पड़ेगा और इसके लिए और लोगों से अलग हटकर कुछ कंपनी को फ़ायदा पहुंचाना होगा। निशिगंधा मारवा कंपनी के परवेज़ के लिए तब जाल बिछाती है जब वह देल्ही जाता है। ये भी वहां पहुंचकर इसके साथ डिनर लेती है डिस्कोथेक में डांस करती है. परवेज़ इसे ऊंची तनख्वाह की नौकरी का लालच देकर सोचता है वह शिकार कर रहा है। वह शराब के नशे में एक मॉडल को तीस हज़ार रूपये देकर अपने कमरे में ले जाता है, बिना ये जाने कि वह शिकार बन रहा है। उधर निशिगंधा उसके लेपटॉप में से कोल्ड ड्रिंक लांच करनेकी सारी जानकारी ले लेती है। दिल के हाथों मजबूर होकर वह ये क्रेडिट रीतेश को दे देती है जिससे वह जीजा की कंपनी में सी ई ओ बना दिया जाता है। गौरतलब है वह 'प्यार 'में आर्थिक रूप से अपने को कमज़ोर रखती है। उसके बॉस मीडिया में घोषणा करते हैं कि वे तीन महीने में एक कोल्ड ड्रिंक लांच करने जा रहे हैं। कंपनी की बोर्ड मीटिंग में बतातें हैं कि वे पब्लिक इश्यू भी जारी कर करोड़ों रुपया मार्केट से उठाएंगे।

इस फ़िल्म में एक दूसरी तरह की 'औरत 'से मुलाक़ात होती है जो है मीडिया की देवयानी। वह सहगल की इतनी करीबी दोस्त है कि 'बिज़नेस लीडर 'नाम का पुरस्कार वह सहगल को दिलवाने के लिए ज्यूरी को अपने सौंदर्य व छल बल से पटा चुकी है।बेहद रईस विवाहित सहगल के प्यार पर उसे पूरा विश्वास व नाज़ है। एक समारोह में पुरस्कारों की घोषणा होती है, "बेस्ट एच आर डी मैनेजमेंट अवॉर्ड ----मार्केटिंग एक्सेलेंस अवॉर्ड ----." और बिज़नेस लीडर अवॉर्ड सहगल के प्रतिद्वंदी मारवा जावेद अख्तर जी के हाथों ले उड़ते हैं। देवयानी प्रेस व लोगों की नज़रों से बचते हुए, छिपते हुए सफ़ाई देती जा रही है, "मैं क्या करूँ लास्ट मोमेंट में ज्यूरी बदल दी गई थी। "अब कॉर्पोरेट जगत में एक रईस की नज़दीकी का सुख भोगती देवयानी को अपनी सही औकात पता लगती है जब सहगल गुस्से में कहतें हैं, "यू आर नथिंग, यू आर जस्ट ग्लोरिफ़ाइड पिंप। "

ये पिंप या कीप या सो कॉल्ड महबूबा एक बड़ी कार में अपने बंगले में [ज़ाहिर है ये सहगल के दिए तोहफ़े होंगे ] शराब के नशे में ड्राइवर की मदद से पहुँचती है। वह रोती जा रही है, "ही कॉल्ड मी पिंप। वह मुझे पंचिंग बैग की तरह इस्तमाल करता है। जब चाहा पंच मार दिया। "घर या कॉर्पोरेट की स्त्री के हिस्से में बिलखना ही अधिक आता है ? घरेलु स्त्री रोती है कि घर में उसे नौकरानी समझा जाता है या फिर एक 'डस्टबिन' लेकिन अक्लमंदी से घरेलु औरत ने अपने लिए घरेलु हिंसा अधिनियम तो जुटा लिया है।

सहगल ग्रुप की तैयारियां ज़ोरों से हैं. बोर्ड मीटिंग में एक एग्ज़ेक्युटिव नवीन श्रॉफ जानकारी देते हैं, "कंपनी का बॉटलिंग प्लांट खेतों के पास है। वॉटर प्योरिफाइंग प्लांट सही काम नहीं कर रहा, कोल्ड ड्रिंक में पेस्टीसाइड्स की मात्रा हानिकारक हो गई हैं इसलिए इसे शुद्ध बनाकर दस दिन बाद नहीं तीन महीने बाद लांच किया जाना चाहिए। "

निशिगंधा की चिंता है, "इस कोल्ड ड्रिंक से कैंसर होने का ख़तरा है। गर्भवती माँ को व् बच्चे के 'इम्यून सिस्टम 'खराब हो सकते हैं। "

