देह की दहलीज पर - 2 Kavita Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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देह की दहलीज पर - 2

साझा उपन्यास 

देह की दहलीज पर 

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ 

कविता वर्मा 

वंदना वाजपेयी 

रीता गुप्ता 

वंदना गुप्ता 

मानसी वर्मा 

कथाकड़ी 2

कामिनी की सोच की रफ्तार कार की स्पीड के साथ बढ़ती जा रही थी। अन्तस में विचारों की रेलमपेल से सड़क की भीड़ अदृश्य सी हो गई। विचारों में गुम उसे पता ही नहीं चला कि चौराहे पर सिग्नल रेड लाइट शो कर रहा था। क्रॉस करते समय लेफ्ट साइड से आती गाड़ी के ड्राइवर ने उसे भद्दी सी गाली दी, तब उसकी तन्द्रा टूटी। उसने गाड़ी रिवर्स की और शर्मिंदगी और असहाय वाले भाव से इधर उधर देखकर चुपचाप गाड़ी में बैठी रही। ग्रीन लाइट जलते ही विचार फिर हावी होने लगे। यूँ तो हमेशा ड्राइविंग के समय वह रोड पर ही केंद्रित रहती थी, आज भी चौकस आँखे रोड पर फोकस थीं, किन्तु दिमाग उनका साथ नहीं दे रहा था। उसकी कार के आगे एक स्कूटी जा रही थी। हॉर्न बजाने पर भी साइड नहीं दे रही थी। उसने ध्यान से देखा... चौंक गई उसकी समवयस्क थी वह महिला जो स्कूटी चला रही थी, ध्यान आकर्षित किया उसकी ड्रेस और स्कूटी के हुक में लटके पर्स ने... हूबहू उसके जैसा पर्स और कुर्ता भी सेम वैसा ही जैसा उसे पिछले महीने मुकुल ने गिफ्ट किया था। क्या यह महज संयोग हो सकता था...? उसे एक पल में पुरानी देखी हुई फ़िल्म रंग बिरंगी याद आ गई। इस बात ने उसकी सोच को फिर से रात और सुबह वाले घटनाक्रम की ओर पहुंचा दिया। 'मैं भी पता नहीं क्या क्या सोचने लगती हूँ' उसने खुद से ही कहा और सिर को पीछे की ओर झटका, मानो विचारों को झटकने का प्रयास कर रही हो। उसे ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ा क्योंकि कॉलेज का गेट सामने दिख रहा था।

 

उसने गाड़ी पार्क की, पर्स और मोबाइल उठाया और गाड़ी का गेट खोला ही था कि उसके हाथ पर कुछ गीला सा टपका। नज़र ऊपर गई, जहाँ पेड़ की टहनी पर एक चिड़िया थी। अन्य दिनों में चिड़िया देख वह खुश हो जाती थी, किन्तु आज उसका खराब मूड और ज्यादा खराब हो गया। उसकी सफाई पसन्द आदत की वजह से कार में टिश्यू पेपर और सेनेटाइजर हमेशा ही रहता है। उसने हाथ पर गिरी बीट को साफ किया और कार से उतर गई। 

स्टॉफ रूम में पहुँचकर उसने टेबल पर पर्स रखा, सबका अभिवादन कर चेयर पीछे खींची और बैठ गई। अब उसने नोटिस किया कि वहाँ उपस्थित सभी मैडम अपने मोबाइल को देखकर धीमे धीमे हँस रही हैं और मेल प्रोफेसर सिर नीचा किए हुए बैठे हैं। उसने अपनी साथी प्रोफेसर नीलम की ओर देखकर इशारे से पूछा कि "क्या मैटर है?" नीलम ने मोबाइल की ओर इशारा किया, साथ ही चुप रहने को भी कहा। वह पसोपेश में थी, किन्तु चुप रहने के सिवाय कोई चारा नहीं था। उसे अजीब सी घुटन महसूस होने लगी वहाँ इस तरह चुपचाप बैठे रहने से... "कामिनी मैडम आपको प्रिंसिपल ने बुलाया है.." चपरासी की बात सुनकर उसे इस अप्रिय और बोझिल माहौल से निकलने में मदद मिली। प्रिंसिपल से मिलने के बाद वह सीधे अपने डिपार्टमेंट में पहुँची। कुछ स्टूडेंट्स को उसने नोट्स देने के लिए बुलाया था। वे उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 

