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देह की दहलीज पर - 13

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

कथाकड़ी 13

अब तक आपने पढ़ा :- मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? उसने अपनी दोस्त नीलम से इसका जिक्र किया। कामिनी की परेशानी नीलम को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है। वहीँ अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ? कामिनी की सोसाइटी में रहने वाला सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है। ऑफिस से घर आनेके बाद अकेलापन उसे भर देता है। उसी सोसाइटी में रहने वाली शालिनी अपने प्रेमी अभय की मौत के बाद अकेले रहती है। वह अपने आप को पार्टी म्यूजिक से बहलाती है लेकिन अकेलापन उसे भी खाता है। वह अकेले उससे जूझती है। कामिनी का मुकुल को लेकर शक गहरा होता जाता है और उनके बीच का झगड़ा कमरे की सीमा पार कर घर के अन्य सदस्यों को भी हैरान कर देता है। रात में मुकुल अकेले में अपनी अक्षमता को लेकर चिंतित होता है समाधान सामने होते हुए भी आसान नहीं है। अरोरा आंटी की कहानी सुन कामिनी सोच में डूब जाती है तभी उसकी मुलाकात सुयोग से होती है और वह वह उसके आकर्षण में बंध जाती है।

अब आगे

शालिनी ने ऑफिस में कदम रखा ही था कि किसी के गुनगुनाने की आवाज आई 'क्या खूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो' शालिनी ने पीछे मुड़कर देखा उसकी सहेली सुनैना थी उसने गुस्से में आंखें तरेरी और फिर दोनों जोर से हँस दिये ।"सच यार वह तो एकदम दीवाना हो गया है तेरा। उस दिन पार्टी में उसका ध्यान सिर्फ तेरे पर था तेरे उठने बैठने बोलने यहाँ तक कि बालों की लट सवारने को भी बंदा इतने प्यार से देख रहा था कि हाय," सीने पर हाथ रख सिर को एक तरफ लुढ़का कर सुनैना ने दीवाने की एक्टिंग की तो शालिनी हँसी नहीं रोक पाई।"शालिनी वैसे बंदा बुरा नहीं है क्या ख्याल है? "

" बंदा बुरा नहीं है लेकिन अभी मेरा कोई ख्याल नहीं है इस बारे में, तो बेकार में अपना दिमाग मत खपा। " शालिनी ने बात टाल दी लेकिन यह नहीं बताया कि तरुण ने संडे को उसे डिनर पर चलने के लिए फोन किया था, जिसे उसने किसी फैमिली फंक्शन में जाने के नाम पर टाल दिया। शालिनी अभी भी अभय को अपने दिल दिमाग से निकाल नहीं पाई थी किसी और को अभय का स्थान देने के लिए वह तैयार नहीं थी ।

शाम को बालकनी में खड़े चाय पीते शालिनी ने फिर डी ब्लॉक फिफ्थ फ्लोर पर नजर दौड़ाई वहाँ कोई नहीं था शायद रात में देर से आता हो। लेकिन वह है कौन? होगा कोई मैं क्यों इतनी उत्सुक हो रही हूँ? उसने सिर को झटका। कल उस बिल्डिंग में जाकर लिस्ट देखूँगी तब पता चले। लेकिन यह फ्लैट नंबर कौन सा है कैसे पता चलेगा? फिफ्थ फ्लोर तो है लेकिन फ्लैट नंबर, फिर वहाँ इसी का नाम होगा कैसे पता चलेगा हो सकता है किराएदार हो? शालिनी तू पागल है उसने खुद को घुडका।

शाम गहरा नहीं पाई थी लेकिन शालिनी ऑफिस से घर पहुँच गई रास्ते में ही कामिनी मिल गई। वह गार्डन से वॉक कर वापस आ रही थी। उसे पीछे से ही पहचान कर शालिनी ने हॉर्न बजाया, मुड़ कर उसे देखते वह चिंहुक गई, "अरे शालिनी तुम आज जल्दी व्हाट ए सरप्राइस?"

