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रिसते घाव - भाग १४


राजीव श्वेता को देखकर अपनी जगह पर उठ बैठा । उसकी नजरें श्वेता से मिली । राजीव उसके चेहरे पर चढ़ उतर रहे भावों को पढ़कर तुरन्त ही समझ गया कि श्वेता जरुर एक निर्णय लेकर उसके पास आकर खड़ी हुई है ।
‘आपसे कुछ कहना था मामाजी ....’ श्वेता ने जैसे ही बोलना चाहा राजीव ने उसे टोक दिया ।
‘तुझे देखकर ही जान गया हूं कि क्या कहने आई है । मना करूंगा तब भी तो रुकने वाली नहीं है । कब जाना चाहती है ?’
‘जी ?’ राजीव की बात सुनकर श्वेता आश्चर्य हुआ । कुछ देर पहले जिस बात को लेकर राजीव भड़क रहा था अब उसी बात को लेकर उसका बदला हुआ नजरिया देखकर वह अचम्भे में पड़ गई ।
‘आप जैसा सोच रहे है वैसा कुछ भी करने वाली नहीं हूं ।’ श्वेता के स्वर में अजीब सा आत्मविश्वास झलक रहा था ।
‘तो अब कौन सी बात करने आई है ?’ राजीव श्वेता का बदला हुआ रंग देखकर अब हैरान था ।
‘यहां आकर शान्ति से बैठकर बातकर बेटी ।’ तभी रागिनी ने राजीव के नजदीक जाकर बैठ गई और श्वेता के बैठने के लिए उसने जगह कर दी ।
‘अमन से अभी फोन पर बात हुई थी । हम साथ रहना चाहते है लेकिन चोरों की भांति घर से निकलकर नहीं । आप जब तक पूरे मन से सहमति नहीं दे देते उसने मुझे यह घर छोड़ने से मना किया है ।’ श्वेता ने कुछ देर पहले अमन से हुई बात का सारांश बहुत ही कम शब्दों में अपने मामा मामी के सामने रख दिया ।
‘पागल समझ रखा है तुम दोनों ने मुझे ? कौन पिता अपनी बेटी को शादी किए बिना किसी लड़के के संग रहने जाने की अनुमति खुश होकर देगा ? उम्र का एक दायका पार कर लेने के बाद सन्तानों के फैसले के आगे मां बाप को झुकना पड़ता है । उसी में सभी की खुशी समायी होती है ।’ राजीव ने श्वेता को देखा और फिर गीली हो चुकी आंखों को उसकी नजरें बचाकर पोंछने लगा ।
‘शादी कर जाने के बाद भी कुछ लड़कियां खुश न होकर भी मां बाप की खुशी की खातिर अपनी जिन्दगी से एक सौदा कर ही पूरी जिन्दगी एक अनचाहे इन्सान के साथ गुजार देती है । मेरा और अमन का प्रेम पवित्र है और मजबूत है । आपका आशीर्वाद जुड़ जाएगा तो हम और मजबूत हो जाएंगे ।’ श्वेता ने कहा और तभी भी लाईट चली गई ।
कमरे में छाये हुए अन्धेरें को दूर करने के लिए इमर्जन्सी बैटरी को ढूंढ़ने के लिए रागिनी अपनी जगह से खड़ी हुई लेकिन राजीव ने उसे टोक दिया ।
‘रागिनी, कुदरत का संकेत ही समझो इसे कि जो बात गलत है उसका विरोध वह अंधेरा कर कर रही है । लिव इन रिलेशनशीप इन बच्चों को बड़ा ही लुभावना लग रहा है लेकिन जिस रिश्ते की कोई मजबूत धरातल ही न हो वह लम्बें समय तक कैसे टिक सकता है ? रही बात शादी टूटने की तो वह तो आपसी समझ का फेर होता है ।’
‘आपसे सहमत नहीं हूं मामाजी । शादी कर दो व्यक्तियों के बीच आपसी समझौता हो जाता है और एक अनकहा बंटवारा भी हो जाता है । हम शादी के विरोध में नहीं है लेकिन अपनी अपनी स्वतन्त्रता हम नहीं खोना चाहते ।’ श्वेता ने अपनी बात रखी ।
‘कैसी बात कर रही है री तू । अपने प्रेमी से शादी कर कहीं स्त्री की स्वतंत्रता खत्म होती है । मुझे ही देख खुश नहीं नजर आती क्या तुझे ?’ रागिनी, जो अब तक चुपचाप बैठी थी अचानक से ही बोल उठी ।
‘आप खुश इसलिए रह चुकी क्योंकि आपने अपना पूरा अस्तित्व मामाजी के प्यार में मिटा दिया । इस घर की परम्पराओं को सम्हालने के लिए आपने अपने खुद के रहन सहन को बदल डाला । जो मामाजी को पसन्द था उसे ही अपनी पसन्द बना लिया । मैं यह सब नहीं कर सकती मामी जी । अमन से प्यार जरुर करती हूं लेकिन मेरा खुद का अपना वजूद भी है जो मैं मरते दम तक वजनदार ही बनाएं रखना चाहती हूं ।’
‘रहने दे । तू नहीं समझ पाएगी क्योंकि तुझे परिवार की भावनात्मक ताकत जानने का मौका ही नहीं मिल पाया ।’ श्वेता का उत्तर सुनकर रागिनी ने उसे जवाब दिया । तभी लाईट भी आ गई और पूरा कमरा फिर से रोशनी से भर गया ।
‘आप ठीक कहती है मामी । जिस लड़की ने केवल परिवार को टूटते और बिखरते और घुटते हुए अपनी मां को जीते हुए देखा हो वह क्या जाने परिवार क्या होता है । मैं परिवार से दूर नहीं होना चाहती लेकिन अब तक जो भी देखा है उससे बहुत ज्यादा श्रध्धा नहीं रही शादी जैसे बंधन में ।फिर भी आखरी फैसला आपका होगा । आप लोग मना कर देंगे तो अमन के प्रति प्यार तो कम न होगा लिकिन उसके बिना जी भी नहीं पाऊंगी ।’ श्वेता ने कहा और किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वहां से चली गई ।

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