कॉलेज का जॉब उसे अच्छा लगने का सबसे बड़ा और पॉजिटिव पक्ष यही दिखता है कि हर सत्र में नए किशोरवय स्टूडेंट्स से मुलाकात होती है। साल दर साल बदलती सोच के साथ खुद को अपडेट रखने का अवसर मिलता है। जॉब में एकरसता कभी भी नहीं महसूस होती। वह आज भी खुद को युवा और ऊर्जावान महसूस करती है, उसकी एक वजह यह भी है। स्टॉफ के कुछ लोग पुरानी लीक पर चलना पसन्द करते हैं, वे जल्दी ढल भी जाते हैं। उन्हें न तो टीचर्स पसन्द करते हैं और न स्टूडेंट्स। क्लास खत्म होने के बाद भी स्टूडेंट्स गए नहीं तो उसने प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। "मैडम वो अभी जैन मैडम नहीं आईं हैं, उनका चैम्बर बन्द है, आपको ऑब्जेक्शन न हो तो हम यहीं बैठकर अपना काम कर लें.."? उसे आपत्ति तो नहीं थी, किन्तु उसे खीज उत्पन्न हुई कि यह जैन मैडम क्यों समय की वैल्यू नहीं समझतीं। तभी वे बदहवास सी तेज़ी से कॉरिडोर में आती हुई दिखीं। हमेशा की तरह बेतरतीब सी साड़ी, उलझे बिखरे से बाल... पता नहीं ये करती क्या रहती हैं, देर से आती हैं, फिर भी अव्यवस्थित... चिरकुंवारी हैं, कोई काम भी ज्यादा नहीं होगा फिर भी.... तभी तो स्टॉफ के लोग मज़े लेते हैं कि कोई देखने वाला नहीं है तो किसके लिए तैयार होंगी... उसे इस मानसिकता से चिढ़ होती है, किन्तु बोलने वाले को चुप थोड़ी किया जा सकता है। उसे पता है कि अप टू डेट रहने पर भी लोग उन्हें लेकर बातें करेंगे ही कि किसके लिए तैयार होती हैं... गोयाकि कोई अपने लिए अपनी खुशी के लिए जी ही नहीं सकता... हँ... उनकी पर्सनल लाइफ... मुझे क्या करना वाले भाव से उसने विचारों को परे धकेल दिया। स्टूडेंट्स के जाने के बाद उसे चाय की तलब महसूस हुई। घड़ी की ओर देखा, टी ब्रेक में बीस मिनट बाकी थे। उसने मोबाइल खोल लिया। कॉलेज के स्टॉफ का एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बना हुआ है। उसे खोलते ही स्टॉफ रूम की घटना उसे कुछ कुछ समझ में आने लगी थी। उसने नीलम को कॉल कर अपने विभाग में बुलाया। पूरी बात अब जाकर स्पष्ट हुई। दीक्षित सर ने एक नॉनवेज जोक गलती से ग्रुप में डाल दिया था। कुछ कड़क प्रतिक्रियाओं के बाद ध्यान जाने पर डिलीट फ़ॉर आल कर दिया था, किन्तु यादव मैडम उसे महिलाओं के व्हाट्सएप्प ग्रुप में फ़ॉरवर्ड कर चुकी थीं। इसीलिए महिलाएं मुस्कुरा रहीं थीं और पुरुष साथी शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। "अरे! यदि गलती से डाल भी दिया था तो इग्नोर करना था। अब हम किशोरवय नहीं हैं, उम्र के इस सोपान पर इतने परिपक्व हैं कि गलत मंशा से नहीं डाला होगा।"

