देह की दहलीज पर - 6 Kavita Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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देह की दहलीज पर - 6

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

अब तक आपने पढ़ा :-मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? उसने अपनी दोस्त नीलम से इसका जिक्र किया उसके मन ने किसी तीसरे के होने का संशय जताया लेकिन उसे अभी भी किसी बात का समाधान नहीं मिला है। बैचेन कामिनी सोसाइटी में घूमते टहलते अपना मन बहलाती है वहीं उसकी मुलाकात अरोरा अंकल आंटी से होती है जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। कामिनी की परेशानी नीलम को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है? रविवार के दिन राकेश सुबह से मूड में था और नीलम उससे बचने की कोशिश में। एक सितार के दो तार अलग अलग सुर में कब तक बंध सकते हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ?

अब आगे

कथाकडी 6

अपने अगल-बगल से चलने की आवाज से सुयोग का ध्यान टूटा । उसने रिस्ट वॉच पर एक नजर डाली 8:15 बज गए थे। अरे इतनी देर हो गई उसने Anti-glare ग्लास निकाल टेबल पर पटका कुर्सी पीछे खिसका कर पैरों को लंबा किया दोनों हाथों को ऊपर उठा उंगलियों में उंगलियां फंसा कर शरीर को तान उसकी जकड़न को दूर किया। आंखों को मिचमिचाकर उन में नमी उतार ताजगी लाने की कोशिश की। कुछ देर आंखें बंद कर दिमाग में भरे दिन भर के काम और तनाव को बाहर निकाला फिर शरीर को सामान्य अवस्था में कर एक बार फिर अपने लैपटॉप की स्क्रीन को देखा। चमकती स्क्रीन पर लाल काले नीले रंग में चमकते डाटा अगली कमांड की प्रतीक्षा में थे लेकिन कमांडर अब उन्हें भी विश्राम देने का मन बना चुका था। कंट्रोल एस दबाकर सुयोग ने उन्हें स्क्रीन के पीछे जाकर आराम करने का हुक्म दिया और लैपटॉप बंद कर डेस्क पर फैले पेन नोटपैड बिस्किट के पैकेट को ड्रावर में रखा। अपनी जेब में पेनड्राइव चेक की मोबाइल जेब में और लैपटॉप बैग में रख वाटर बोतल से पानी पीकर साइड पॉकेट में फंसाया और उठ खड़ा हुआ। खड़े होकर उसने क्यूबिकल के चारों ओर नजर दौड़ाई। अधिकतर लोग जा चुके थे उसने जेब से बाइक की चाबी निकाली बैग कंधे पर टाँगा और ऑफिस से बाहर आ गया। पार्किंग में उसी के ऑफिस के सहकर्मी खड़े बातचीत कर रहे थे उन्हें हेलो कहता वह आगे बढ़ गया। वह जानता था कि उनका रात का कार्यक्रम बन रहा है लेकिन वह उनमें शामिल नहीं होना चाहता था। वह तो जल्दी से घर पहुंचना चाहता था अपनी प्रिया के पास।

सुयोग ने लॉक खोलकर हेलमेट लगाया और बाइक पर बैठकर स्टार्ट करने ही वाला था कि अचानक उसे कुछ ध्यान आया उसने मोबाइल चेक किया और मैसेज देखते उसके मुँह से निकला ओह शिट यार। पार्किंग से निकलकर बाइक ने गति पकड़ ली और सुयोग के विचारों ने भी। आज कुक नहीं आया क्या करें खाना खाते हुए घर जाए या ऑनलाइन आर्डर कर दे। आर्डर करके आराम से घर में बैठकर खा सकता है लेकिन उसकी इतनी सारी पैकिंग खोलना उसे पसंद नहीं है। वह रास्ते में कुकू द ढाबा पर रुक गया। गरमा-गरम आलू के पराठे अचार और दही के साथ लाने का ऑर्डर देकर उसने प्रिया को मैसेज किया कुक नहीं आया है खाना खाते घर पहुँचूंगा देर हो जाएगी। मैसेज रिसीव के नीले रंग के साथ जवाब आया ओके। उसने मोबाइल जेब में रख लिया और आसपास देखने लगा।

