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देह की दहलीज पर - 8

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

कथाकड़ी 8

अब तक आपने पढ़ा :-मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? उसने अपनी दोस्त नीलम से इसका जिक्र किया। कामिनी की परेशानी नीलम को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है। वहीँ अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। रविवार के दिन राकेश सुबह से मूड में था और नीलम उससे बचने की कोशिश में। एक सितार के दो तार अलग अलग सुर में कब तक बंध सकते हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ? कामिनी की सोसाइटी में रहने वाला सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है। ऑफिस से घर आनेके बाद अकेलापन उसे भर देता है। उसी सोसाइटी में रहने वाली शालिनी अपने प्रेमी अभय की मौत के बाद अकेले रहती है। वह अपने आप को पार्टी म्यूजिक से बहलाती है लेकिन अकेलापन उसे भी खाता है।

अब आगे

दिन अभय की यादों में निढाल सा गुजरा लेकिन शाम की पार्टी ने उठने पर मजबूर कर दिया। 6:30 बजे तक उसने छोले बना लिए जरूरी व्यवस्था कर दी। शालिनी ने अलमारी से मस्टर्ड लॉन्ग कुर्ती और ऑफ व्हाइट प्लाजो निकाली। वैसे तो वह जींस टॉप साड़ी सभी कुछ पहनती है लेकिन यादों को समेटते वह थक सी गई थी इसलिए कुछ रिलैक्स पहनना चाहती थी। मैचिंग ज्वेलरी के लिए ड्रावर खोली लेकिन मन नहीं हुआ। तभी उसे अपने मनोचिकित्सक की बात याद आई जो उन्होंने आखिरी सीटिंग में कही थी, खूब खुश रहना सजना संवरना घूमना मूवी देखना और पार्टी करना मत छोड़ना। अकेलेपन को खुद पर हावी न होने देना। उसने तेज आवाज में म्यूजिक ऑन कर दिया और तैयार होने लगी। म्यूजिक के साथ थिरकते मन ने ज्वेलरी भी सिलेक्ट करवा दी और बालों की टॉप नॉट भी बनवा दी। अपने ऑफिस में शुरू के दो-तीन महीने तो वह सब से कटी कटी रही अभय का जाना ऑफिस का नया माहौल मम्मी पापा से दूर अकेले रहना उसे सहमाये रखते लेकिन काम में मन लगते ही वही पुरानी शालिनी उभरने लगी। ऑफिस कैंटीन कॉरिडोर उसकी हँसी का रसास्वादन करने लगे। दोस्ती बड़ी तो वीकेंड पार्टियां होने लगी पॉट लक पार्टी। इन पार्टियों में सभी होस्ट होते हैं एक एक डिश सभी बनाते हैं इसलिए सारा दिन इंतज़ाम में नहीं निकलता। साथ बैठकर समय बिताना डांस म्यूजिक और दुनिया भर की बातें। तैयार होकर शालिनी बाहर बालकनी में आ गई। अधिकांश बालकनी सूनी पड़ी थी अलबत्ता नीचे गार्डन और पाथ वे पर कई लोग घूम रहे थे। गाड़ियों की आवाजाही चालू थी उसने फिर एक नजर अपार्टमेंट पर डाली। सामने वाली बालकनी में रेट शॉर्ट्स ब्लैक टीशर्ट में खड़ा वह नौजवान गार्डन में खेलते बच्चों और बूढ़ों को देख रहा था। कुछ तो था उसमें जो शालिनी की नजरें अटक गई, कौन है यह पहले तो कभी नहीं देखा शायद कोई नया आया है। पता नहीं किराएदार है या मकान मालिक ? न जाने क्यों शालिनी बालकनी के ग्लास डोर के अंदर किसी हलचल की आहट लेने लगी। देर तक कोई हलचल नजर नहीं आई शायद अकेला है उँह मुझे क्या ? तभी दरवाजे की घंटी बजी शालिनी उसे देखने में इतनी मशगूल थी कि दोस्तों की गाड़ियां आते नहीं देख पाई।