"तूने पढा था?" नीलम ने जब पूछा तो कामिनी ने फिर व्हाट्सएप्प खोला और अब लेडीज ग्रुप में उसे पढा। "ओह! पति पत्नी के इस जोक में शर्मा सर और मैडम का नाम लिखा है... इसीलिए शर्मिंदगी महसूस हुई।" उनके स्टॉफ में एक कपल था। शर्मा सर कॉमर्स में और मैडम फिजिक्स की प्रोफेसर। "वही तो गलत लगा... अपने ग्रुप में कुछ भी मज़ाक कर लो, परन्तु इस तरह सार्वजनिक रूप से निशाना बनाना गलत है, अब पति पत्नी हैं, तो क्या कॉलेज में भी.... " कहते हुए नीलम की आवाज़ थोड़ी तल्ख हो गई थी। पूरे स्टॉफ में उसे नीलम का मानसिक स्तर खुद से मेल खाता हुआ लगता है। दस साल से दोनों इसी कॉलेज में साथ काम कर रही हैं। कुलीग से ज्यादा दोनों दोस्त हैं और एक दूसरे से कभी कभी अपने मन की बात शेयर कर लेती हैं। बात करते हुए उन्होंने टिफ़िन खोल लिया था। नीलम के टिफिन में अचार और परांठा देखकर कामिनी ने पूछ ही लिया कि आजकल वह अचार ज्यादा खाने लगी है क्या?

"क्या करूँ यार! आजकल कुछ मन ही नहीं करता, हर समय एक उदासीनता सी महसूस होती है, काम करने में थकान लगती है। इसी वजह से राकेश भी मुझसे नाराज हो जाते हैं। कहते हैं कि मैं उन्हें वक़्त नहीं देती, किसी तरह से परांठे सेंक लिए, सब्जी बनाने का न तो मन था और न ही समय.. सोच रही हूँ कि कॉलेज कैंटीन से ही मंगवा लिया करूँगी।" उसकी बात सुनकर कामिनी को मुकुल द्वारा की गई अपनी उपेक्षा याद आ गई। 

"अच्छा.. आजकल मुकुल भी मेरी उपेक्षा करने लगे हैं, पता नहीं किस बात पर नाराज़ हैं। मैं जितना पास जाने की कोशिश करती हूँ, उतना ही वे दूर होने लगते हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों?"

"ऐसा क्यों भला..?" नीलम को सुनकर आश्चर्य हुआ.. "तुम दोनों तो लव बर्ड्स के रूप में मशहूर हो। तुम्हारा उदाहरण देते हैं सब कि कामिनी मैडम को देखो, कितनी अच्छी तरह से घर, पति और बच्चों को बॉंध कर रखा है, और साथ ही साथ खुद भी व्यवस्थित रहती हैं, इस उम्र में भी इतनी सुंदर कि कोई नवयुवती भी उनके सामने लजा जाए।"

नीलम की बात सुनकर कामिनी के अंदर दुबकी बेचैनी एक बार फिर उसे सिहरा गई और बेसाख्ता उसके मुँह से निकल पड़ा... "लेकिन यह सुंदरता आजकल मुकुल को आकर्षित कर ही नहीं पाती, सबके सामने सहज रहते हैं किंतु... मैं कितनी भी कोशिश करूँ लेकिन... या तो उन्हें मेरी जरूरत नहीं रही या वे मेरी जरूरत समझ नहीं पाते।" कहने के साथ ही कामिनी एक पल को खुद भी सिहर गई और उसकी आँखें नम हो गईं। वह नीलम से नज़रें चुराती हुई फर्श को देखने लगी। ऐसा नहीं कि नीलम से उसकी कभी अंतरंग बातें न हुई हों। पहले भी दोनों ने निजी बातें शेयर की हैं, किन्तु अपने प्यार की, अपनी उपेक्षा की नहीं। कामिनी सोचने लगी कि क्या उसकी डिजायर इतनी बढ़ गई है? यह बात उसके मुँह से निकली कैसे? नीलम क्या सोचेगी मुकुल के बारे में, या कि मेरे बारे में... क्या मुझे मेरी पर्सनल लाइफ इस तरह से डिस्कस करनी चाहिए थी? वह इसी ऊहापोह में बैठी थी कि अपने कन्धे पर नीलम के हाथ का स्पर्श पाकर मुकुल से मिली उपेक्षा का दर्द आँखों से बहने लगा। उसने तुरंत ही कंट्रोल किया और बोली..."छोड़ यार, मैं भी क्या फालतू बात ले बैठी।" नीलम उसका हाथ सहलाते हुए बोली.. "तू मुझे क्लोज फ्रेंड सिर्फ मानती है या मैं हूँ वास्तव में..?"