युवाओं में लोकप्रिय इस ढाबा कम रेस्टोरेंट कम कॉर्नर पर युवा जोड़े लड़के लड़कियां या न्यूली मैरिड कपल ही ज्यादा आते हैं । खाना भी इंडो वेस्टर्न है और कम दरों पर मिलता है। सेल्फ सर्विस है जब उसका टोकन नंबर डिस्प्ले होगा उसे खुद काउंटर से लाना होगा। एक लड़का साफ सफाई के लिए है वह जूठे बर्तन उठाकर टेबल साफ करता है। जब प्रिया यहाँ आती है चाहे दो-चार दिन के लिए वे दोनों एक बार यहाँ जरूर आते हैं। इसे प्रिया ने नाम दिया है लव स्पॉट। पास ही एक लड़की अपने हाथ से लड़के को पेस्ट्री खिला रही है लड़के के होठों पर लगी क्रीम टिशू से पोंछ रही है। दूसरी तरफ एक बोतल से कोल्ड ड्रिंक पीते जोड़ा है तो कहीं एक कोन से आइसक्रीम खाता। उन्हें देखते सुयोग प्रेम के सुखद अहसास से भर गया, वह भूल ही गया है कि वह यहाँ अकेला बैठा है। 93 काउंटर से जोर से आवाज लगाई गई तो वह हड़बड़ा गया। उसका आर्डर सर्व हो गया था वह आसपास देखने में इतना मशगूल था कि डिस्प्ले देख ही नहीं पाया।

सुयोग अपनी टाउनशिप में पहुँचा तब 9:45 बज चुके थे। पार्किंग में कहीं कहीं ही जगह खाली थी जबकि लगभग सभी गाड़ियाँ आ चुकी थीं। बाहर पाथवे पर खाना खाकर कुछ जोड़े और कुछ महिलाओं के ग्रुप चहल कदमी कर रहे थे। इक्का-दुक्का बुजुर्ग भी थे जो पार्क में बैंचो पर बैठे थे। बाइक से आगे बढ़ते उसने कुछ निगाहें खुद पर महसूस कीं जिन्हें वह लगभग रोज़ ही महसूस करता है और ये उसके दिल दिमाग में गुदगुदी सी भरते हैं। वह इन्हें नज़रअंदाज सा करते जरूर दिखता है लेकिन नज़रअंदाज़ करता नहीं है। इन्हीं में एक बेहद गहरी नज़र है जो दूर तक पीछा करती। कई बार वह अचानक पलट कर उन्हें देखता है। एक बार बार देखे गए चेहरे पर चस्पा ये निगाहें एक खूबसूरत महिला की हैं जिन्हें वह सोसाइटी के कार्यक्रम में हमेशा देखता रहा है। वह उनका नाम नहीं जानता लेकिन शायद सामने ही किसी बिल्डिंग में रहती हैं इतना जानता है। यूँ तो वे उम्र में काफी बड़ी हैं लेकिन हैं काफी स्मार्ट और कुछ तो है उनकी नज़रों में जो वह समझ नहीं पाता। वह इसे खुद के व्यक्तित्व का आकर्षण ही समझता है और कुछ गर्व से कुछ ख़ुशी से मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ जाता है। कामिनी भी लगभग रोज़ ही बाइक वाले इस स्मार्ट लड़के को आते जाते देखती है। कौन है किस बिल्डिंग में रहता है अकेला है या फैमिली है कुछ भी नहीं जानती लेकिन पता नहीं क्यों जब से उसके और मुकुल के बीच फासले बड़े हैं उसका ध्यान आसपास आते जाते पुरुषों लड़कों पर अनायास ही चला जाता है। कभी वह उनकी देहयष्टि से आकर्षित होती है कभी उनके रहन सहन स्टाइल से। वह खुद भी उलझती है इन सब बातों से लेकिन लगता है जैसे अब उसका उसके खुद के मन पर बस नहीं रहा।

सुयोग को इस टाउनशिप में रहते लगभग डेढ़ साल हो गए थे लेकिन किसी से बहुत अधिक जान पहचान नहीं थी। इसका एक कारण यह भी था कि वह सुबह जल्दी निकल कर रात देर ही घर लौटता था। फिफ्थ फ्लोर पर अपने फ्लैट का दरवाजा खोलकर अंदर आते ही उसने अपना बैग सोफे पर पटका और निढाल सा हो गया।