"हाँ आज आफिस में मन नहीं लग रहा था तो जल्दी निकल आई, वॉक से आ रही हो ?"

"अब क्या करें घर में अकेले बैठे शाम गुजारना मुश्किल होता है" उदासी गहरा गई कामिनी के स्वर में जिसे शालिनी ने भी महसूस किया लेकिन उसे पूछना उचित नहीं लगा।" चलो घर चलते हैं चाय पी कर जाना" कामिनी ने कहा।

" नहीं चाय फिर कभी अभी तो थक गई हूँ फिर भी दोनों लगभग 10 मिनट रास्ते में खड़ी बातें करती रहीं। कामिनी से विदा लेकर शालिनी चली ही थी कि बगल से एक बाइक गुजरी चेहरा हेलमेट में छुपा था लेकिन कद काठी से उसे पहचानते देर न लगी कि यह डी ब्लॉक फिफ्थ फ्लोर वाला है। शालिनी ने गाड़ी एक किनारे रोकी और तेजी से डी ब्लॉक की पार्किंग पारकर लिफ्ट के पास पहुँची। सुयोग ने लिफ्ट के पास उसे खड़े देखा तो ठिठक गया चेहरा जाना पहचाना लगा। तभी उसका ध्यान मस्टर्ड लॉन्ग कुर्ते पर गया यह तो शायद बी ब्लॉक फिफ्थ फ्लोर वाली है जिसके यहाँ पिछले वीकेंड पार्टी थी। वह सोच पाता कि कैसे बात करूँ तब तक शालिनी ने उससे पूछ लिया "विच फ्लोर?"

"फिफ्थ"

"ओह सेम फ्लोर मैं भी फिफ्थ फ्लोर पर रहती हूँ बी ब्लॉक। हाय आई एम शालिनी।"

"मैं सुयोग"

सुयोग ने अजकचाकर शालिनी के बढ़े हुए हाथ को थाम लिया। "आपको एक दो बार बालकनी में देखा है।"

"मैंने भी"

लिफ्ट आ गई तभी शालिनी का फोन बजा और एक्सक्यूज मी कहते एक बार मुड़ कर उसने हाथ हिलाकर सुयोग को बाय किया और फोन उठाकर वह लिफ्ट से दूर हो गई।लिफ्ट बंद होकर ऊपर चली गई तो उसने चैन की सांस ली। "माँ मैं थोड़ी देर में घर पहुँच कर बात करती हूँ। " उसने फोन काट दिया और होठों को गोल करते हुए दोहराया "सुयोग" नाम भी हैंडसम है। अपनी मुस्कान दबाती वह गाड़ी की तरफ बढ़ चली।

कामिनी शालिनी को जाते देखती रही यह भी तो जवान है यह कैसे खुद की इच्छाओं को काबू में करती होगी? अकेली है शादी की नहीं हो सकता है कोई बॉयफ्रेंड हो या शायद... । छी ऐसा नहीं हो सकता शालिनी ऐसी लड़की नहीं है। पता नहीं अकेले रहने वाले कैसे अपनी इच्छाओं को वश में करते हैं एक फुरफुरी सी उसकी रीढ़ में दौड़ गई। कामिनी थके कदमों से घर की तरफ चल दी वही घर जिसे उसने बड़े चाव से सजाया था और अब जिस की चहारदीवारी में उसे घुटन होने लगी थी।

मुकुल अभी तक आए नहीं थे बेटा और बेटी टीवी पर फुल वॉल्यूम में कोई इंग्लिश थ्रिलर मूवी देख रहे थे रूम थिएटर बना हुआ था। उसे देखते ही उन्होंने टीवी की आवाज़ धीमी कर दी। कुछ टूट सा गया कामिनी के भीतर उसकी घुटन ने घर और बच्चों को भी जकड़ लिया है। वह किचन में गई पानी पिया एक बार मन हुआ बच्चों के साथ बैठे लेकिन न जाने क्यों अपने कमरे में चली गई।