कॉर्पोरेट जगत का एक ही उसूल है मुनाफ़ा ---और मुनाफ़ा। सहगल की चिंता है कि 'जस्ट चिल 'कोल्ड ड्रिंक यदि दस दिन में लॉन्च नहीं हुई तो इसके पब्लिक इश्यूज़ डूब जांयेंगे इसलिए नियत समय पर ही इसे लॉन्च करना पड़ेगा। उनकी दलील है, भारत में लाखों लोग गटर का पानी पीकर ज़िंदा रहते हैं। बाद में प्लांट बदलकर इसे शुद्ध कर दिया जाएगा। "

कहीं बची इंसानियत की तरह नवीन श्रॉफ अपना इस्तीफा दे देतें हैं व आश्वासन देतें है, "इस गुनाह में मैं शामिल नहीं हूँगा लेकिन बतौर इथिक्स इस बात की बाहर चर्चा नहीं करूंगा। " निशिगंधा असमंजस में है करोड़ों के प्रोजेक्ट वाले कॉर्पोरेट की टॉप एग्ज़ेक्युटिव बनने का लालच क्या कम है ?उसके प्रेमी के कैरियर का भी सवाल है। लॉन्च पार्टी में शामिल हो वह परेशान हो एक अकेले कोने में निकल आती है बस ---.

उधर मारवा एक डिटेक्टिव की मदद से परवेज़ के कारनामे पता कर लेते हैं। उसे लताड़ते हैं, "तुमने तीस हज़ार रूपये में एक मॉडल के साथ सोने के लिए मेरे तीस हज़ार करोड़ के प्रोजेक्ट को पानी में मिला दिया। "गुस्से में परवेज़ निशिगंधा से कैफ़ियत माँगने उसके पास जाता है।

कॉर्पोरेट की ये लड़की चालबाज़ी करने के बाद भी शर्माती नहीं है बल्कि कहती है, "तुम किस' एथिक्स' की बात कर रहे हो ?तुमने भी तो ऊंची तनख्वाह का लालच देकर मुझे ख़रीदना चाहा। तुम्हें ना नौकरी जाने का दुःख है, न अपमान का, न पकड़े जाने का। तुम्हें सबसे बड़ा दुःख ये है कि एक लड़की ने तुम्हारे साथ ऐसा किया। "

इस जगत की शातिर दिमाग वाली लड़की को देखकर कौन भौंचक नहीं होगा ?वह जाते जाते एक जुमला और कस जाती है, "तुम भूल गए थे कि दिमाग़ ऊपर होता है ना कि नीचे। '

'मारवा अपने संरक्षक मंत्री गुलाबराय के पास जाकर सहगल के प्लांट पर क्वालिटी कंट्रोल वालों की रेड पड़वा देता है व उसके इशारे पर मीडिया भी ख़ूब इस बात को उछालता है।

कॉर्पोरेट जगत की तीसरी तरह की स्त्री का यहां उदय होता है जो कि कॉर्पोरेट जगत के रूपये से अपना एन जी ओ चलातीं हैं और जिन्हें इनके इशारों पर कभी कभी नाचना भी होता है। मारवा ग्रुप से फ़ंड लेने वाली एक स्त्री एन जी ओ इसके इशारे पर सड़क पर'जस्ट चिल 'कोल्ड ड्रिंक के लांच के विरोध में प्रदर्शन के लिए झंडे लेकर उतर आतीं हैं। जब किसी से आर्थिक अनुदान लिया जाता है तो उसका भोंपू तो बनना ही होगा। लेकिन सभी जगह कॉर्पोरेट व एन जी ओ का रिश्ता इतना बुरा नहीं है। सबसे पहले टाटा ग्रुप ने अपनी फैक्टरी के मज़दूरों की सहायता के लिए समाज सेवा शुरु की। मैं बड़ौदा में ऐसी दो महिलाओं से मिलीं हूँ जो कि कॉर्पोरेट्स से जुड़कर करोड़ों के प्रोजेट पर काम करके सच ही मज़दूरों का भला कर रहीं है। गुजरात के एक्सेल ग्रुप के परिवार की महिलायें स्वयं ही ये काम संभाल रहीं हैं। श्रुति श्रॉफ ने तो पांच सौ गावों की तस्वीर बदल दी है।