घर का सूनापन उस पर हावी होने लगा जिसके साथ ही दिन भर की ऑफिस की थकान थी। यह थकान सिर्फ ऑफिस की नहीं थी अकेलेपन की भी थी। अकेले रहते रहते थक चुका था वह। सुबह जाना रात में लौटना न घर में कोई उसका इंतजार करने वाला न बोलने बतियाने वाला। घर क्या सिर्फ चार दीवारें हैं जहाँ वह सोने नहाने धोने आता है। यह घर तो तब बनता है जब प्रिया यहाँ आती है चाहे तीन चार महीने में दो-चार दिन के लिए ही आए। उन दिनों में यह घर बोलता है चहकता है उसका इंतजार करता है उसका ध्यान रखता है और यह घर घर हो जाता है।

गहरी साँस लेकर सुयोग उठ खड़ा हुआ। कपड़े बदल मुँह हाथ धोकर वह बेडरूम में आ गया। प्रिया का मैसेज था घर पहुँचकर कॉल करना। वह बुदबुदाया घर कहाँ पहुँचा हूँ घर तो अभी बहुत दूर है डियर, जितनी दूर तुम हो। जहाँ तक मैं पहुँच ही नहीं पाता हूँ।

प्रिया से उसकी मुलाकात एक रिश्तेदार की शादी में हुई थी दोनों ही एक दूसरे को इस कदर भा गए कि उन्होंने नंबर एक्सचेंज कर लिए। तब सुयोग की नौकरी लगे 6 महीने हो चुके थे और वह एक पीजी में रहता था। प्रिया का कैंपस सिलेक्शन हो चुका था और वह जॉइनिंग का इंतजार कर रही थी। फोन पर लंबी-लंबी बातों ने उनकी एक दूसरे के लिए तड़प बढ़ा दी। सुयोग तो खैर अकेला रहता था लेकिन प्रिया के माता-पिता को समझते देर नहीं लगी और उन्होंने प्रिया से पूछताछ की तो उसने भी सुयोग के बारे में सब कुछ बता दिया। मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी सगाई के अगले ही हफ्ते प्रिया का ज्वाइनिंग लेटर आ गया लेकिन दूसरे शहर में। यह बात अपने मम्मी पापा को बताने के पहले प्रिया ने सुयोग को बताई थी और यह भी बताया था कि यह नौकरी उसका सपना है और वह इसे नहीं छोड़ सकती। सुयोग प्रिया को नहीं छोड़ सकता था और तय रहा कि जब तक दोनों को एक शहर में अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती वे शादी के बाद लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहेंगे।

पता नहीं वह जवानी का जोश था आदर्श बनने की चाह कैरियर के महत्व को समझने की उदारता या सभी का मिलाजुला रूप। तब सुयोग ने कहाँ सोचा था कि एक बार साथ रह लेने के बाद यह दूरी असहनीय होगी। असहनीय तो प्रिया के लिए भी है लेकिन सुयोग को संभाले रखने के लिए या खुद कमजोर न पड़ जाए इसलिए वह मजबूत बनी रहती है।

फोन की घंटी ने सुयोग की तंद्रा तोड़ी। प्रिया का वीडियो कॉल था सुयोग को लेटे हुए देखकर उसने पूछा "अरे घर कब पहुँचे फोन क्यों नहीं किया मैं कब से इंतजार कर रही हूँ?"

"अभी आया 10 मिनट हुए। बस फ्रेश होकर अभी लेटा हूँ। कैसी हो कैसा रहा दिन?"