सुबह से सुयोग अनमना था प्रिया से दूरी अब असहय होती जा रही थी। देर रात तक वह वीडियो कॉल पर उससे बातें करता रहा लेस की झीनी नाइटी में प्रिया के पुष्ट अंग प्रत्यंग उसके मन की उमंग को जगा रहे थे। वह उन्हें बाहों में कैद करना चाहता था जोर से भींच कर उनका रस पीना चाहता था उसकी नाजुक सुनहरी गर्दन के सहारे उतरते हुए उस गहराई में डूब जाना चाहता था और फिर समा जाना चाहता था प्रिया में। एकाकार हो जाना चाहता था कि दोनों जिस्मो का अलग-अलग कोई वजूद न रहे। प्रिया भी तो उतनी ही प्यासी थी वह भी उसके शब्दों को ओस के मोती सा चुन-चुन कर अपनी प्यास बुझा रही थी तड़प रही थी एकाकार होने के लिए और उस चरम पर आकर दोनों इतने बेबस थे इतने दूर कि चाह कर भी इस प्यास को नहीं बुझा सकते थे। खिन्न हो गया था सुयोग और उसने प्रिया से कहा था तुम जॉब छोड़ दो अब ऐसे नहीं रहा जाता। फट पड़ी थी प्रिया जॉब छोड़ने की बात पर या यूँ प्यासे रह जाने की झल्लाहट में। क्या समझते हो तुम सिर्फ तुम ही अकेले हो, सिर्फ तुम्हारी जरूरत है मेरी नहीं, क्या मैं तुम्हें कभी कहती हूँ जॉब छोड़ दो ? नहीं न फिर मेरी जॉब तुम्हारी जरूरतों के आगे इंपॉर्टेंट क्यों नहीं है ? गुस्से में उसने कॉल काट दी अब जब तब लव कॉल की परिणिति ऐसे ही होने लगी है। कुछ गलत तो नहीं कहा था प्रिया ने। 10 मिनट बाद सुयोग ने मैसेज किया सॉरी बेबी।

रात की मायूसी सुबह भी मन पर हावी थी ग्रीन टी की तलब लगी थी लेकिन उठने का मन नहीं था रात का तनाव वह अभी भी महसूस कर रहा था। प्रिया होती तो हँसती छेड़ती गुदगुदाती और समर्पण कर देती जिसमें सारा तनाव तिरोहित हो जाता तब सुबह ग्रीन टी की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। तभी प्रिया का वीडियो कॉल आ गया "उठो अभी तक सोए हो शनिवार है सुबह जिम जाते हो याद है न?" वह चुपचाप उसे देखता रहा मुस्कुराती प्रिया के चेहरे पर करीने से छुपाई हुई अकेलेपन और तड़प की लकीरें। कल उस पर नाराज होने के बोझ की लकीरें।

"अरे अरे उठ गया हूँ फ्रेश होकर वापस लेट गया था" उसने बहलाया।

"हूँ उठ गए हो सुबह-सुबह झूठ उठो जल्दी तैयार हो जिम जाओ मैं भी योगा कर रही हूँ लव यू डार्लिंग।" सुयोग जिम में देर तक पसीना बहाता रहा दिन अलसाते बीता शाम को मन बहलाने के लिए बालकनी में निकल आया।

बी ब्लॉक फिफ्थ फ्लोर पर मस्टर्ड लॉन्ग कुर्ते में उस आकृति ने उसे भी आकर्षित किया लेकिन वह शायद उसी की तरफ देख रही थी इसलिए वह नीचे गार्डन में देखने लगा।वह डी ब्लॉक फिफ्थ फ्लोर के बिल्कुल सामने पड़ता है। कुछ देर बाद उसने फिर देखा अंदर हॉल की लाइट ऑन थी कुछ लोग दिख रहे थे शायद पार्टी कर रहे हैं गहरी सांस लेकर सुयोग अंदर आ गया। पार्टी तो उसके दोस्त भी करते हैं सभी शादीशुदा हैं उनकी फैमिली साथ होती है ऐसे में शादीशुदा होते हुए भी वह अकेला उनके बीच सहज महसूस नहीं करता। कपल गेम में सब उसे जिस बेचारगी से देखते है उसका भाग जाने का दिल करता है।