कॉर्पोरेट की अब चौथी स्त्री का रूप दो चपरासियों के बातचीत की कारण फ़िल्म में उभरता है, "कंपनी के सीईओ व एग्जेक्युटिव्स छः महीने में विदेश दौरे पर जाते रहतें हैं। साथ में होती है उनकी सेक्रेटरी। वे सेक्रटरी हर छः महीने में बदलते रहतें हैं क्योंकि अपने देश में बीवी तो हर छः महीन बदली नहीं जाती है ---हा ---हा---हा। "

तो कॉर्पोरेट्स में उन पढ़ी लिखी लड़कियों के लिए भी जगह है जो किसी ओहदेदार की पी ए बनकर 'ग्लोरीफ़ाईड 'देह व्यापार कर सकतीं हों चाहे बाद में वे उन्हें पंच बैग की तरह इस्तमाल करें।आज का दौर ऐसा है कि लड़की चाहे तो अपने मन से देह का इस्तमाल करे लेकिन जो कर्मठ स्त्रियां सिर्फ अपने कर्म पर विश्वास कर आगे बढ़ रहीं हैं। उन्हें ये कॉर्पोरेट्स पूरी तरह सुरक्षा दे रहें हैं। इनकी सुरक्षा के लिए कड़े क़ानून भी हैं।

कॉर्पोरेट जगत या कहना चाहिए समाज में दो तरह के स्त्री पात्र ही सफ़ल होते हैं जो स्त्रियां स्वयं आर्थिक रूप से मज़बूत होतीं हैं या फिर एक ऐसी पत्नी जो आँखें मूंदकर पति की हर ग़लत बात में साथ दे। विवाहेतर संबंधों को नज़रअंदाज़ करे, उसका अहम सहलाये .यहां तक की अपने भाई की ह्त्या से भी आँखें मूँद ले। 'गुरु 'फ़िल्म में गुरु पर अनेक घपलों के इलज़ाम हैं। उसकी पत्नी कोर्ट में कहती है, "मैं इनकी हर बात में पचास प्रतिशत की पार्टनर हूँ। "

मारवा की पत्नी उन्हें प्रति दिन उन्हें वार के हिसाब से गुरुदेवी बापू की बताये रत्न की अंगूठी बॉक्स में से निकाल कर पहनाती है। इस पत्नी की शाश्वता को कोई चुनौती नहीं दे सकता।पी ए, सो कॉल्ड महबूबाओं को किक किया जा सकता है। इस फ़िल्म में स्त्री का छठा रूप है ---एक मॉडल अल्पवस्त्रों में एक नेतानुमा कॉर्पोरेट की पार्टी में नाच रही है, 'ओ ---सिकंदर--ओ सिकंदर ---झाँक--- झांक ले तू दिल के अंदर। "यहां आत्मा की गहराइयों के अंदर झाँकने की बात नहीं हो रही है .वह परोक्ष रूप से अपने अन्दर झांकने का आमंत्रण दे रही है।तो क्यों न करे कॉर्पोरेट जगत उस पर रुपयों की बौछार ?

पेस्टीसाइड स्केम से सहगल परिवार की प्रतिष्ठा ख़तरे में है। रीतेश कहता है कि वह सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेगा लेकिन उसकी बहिन यानि सहगल की पत्नी कहती है की वह परिवार का सदस्य है इसलिए इस कदम से प्रतिष्ठा नहीं बचेगी। सहगल अपने वकील की राय बताता है कि यदि कोई टॉप एग्जेक्यूटिव अपने सिर घपले की ज़िमेदारी ले ले तो सहगल की प्रतिष्ठा बच सकती है। ज़ाहिर है उसकी नज़र निशिगंधा पर है। रीतेश व निशिगंधा के कुछ दिन उहापोह में बीतते हैं। परवेज़ को नसीहत देने वाली निशिगंधा दिमाग को दिल में रखकर करोड़ों के टर्नओवर कंपनी में टॉप एग्जेक्यूटिव बने रहने के लिए, रीतेश व अपने सुनहरे भविष्य के लिए, अपनी भावी ससुराल की इज़्ज़त को बचाने के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके घपले की ज़िमेदारी ले लेती है। उसे आश्वासन दिया है कि उसे जल्दी जेल से निकाल लिया जाएगा। ----याद कीजिये उन स्त्रियों को जिन पर भावनात्मक दवाब डालकर जायदाद दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं। वह जेल में है। मारवा ग्रुप सहगल के अधिकाँश शेयर ख़रीद चुका है। अमेरिका की फ़िस्कॉन कंपनी अपना निवेश ख़त्म करना चाहती है। वित्तमंत्री व राजयमंत्री के स्वार्थ इस एम एन सी से जुड़े हुए हैं इसलिए मारवा व सहगल में समझोता करवा देतें हैं।