"दिन तो बढ़िया रहा तुम सुनाओ" से शुरू हुआ बातों का सिलसिला देर तक चलता रहा। ऑफिस सहेलियाँ पीजी मम्मी पापा कितनी बातें होती हैं प्रिया के पास करने को। वह सुनता रहा मुस्कुराता रहा पंखे की हवा में उड़ते रेशमी केश गुलाब की पंखुड़ियों से हिलते होंठों को देखता रहा। नीले गाउन में ढंके बंधे उसके उरोजों को नजरों से पीता रहा। उनके अपने पास और खुद को उनके पास होने की चाहत में डूबता उतराता रहा। प्रिया लगातार बोलती रही वह बीच-बीच में हाँ हूँ करता रहा लेकिन शायद ही वह कुछ सुन और समझ रहा था। वह तो खोया था उन घाटियों में जहाँ जीवन का परम सुख है, ऐसा सुख जिसे पाए बिना जाना नहीं जा सकता।

"तुम सुन रहे हो मेरी बात" चिढ़ गई थी प्रिया। उसकी आँखों को देखते समझ गई थी कि सुयोग किसी और दुनिया में पहुँच चुका है। वह जानती थी कि अगर उसने सुयोग को न रोका तो वह उसे भी इसी दुनिया में खींच लेगा। वैसे तो इस दुनिया में प्यार है उसकी तड़प उसका एहसास भी है लेकिन फिर उससे बाहर आना बेहद मुश्किल है बेहद निराशाजनक। यह दूरी यह जुदाई तो उसे भी सालती है वह भी सिमट आना चाहती है सुयोग की बाहों में लेकिन जानती है अगर एक पल को खुद को कमजोर किया और कुछ ऐसा वैसा वादा कर बैठी तो कई वर्षों की मेहनत और सपने चकनाचूर हो जाएंगे। सुयोग इस समय बहुत इमोशनल है यह समझते हुए उसने हँसते हुए कहा "आ गए ट्रैक पर! सुयोग तुम भी जानते हो हम इतने दूर हैं कि हमारे बीच फिजिकल कुछ नहीं हो सकता, फिर क्यों तुम उसी बात को बार-बार सोचते हो?

" क्या करूँ नहीं रह पाता तुम्हारे बिना, यह खाली घर यह बिस्तर काटने को दौड़ता है। ऑफिस से घर आने का मन नहीं करता बहुत मिस करता हूँ बेबी तुम्हें।"

"मिस तो मैं भी करती हूँ तुम्हें, लेकिन तुम जानते हो न कि यह हम दोनों का फैसला था फिर तुम क्यों बार-बार वही बात करके मुझे गिल्ट फील करवाते हो? " प्रिया की आवाज में दुख और नाराजगी दोनों थे। उसकी आँखें छलक आईं जिन्हें देखकर सुयोग भी दुखी हो गया।

" सॉरी बेबी मेरा वह मतलब नहीं था, लेकिन क्या करूँ तुम्हें देखता हूँ तो रह नहीं पाता। सॉरी अब हम इस बारे में बात नहीं करेंगे।"

प्रिया का मूड बहुत खराब हो गया वे दोनों देर तक एक दूसरे को देखते रहे कोई कुछ नहीं बोला। दोनों के दिल भरे हुए थे आँखें नम थीं मोबाइल की स्क्रीन पर उंगलियों से छूते वे एक दूसरे की निकटता महसूस करने की कोशिश कर रहे थे। कॉल लंबा होने से कटने लगा तब उन्हें एहसास हुआ कि बहुत देर हो गई है। सुयोग ने कहा "बहुत देर हो गई है बेबी चलो सो जाओ सुबह नींद नहीं खुलेगी, फिर कभी फोन भूल जाती हो तो कभी नाश्ता स्किप करती हो।"

प्रिया ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। दोनों ने एक दूसरे को किस दिया गुड नाइट कहा और कॉल काट दी। नीली रोशनी के बंद होते ही कमरे में गहरा अंधेरा छा गया जिस ने सुयोग को घेर लिया। मोबाइल एक तरफ रखकर सुयोग ने तकिया उठाकर बांहों में भींच लिया दो बूंद आँसू तकिए में जज्ब हो गए। दिनभर की थकान ने सुयोग की उदास आंखों में नींद भरने की कोशिश की लेकिन दिल की तड़प और बेचैनी ने उसे परे खिसका दिया। देर तक अंधेरे में सुयोग करवटें बदलता रहा, प्रिया को याद करता रहा, अपने फैसले पर विचार करता रहा और इस अकेलेपन की मंजिल तलाशता रहा।

क्रमशः

मानसी वर्मा

Vermamansu7@gmail.com

मानसी वर्मा

बीई, एमबीए

डायरी लेखन, रिपोर्ट बुक रिव्यू, संस्मरण छोटी कहानिया