शालिनी के सभी फ्रेंड आ गए थे लकी पॉट मतलब खाने के पॉट टेबल पर रखकर कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोल ली गई म्यूजिक मस्ती हंसी ठहाके बालकनी से कूद कूद दूसरों की खिड़की पर दस्तक दे रहे थे। सिर्फ सुयोग की खिड़की ही इस दस्तक का स्वागत कर रही थी। वह बार-बार बाहर बालकनी में निकल आता। तेज लाइट में अंदर का दृश्य साफ दिख रहा था कुछ लोग म्यूजिक पर थिरक रहे थे। चार लड़कियां पाँच लड़के मतलब कपल पार्टी नहीं है तो क्या यह लेडी यहाँ अकेली रहती है ? कौन है वह उत्सुकता ने उसके दिमाग के द्वार भड़भड़ाये।

शालिनी का मन शांत और उत्फुल था। ऐसे तो इस पार्टी में जिसे जो चाहिए था खुद ही ले रहे थे लेकिन फिर भी वह ध्यान रख रही थी। कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स का दौर खत्म हो चुका था म्यूजिक बज रहा था गेम खेलना शुरू हो गया। सब बैठ गए थे शालिनी बार-बार अपने चेहरे और पीठ पर किन्ही नजरों को महसूस कर रही थी। स्त्री की छठी इंद्री जो हर छुपी निगाह को भी पहचान जाती है उन में छुपे प्यार नफरत क्रोध वासना लिप्सा के भाव पहचान जाती है। वह जानती है इन निगाहों में उसके लिए चाहत है हाँ चाहत का स्वरूप थोड़ा अस्पष्ट है। वह सिर्फ प्यार नहीं है और शायद सिर्फ वासना भी नहीं। लगातार इन निगाहों से अब वह बेचैन होने लगी। पिछले कुछ दिनों से ऑफिस में ही उसने इन्हें पहचान लिया था, वह था सेक्शन मैनेजर तरुण। दो साल पहले ही ज्वाइन किया था उम्र लगभग बत्तीस तैंतीस साल होगी। घर की जिम्मेदारीयों में शादी नहीं की।ऑफिस के शादीशुदा स्टाफ द्वारा जब तक निशाना बनाया जाता है। पिछले 6 महीनों से वह शालिनी के दोस्तों के ग्रुप में शामिल हो गया है। शालिनी की कोई खास बातचीत नहीं है उससे न ही कोई दोस्ती लेकिन इस पार्टी का प्लान ग्रुप पर हुआ था जिसमें वह भी शामिल है इसलिए वह भी पार्टी में शामिल हुआ। वह इन नजरों को नजरअंदाज करके सामान्य बनी रही या बने रहने का दिखावा करती रही। इस समय तो वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी कि उसे यह निगाहें अच्छी लग रही है या नहीं। आज सुबह से जिस तरह अभय की यादों ने उसे घेर रखा था और वह खुद को अकेला महसूस करते हताश हो गई थी यह पार्टी और सभी की उपस्थिति उसे बहला ही रहे थे। वह नजरें उसे सहला रही थी लेकिन इसके आगे अभी भी वह कुछ सोच नहीं पा रही थी।

दस बजने को थे अब डिनर कर लिया जाए सभी ने सहमति जताई तो शालिनी उठ खड़ी हुई। तभी तरुण ने उसका हाथ पकड़कर कहा थोड़ी देर और रुको कुछ गाने शाने गाये बिना पार्टी कैसी ? तरुण के कहते ही म्यूजिक बंद कर दिया गया गाने शुरू हो गए। अंताक्षरी के बजाय नॉनस्टॉप गानों पर जोर दिया गया ताकि पार्टी की उमंग को बनाए रखा जाए। म्यूजिक के बंद होते सुयोग एक बार फिर बालकनी में आ गया यह पार्टी खत्म होने का समय तो नहीं है। एक के बाद एक गानों का दौर चलता रहा बालकनी में गानों की आवाज सुनाई दे रही थी वह भी कुर्सी खींचकर गानों का लुफ्त लेने लगा और अंदाजा लगाने लगा कि अगला गीत कौन सा होगा। तभी तरुण ने गाना शुरू किया 'क्या खूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो', पुराने दौर के सभी गानों के रीमिक्स आज की युवा पीढ़ी के होठों पर थिरकने लगे हैं शालिनी ने महसूस किया कि कुछ आंखों में इशारे हो रहे हैं। सुयोग को प्रिया की याद आ गई वह भी प्रिया के लिए अक्सर इस गाने को गाया करता था।