निशिगंधा कब जेल से आज़ाद करवायी जाएगी ?गुलाबराय हाथ खड़े कर देते हैं। चार महीने चुनाव को रह गए हैं यदि उसे रिहा करवा दिया गया तो विरोधी पक्ष मुद्दा बना लेंगे, वे मुख्यमंत्री नहीं बन पायेंगे। ये बात देवयानी से जानकार रीतेश के बौखलाने की बारी है। वह जीजा, जीजी को धमकी दे आता है यदि उन्होंने उसे रिहा नहीं करवाया तो वह उन्हें 'एक्सपोज़ 'कर देगा।

किसी कॉर्पोरेट जगत के यथार्थ में चलती कहानी मधुर भंडारकर के नायाब निदेशन का नमूना है। हर अभिनेता अपनी इमेज से अलग सिर्फ़ एक पात्र है।विपाश को जिस तरह 'जिस्म 'से खींचकर उनकी अभिनय प्रतिभा को जिस अंदाज़ में उन्होंने प्रस्तुत किया है, विपाशा स्वयं हतप्रभ होंगी।

फ़िल्म में उनका कलात्मक निदेशन इन दृश्यों में चरम है। रीतेश को पता लग गया है वह पिता बनने जा रहा है। अपनी परिस्थितियों के कारण वह चिंतित हो फ़्लैट की खिड़की पर बैठा सिगरेट फूंक रहा है। निशि जेल में ही है। तभी कॉल बैल बजती है और दृश्य कट हो जाता है। अब सुबह के शॉट में सड़क पर जमादार लम्बी झाड़ू से कचरा बुहारता आगे बढ़ा जा रहा है। झाडू को सड़क की भीड़ के सामने उसे रोकना पड़ता है। बीच में पड़ा है रीतेश का खून से लतपथ शरीर। सब समझ रहे हैं उसने फ़्लैट की खिड़की से कूदकर आत्महत्या की है। कितना खौफ़नाक है कॉर्पोरेट जगत सन्देश कि हमारी व्यवस्था में अपने को फ़िट करो वरना झाड़ू से ऐसे ही बुहार दिए जाओगे।

सभी को अपनी मंज़िल मिल गई है। सहगल 'जस्ट चिल 'कोल्ड ड्रिंक का सिर्फ बैच नंबर बदलता है, ज़हरीली कोल्ड ड्रिंक नहीं। नवीन श्रॉफ जिसने कंपनी छोड़ी थी, मेघा व अनमोल के साथ मिलकर एक' कंसल्टेंसी 'खोल लेता है। गुलाबरॉय मुख्यमन्त्री बन चुके हैं।निशिगंधा जेल से रिहा हो गई है लेकिन अकेले कोर्ट के चक्कर काटते काटते बेहाल है। उसकी गोद में है 'लिव इन 'की सौगात, एक घुंघराले बालों वाली बेटी। पार्श्व से आवाज़ आती है, 'निशगंधा की मॉडर्न वैल्यूज़ को तमाचा पड़ा चुका है। उसे दिल से काम लेने की भारी कीमत चुकानी पड़ा गई। "

कमोबेश ये स्त्री जीवन का विद्रूप है कि वह अच्छे मूल्यों को अपनाये या मूल्यहीनता का जीवन जीए, हारना उसे ही पड़ता है, रोना बिलखना उसे ही पड़ता है। पुरुष व्यवस्था की पकड़ जकड इतनी मज़बूत है कि सहगल ज़हरीला कोल्ड ड्रिंक'जस्ट चिल 'बेचकर भी चिल है, मारवा ज़हरीली चालें चलकर, मंत्री बीच की दलाली खाकर मस्त हैं। वे प्रगति और प्रगति करते जा रहे हैं।

मुझे ऐसा लगता है मधुर भंडारकर ने जानबूझकर निशि की गोदी में एक लड़की दिखाई है। वो उसे क्या सिखाएगी ?यही न, "घर हो या कॉरपोरेट जगत। मॉडर्न वैल्यूज़ से जीवन नहीं संवर सकता। 'हाँ 'लिव इन 'में कभी मत रहना। विवाह करोगी तो मुसीबत में दोनों तरफ के कुछ रिश्तेदार तो साथ देंगे ही। आदिम स्त्री की तरह दिल से नहीं दिमाग से काम लेना बेटी !"

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail---kneeli@rediffmail.com