शालिनी घर पहुँची तो बड़ी खुश थी ऐसी खुश मानो अनायास आज कुछ पा लिया हो। पर्स चाबी टेबल पर पटक कर उसने म्यूजिक ऑन कर किया और झूमती गाती बेडरूम में पहुँची। आईने में खुद को देख कर उसने हाथ आगे बढ़ा कर कहा हाय आई एम शालिनी। मैं सुयोग। वैसे शालिनी तू इतना खुश क्यों हो रही है सिर्फ नाम ही पता चला है न तुझे। उसके बारे में जानती क्या है और जान भी गई तो क्या होगा? क्या चल रहा है तेरे दिमाग में? शालिनी ने कोई जवाब नहीं दिया सिर्फ गुनगुना दी 'क्या खूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो ।' पर्स में पड़े मोबाइल की दबी सी रिंग सुनाई दी ओ माँ का फोन वह फोन उठाने भागी।

लिफ्ट में दाखिल होकर घर का ताला जूते कपड़े खोलने तक सुयोग सोचता रहा कि आखिर हुआ क्या है? वह शालिनी मेरी बिल्डिंग की लिफ्ट के पास खड़ी थी बात हुई नाम बताया फिर चली गई लेकिन क्यों? फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर सुयोग ने गटागट आधी बोतल खाली की। किचन से कुछ स्नैक्स बिस्किट निकालकर खाए और ग्रीन टी बनाकर कप लेकर हॉल में आ गया। उसे जिम जाना था वह तैयार होने लगा तभी प्रिया का कॉल आ गया। थोड़ी देर बात करके सुयोग ने फोन रख दिया लेकिन वह सोचने लगा कि आज शायद पहली बार घर में घुसते ही उसे उस उदासी और अकेलेपन ने परेशान नहीं किया जिनसे वह पिछले डेढ़ वर्षो से जूझ रहा था। आज उसे ख्याल ही नहीं आया कि वह अकेला है जब तक कि प्रिया का फोन नहीं आया था क्योंकि आज शालिनी का ख्याल उसके साथ घर आया था।

बच्चे देर तक मूवी देखते रहे कामिनी अपने कमरे में यूँ ही मोबाइल पर वीडियो देखती रही। मुकुल के आने का समय हो रहा था वह उठी और किचन में आ गई कुक ने क्या बनाया है देखा सलाद काटा प्लेट्स लगाई और वह भी बच्चों के साथ ही बैठ गई। बेटी ने उसके गले में हाथ डाल दिया और कहा मम्मी आओ देखो एंड चल रहा है बढ़िया सस्पेंस थ्रिलर है। तभी ब्रेक आ गया दोनों उसे मूवी की स्टोरी बताने लगे वह सुन रही थी हाँ हूँ कर रही थी लेकिन महसूस कर रही थी कि उसके शरीर की डिमांड दिमाग पर इस कदर हावी हो चुकी है कि वह कुछ समझ नहीं पा रही है। मुकुल आ गए वह खाना गर्म करने के लिए उठ गई। खाने की टेबल पर कामिनी एकदम खामोश थी कुछ देर उसकी खामोशी ने सबको चुप रखा फिर मुकुल ने बच्चों से बातचीत शुरू की। वे उनके असाइनमेंट एग्जाम इंटर्नशिप के प्लान के बारे में बातचीत करते रहे।