गाना ख़त्म होते ही शालिनी उठ खड़ी हुई "चलो भाई अब जोर से भूख लगी है" खाना माइक्रोवेव में गर्म किया गया सभी ने अपनी-अपनी प्लेट्स लगा लीं। लकी पॉट में इस बार स्नैक्स कोल्डड्रिंक छोले पुलाव आलू गोभी सलाद आइसक्रीम सभी थे कभी-कभी तो सिर्फ सब्जी ही निकलती या कभी एक सब्जी के साथ पुलाव और रोटियां। पार्टी की थीम यही रहती कि न कोई किसी को बताएगा न पूछेगा कि वह क्या लाने वाला है ? इस तरह से यह जीवन में जो मिला उसमें खुश रहने का संदेश देता आयोजन होता।

सब को खाना खाते देख सुयोग भी अंदर चला आया कुक खाना बना गया था उसने अपनी प्लेट लगा ली। सब्जी रोटी खाने का मन तो न था मन तो सामने फ्लैट में क्या बना होगा पर उलझा था लेकिन उसने मन को समझाया और खाना खा लिया। अभी प्रिया का फोन आता होगा अभी तक खाना नहीं खाया सुनेगी तो फिर उसकी हिदायतें शुरू हो जाएंगी बीवी नहीं माँ है मेरी सोचते हुए सुयोग हंस दिया। जब वह छोटा था सब उस से पूछते थे कि बड़े होकर किससे शादी करेगा और वह कहता था मम्मी से। उसके भाई बहनों ने बहुत सालों तक उसका इस बात पर मजाक उड़ाया। आज कोई कहे तो बताऊं कि देखो मैं गलत नहीं कहता था। प्रिया का फोन आ गया और सुयोग उससे बातें करने में मशगूल हो गया।

ग्यारह बज चुके थे सबको विदा करके शालिनी बिखरे कमरे को समेटने के बजाय बालकनी में आकर खड़ी हो गई। चांद की शीतलता उसके अंदर बाहर बिखरी पड़ी थी कुछ देर वह इसमें भीगती रही। सोने से पहले शालिनी ने कमरे को काफी कुछ व्यवस्थित कर दिया डिस्पोजेबल जूठी प्लेट्स ग्लास चम्मच एक पॉलिथीन बैग में डाले डायनिंग टेबल किचन का प्लेटफार्म साफ किया सोफे दीवान के कुशन व्यवस्थित कर लाइट्स बुझा कर वह बेडरूम में आ गई।

ज्वेलरी उतारने के लिए आईने के सामने खड़ी शालिनी खुद को देखकर ठिठक गई। उसके कानों में तरुण के गीत के बोल गूँज उठे शालिनी ने अपना चेहरा ध्यान से देखा तिरछे होकर अपनी कमर के कटाव को निहारा नितंबों के उभार को सहलाते वह खुद ही गुनगुनाने लगी क्या खूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो। एक बड़ी सी मुस्कान ने उसकी थकन जैसे उतार दी।