"कोई शक है? हम क्लोज फ्रेंड्स हैं और रहेंगे।" यह कहने के साथ ही कामिनी ने कैंटीन में फोन कर दो कप चाय डिपार्टमेंट में भेजने को कहा। चाय के साथ बात करना हमेशा आसान होता है। चाय पीते हुए नीलम ने समझाने वाले अंदाज़ में बोलना शुरू किया...

"तो सुन यह छोड़ने वाली बात नहीं है। इस उम्र में तो पुरुष कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग हो जाते हैं। मुकुल यदि तुझसे दूर जा रहे हैं तो वजह तो पता करनी पड़ेगी। राकेश तो आजकल मेरे आगे पीछे ही घूमते रहते हैं। बेटी की शादी के बाद तो कुछ शर्म लिहाज ही नहीं बचा किसी का... परन्तु तेरे यहाँ बच्चे और सासूजी दोनों के रहते कुछ संकोच होता होगा शायद... तू खुलकर बता क्या बात हुई।" मुकुल की उपेक्षा से उपजा दर्द था या खुद के अधूरेपन की प्यास कामिनी के शब्दों का प्याला जो छलका तो एकबारगी पूरा खाली होकर ही रहा। उसने रात से लेकर सुबह कॉलेज आने से पहले तक की सारी घटना उसे बताई। उसकी बातें सुनकर नीलम गहरे सोच में डूब गई। कामिनी के छलकते दर्द में उसे राकेश का चेहरा नज़र आया। एक पल को लगा कि वह खुद भी तो राकेश की उपेक्षा कर रही है। क्या वह भी अपने किसी दोस्त से इसका जिक्र करेंगे? क्या मैं गलत हूँ, या कि कामिनी गलत है। लेकिन मैं जानबूझकर तो कुछ नहीं करती। मुकुल का पक्ष भी समझना होगा। उसने खुद को संयत किया और फिर धीरे धीरे कामिनी का मन टटोलना शुरू किया। "हो सकता है कि मुकुल किसी परेशानी में हों, या थक जाते होंगे, इस वजह से तुझे समय नहीं दे पा रहे होंगे। तूने पूछा कभी?"

"इसमें पूछने वाली क्या बात है नीलू? बिज़नेस अच्छा चल रहा है, बच्चों का कैरियर सेटल होने जा रहा है, धन दौलत ऐश्वर्य सब तो है... और न ही मैं अन्य औरतों की तरह खुद की उपेक्षा कर थुल थुल हो गई हूँ। मुझमें भी ऐसी कोई कमी नहीं है जिसकी वजह से उनका ध्यान मेरी ओर आकृष्ट न हो।"

"ह्म्म्म, तूने बताया कि वे माँजी के साथ टीवी देख रहे थे। हो सकता है कि माँजी ने उन्हें रोक रखा हो और वे लिहाज के कारण उठ कर नहीं आए।"

"इतने सालों तक जिसने इस बात पर ध्यान न दिया हो वह क्या अब अपनी सोच बदलेगा?" कामिनी जहाँ बात का एक सिरा छोड़ती, वहीं नीलम दूसरे सिरे को पकड़ कर प्रश्न पूछना जारी रखती। "फिर तो जरूर बड़े होते हुए बच्चों के सामने...." उसकी बात काटकर कामिनी बोली कि बच्चे शुरू से अपने कमरे में रहने के आदी हैं। मैं बैडरूम के बाहर की नहीं अंदर की बात कर रही हूं... हमारी पर्सनल लाइफ हमेशा इतनी रोमांटिक रही है... अब क्या वजह हो सकती है, मुकुल मुझसे कटे कटे क्यों रहने लगे... ये सब सोचकर मुझे बहुत घबराहट सी हो रही है, कहीं उनकी ज़िंदगी में कोई और तो नहीं.....?" कहते कहते कामिनी फफक पड़ी। नीलम इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थी, क्योंकि कहीं न कहीं वह मुकुल की जगह खुद को रखकर सोचने को विवश थी।