मुकुल कमरे में आए तब कामिनी जाग रही थी लेकिन वह चादर ओढ़े आँखें मूंदे पड़ी थी। मुकुल बत्ती बंद करके चुपचाप उसके बगल में लेट गये। कामिनी के शरीर में लहरें सी उठ रही थीं जैसे कोई ऊंगलियों से उसे सहला रहा हो। बंद आँखों में एक हष्ट-पुष्ट शरीर बलिष्ठ बाहें उभरतीं जो उसे आगोश में ले कर भींच लेतीं। आनंद की लहरों में उसका समूचा अस्तित्व हिलोरे लेता। उसके पैरों के पंजे एक दूसरे को सहलाते दबाते उसके होठों के पास दो होंठ आते वह गर्म साँसे चेहरे पर महसूस करती। वह आँखें खोल कर उन होठों और गर्म सांसों के मालिक को देखना चाहती और वहाँ मुकुल के साथ एक अंजाना चेहरा गड़मग होने लगता। वह मुकुल को पहचान उसे अपने करीब करती लेकिन फिर अनजान को देख ठिठक जाती खुद को धिक्कारती। यह क्या सोच रही है कामिनी? तू किसी और के साथ लेकिन तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है? माना तेरी और मुकुल की अनबन है शायद वह किसी और के साथ लेकिन तू ऐसा कैसे कर सकती है? घबरा कर कामिनी ने आँखें खोल दीं। फेंटेसी में वह खुद को एक ऐसी दुनिया में ले गई थी जहाँ उसे कुछ चैन मिल रहा था वह सुकून पा रही थी लेकिन उस अनजान चेहरे ने उसे छीन लिया। नहीं वह अनजान ही तो उसे सुख दे रहा था मुकुल ने वह चैन छीन लिया। कामिनी को एक बार फिर मुकुल पर जोर से गुस्सा आया, क्या जरूरत थी बीच में आने की वह सुख पा रही थी यह भी उससे सहन नहीं हुआ। उसकी आँखों में आँसू आ गए बाकी रात बार-बार इसी फेंटेसी को पूरा करने की जद्दोजहद में बीती। बगल में मुकुल के खर्राटे बजते रहे।

सुबह बालकनी का दरवाजा खोल शालिनी बाहर आई धूप में चमकता नीला आसमान भला लग रहा था। ऊपरी मंजिलों पर कबूतरों की गुटर गू बड़ी सुरीली लग रही थी। गाड़ियों बसों के हार्न बस स्टॉप पर बच्चों को छोड़ने आईं मम्मियों की हिदायतें मिलने जुलने वालों की हाय बाय हवा में घुल कर चारों ओर बिखरी थी। अगर अभय होता तो आज वह भी इन्हीं हलचलों का हिस्सा होती। उसके भी दो प्यारे प्यारे बच्चे होते इस समय घर में दौड़ भाग मची रहती। अभय बच्चों को बस स्टॉप पर छोड़ने जाता वह उनके टिफिन बोतल पकड़ाती यहाँ बालकनी से उन्हें बाय करती। उसके बाद वह और अभय अकेले होते एक दूसरे की बाँहों में एक-दूसरे में खोए हुए। शालिनी की आँखें छलछला आईं। अचानक आसमान का चमकीला नीला रंग धूसर हो गया, कबूतर के गुटर गूं असहनीय शोर में बदल गई। दरवाजे की घंटी बजी बाई आई होगी शालिनी ने पलकें झपकाईं आँसू जज्ब किए और दरवाजा खोलने चल पड़ी।

शाम की सैर से लौटते हुए कामिनी ने कुछ देर अरोरा आंटी से बात की किसी पड़ोसी से हेलो हाय करते वह घर की तरफ आ ही रही थी तभी बगल से निकली उस बाइक सवार जिसकी शक्ल तो वह नहीं देख पाई लेकिन उसके पोस्चर को देखकर उसे रात की फैंटेसी में आए नायक की याद आ गई। कौन है वह पहले कहीं देखा तो है लेकिन कहाँ किस ब्लॉक में रहता है प्रश्नों के साथ और भी कुछ उसके दिलो-दिमाग में कुल बुलाने लगा?

बाइक पार्क करते सुयोग ने एक बार बाहर सड़क पर देखा शायद वह आज फिर दिख जाए। वहाँ कोई नहीं था वह लिफ्ट में सवार हो गया। आज का दिन हर दिन जैसा उदास नहीं था।

क्रमशः

मानसी वर्मा

Vermamansu7@gmail.com

बीई, एम।बीए
पढने का शौक शुरू से रहा
डायरी लेखन, रिपोर्ट बुक रिव्यू, संस्मरण छोटी कहानियाँ

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