शनिवार वीक एन्ड की रात जैसा कुछ नहीं था आज। मुकुल टीवी के सामने बैठे चैनल बदल रहे थे कामिनी कमरे में इंतज़ार करते हुए करवटें बदल रही थी जबकि वह जानती थी कि मुकुल जल्दी नहीं आने वाले हैं। वह भी उनके आने के पहले गहरी नींद में डूब जाना चाहती थी लेकिन तन मन की बैचेनी नींद को आँखों से बहुत दूर किये हुए थी। नीलम किचन में यूँ ही कभी किसी ड्रावर को कभी फ्रिज को खोल बंद कर रही थी। वह चाहती थी कि राकेश सो जाएँ ताकि फिर वह भी आराम से सो सके। जानती थी उसके जाते ही राकेश की चाहतें अंगड़ाइयाँ लेने लगेंगी और वह उन्हीं से बचना चाहती थी। सच तो यह था कि राकेश को मना करते एक अपराधबोध सा भर जाता था उसके अंदर लेकिन अपने मन का वह क्या करे ? कितना तो समझाती है वह खुद को इतना प्यार करने वाला पति है उसकी अवहेलना ठीक नहीं लेकिन न जाने क्यों जैसे ही राकेश उसे छूता है तन मन छिटक जाता है।

बिस्तर पर लेटी शालिनी देर तक करवटें बदलते रही। खिड़की के बाहर लाइट बंद होने के कारण चांदनी की चमक और तेज हो गई थी। शीतल चांदनी में नहाई हवा के झोंके शालिनी के तपते शरीर को मानो और झुलसा रहे थे। हल्की नीली नाइटी पैरों पर घुटने तक चढ़ गई थी और शालिनी की गोरी सुडौल पिंडलियाँ बिस्तर पर फिसलते अपनी तपन से राहत पाना चाहती थी। लेकिन यह तपन उसके पूरे शरीर को अपनी गिरफ्त में लिए थी। बिस्तर पर लहराती बाहें किसी मजबूत थाह पाने को मचल रही थीं लेकिन उन्हें मायूस होना पड़ रहा था। एक हाथ की उंगलियाँ चेहरे पर गालों को सहलाते हुए गर्दन तक उतरी तो दूसरे हाथ से नाइटी को कुछ और ऊपर उठाकर सहलाते ऊपर और ऊपर बढ़ती गई। शालिनी के पूरे शरीर में मीठी मीठी लहरें उठ रही थी उसके हाथ खुद के ही शरीर पर इन लहरों के वेग को थामने की कोशिश में घूम रहे थे। लहरों से उपजा उन्माद उसे एक अलग ही दुनिया में ले जा रहा था। उसकी हथेलियां उंगलियां अब उसकी नहीं रही वह अभय की हो चुकी थीं और अभय की उंगलियों की उस छुअन ने इस उन्मादी आनंद को कई गुना बढ़ा दिया था। अधमुंदी आंखों से वह अभय की उपस्थिति को महसूस कर रही थी उसके होठों पर अभय के तपते होठों की छुअन गर्दन से होकर उसकी गोलाइयों गहराइयों के इर्द-गिर्द उसकी सांसों की तपिश वह स्वर्गीय आनंद की उस राह पर थी जहाँ प्रकृति के दो सबसे महत्वपूर्ण तत्व एक दूसरे में विलीन हो एकाकार हो जाते हैं। जिस आनंद को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं। जहाँ से सृष्टि नया जन्म लेती है। आनंद के शिखर पर पहुंचने के लिए शालिनी के हाथ अंधेरे में तेजी से तकिए के बगल में गए जहाँ इस आनंद को पूर्णता देने के लिए उसने पूर्व तैयारी कर रखी थी। अभ्यस्त हाथों ने मन की आंखों से अभय की उपस्थिति को साकार किया और अभय के साथ एकाकार होने की अनुभूति के साथ शालिनी का शरीर ढीला पड़ गया। कमरा बैटरी के चलने की गुनगुन की मध्यम आवाज से गूंज उठा।

क्रमशः

कविता वर्मा

Kvtverma27@gmail.com

कविता वर्मा

निवास इंदौर

विधा लेख लघुकथा कहानी उपन्यास

प्रकाशन

कहानी संग्रह परछाइयों के उजाले, कछु अकथ कहानी

उपन्यास छूटी गलियाँ (प्रिंट और मातृभारती पर उपलब्ध)

पुरस्कार अखिल भारतीय सरोजिनी कुलश्रेष्ठ पुरस्कार

अखिल भारतीय शब्द निष्ठा सम्मान

ओंकार लाल शास्त्री पुरस्कार बाल साहित्य के लिए।

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