"तू पैशन्स रख और कुछ दिन तक मुकुल के रूटीन को चेक करती रह, हो सकता है कि माँजी ने कुछ कहा हो, उस पर बिज़नेस का प्रेशर हो, साथ ही उसके बिज़नेस टूर पर आने जाने के समय थोड़ा सा ऑब्जरवेशन रखना... घर पर आने में देरी हो तो प्यार से वजह पूछना, मुझे विश्वास है कि तेरी शंका निर्मूल निकलेगी और प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी।"

"तू इतने यकीन से कैसे कह सकती है?" कामिनी उसकी बात पर भरोसा करना चाहती थी किन्तु उपेक्षा के दंश से उबर भी नहीं पा रही थी।

"वो इसलिए कि मैं भी आजकल राकेश के नज़दीक आने से विचलित सी हो जाती हूँ, यकीन मान, मैं उससे पहले से भी अधिक प्यार करती हूँ, उसका ख्याल भी रखती हूँ, बस उन पलों में सहज नहीं रह पाती। तेरी बातें सुनकर मुझे लग रहा है कि क्या मैं भी गलत हूँ, या कि राकेश भी तेरी तरह परेशान होंगे मेरे व्यवहार से...? बस इसीलिए मेरा दिल कह रहा है कि.... फिर भी चूँकि मुकुल पुरुष है, और जब राकेश से उनकी तुलना करती हूँ, तो थोड़ा अजीब लगता है, इसीलिए कुछ दिन उन पर विशेष नज़र रख, कि वे कहाँ जाते हैं, कब किस से मिलते हैं, उनके सामाजिक क्रियाकलाओं में कुछ दिन ज्यादा सहभागिता कर... अपनी तरफ से कुछ न कह न कर, बस उनकी तरफ से पहल का इंतज़ार कर... तुझसे ज्यादा दिन दूर रह ही नहीं पाएंगे।"

तभी चपरासी ने आकर कामिनी से कहा कि प्रिंसिपल ने रिपोर्ट्स मंगवाई हैं। "मैडम से कह दो कि क्लास खत्म हुई है अभी, थोड़ी देर से रिपोर्ट्स लेकर आती हूँ।"

नीलम से बात कर कामिनी खुद को हल्का महसूस कर रही थी। "शायद तू सही कह रही है... देखती हूँ कुछ दिन... अब मैं जरा ऑफिस में जा रही हूँ, उस केस की जाँच रिपोर्ट सबमिट करनी है आज, कंप्यूटर पर टाइप करवाकर मैडम को दे दूं... थैंक्स यार... सी यू..."

"ठीक है... और सुन रिपोर्ट ऐसी तैयार करना कि छात्रा को कोई परेशानी न हो ... ओके... टेक केअर..." कामिनी के जाने के बहुत देर बाद तक भी नीलम उसी के डिपार्टमेंट में बैठी गहन सोच में डूबी रही।

क्रमशः

डॉ वन्दना गुप्ता

drvg1964@gmail.com

निवास- उज्जैन (मध्यप्रदेश) 

शिक्षा- एम. एससी.एम. फिल.पीएच. डी. (गणित) सम्प्रति- प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष

विधा- कवितालेखलघुकथाकहानीउपन्यास

प्रकाशन- काव्य संग्रह 'खुद की तलाश में', कथा संग्रह 'बर्फ में दबी आग', साझा लघुकथा संकलन 'समय की दस्तक'

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक प्रतिष्ठित समाचारपत्रोंपत्रिकाओंवेब पत्रिकाओं में कवितालघुकथाकहानी एवं लेख प्रकाशित।

ऑनलाइन पोर्टल मातृभारती पर अनेक कहानियाँ एवं एक उपन्यास 'कभी अलविदा न कहनाप्रकाशित।

पुरस्कार और सम्मान- अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता 2016 में प्रथम पुरस्कारअखिल भारतीय साहित्य सारथी सम्मान 2018, मातृभाषा उन्नयन सम्मान 2019, अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 2019, लघुकथा श्री सम्मान 2019, 'रत्नावली के रत्नसम्मान - मार्च 2020